मैत्रेयी पुष्पा के उपन्यासों मे स्त्री संघर्ष

 

जीवन लाल

शोध छात्र - पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर (छ..) 492010

*Corresponding Author E-mail: Jeewanji888@rediffmail.com

 

सारांश- 

मैत्रेयी के कथा साहित्य में नारी जीवन में आने वाली विभिन्न संघर्षों को उकेरा है। जो मुख्यतः समाज में महिलाओं पर लिंग भेदभाव पर हो रहे अत्याचार को प्रकाशित करते हैं। मैत्रेयी के एक-एक स्त्री पात्र संघर्ष करते नजर आते हैं। जैसे चाक के सारंग नैनी, इदन्नमम में मंदाकिनी, अल्मा कबूतरी के अल्मा एवं भूरी भाई  तो झूलानट का शीलो, विजन में डाॅ. आभा व डाॅ. नेहा, बेतवा बहती रही के उर्वशी, अगनपाखी के भुवनमोहिनी और कही ईसुरी फाग की रजऊ या ऋतु, सरस्वती, मीरा गंगिया बेड़नी या करिश्मा बेड़नी, तो गुनाह-बेगुनाह उपन्यास की सुरिन्दर कौर, रेशमी, शारदा एवं इला चैधरी जैसे अनेक स्त्री पात्र अनेक संघर्षों से जूझती नजर आती हैं।

 

उपर्युक्त सभी उपन्यासों के कथानक या कथावस्तु भले ही अलग-अलग हो परन्तु उस कथानक के स्त्री पात्र पितृसत्ता नियमों के खिलाफ लड़ते नजर आते हैं। इसलिए मैत्रेयी जी स्त्री जीवन को लेकर लिखी गयी उत्कृष्ट कोटी के कथाकार हैं। जिनके साहित्य का केन्द्र बिन्दु स्त्री-विमर्श ही है।

 

मैत्रेयी जी अपने जीवनकाल में अनेक ऐसे घटनाएं देखी हैं या स्वयं उस घटना के शिकार हुए हैं जो उनके कथा-साहित्य में परिलक्षित होती है। अतः मैत्रेयी जी स्त्री विमर्श के यथार्थवादी कथाकार कहलाने के पात्र हैं। इसीलिए मैत्रेयी जी को स्त्री-विमर्श के उत्कृष्ट कोटी की कथाकार कहना अपेक्षित है।

 

KEY WORDS : मैत्रेयी स्त्री जीवन मंदाकिनी  उपन्यास

 

 

प्रस्तावना

मैत्रेयी के कथा साहित्य में नारी संघर्षशील दिखाई पड़ती है। मैत्रेयी जी ऐसे नारी पात्र को स्थान दिया है जो आज आधुनिक परिवेश में परिलक्षित होती है। इन्होंने अब तक कुल ग्यारह उपन्यासों की रचना कर चुकी है। जिसमें चाक उपन्यास सर्वोत्तम है। चाक की नायिका सारंग नैनी है जो आजीवन संघर्ष करती है। सारंग जन्मजात विद्रोहणी प्रवृत्ति के नहीं थे। बल्कि पुरूष समाज के अत्याचार ने उसे विद्रोहणी बना दिया था।

 

विभिन्न उपन्यासों मे स्त्री संघर्ष

1. चाक - प्रस्तुत उपन्यास में स्त्री पात्रों का एक सजीव संग्रहालय है। जिसमें अनेक ऐसे स्त्री पात्र हैं जिनका जीवन अनेक समस्याओं से भरा हुआ है। रेशम, गुलकंदी, हरिप्यारी, शारदा, शकुंतला, रूकमणी, रामदेई, नारायणी एवं पांचन्ना बीबी। ये सभी स्त्रियां पुरूष प्रधान नियमों के भेंट चढ़ा दी जाती है। उपर्युक्त वर्णित सभी नारियां पितृसत्तात्मक नियमों एवं आदर्शों के कारण मृत्यु को प्राप्त करती हैं। अतरपुर गांव के इतिहास में दर्ज दास्तानें बोलती हैं - रस्सी के फंदे पर झूलती रूकमणी कुएं में कूदने वाली रामदेई, करबन नदी में समाधिस्थ नारायणी............. ये बेबस औरतें सीता मईया की तरह भूमि प्रवेशकर अपने शील-सतीत्व के खातिर कुरबान हो गई। ये ही नहीं और न जाने ं कितनी........1

 

गांव में घटी अनेक घटनाओं एवं महिला समाज पर हो रहे पुरूषों का अत्याचार से परिचित सारंग संघर्ष करते दिखाई पड़ती है। वह गांव की मुखिया प्रधान या सरपंच बनकर सत्ता परिवर्तन चाहती है। जिससे महिला समाज का उद्धार कर सके। शायद इसीलिये सारंग ने प्रधान पद के लिए पर्चा भारती है।

 

2. इदन्नमम् - इदन्नमम् उपन्यास की नायिका - मंदाकिनी एक संघर्षशील एवं आधुनिक महिला है, जो समाज सेविका बनकर गांव की सेवा करता चाहती है। आर्थिक रूप से पिछड़े गांव को समृद्ध बनाने के लिये आधुनिक मशीन एवं ट्रैक्टर खरीदकर गांव की दरिद्रता दूर करने को तत्पर दिखाई पड़ती है। उक्त उपन्यास तीन पीढ़ीयों में चलती है। बऊ, प्रेम व मंदा। ये तीनों पीढ़ीयां आज भारत की आधुनिक परिवेश में दिखाई पड़ती है।

 

बऊ एक आदर्शनारी जो विधवा होने पर भी पूरी जिन्दगी मर्यादा के साथ पितृसत्तात्मक नियमों को आदर्श मानते हुए जीती है। जबकि प्रेम, मंदाकिनी की मां एवं बऊ की विधवा बहू है। वह पर पुरूष के साथ भागकर शादी कर लेती है और मंदाकिनी एक किशोरी मकरंद के प्रेमिका मकरंद के साथ शादी नहीं होने पर आजीवन समाज की सेवा करती है। प्रस्तुत उपन्यास में अनेक स्त्री पात्र हैं जो पुरूष प्रधान समाज के नियमों को पक्षपात मानती हैं। जिसके लिये वह अघोषित तौर संगठित होकर लड़ती हैं। मंदाकिनी, सुगना एवं कुसुमा आदि स्त्रियां पितृसत्ता को पक्षपात समझती हैं। मंदा एवं कुसुमा के बीच संवाद से यह बात प्रकट होती है - ‘‘भाभी ये रीति-रिवाज तो उन्होंने ही बनाए हैं, जिनने ये किताबें लिखी है, जिनके ऊपर ये किताबे लिखी गई है।‘‘

 

‘‘गलत बनाई है मंदा! एकदम पच्छपात से रची है।‘‘

‘‘बताओ तो अग्नि साक्षी धर के गांठ बांधने का क्या मतलब?‘‘

‘‘पति और पत्नी को साक्षी सहचर कहें तो विरथा है कि नही?‘‘

‘‘कितेक उल्टा है बिन्नू बोअरथ। यह संबंध बड़ा थोथा है।‘‘

‘‘लो एक तो खूंटे बांधा पागुर, दूसरा सरग में उड़ता पंछी।‘‘

‘‘ढ़ोर और पंछी सहचर नहीं हो सकते मंदा.......‘‘2

 

3. अल्माकबूतरी - अल्माकबूतरी जन्मजात अपराधी कहे जाने वाली जरायमपेशा कबूतरा समाज की कहानी है। जिसमें कदमबाई, भूरीबाई एवं अल्मा ये तीनों स्त्रियां बहादुर नजर आती हैं। तीन पीढ़ीयों का प्रतिनिधित्व करती ये महिलाएं शिक्षा एवं सत्ता के महत्व को जान गई हैं। जो अपनी मिशन साधने में सफल होती हैं, जिसके लिए वह अनेक संघर्षों से गुजरती भी हैं।

 

भूरीबाई शिक्षा के महत्व को जानती है। वह बेटा रामसिंह को पढ़ाने के लिए देह की धन्धा करने को मजबूर दिखाई पड़ती है। बेटा रामसिंह को पढ़ाकर मास्टर बनाती है। तो कदम बाई कज्जा जाति अर्थात उच्च जाति से वंश साधना चाहती है। वह मंसाराम के संपर्क में आकर राणा पुत्र को जन्म देती है। लेकिन उच्च वर्गीय समाज रामसिंह एवं राणा को हीनदृष्टि से ही देखता है और अन्ततः उच्च वर्गीय समाज के भेंट चढ़ जाता है।

 

उपन्यास के अंतिम फलक पर मास्टर रामसिंह की बेटी अल्मा राज्यमंत्री श्री राम शास्त्री को भेंट कर दी जाती है। लेकिन गैंगवार में मंत्रीजी मारा जाता है। अब अल्मा उत्तराधिकारी के रूप में श्री रामशास्त्री के जगह मंत्री पद के उम्मीद्वार के रूप में नजर आती है। अतः स्पष्ट है अल्मा राजनीतिक सत्ता प्राप्त कर अपनी जरायमपेशा कबूतरा समाज की कायाकल्प करेगी।

 

4. झूलानट - झूलानट उपन्यास की नायिका शीलो एवं बालकिशन की मां ये दोनों स़्ित्रयां संघर्षशील दिखाइ्र पड़ती हैं। मां-बाप द्वारा बेटा सुमेर का शीलों के साथ बचपनें में ही शादी कर दिया जाता है। लेकिन अब थानेदार सुमेर को शीलों रास नहीं आता। वह शहर में किसी दूसरी लड़की से विवाह कर लेता है। शीलों एक पत्नी के रूप में जीवन भर सुमेर के प्यार को तरसती है। अन्ततः मां द्वारा बालकिशन देवर को भिड़ा दिया जाता है।

 

5. कही ईसुरी फाग - कही ईसुरी फाग उपन्यास काल्पनिक रजऊ और वास्तविक ईसुरी के प्रेमगाथा है। ईसुरी लम्पट कवि है जिसे पाने के लिए रजऊ नायिका तरसती है। प्रस्तुत उपन्यास में अनेक स़्ित्रयां हैं - ऋतु, सरस्वती देवी, मीरा बहू, गंगिया बेड़नी, करिश्मा बेड़नी आबादी बेगम एवं अनवरी बेगम इत्यादी। ये सभी स़्ित्रयां अनेक समस्याओं से जूझती हैं। उक्त सभी स्त्रियां रजऊ एवं ईसुरी के प्रेमगाथा से परिचित है। जिसके लिए वह अनेक संघर्षों से जूझती है। रवीन्द्र त्रिपाठी के शब्दों में - ‘‘ईसुरी यौवन का कवि है। ईसुरी और रजऊ युवा प्रेम के आद्य बिम्ब बन जाते हैं।‘‘ कम से कम बुदंेलखण्ड में लेखिका ने तुलसीराम और मादुरी, ऋतु माधव, गाइड सालिगराम कटारे - सावित्री जैसे युगल चरित्रों के माध्यम से यह दिखाया है कि ईसुरी-रजऊ की कहानी आज भी जीवित है। उस कहानी के रूप बदल गए हैं, चरित्र बदल गयी है, पर उसका मूल रूप अभी भी मौजूद है।3

 

6. बेतवा बहती रही - बेतवा बहती रही उपन्यास की नायिका उर्वशी की त्रासदी सम्पूर्ण भारत में देखी जा सकती है। उर्वशी अप्रतीम सुन्दरी है। लेकिन ये महिला दो पुरूषों के कुचक्र में फंसकर तिलतिल कर मरती है। अजित एवं बरजोर सिंह ये दोनों पशु प्रव्त्ति के पुरूष हैं जिसमें इंसानियत ही नहीं है। अजित उर्वशी के भाई है एवं बरजोर सिंह उर्वशी के पिता समान वृद्ध पुरूष हैं। उर्वशी के सहेली मीरा के बाप बरजोर सिंह कामान्ध पुरूष हैं तो अजित धनपशु। अजित बहन उर्वशी को दस बीघे जमीन पर बरजोर सिंह को बेचता है। स्त्री आदिकाल से ही भोग की वस्तुमात्र समझी जाती है। शायद इसीलिये लेखिका ने आज आधुनिक युग में उर्वशी जैसे पात्र को गढ़ने ंको मजबूर हुआ है। गरीब परिवार में आज भी बिटियां बेच दी जाती हैं। वधूमूल्य चुकाने में असमर्थ भाई या बाप बेटा या बहन को वस्तु के रूप में बेच दिया जाता है। डाॅ. संतोष पवार के शब्दों में उर्वशी की त्रासदी - बरजोर सिंह से जब शादी तय की जाती है तब जोश में आकर वह आत्महत्या करने का प्रयास करती है। वही कहती भी है कि वह कोई ढ़ोर नहीं कि जब चाहे, कोई उसे किसी भी खुंटे में बांध दे। परन्तु बाद में सोचती है पूरे परिवार के सुख के लिए उसके शरीर का बलिदान कोई खास नहीं। भाई के हित के लिए वह पुनर्विवाह के लिए तेैयार हो जाती है।4

 

7. विजन - विजन उपन्यास प्राईवेट चिकित्सा व्यवस्था में होने वाली अराजकता एवं अमानवीयता का खुलकर प्रचार किया हेै। शरण आई सेन्टर में होने वाली अन्याय का विरोध महिला डाॅ आभा एवं डाॅ नेहा करती है। डाॅ आर. पी. शरण एवं बेटा अजय के लिए चिकित्सा एक व्यवसाय मात्र है। वह अधिक से अधिक पैसा कमाना चाहता है। लेकिन डाॅ नेहा व डाॅ आभा बर्दाश्त नहीं करती। मरीजों पर हो रहे अन्याय के खिलाफ आवाज उठाती है। डाॅ आभा सरोज नाम की मरीज पर हुए बलात्कार एवं डाॅ चोपड़ा द्वारा आपरेशन करते समय मरीज द्वारा लाए हुए लेंस को बदलने पर उसका विरोध करती है जिसके लिए वह कहती है- ‘‘मरीज के साथ होते अन्याय से हर डाॅक्टर को मतलब होना चाहिए। कमाल के व्यापारी है आप भी! कौड़ियों की चीज अशर्फियों के दाम।‘‘5

 

8. अगनपाखी - अगनपाखी उपन्यास की नायिका भुवनमोहनी बहनौता चन्दर से प्रेम करती है। जो हिन्दू समाज को बर्दाश्त नहीं। भुवन षड़यंत्रकारी पुरूष चन्दर के पिता के कुचक्र में फंसकर अपनी न्दिगी को नर्क बना डालती है। इधर चन्दर को नौकरी मिलती है और भुवन पागल व नामर्द युवक विजय सिंह को सौंप दी जाती है। अन्ततः विजय मर जाता है। तब विजय के भाई अजय सिंह भुवन को सतीप्रथा के भेंट चढ़ाने को तत्पर रहता है लेकिन भुवन इस कुचक्र से निकल जाती है और अपने पति स्व. विजय की सम्पत्ति को अपने नाम करवाने को याचिका लगाती है- मैं भुवन मोहिनी पत्नी स्वर्गीय विजय सिंह वल्द स्व. दुरजन सिंह निवासी ग्राम विराटा, जिला झांसी, यह दावा करती हूं कि मैं अपने पति के हिस्से की चल -अचल सम्पत्ति की हकदार हूं। मुझे इत्तला मिली है कि मेरे पति के साथ मुझे भी मृतक दिखाया गया है और मेरे जेठ कुवंर अजय सिंह ने अपने अकेले का हक बरकरार रखा है। क्योंकि स्व. विजय सिंह की कोई संतान नहीं। कचहरी से अर्ज है कि अपने पति की जायदाद का हक मुझे सौंपा जाय। मैं कुंवर अजय सिंह की हकदारी पर सख्त एतराज करती हूं। बकलम खुद भुवन मोहनी।6

 

9. त्रियाहठ - त्रियाहठ उपन्यास मैत्रेयी की प्रथम उपन्यास बेतवा बहती रही का अगला चरण है, जिसमें संघर्षशील उर्वशी के पुत्र देवेश अपनी मां के वास्तविक जीवन का तहकीकात करता है एवं उर्वशी पति की सम्पत्ति पर गैरों का हक को अपने एवं पुत्र देवेश के नाम करवाने को संघर्षरत् दिर्खाइै पड़ती है।

 

10. गुनाह बेगुनाह - गुनाह बेगुनाह उपन्यास की स्त्रियां अनेक संघर्षों से जूझती हैं। सीमानी रेशमी, सुरिंदर कौर, शारदा एवं इला चैधरी आदि पुरूष के अत्याचारों के खिलाफ संघर्ष करती हैं। लेकिन अन्ततः बेगुनाह से गुनाहगार साबित कर दिया जाता है। लेखिका के शब्दों में - ‘‘सुरिन्दर कैसे कहे, किसको बताए कि औरत प्रधान हो या सरपंच फंसाना और नंगा करना मर्दों कापुराना नुस्खा है।.......... यह पक्की बात है कि अगर औरत सरपंच न होती तो पुलिस को इससे इतनी नफरत भी न होती।‘‘7

 

निष्कर्षः-    

निष्कर्षतः यह कहना गलत नहीं होगा। मैत्रेयी जी अपने कथा-साहित्य में उपर्युक्त स्त्रियों को स्थान देकर पितृसत्ता को अवगत कराया है कि अब महिला समाज शिक्षित एवं पारखी हो गयी हेै। उसे क्या सही है? क्या गलत है? इन बातोें का अच्छा ज्ञान हो गया है उनके लिए सभी क्षेत्रों का दरवाजा खुला हुआ है। वह बड़े-बड़े कार्यों को करने में सक्षम है। इसलिए वह आत्मनिर्भर होकर एक पुरूष की भांति स्वतंत्रतापूर्वक जीना चाहती है। पुरूष समाज के अधीनता उसे स्वीकार नहीं। वह उसका बहिष्कार करती है।

 

संदर्भ सूची:-

1.  मैत्रेयी पुष्पा: चाक - पृष्ठ 07

2.  मैत्रेयी पुष्पा: स्त्री होने की कथा - पृष्ठ 117 सं- विजय सिंह बहादुर

3.  वहीं - पृष्ठ 215-216

4.  मैत्रेयी पुष्पा के उपन्यासों में नारी -डाॅ संतोष पवार - पृष्ठ 10

5.  मैत्रेयी पुष्पा: विजन - पृष्ठ 187

6.  मैत्रेयी पुष्पा: अगनपाखी - पृष्ठ 07

7.  मैत्रेयी पुष्पा: गुनाह-बेगुनाह - पृष्ठ 208-209

 

 

Received on 15.03.2014       Modified on 18.03.2014

Accepted on 23.03.2014      © A&V Publication all right reserved

Int. J. Rev. & Res. Social Sci. 2(1): Jan. – Mar. 2014; Page 07-09