रायपुर नगर की मलिन बस्तियों का अध्ययन
श्रीमती आकांक्षा पाण्डेय
सहायक प्राध्यापक, विप्र कला, वाणिज्य एवं षारीरिक षिक्षा महाविद्यालय, रायपुर (छ.ग.)
सारांश
मलिन बस्तियांॅ नगरों में समस्याग्रस्त क्षेत्रों के रूप में जानी जाती है इसलिये इनको विषेश महत्व नहीं दिया जाता हैं, नगर में भी ऐसे क्षेत्र उपेक्षित रहते हैं परन्तु समस्त कमियों के बावजूद इसका महत्व स्पश्ट है, क्योंकि इन बस्तियों द्वारा ही नगर का कार्य सुचारू रूप से चलता है। नगरीय कार्यों के लिए आवष्यक मानव श्रम की पूर्ति इन्हीं के द्वारा होती है। प्रवासियों के लिए मलिन बस्तियांॅ कार्य स्थल के समीप सस्ते आवासों के रूप में उपयोगी होती है। नगरों में सम्पन्न होने वाले विभिन्न कार्यों के लिए आवष्यक सस्ते श्रमिकों की पूर्ति इन्हीं मलिन बस्तियों के निवासियों के द्वारा ही संभव होती है।
वर्तमान समय में नगरीकरण एवं औद्योगीकरण के परिणामस्वरूप अनेक समस्याओं का प्रादुर्भाव हुआ है। इन विभिन्न समस्याओं में मलिन बस्तियों का विकास एक प्रमुख समस्या है। रोजगार, षिक्षा, चिकित्सा आदि की सुविधा से आकर्शित होकर समीपवर्ती क्षेत्रों के ग्रामीण प्रवासी रायपुर नगर की ओर आकर्शित होते रहते है। इसके साथ ही विगत दषकों से रायपुर नगर में नगरीकरण एवं औद्योगीकरण की गति तीव्र रही है परिणामस्वरूप रायपुर नगर में जनसंख्या दबाव बढ़ने से उत्पन्न आवासीय समस्या का दुश्परिणाम मलिन बस्तियांॅ है। मलिन बस्तियांॅ मुख्यतः केन्द्रीय षासन राज्य षासन नगर निगम आदि की भूमि तथा अन्य निजी खाली भूमि पर निर्मित हुई है। नगर के औद्योगिक विकास का तात्पर्य नगर के कार्यों रोजगार के अवसर में वृद्वि से हैं, जिसकी पूर्ति के लिए मानव श्रम की आवष्यकता होती है, जिसकी पूर्ति मलिन बस्तियों द्वारा होती है।
रायपुर नगर एक प्रमुख व्यापारिक, षैक्षणिक, व्यवसायिक, औद्योगिक एवं प्रषासनिक केन्द्र है। जहांॅ सामाजिक, आर्थिक व अन्य समस्यायें हो जाती हैं क्योंकि लोगों का पलायन सुविधाओं की ओर होता है। मलिन बस्तियों की समस्या ने वर्तमान समय में राश्ट्रव्यापी रूप धारण कर लिया है। इस एक समस्या ने अनेक सामाजिक समस्याओं का फैलाव करने में प्रमुख भूमिका निभाई है।
मलिन बस्तियों का अर्थ एवं परिभाशा -
नगरों की निम्न स्तरीय व अनियमित बस्तियों को गंदी, मलिन बस्ती, कच्ची बस्ती, स्लम ;ैसनउद्धएषेन्टीज ;ैींदजलद्धए गेटो ;ळीमजजवद्धए आदि नामों से जाना जाता है।
मलिन बस्ती ऐसे आवासीय क्षेत्र को कहते हैं जो मानव आवास के योग्य हो । ऐसे अयोग्य आवासीय क्षेत्रों के लिए अनेक षब्दों का प्रयोग किया जाता है जैसे- गैर स्तरीय क्षेत्र, गिरावट वाला क्षेत्र, अयोग्य आवासीय क्षेत्र, गंदी बस्ती इन षब्दावलियों का प्रयोग कुछ मकानों सामाजिक और आर्थिक दषा उनके निर्धारण के तत्व होते है। इस प्रकार न्यूनतम नागरिक सुविधाओं से वंचित गंदगी युक्त बेतरतीब बनावट, सघन बसाव तथा तंग गलियों वाले निम्न स्तरीय आवासीय क्षेत्रों का विकास होता है। यही विषिश्ट क्षेत्र ‘‘मलिन बस्तियों ‘‘ के नाम से जाने जाते हैं।
संयुक्त राश्ट्र संघ के अनुसार,
‘‘मलिन बस्ती एक मकानए मकानों का एक समूह या क्षेत्र है जिसकी विषेशता भीड़-भाड़ युक्त अस्वास्थ कर दषा तथा सुविधाओं का अभाव है। इन दषाओं या इनमें से किसी एक के कारण इसके रहवासियों के स्वास्थ्य सुरक्षा एवं नैतिकता को खतरा उत्पन्न हो जाता है। ‘‘
भारत सेवक समाज के अनुसार,
‘‘मलिन बस्ती उस क्षेत्र को कहा जा सकता है जो अस्त व्यस्त बसा हो, अव्यवस्थित रूप से विकसित हो तथा समान्य रूप में वह क्षेत्र जनाधिक्य व भीड़-भाड़ युक्त हो टूटे-फूटे मकान हो तथा उनकी मरम्मत के प्रति उपेक्षा बरती गई हो।‘‘
अतः हम कह सकते है कि मलिन बस्तियांॅ वे हैं जो अव्यवस्थित होए गंदे पानी की नालियों से लैस हो और उनमें सफाई की कोई व्यवस्था न हो।
मलिन बस्तियों की उत्पत्ति के कारण -
मलिन बस्तियों की उत्पत्ति अनायास नहीं वरन् क्रमिक अवस्थाओं का प्रतिफल है। मलिन बस्तियों का अभ्युदय तीव्र नगरीकरण का परिणाम है। ग्रामीण प्रवासियों को अनियोजित नगर विकास के कारण आवासीय समस्या का सामना करना पड़ता है। प्रत्येक मनुश्य कार्य स्थल एवं सुविधाओं के समीप ही आवास चाहता है जिससे किसी विषिश्ट स्थल पर सघन बसाहट की स्थिति निर्मित होती हैं तथा आवष्यक सुविधाओं के लिए भूमि का अभाव हो जाता है। जनसंकुलता के कारण एक ही कमरे में एक से अधिक व्यक्तियों को रहना पड़ता है। उससे अनियोजित एवं सघन बसाहट वाली गंदी बस्तियों की उत्पत्ति होती है।
डांॅ. लेखराज सिंह ने भारतीय मलिन बस्तियों पर आधारित अपने लेख में ग्रामीण नगरीय प्रवास, तीव्र गति से औद्योगीकरण, आवासों का अभाव, संसाधनों की अपर्याप्तता, नगरीय आंतरिक संरचना की अनियोजित वृद्वि को मलिन बस्तियों की उत्पत्ति का मुख्य कारण माना है।
इसके अतिरिक्त प्राकृतिक प्रकोप, नगरीकरण, बेरोजगारी, जनसंख्या वृद्धि, नगरीय आकर्शण, श्रमिक व निम्न वर्गों की अधिकता, गरीबी, मकानों की कमी, प्रान्तीयता व जातिवाद की भावना, सरकारी प्रयासों एवं व्यवहारिक आवास नीति के अभाव के कारण मलिन बस्तियों की उत्पत्ति होती है।
मलिन बस्तियों की प्रकृति एवं स्वरूप -
“Slum May be Characterized as aeroy of Substand housing Conditions within a City. A Slum is always an area.’’
According to Bargel
बर्गेल के इस कथन से स्पश्ट हैं कि मलिन बस्तियांॅ हमेषा एक ऐसा क्षेत्र होती है, जो निम्न श्रेणी के मकानों द्वारा निर्मित होते है। अकेले मकान द्वारा मलिन बस्तियों का स्वरूप स्पश्ट नहीं होता। वर्तमान में सामान्यतः नगर के मध्य भाग में या प्रवासियों द्वारा अवैध कब्जों के परिणाम स्वरूप नगर के बाहय भागों में मलिन बस्तियांॅ विकसित होती है। खाली भूमि जो बेचने के लिए न हो या जिनका कोई स्वामी न, हो जो षासकीय निजी या किसी ट्रस्ट की संपत्ति हो ऐसी भूमि पर ही मलिन बस्तियांॅ षीघ्रता से विकसित होती जाती है।
मलिन बस्तियों की स्थिति को स्पश्ट करते हुए महात्मा गांधी ने विद्यार्थियों की एक सभा में अपना मत प्रकट करते हुए कहा था-
‘‘ अपनी आंॅखों से देखे बिना तुम लोग कल्पना तक नहीं कर सकते कि इस दुनिया में इंसान के रहने के लिए ऐसे भी स्थान हो सकते है। उस बस्ती को देखने के बाद खाना-पीना भी अच्छा नहीं लगता, वहांॅ ऐसी गंदगी थी कि उसका वर्णन करने के लिए मेरे पास षब्द तक नहीं हैं। ‘‘
नगरीय जीवन पर मलिन बस्तियों का प्रभाव -
मलिन बस्तियांॅ वास्तव में महानगरों के अभिन्न अंग हैं। नगरीय विकास के साथ ही साथ मलिन बस्तियांॅ भी विस्तृत होती जाती है तथा इनका स्वरूप सामाजिक - आर्थिक समस्या के रूप में दृश्टिगोचर होता है। सामाजिक समस्याओं का प्रभाव समस्त नगरीय जीवन पर स्पश्ट रूप से पड़ता हैं आधुनिक समाज के लिये इनका विकास एक चुनौती है। मलिन बस्तियों में आवास संबंधी अव्यवस्था अनेक प्रकार की सामाजिक, आर्थिक, व्यक्तिक, पारिवारिक, स्वस्थ्य संबंधी तथा पोशणात्मक समस्याओं को जन्म देती है। इनके कारण नगर में गंदगी फैलती है क्योंकि ये नगरों के सभी भागों पर विस्तृत होती है।
इन क्षेत्रों के कारण ही नगरों में जन्म दर एवं मृत्यु दर उच्च होता है। बाल अपराध, नैतिकता की कमी मानवीय गुणों का हृास, व्यक्तिक, पारिवारिक, सामुदायिक विघटन, आय में कमी, निम्न जीवन स्तर आदि समस्याओं का जन्म मलिन बस्तियों के कारण होता है। इन क्षेत्रों के अस्तित्व के कारण अपराध तथा अपराधियों को बढ़ावा एवं आश्रय प्राप्त होता है। दूशित वातावरण के कारण श्रम षक्ति का हृास एवं विभिन्न प्रकार की बीमारियों का फैलाव होता है। निम्न आय स्तर और निम्न कोटि के रहन सहन के कारण देष की प्रगति में बाधा उत्पन्न होती है।
नगर के आवासीय क्षेत्र -
नगर में भूमि का सर्वाधिक भाग आवासीय क्षेत्र के रूप में उपयोग में लाया जाता है। 34.9ः विस्तृत इन आवासीय क्षेत्रों को सुविधाओं की उपलब्धता स्वच्छता, रहन-सहन के स्तर तथा आय के आधार पर ही तीन भाग में विभाजित किया जा सकता हैंः-
(अ) उच्च वर्गीय आवासीय क्षेत्र:
सुविधायुक्त मकान, पक्के बहुमंजीले एवं साफ सफाई की उचित व्यवस्था वाले क्षेत्र इस समूह के अंतर्गत आते हैं। इस क्षेत्र के निवासियों की औसत वार्शिक आय 1,80,000/- रूपये से अधिक होती है। इसके अतिरिक्त इन क्षेत्रों में षिक्षा का स्तर भी उपेक्षाकृत उच्च होता है। सयपुर नगर में सिविल लाईन, फाफाडीह, पेंषनबाड़ा, विवेकानंद कालोनी, वल्लभनगर, कटोरातालाब, षांतिनगर, पंचषील नगर, रविनगर, रेल्वे काॅलोनी, लोधीपारा, नहरापारा, कालीबाड़ी, रामसागरपारा, सिंधी कालोनी, समता कालोनी, सुंदरनगर आदि उच्च वर्गीय आवासीय क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं।
(ब) मध्यम वर्गीय आवासीय क्षेत्र:
इसके अंतर्गत वे आवासीय क्षेत्र आते है जहांॅ मकानों में मूलभूत सुविधाओं की उपलब्धता हैं तथा बसावट सघन है। यह सामान्यतः 72000/- से 1,80,000/- रूपये वार्शिक आय वाले मध्य वर्गीय परिवारों का निवास होता है। पुलिस लाईन टिकरापारा, तेलीबांधा, रविनगर, जेलक्षेत्र, हाउसिंगबोर्ड काॅलोनी, राजातालाब, बैजनाथपारा, बुढ़ापारा, सत्तीबाजार, गोलबाजार, सदर बाजार, हलवाई गली, नयापारा, जोरापारा, रामनगर, बढ़ईपारा, किसान राईस मिल क्षेत्र, मोमिनपारा, तात्यापारा, कंकालीपारा, दूधाधारी मंदिर, जैतू साव मठ क्षेत्र, पुरानी बस्ती, कुषालपुर, ब्राम्हणपारा, तिवारी स्कूल क्षेत्र आदि मध्यम वर्गीय आवासीय क्षेत्र है।
(स) निम्नवर्गीय आवासीय क्षेत्र:
निम्न वर्गीय आवासीय क्षेत्र में आवासगृह बुनियादी सुविधाओं से रहित तथा दोशपूर्ण बनावट वाले है। सामान्यतः 7200/- रूपये से निम्न आय वर्ग के व्यक्ति अत्यधिक जनसंकुलता तथा गंदगी से दूशित जिन छोटे दोशपूर्ण मकानों में रहते हैं वे क्षेत्र निम्न वर्गीय आवासीय क्षेत्र है। इसके अंतर्गत रायपुर नगर में पुरानी बस्ती, राजेन्द्र नगर, हनुमान नगर, गांधीनगर, विद्यानगर, फाफाडीह ग्राम, फोकटपारा, पारसनगर, नर्मदापारा, रजबंधा क्षेत्र, बांसटाल, बैजनाथपारा, कालीबाड़ी, सिंधी कालोनी, कुकरी तालाब, चूना भट्टी, रामनगर,
रामकुण्ड, ईदगाहभाठा, कालीनगर, चंगोराभाठा, कुकुरबेड़ा, टिकरापारा आदि क्षेत्र आते है।
सन 1976 से 1991 की अवधि के लिये निर्मित विकास योजना के अनुसार इन निम्न स्तरीय आवासीय क्षेत्रों को पुनः दो भागों में बांॅटा जा सकता हैं:-
(अ) मलिन बस्तियांॅ (ब) झुग्गी झोपड़ियांॅ
मलिन बस्तियांॅ ऐसे क्षेत्र हैं जिनमें बुनियादी सुविधाओं का अभाव होता है। टूटे-फूटे मकान निम्न स्तरीय पर्यावरण जनसंकुलता आदि इस क्षेत्र की प्रमुख विषेशतायें है। रायपुर नगर में पारस नगर, कुदरापारा, गुढ़ियारी, चूना भट्टी, बजरंग नगर, नेहरूनगर, वीरभद्र नगर, डांॅ. राजेन्द्र प्रसाद नगर इसके अंतर्गत आते है।
झुग्गी झोपड़ियांॅ यूं तो निम्न स्तरीय आवासीय क्षेत्र होते हंै परन्तु मलिन बस्तियों की अपेक्षा यहांॅ की दषा बेहतर होती है। फाफाडीह, हनुमान नगर, षिवनगर, भीमनगर, कुकुरबेड़ा, आदिवासी छात्रावास के समीपवर्ती भाग इसके अंतर्गत आते है।
उपरोक्त विवरण से स्पश्ट हैं कि झुग्गी झोपड़ियों का निर्माण समीपवर्ती ग्रामीण प्रवासियों द्वारा श्रमिक आवासों के रूप में हुआ है। वर्तमान समय जनसंख्या वृद्वि के साथ झोपड़ियों की संकुलता में लगातार वृद्वि होती जा रही है तथा झुग्गी झोपड़ियांॅ मलिन बस्तियों के रूप में परिवर्तित होती जा रही है।
रायपुर नगर में मलिन बस्तियों का विकास -
मलिन बस्तियों के अध्ययन से यह तथ्य स्पश्ट होता हैं कि नगर में मलिन बस्तियों की संख्या में निरंतर वृद्वि हो रही हैं इनका विकास नगरीय वृद्वि की तरह प्राकृतिक घटना है। भारत में मलिन बस्तियांॅ मकानों के अभाव को व्यक्त करते हैं। मलिन बस्तियों की विषेशताओं को स्पश्ट करते हुये कहा गया हैं कि अनाधिकृत कब्जे वाली अनियोजित बस्तियांॅ एक ही रात में बस जाती हैं तथा किसी जीव में कैंसर के समान ये नगर में तीव्र गति से विकसित होती है। प्रारंभ में यह स्पश्ट किया गया हैं कि मलिन बस्तियों के विकास का मुख्य कारण आवासीय समस्या है अर्थात् इस समस्या के द्वारा ही मलिन बस्तियों का विकास होता हैं अतएव मलिन बस्तियों के विकास के विष्लेशण के लिये आवासीय समस्या का अध्ययन जरूरी है।
(अ) आवासीय समस्या:
आवासीय समस्या ही मलिन बस्तियों की उत्पत्ति तथा विकास का प्रमुख कारण है। नगरों में ग्रामीण प्रवासियों के आगमन से आवासीय समस्या का प्रादुर्भाव होता है। इस प्रकार आवासीय समस्या का मूलभूत कारण नगरीय जनसंख्या में अतिरेक के परिणामस्वरूप विगत दषकों में रायपुर नगर की जनसंख्या में अप्रत्याषित वृद्वि है। निम्न सारणी में यह दर्षाया गया हैं:-
तालिका से स्पश्ट होता हैं कि प्रत्येक दषक में रायपुर नगर की जनसंख्या में निरंतर वृद्धि हो रही हैं साथ ही वृद्धि दर में भी क्रमषः बढ़ोत्तरी होती जा रही है। इस अप्रत्याषित जनसंख्या वृद्धि से रायपुर नगर में जनसंख्या दबाव में बढोत्तरी के कारण आवासीय समस्या उत्पन्न हुई है। यदि हम संपूर्ण आवासीय समस्या का अवलोकन करें तो ज्ञात होता हैं कि 1901 में भारत की नगरीय जनसंख्या कुल जनसंख्या का केवल 10.84ः थी परन्तु 1981 की जनगणना के अनुसार 23.73ः जनसंख्या नगरीय हैं। राज्य के संदर्भ में अवलोकन करें तो ज्ञात होता हैं कि मध्यप्रदेष में कुल जनसंख्या का 20.3ः नगरीय जनसंख्या है। 1971-81 के दषक में कुल जनसंख्या में 25ः वृद्धि हुई जबकि इसी अवधि में नगरीय जनसंख्या में 36ः की वृद्धि हुई। इस प्रकार नगरीय जनसंख्या में अतिरेक वृद्वि से आवासीय समस्या का स्वरूप स्पश्ट हुआ है।
सन् 1981 की जनगणना के अनुसार संपूर्ण रायपुर नगरीय क्षेत्र में प्रति आवासगृह व्यक्तियों की संख्या 6 हैं, जबकि निगम क्षेत्र में यह संख्या 7 व्यक्ति है। इससे स्पश्ट होता हैं कि आवासीय संकुलता से उत्पन्न समस्या विकसित क्षेत्रों में अधिक है। 1961 की जनगणना में यह प्रदर्षित किया गया है कि रायपुर नगर में 351 व्यक्त प्रति कमरा औसतन थे, जबकि 1971 में यह संख्या 3.65 व्यक्ति हो गई अर्थात एक कमरा मकानों की संकुलता में निरंतर वृद्धि हो रही है। रायपुर नगर में 1961 में औसत रूप से 5.42 व्यक्ति प्रति मकान थे। 1971 से 6.71 व्यक्ति प्रति मकान हो गये। इस प्रकार ज्ञात होता हैं कि जनसंख्या में अधिकतम वृद्धि जारी है। परन्तु उसी अनुपात में मकानों की संख्या में बढ़ोत्तरी नही हो रही इसके फलस्वरूप प्रति मकान व्यक्तियों की संख्या में वृद्धि हो रही है। 1971 की जनगणना के अनुसार 1942 मकानों की कमी प्रदर्षित की गई थी जबकि 1981 में 12,715 आवास गृहों का अभाव प्रदर्षित हैं। इस प्रकार ज्ञात होता हैं कि संपूर्ण विष्व तथा विषेशकर भारत जैसा विकासषील देष वर्तमान समय में विकट आवासीय समस्या से ग्रस्त हैं, जो इन देषों में विकसित नगरीय क्षेत्रों के लिये प्रमुख समस्या है।
(ब) मलिन बस्तियों का विकास:
अधिकांष नगरों का विकास इतनी तीव्रता से होता है कि उसे पूरी तरह योजनाओं के अनुरूप नहीं बताया जा सकता है। इसी तरह के विकास की स्थिति रायपुर नगर की है। जिसके परिणामस्वरूप अनियंत्रित, अनियोजित तथा अनियमित ढ़ंग से विकास के कारण समस्याओं में निरंतर वृद्वि हो रही है। किसी नगर में जब मकानों का अभाव होता है। तब अनुपयुक्त आवास वाले निम्न वर्गीय क्षेत्रों का प्रादुर्भाव होता है। इस प्रकार जैसे जैसे मकानों की कमी होगी, मलिन बस्तियों का विकास होता जायेगा। रायपुर नगर में विगत वर्शों में मलिन बस्तियों की संख्या में वृद्वि इस प्रकार हैंः-
प्रदत्त तालिका से स्पश्ट होता है कि रायपुर नगर की जनसंख्या के साथ-साथ मलिन बस्तियों की संख्या में भी वृद्वि होती जा रही है। 1961 में केवल 12 मलिन बस्तियांॅ विकसित था। इसके उपरांत दस वर्शों में लगभग दोगुनी वृद्वि से मलिन बस्तियों की संख्या 29 हो गई तदोपरांत जनसंख्या वृद्वि के ही अनुपात में मलिन बस्तियों की संख्या में बढ़ोत्तरी होती गई क्षेत्रीय विस्तार की तुलन में तीव्रतम जनसंख्या वृद्वि के परिणामस्वरूप 1988 तक 135 मलिन बस्तियों का अस्तित्व स्पश्ट हो चुका था, जो कि 1991 में 154 हो चुकी है। इस तरह जनसंख्या वृद्वि एवं मलिन बस्तियों के विकास में धनात्मक संबंध पाया जाता है। इसके अलावा नगर के क्षेत्रीय विस्तार तथा इन बस्तियों की संख्या में सहसंबंध दृश्टव्य है। प्राचीन काल में जब रायपुर नगर लघुनगरीय क्षेत्र था तब मलिन बस्तियों का प्रादुर्भाव नहीं हुआ था। नगरीकरण तथा औद्योगीकरण के फल स्वरूप ग्रामीण प्रवासियों केे आगमन से रायपुर नगर में जनसंख्या का दबाव बढ़ता गया जिससे नगर का समीपवर्ती भागों की ओर क्षेत्रीय विस्तार हुआ क्षेत्रीय विस्तार के उपरांत भी भूमि पर जनसंख्या का दबाव अधिक होने से आवासीय समस्या के परिणामस्वरूप मलिन बस्तियांॅ अस्तित्व में आई। भारत में कुल नगरीय जनसंख्या का 5वांॅ भाग अर्थात 3 करोड लोग मलिन बस्तियों में निवास करते है। भारत में कुल मलिन बस्तियों के निवासियों का 34: महानगरों में निवास करते है। कुसुमलता तनेजा केे अध्ययन के अनुसार भारतीय वृहत नगरीय क्षेत्रों की 10ः से 60: तक जनसंख्या इन बस्तियों में रहते है। 1981 की जनगणना के अनुसार मध्यप्रदेष के प्रथम श्रेणी नगरों की कुल जनसंख्या 32,30,031 हैं जिसमें से 6,43,483 मलिन बस्तियों के निवासी हैं। इस प्रकार कुल जनसंख्या का 5.02ःमलिन बस्तियों में निवास करता है। राज्य में प्रथम तथा द्वितीय श्रेणी के नगरों की संख्या 41 हैं जिसमें से 38 नगरों में 416 मलिन बस्तियांॅ विकसित हुई है। 8 प्रथम श्रेणी के नगर ऐसे है जिनमें कुल मलिन बस्तियों के निवासियों का 1/110 भाग निवास करता है। रायपुर नगर में विकसित मलिन बस्तियों में जनसंख्या का घनत्व 1476 व्यक्ति प्रतिवर्ग कि.मी. हैं। म.प्र. 1981 तक विकसित मलिन बस्तियों का कुल क्षेत्रफल 66.64 वर्ग मीटर था।
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Received on 11.03.2013 Modified on 01.04.2013
Accepted on 12.04.2013 © A&V Publication all right reserved
Int. J. Rev. & Res. Social Sci. 1(1): July –Sept. 2013; Page 21-24