छŸीसगढ़ राज्य के विकास में मत्स्य पालन व्यवसाय की भूमिका
डा. आशीष दूबे
दुर्गा महाविद्यालय, रायपुर (छ.ग.)
छŸाीसगढ में मत्स्य पालन प्राचीन काल से परंपरागत रूप से किया जाता रहा है प्रदेष में मत्स्य पालन व्यवसाय सामान्यतः तालबों, नदियों के सामान्यतः प्रचलित है। भोज्य पदार्थ के रूप में यह जनजातियों के बीच लोकप्रिय रहा है, मत्स्य पालन व्यवसाय का प्रोटीन युक्त उत्तम गुणवत्ता के खाद्य होने के साथ ही आर्थिक महत्व को देखता हुए इस व्यवसाय को प्रोत्साहन देने के लिए वर्श 1955 में मत्स्य पालन हेतु पृथक विभाग की स्थापना की गयी थी राज्य निर्माण के पूर्व यह विभाग मध्यप्रदेष षासन कृशि विभाग से सम्बद्ध रहा। छŸाीसगढ़ राज्य निर्माण के पष्चात् मत्स्य पालन विभाग का संचालन सहकारिता पषुपालन एवं मत्स्य पालन विभाग मंत्रालय द्वारा किया जा रहा है। जिला स्तर पर जिले में उपलब्ध जल क्षेत्र के आधार पर एवं प्रषासनिक ढाँचे की उपलब्धता के अनुसार विभाग द्वारा मत्स्य पालन का प्रबंधन किया जाता है।
मत्स्य पालन पोशाहार का स्तर बढ़ाने के साथ-साथ रोजगार उपलब्ध कराने का महत्वपूर्ण साधन है, समाज के कमजोर वर्गो विषेशकर अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति तथा ग्रामीणों को सस्ता जैविक प्रोटीन उपलब्ध कराने एवं ग्रामीण रोजगार की व्यापक सम्भावनाओं को देखते हुए राज्य में मत्स्य विकास पर विषेश ध्यान दिया जा रहा है, जिसमें से 1.454 लाख हेक्टेयर जल क्षेत्र मछली पालन के अन्तर्गत विकसित किया जा चुका है जो कुल जल क्षेत्र का 91.73 प्रतिषत है।
विभाग द्वारा राज्य में मत्स्य व्यवसाय का विकास करने के लिए अनेक योजनाओं का संचालन किया जा रहा है जिसके अन्तर्गत सर्वप्रथम मत्स्य बीज प्रक्षेत्र का निर्माण किया जा रहा है उच्च गुणवत्ता वाले मछलियों के बीज प्राप्ति के लिए चाइनीज प्रकार के वृताकार हैयरी का निर्माण किया जाता है जिसमें मछलियों के प्रजनन के लिए प्राकृतिक वातावरण तैयार कर अंडे उत्पादित किए जाते है इसमें 72 घंटे की जैविक प्रक्रिया के बाद मछलियों का बीज प्राप्त किया जाता है जिसे विकसित मत्स्य जीरा संवर्धन नर्सरियों में रखा जाता है जहाँ भोज्य पदार्थ प्राप्त कर 15-20 दिनों में जीरा तैयार हो जाता है। मत्स्य जीरा संवर्द्धन क्षेत्र से ग्रामीण पट्टाधारी हित ग्राहियों को उनकी माँग के अनुसार गैस पैकिंग कर टिनों के अथवा खुली अवष्य में भी नर्सरियों से प्रदाय किया जाता है जिसे तालाबों में संचय कर मत्स्य पालन करते है। वर्श 2006-07 में समस्त स्त्रोतों से 5916.00 लाख स्टैण्डर्ड फ्राई मत्स्य बीजों) का उत्पादन हुआ था। विŸाीय वर्श 2007-08 में माह दिसम्बर 2007 तक 6497.10 मीट्रिक टन मत्स्य पालन किया गया। वर्श 2008-09 में माह सितम्बर 2008 तक 6709 लाख स्टेंडर्ड फ्राई (मत्स्य बीज) का उत्पादन किया गया।
प्रदेष में मत्स्य पालन व्यवसाय के विकास एवं विस्तार मत्स्य कृशक विकास अभिकरण की स्थापना विष्व बैंक की सहायता से वर्श 1975 में धमतरी जिले में किया गया जिसका उद्देष्य ग्रामीण क्षेत्रों में उपलब्ध तालाबों को ग्राम पंचायत के प्रस्ताव के आधार पर क्षेत्रीय गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़ों एवं मछुओं को तालाब जलाषय दस वर्शीय पट्टे पर उपलब्ध कर उनकी आय में वृद्धि करना था जिसके लिये इन वर्गो की सहकारी समिति बनाकर उन्हें जलाष्य तालाब उपलब्ध कराए गये तथा ऋण एवं अनुदान प्रदान कर मत्स्य पालान को व्यवसाय के रूप में अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया गया तथा उनके आय में वृद्धि हो सके। इस योजना के सफल होने के बाद इसे वर्श 1988 में सम्पूर्ण प्रदेष में लागू किया गया तथा 1980 में यह पुराने पाँच जिलों रायपुर,दुर्ग,बिलासपुर,रायगढ़ तथा राजनांदगांव में आरंभ किया गया। वर्श 1999-2000 में 40.1 हजार हेक्टेयर जल क्षेत्र के 244 तलाबों को 42.8 हजार हितग्राहियों को पट्टे पर दिया गया 2001-02 में 1822 हजार हेक्टेयर जल क्षेत्र के 1067 तालाबों को 3075 हितग्राहियों को दिया गया।
मत्स्य पालन व्यवसाय के विकास को प्रोत्साहन देने के लिए प्रादेषिक स्तर पर रायपुर में मत्स्य अनुसंधान प्रयोगषाला स्थापित किया गया है जिसका मुख्य कार्य पानी की जाँच मछली में होने वाली बीमारियों की जाँच तथा सुरक्षा विधियों से संबंधित तकनीकों के लिए मार्गदर्षन करना तथामत्स्य उत्पादन को प्रभावित करने वाले कारकों का पता लगाना हैं मत्स्य उद्योग को प्रोत्साहन देने के लिए रायपुर जिले में मत्स्य पालन प्रषिक्षण संस्थान की स्थापना भी किया गया है जहाँ मत्स्य पालन के लिए प्रषिक्षणार्थियों को निःषुल्क प्रषिक्षण दिया जाता है। मत्स्य अनुसंधान षाला के द्वारा अनुसंधानों द्वारा विकसित नयी मत्स्य उत्पादन तकनिकी का विस्तार प्रत्येक जिले में किया जाता है तथा उक्त तकनिकी को स्थापित करने के लिए कृशकों को बैंको से ऋण भी उपलब्ध कराया जाता है। मत्स्य पालन की उन्नत तकनीकी के विकास एवं विस्तार के लिए प्रषिक्षणार्थियों को प्रषिक्षण के उपरांत आवष्यक सामग्री तथा पूर्ण प्रषिक्षण व्यय दिया जाता है तथा राज्य के बाहर प्रषिक्षण की दषा में भी प्रषिक्षणार्थियों को पूर्ण व्यय दिया जाता है।
कृशकों के पास स्वयं की भूमि होने की दषा में वह बैंक के माध्यम से षासकीय योजना के माध्यम से एक लाख रूपये प्रति हेक्टेयर ऋण 20000 रूपये षासकीय अनुदान पर तालाब निर्माण के लिए ऋण प्राप्त कर सकता है तथा निर्मित तालाब में मत्स्य पालन के लिए 20000 रूपये ऋण कृशक को राश्ट्रीय कृत बैंको द्वारा कृशक विकास अभिकरण के माध्यम से प्रदान किया जाता है। इन योजनाओं के अतिरिक्त षासन द्वारा संचालित स्वर्ण जयंती ग्रामीण स्वरोजगार योजना के अन्तर्गत मत्स्य उद्योग के मत्स्य पालन योजना को मुख्य गतिविधियों के रूप में सम्मिलित करना एवं समन्वित मत्स्य पालन योजना (धान सह मछली पालान, पोल्ट्री एवं बतख सह मछली सुकर सह मछलीपालन) आदि योजनाओं का क्रियान्वयन किया जा रहा है जिसके माध्यम से हितग्राही इन योजनाओं का लाभ प्राप्त कर रहे है। छŸाीसगढ़ की मत्स्य पालन षासकीय एवं निजी दोनों ही क्षेत्रों में किया जाता है। षासकीय मत्स्य पालन मत्स्य पालन विभाग, कृशक विकास अभिकरण तथा मत्स्य विकास निगम द्वारा संचालित किया जा रहा है वर्श 2000 में मत्स्य विकास निगम को मत्स्य महासंध में सम्मिलित कर दिया गया मत्स्य विकास निगम द्वारा बड़े बाँधों जैसे मिनीमाता, गंगरैल,दुधावा, माड़मसिल्ली, बागनदी तथा कोडार में मत्स्य पालन किया जा रहा है। छŸाीसगढ़ के प्रमुख मत्स्य उत्पादन केन्द्र देमार कुरूद (रायपुर) खुटेल भाटा, सेलूद, धमधा (दुर्ग) पंखाजूर, बालेंगा (बस्तर), खूंटाघाट, कुलीपोटा (बिलासपुर), छिंद (रायगढ़), झुमका (सरगुजा) आदि स्थलों में है। निजी मत्स्य उत्पादन केन्द्र अधिकांष दुर्ग जिले में केन्द्रित है रायपुर एवं दुर्ग जिलों में भी निजी मत्स्य केन्द्रों की संख्या में वृद्धि हुई है। छŸाीसगढ़ में मत्स्य उत्पादन में लगातार वृद्धि हुई है। विŸाीय वर्श 2012-13 में प्रदेष में दो लाख पचपन हजार मीटरिक टन से अधिक मछली का उत्पादन हुआ है तथा मत्स्य उत्पादन के क्षेत्र में प्रदेष का स्थान छठा रहा है। राज्य निर्माण के समय प्रदेष में मछली का वार्शिक उत्पादन 93 हजार मीटरिक टन था गत 12 वर्शो में मत्स्य उत्पादन की प्रदेष में वार्शिक वृद्धि दर 14 प्रतिषत से अधिक रही तथा छŸाीसगढ़ राज्य देष के प्रमुख मत्स्य उत्पादक राज्यों में षामिल हो गया। विŸाीय वर्श 2013-14 के लिए कुल पौने तीन लाख मीटरिक टन से अधिक मत्स्य उत्पादन का लक्ष्य निर्धारित किया गया है इनमें से दो लाख पैंसठ हजार मीटरिक टन मछलियाँ निजी तालाबों से लगभग 9 हजार मीटरिक टन मछलियाँ सिंचाई जलाषयों से तथा लगभग एक हजार दो सौ मीटरिक टन मछलियाँ राज्य की नदियों से पकड़ी जाएगी।
छŸाीसगढ़ राज्य में लगभग उन्सठ हजार तालाबों लघु मध्यम एवं बड़े आकार के एक हजार सात सौ साठ सिंचाई जलाषयों तथा साढ़े तीन हजार किलोमीटर से अधिक लंबे क्षेत्र में मत्स्य पालन का व्यवसाय किया जा रहा है। छŸाीसगढ़ में लगभग दो लाख दस हजार जनसामान्य प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से मत्स्य पालन व्यवसाय में संलग्न है तथा इस व्यवसाय के माध्यम से प्रतिवर्श लगभग एक करोड़ ब्यालिस लाख मानव दिवस रोजगार का सृजन हो रहा है। दस वर्श पूर्व इस व्यवसाय से राज्य में केवल तिरसठ हजार मानव दिवस के बराबर रोजगार का सृजन हो पाता था।
मत्स्य बीज उत्पादन में छŸाीसगढ़ राज्य न केवल आत्म निर्भर है अपितु दूसरे राज्यों को भी मत्स्य बीज की आपूर्ति करता है। मत्स्य बीज उत्पादन में छŸाीसगढ़ का पाँचवा स्थान है वर्श 2012-13 में राज्य में लक्ष्य से अधिक दस हजार चार सौ सेंतीस मानक फ्राई मछली बीजों का उत्पादन है राज्य निर्माण के समय छŸाीसगढ़ दूसरे राज्यों पर निर्भर था राज्य निर्माण के पष्चात् राज्य में षासकीय तथा निजी क्षेत्रों में 20 नए हेचरी क्षेत्रों का निर्माण हुआ परिणाम स्वरूप राज्य इस क्षेत्र में आत्म निर्भर हो गया है।पिछले दषक में छŸाीसगढ़ राज्य में मछली की उत्पादकता में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। राज्य के तालाबों एवं जलाष्यों में मत्स्य उत्पादकता राश्ट्रीय औसत से अधिक है। राज्य के तालाबों में मत्स्य उत्पादन का वार्शिक औसत दो हजार नौ सौ बहत्तर किलोग्राम प्रति हेक्टर है जबकि राश्ट्रीय स्तर पर यह औसत दो हजार दो सौ पचास किलोग्राम प्रति हेक्टेयर वार्शिक है। राज्य के सिंचाई जलाष्यों में मत्स्य उत्पादकता का औसत 1852 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर वार्शिक है तथा राश्ट्रीय स्तर पर यह औसत 69 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर वार्शिक है।
उपरोक्त अध्ययन से स्पश्ट है कि छŸाीसगढ़ राज्य में मत्स्य उत्पादन व्यवसाय का विकास राज्य निर्माण के पष्चात् तीव्र गति से हुआ है। राज्य निर्माण के पष्चात् राज्य में मत्स्य उत्पादन व्यवसाय के विकास के लिए अनेक योजनाओं का संचालन किया गया परिणाम स्वरूप यह व्यवसाय राज्य में अतिरिक्त रोजगार उपलब्ध कराने में सफल रहा साथ ही मत्स्य उत्पादन के क्षेत्र में राश्ट्रीय स्तर पर प्रदेष ने महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया। प्रदेष में अभी भी इस व्यवसाय के लिए व्यापक सम्भावनाएँ विद्यमान है इस व्यवसाय के आधुनिकीकरण एवं अन्य सहायक व्यवसायों जैसे झींगा पालन को प्रोत्साहन दिये जाने पर यह व्यवसाय प्रदेष में रोजगार उपलब्ध कराने तथा अतिरिक्त आय अर्जित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
संदर्भ - ग्रंथ
1. छŸाीसगढ़ अनुसंधान केन्द्र वार्शिक प्रतिवेदन 2012-13, 2013-14
2. छŸाीसगढ़ मत्स्य कृशक विकास अभिकरण वार्शिक प्रतिवेदन
3. देषबन्धु संदर्भ छŸाीसगढ़ 2012-13, 2013-14
4. छŸाीसगढ़ वृद्ध संदर्भ
5. छŸाीसगढ़ जनमग-सितम्बर 2013
6. दैनिक समाचार पत्र
Received on 10.05.2014 Modified on 25.05.2014
Accepted on 05.06.2014 © A&V Publication all right reserved
Int. J. Rev. & Res. Social Sci. 2(2): April-June 2014; Page 118-120