अनुसंधान की प्रक्रिया में संबंधित साहित्य के अध्ययन की प्रासंगिकता
श्रीमती सुमन गर्ग, श्रीमती कमला वशिष्ठ, डाॅ. नरेन्द्र कुमार गर्ग
1व्याख्याता, डी.सी.एस. शिक्षक प्रशिक्षण महिला महाविद्यालय, जयपुर (राजस्थान),
2निर्देशिका, स्कूल आफ एज्यूकेशन, जयपुर (राजस्थान)
3रीडर, शिरडी साईं बाबा आयुर्वेदिक मेडिकल काॅलेज, रेनवाल (जयपुर राजस्थान)
*Corresponding Author E-mail:- gnarendra15@yahoo.in / sumang.garg@gmail.com
प्रस्तावना
अनुसंधान की प्रक्रिया में संबंधित साहित्य का अध्ययन करना इस उपक्रम का वैज्ञानिक तथा महत्वपूर्ण चरण है क्योंकि व्यक्ति अपने अतीत से संचित एवं आलेखित ज्ञान के आधार पर नवीन ज्ञान का सृजन करता है। केवल मानव ही ऐसा प्राणी है जो सदियों से एकत्र ज्ञान का लाभ उठा सकता है। मानव ज्ञान के तीन पथ होते हैं-
ज्ञान को एकत्रित करना।
दूसरी पीढी को ज्ञान का स्थानान्तरण।
ज्ञान में वृद्धि करना।
यह तथ्य शोध में विशेष महत्वपूर्ण है क्यांेंकि वास्तविकता के समीप आने में उपलब्ध ज्ञान सक्रिय भूमिका निभाता है। व्यावहारिक आधार पर संपूर्ण मानव ज्ञान पुस्तकों तथा पत्र-पत्रिकाओं में संचित रहता है। मानव की प्रत्येक पीढी उस संचित ज्ञान को प्राप्त कर चिंतन कर, परिष्कृत कर अथवा पूर्ण व आंशिक परिवर्तन करके निरंतर विकसित करने का प्रयास करती है। किसी भी शोधकार्य की सफलता के लिए आवश्यक है कि शोधकर्ता पुस्तकालय का उपयोग करे। अपनी समस्या से संबंधित जितना भी यथा संभव उपलब्ध पुस्तकें, ग्रंथ, पत्रिकाऐं व गत वर्षों में एकत्रित किये गये अनुसंधानों के संतोषप्रद विवरण से अपने को पूर्व परिचित करे जिससे यह ज्ञात होता है कि समस्या से संबंधित किस पथ पर या किस पक्ष पर कार्य हो चुका है। उसमें शोध की कौनसी प्रविधि प्रयुक्त की गई और समस्या का कौनसा पक्ष ऐसा है, जिस पर अध्ययन नहीं किया गया है।
बोर्ग के शब्दों में- ‘‘संबंधित साहित्य का अध्ययन किसी भी शोधार्थी को इस योग्य बना देता है कि वह किये गये शोधकार्य को ढूंढ सके। उसका अध्ययन कर सके। संबंधित साहित्य के आधार पर अनुसंधानकर्ता अपने शोध की विधियां उपकरणों आदि का चयन करने में संबंधित साहित्य की सहायता ले सकता है।’’
डाॅ. ढौढियाल तथा फाटक के शब्दों में-‘‘समस्या से संबंधित साहित्य का पुनरावलोन अनुसंधान का प्राथमिक आधार है तथा अनुसंधान के गुणात्मक स्तर के निर्धारण में महत्वपूर्ण कारक है।’’
संबंधित साहित्य के पुनर्निरीक्षण का अर्थ
‘‘अनुसंधान विधि में साहित्य शब्द किसी विषय के अनुसंधान के विशेष क्षेत्र के ज्ञान की ओर संकेत करता है, जिसके अंतर्गत सैद्धान्तिक, व्यावािरिक और शोध अध्ययन आते हैं।
पुनर्निरीक्षण शब्द का अर्थ शोध के विशेष क्षेत्र के ज्ञान की व्याख्या करना एवं ज्ञान को विस्तृत करके यह बतलाना कि उसके द्वारा किया गया अध्ययन इस क्षेत्र में एक योगदान होगा।
गुड बार व स्केट्स के शब्दों में- ‘‘योग्य चिकित्सक को औषधि के क्षेत्र में हुए नवीनतम अन्वेषणों के साथ चलना चाहिए। स्पष्टतः शिक्षाशास्त्र में विद्यार्थी और शोधार्थी को शैक्षिक सूचनाओं और उपयोगों तथा उनके स्थापन से परिचित होना चाहिए।’’
संबंधित साहित्य के अध्ययन का महत्व
संबंाित साहित्य के अध्ययन के अभाव में शोधार्थी उचित दिशा में आगे नहीं बढ सकता है, जब तक कि उसे यह ज्ञान नहीं हो कि उस क्षेत्र में कितना कार्य हो चुका है? किस विधि से कार्य किया जाता है तथा उसके क्या निष्कर्ष आए हैं? तब तक ना तो वह समस्या का निर्धारण कर सकता है और ना ही उसकी रूपरेखा तैयार करके कार्य सम्पन्न कर सकता है।
संबंधित साहित्य का अनुशीलन शोधार्थी के ज्ञान को उच्च शिखर तक ले जाता है जहां वह अपने क्षेत्र के परस्पर विरोधी उपलब्धियों एवं नूतन अनुसंधान कार्यो से परिचित होता है।
जाॅन डब्ल्यू. बेस्ट के शब्दों में- ‘‘यद्यपि संबंधित साहित्य एवं विषय सामग्री को ढूंढना तथा अध्ययन करना एक लम्बा तथा थका देने वाला कार्य है तथा इसमें काफी समय भी लग जाता है, किन्तु शोध कार्य में इसका अपना विशेष महत्व हे। इससे शोधार्थी लाभ उठाकर अपने क्षेत्र व सीमाओं का ज्ञान प्राप्त करता है।’’
संबंधित साहित्य के अध्ययन के लाभ
संबंधित साहित्य के अध्ययन के निम्नलिखित लाभ हैं-
समस्या से संबंधित अन्य समस्या की खोज- बहुधा संबंधित साहित्य का अध्ययन करने के फलस्वरूप कोई ऐसी छोटी सी समस्या मिल जाती है, जिसका अध्ययन मुख्य समस्या के अध्ययन मेें सहायक होता है जिसके परिणामस्वरूप किया जाने वाला अनुसंधान कार्य और अधिक प्रभावपूर्ण होता है।
ज्ञान का विस्तार- बेस्ट ने कहा कि- ‘‘वास्तव में समस्त मानवीय ज्ञान पुस्तकों एवं पुस्तकालयों में उपलब्ध हो सकता है। मनुष्य अतीत के संचित व लिखित ज्ञान के आधार पर नवीन ज्ञान का निर्माण करता है।’’
पुनरावृत्ति से रक्षा- गुड व बार कहते हैं- संबंधित साहित्य के सर्वेक्षण द्वारा संबंधित विचारों, सिद्धांतों एवं परिकपनाओं को समझने में मदद मिलती है। इससे पुनरावृत्ति का डर नहीं रहता। संबंधित साहित्य का अध्ययन एक ही समस्या पर बार-बार अध्ययन करने से रोकता है।’’
अन्तदृष्टि का विकास- संबंधित साहित्य के पुनरावलोकन से शोधार्थी को अपने अनुसंधान के विधान की रचना करने के संबंध में अन्र्तदृष्टि प्राप्त हो सकती है। यह अन्र्तदृष्टि उपकरणों के चयन, समस्या के परिसीमन, समस्या की सुस्पष्ट परिभाषा आदि के बारे में जानकारी प्राप्त होती है।
अनुसंधान आकल्प में सहायता- साहित्य के पुनरावलोकन से अनुसंधानकर्ता को समस्त अनुसंधान प्रक्रिया के संप्रत्यय विस्तृत तथा गहन हो जाता है। इससे मानस पटल पर शोध कार्य का प्रक्रम के प्रत्येक चरण का स्पष्ट तथा प्रभावपूर्ण चित्र उभर कर आता है।
सामान्य अनुसंधान संबंधी निर्देशों का ज्ञान- इससे शोधार्थी को सामान्य निर्देश प्राप्त करने में सहायता मिलती है। इन्हीें महत्वपूर्ण बातों के कारण भी समस्या या नवीन खोज में संबंध में कार्य करने से पूर्व संबंधित साहित्य का पुनरावलोकन कर लेना चाहिए।
समस्या का तुलनात्मक अध्ययन- समस्या का तुलनात्मक अध्ययन करने हेतु आंकडे उपलब्ध हो सकते हैं।
अनुसंधानकर्ता को समस्या की सामान्य जानकारी प्राप्त करने में मदद मिलती है।
शोध प्रबंध के एक महत्वपूर्ण अंग के रूप में शोधार्थी के ज्ञान, उनकी स्पष्टता तथा कुशलता को बढाता है।
समस्या के चुनाव, विश्लेषण तथा अभिकथन में सहायता प्राप्त होती है।
समस्या की सीमांकन आसानी से किया जा सकता है।
अध्ययन की रूपरेखा तैयार करने में सहायता मिलती है।
अध्ययन की दृष्टि से श्रम की बचत होती है।
शोधार्थी में आत्म विश्वास पैदा होता है।
शोधार्थी को त्रुटियों से बचाता है तथा सावधान रखता है।
गुड, बार एवं स्केट्स (1941) द्वारा संबंधित साहित्य के अध्ययन के उद्देश्य उपरोक्त के अलावा निम्नलिखित बताए गए हैं-
यह तुलनात्मक आंकडों को प्राप्त करने तथा अंक विश्लेषण में सहायता प्रदान करता है।
यह समस्या के समाधान हेतु अनुसंधान की समुचित विधि, प्रविधि, विश्लेषण आदि की जानकारी देता है।
इससे समस्या को गहराई से समझने में सहायता मिलती है।
संबंधित साहित्य के अध्ययन के स्रोत
(अ) प्रत्यक्ष स्रोत
(ब) अप्रत्यक्ष स्रोत
(अ) प्रत्यक्ष स्रोत-
पत्र-पत्रिकाऐं, सामाजिक साहित्य।
ग्रन्थ, निबंध, पुस्तिकाऐं, वार्षिक पुस्तकें व बुलेटिन
स्नातक- डाॅक्टरेट व अन्य शोध पत्र।
(ब) अप्रत्यक्ष स्रोत
शिक्षा पर विश्वज्ञान कोष।
संदर्भ सूची।
पत्रिकाऐं।
उद्धरण स्रोत।
शोधार्थी ने अपनी समस्या को ठीक प्रकार से समझने, अन्र्तदृष्टि विकसित करने, पुनरावृत्ति से रक्षा करने, अनुसंधान विचार रचना में सहायता, ज्ञान के विस्तार, प्रमुख समस्याओं से संबंधित अन्य समस्याओं के अन्वेषण हेतु संबंधित साहित्य का अध्ययन किया।
संबंधित साहित्य के सर्वेक्षण के कार्य
विभिन्न विद्वानों ने इनके पांच कार्यों का वर्णन किया है, जो निम्नांकित है-
इसके माध्यम से प्रायः यह स्पष्ट हो जाता है कि इस समस्या के अंतर्गत अनुसंधान की स्थिति कैसी है। कब, कहां और कैसे अनुसंधान कार्य किये गए हैं?
यह अध्ययन इस तथ्य का ज्ञान प्रदान करता है कि अनुसंधान कार्य किस सीमा तक सफलता प्राप्त कर सकेगा।
यह अध्ययन कार्य के लिए आवश्यक पृष्ठभूमि तैयार करता है तथा अनुसंधानकर्ता को एक सुगम मार्ग प्रदान करता है।
इसमें अनुसंधान में अपनाई जाने वाली विधियों, प्रयोग मे लाने योग्य उपकरणों तथा समंकों के विश्लेषण के लिए प्रयोग में आने वाली उचित तथा सही विधियों को पूर्ण रूप से स्पष्ट करता है।
इसके माध्यम से समस्या का परिभाषीकरण, अवधारणा के निर्माण, समस्या के सीमांकन तथा विभिन्न परिकल्पनाओं के निर्माण में सुगमता प्राप्त होती है।
संबंधित साहित्य के सर्वेक्षण की सीमाऐं
इसकी सीमाओं का ज्ञान होना भी अनुसंधानकर्ता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि संबंधित साहित्य का अध्ययन करते समय अनेक सावधानियां रखने में इससे सहायता प्राप्त होती हैं
इस विषय की संबंधित प्रमुख सीमाओं का वर्णन निम्नलिखित है-
साहित्य के अध्ययनकर्ता पर साहित्य के लेखक की विचारधार अथवा चिन्तन का प्रभाव पडता है, जो कि अनुसंधान की दिशा ही असंतुलित कर देता है। अतः अनुसंधानकर्ता को साहित्य का अध्ययन करते समय निष्पक्ष रहना चाहिए।
प्रायः अन्य अनुसंधानकर्ताओं के द्वारा विभिन्न प्राप्त निष्कर्षों के आधार पर ही अपने अध्ययन में प्राप्त निष्कर्षों की तुलना करते समय अनुसंधानकर्ता जिन महत्वपूर्ण तथ्यों की उपेक्षा कर देता है, वे अग्रलिखित हैं-
दूसरे अनुसंधान के परिणाम में न्यादर्श की क्या-क्या विशेषताऐं थी?
पूर्व में अनुसंधानकर्ताओं ने किस विचारधार का प्रयोग किया और क्यों?
उनके द्वारा प्रयोग में लाये गये उपकरणों की वैद्यता कितनी थी?
पूर्व अनुसंधानकर्ताओं ने निष्कर्षों को निकालने में किस सीमा तक सांख्यिकी तथा तार्किक विधियों का प्रयोग किया है?
पूर्व अनुसंधानकर्ताओं ने किन-किन परिकल्पनाओं का निर्माण किया था?
उपरोक्त सभी तथ्य संबंधित साहित्य के सर्वेक्षण की सीमाऐं मानी जाती हैं। अतः अनुसंधानकर्ताओं को अपने अध्ययन में इन तथ्यों को ध्यान में रखकर कार्य करना चाहिए।
संदर्भ ग्रंथ
1. गेरेट, हेनरी ई. स्टेटिक्स आॅफ साइकोलोजी एण्ड एज्यूकेशन, न्यूयार्क
2. बेस्ट जान डब्ल्यू - रिसर्च इन एज्यूकेशन यू.एस.ए. पेक्टिस हाॅल (इंक)
3. वशिष्ठ, कमला - पर्यावरण शिक्षण, मैसर्स यूनिवर्सिटी बुक हाउस, प्रथम संस्करण, 2006
4. शिविरा पत्रिका विशेषांक - मई, जून 2008
5. नई शिक्षा: राष्ट्रीय शैक्षिक मासिक पत्रिका - 30 सितम्बर, 2009
1. The Educational Review - "Jan 2001 - Vol. 107
2. Indian Educational Review - "Vol. 26 (3) 87-94
3. www.indiaenvironmentportal.org-in/fil
Received on 11.03.2013 Modified on 01.04.2013
Accepted on 12.04.2013 © A&V Publication all right reserved
Int. J. Rev. & Res. Social Sci. 1(1): July –Sept. 2013; Page 18-20