जशपुर जिले के उरांव जनजातियों में रोगों की स्थिति में रोगोपचार

 

(श्रीमती) उमा गोले

एसोसिएट प्रोफेसर, भूगोल अध्ययन शाला, पं. रविश्ंाकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर, छत्तीसगढ़.

*Corresponding Author E-mail: umagole@rediffmail.com

 

शोध संक्षेपिका

प्रस्तुत शोध पत्र पूर्णतः प्राथमिक आंकड़ों पर आधारित है। जशपुर जिला छत्तीसगढ़ राज्य के उत्तर पूर्व भाग में  स्थित है। जिले में उरांव जनजातीय की बहुलता है। प्रस्तुत शोध पत्र जशपुर जिले के उरांव जनजातियों मंे खाद्यान्न, पोषण स्तर एवं रोग की स्थिति में रोगोउपचार से संबंधित है। अध्ययन हेतु जिले के सम्पूर्ण 07 विकासखण्ड़ों से दो-दो गांवों का कुल 60 प्रतिशत कृषक परिवारों का उद्धेश्यपरक चयन कर परिवार के मुख्यिा से अनुसूची विधि द्वारा आंकड़े संकलित  किये गये है। विश्लेषण के दौरान प्राप्त निष्कर्ष में पाया गया कि जिले के उरांव जनजातीय परिवारोंमें परम्परागत तकनीकी द्वारा कृषि उत्पादन, गरीबी एवं अज्ञानता के कारण  पोषण आहार में पर्याप्तता नहीं है, परिणामस्वरूप अल्पपोषण एवं कुपोषण से ग्रसित है । सर्वेक्षित परिवारों में औसत बीमारी गहनता 29.7 प्रतिशत प्राप्त हुआ। फल स्वरूप अध्ययन क्षेत्र के सर्वेक्षित जनजातीय परिवारो मंें 36.9 प्रतिशत बीमार की स्थिति में ऐलोपैथिक दवाओं का उपभोग करते है, जबकि 23.9 प्रतिशत एलोपैथिक एवं घरेलू दवाओं का प्रयोग एवं 28.3 प्रतिशत एलोपैथिक एवं झाड़फूंक दोनों का उपयोग करते हैं, जबकि आज भी 11 उरांव प्रतिशत परिवार घरेलू झाड़फूंक के द्वारा रोगोपचार करते हैं ।

 

मुख्यशब्द: प्रतिदिन प्रति व्यक्ति खाद्यान्न उपभोग प्रतिरूप, पोषण स्तर, बीमारी गहनता, पोषण की कमी से रोग एवं रोग की स्थिति में उपचार।

 

 

प्रस्तावना

जनजातियां हमारे समाज का वह हिस्सा है, जो विकास से कोसों दूर है, परन्तु आज भी जनजातीय विकास से पूर्णतः वंचित हैं। जनजाति क्षेत्र विज्ञान की आधुनिक उपलब्धियों से सर्वथा अछूतें, संस्कृति के वर्तमान स्वरूप से सर्वथा अपरिचित, कृषि, उद्योग-धंधों, शिक्षा आदि से सर्वथा पृथक अर्थात् आदि मानव से कुछ ही अधिक विकसित जीवन जीते हैं। अधिकांश जनजातियां राज्य के पर्वतीय एवं पाट क्षेत्र में वितरित हैं।

 

इन जनजातियों में  अल्प साक्षरता एवं अधोसंरचना की कमी  के कारण कृषि का स्तर अत्यधिक निम्न है। खाद्य सुरक्षा की स्थिति दयनीय होने के कारण इनकी जनसंख्या में भी लगातार कमी पायी जा रही है। भारतीय समाज में जनजाति एक उपेक्षित वर्ग रहा है। जनजाति का तीव्र विकास न होने के कारण राष्ट्रीय विकास की धारा से वे अलग रहे हैं।

 

उद्धेश्य

1.       जनजातियों में जोत आकार के आय वर्ग प्रतिरूप का आकलन करना.

2.       ग्रामीणों  जनजातियों के आहार-प्रतिरूप का अध्ययन करना।

3.       प्रतिव्यक्ति विभिन्न पोषक तत्वों का विश्लेषण करना।

4.       आहार से प्राप्त पोशक तत्वों की कमी से होने वाले रोगों का आकलन करना.

5.       सर्वेक्षित परिवारों में रोगों की स्थिति में रोगउपचार ज्ञात करना.

 

परिकल्पना

1.       वृहत् कृषक परिवारों की तुलना में भूमिहीन एवं सीमान्त परिवारों में कुपोषण-संबंधी  बीमारियाँअधिक होती है।

2.       ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य-सुविधा नगरों की तुलना में कम है।

 

आंकड़ों के स्रोत एवं विधि तंत्र

प्रस्तुत शोध पत्र प्रमुख रूप से प्राथमिक आँकड़ांे पर आधारित है। अध्ययन क्षेत्र जशपुर जिला 8 विकासखण्डों में विभक्त है। प्रत्येक विकासखण्ड से 2-2 गाँवों का चयन उद्धेश्यपरक विधि द्वारा कुल 16 गाँवों को चयनित प्रतिदर्श गांवों से शत-प्रतिशत कृषक परिवारों के मुखिया से साक्षात्कार एवं अनुसूची द्वारा अध्ययन से संबंधित आंकड़े संकलित किये गये हैं। प्राप्त आंकडों के आधार पर अध्ययन क्षेत्र में बीमारियों की गहनता एवं क्षेत्रीय वितरण प्रतिरूप ज्ञात किया गया है। आंकलित आंकड़ों के आधार पर क्षेत्र में कृषि, पोषण एवं स्वास्थ्य स्तर का मूल्यांकन भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद्, हैदराबाद द्वारा निर्धारित मानों को आधार पर विश्लेषित किया गया है।

 

अध्ययन क्षेत्र

जशपुर जिला छत्तीसगढ़ राज्य के सूदुर उत्तर-पूर्वी भाग में स्थित है। जशपुर जिला  22°16श्38श् से 23°15श् उत्तरी अक्षांश एवं 83°23श्36श् से 84°08श्38श् पूर्वी देशान्तर के मध्य विस्तृत है। इसका कुल क्षेत्रफल 6088 वर्ग किलोमीटर है, जो छत्तीसगढ़ राज्य का 4.5 प्रतिशत है। जिले की समुद्र सतह से ऊंचाई 1033 मीटर है। जिले की उत्तर से दक्षिण की कुल लम्बाई 150 किलामीटर एवं पूर्व से पश्चिम चैडाई 85 किलोमीटर है। जिले के उत्तर एवं उत्तर-पश्चिम में सरगुजा जिला, उत्तर-पूर्व में झारखण्ड का गुमला जिला, दक्षिण-पश्चिम में रायगढ़ जिला है, जबकि दक्षिण-पूर्वी सीमा उड़ीसा राज्य के सुन्दरवन के जिलों द्वारा निर्धारित होता है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार जिले की कुल जनसंख्या 8,52,042 है, जो छ.ग. राज्य की कुल जनसंख्या का 3.33 प्रतिशत है। प्रशासनिक दृष्टि से जिले में चार तहसील एवं आठ विकासखण्ड जशपुर, मनोरा, दुलदुला, कुनकुरी, फरसाबहार, कांसाबेल, पत्थलगांव एवं बगीचा हैं।

खाद्यान्न उपभोगप्रतिरूप

जिला जशपुर के उरांव जनजाति कृषक परिवारों की भोजन संबंधी आदतों में समानता तो है, लेकिन देश के अन्य ग्रामीण क्षेत्रों के भोजन संबंधी आदतों से पृथक है। अतः उरांव जनजाति के आहार प्रतिरूप को प्रातः कालीन, दोपहर एवं रात्रिकालीन भोजन के संदर्भ में विश्लेषित किया गया है। सर्वेक्षित उरांव जनजाति परिवारों में प्रातः कालीन (भोजन नाश्ता) में रात का बचा चावल भातमें नमक स्वादनुसार एवं पानी मिलाकर ज्यादातर स्थानीय भाषा में बासीका उपभोग करते हैं। बासी के साथ प्याज एवं टमाटर की चटनी का सेवन अधिक पाया गया। दोपहर के भोजन के अंतर्गत जिले के कृषक परिवारों में चावल का उत्पादन अधिक होने के कारण दिन में पका चावल (भात) का उपभोग भोजन में करते हैं। चावल के साथ दाल की बजाय ज्यादातर सब्जी-भाजी का उपभोग, विशेषकर भूमिहीन, सीमान्त एवं लघु कृषक निम्न आर्थिक स्तर के परिवार भाजियों का सेवन अधिक करते है। रात्रिकालीन भोजन में जिले के सर्वेक्षित उरांव कृषक परिवार में चावल, दाल या सब्जी का सेवन करते हैें। सर्वेक्षित उरांव परिवार में चावल का औसत उपभोग प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 368.3 ग्राम है।जोत के आकार में वृद्धि के साथ-साथ उरांव परिवारों के चावल उपभोग प्रतिरूप में लगातार वृद्धि देखी गयी है। सर्वेक्षित उरांव परिवारों में सबसे अधिक चावल का औसत उपभोग बासेन गांव (प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 606.7 ग्राम) में है, जबकि चावल का सबसे कम उपभोग घोघर गांव (प्रतिदिन प्रति व्यक्ति 225 ग्राम) में पाया गया। चयनित परिवारों में दालों का औसत उपभोग 13.6 ग्राम प्रति व्यक्ति प्रतिदिन है। जिले के बैघिमा गांव (प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 24.6 ग्राम) में दाल का सर्वाधिक उपभोग किया जाता है, जो वृहद् जोत आकार वाले परिवार का परिणाम है।जिले में हरे पत्ते वाली सब्जियों का प्रयोग सभी मौसम में किया जाता है, ये भाजियां उरांव जनजाति स्वयं उत्पादित एवं समीपवर्ती भागों से संग्रह कर उपभोग करते हैं।जिले में औसत इकाई उपभोग प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 39.3 ग्राम प्राप्त हुआ, जो संतुलित मात्रा से बहुत कम है।मांस,मछली, एवं अण्डे का उपभोग पर्व एवंशादी ब्याह में करते हैं ,जबकि दूध का उपभोग नहीं किया जात। उनका कहना है कि जो गाय दूध देती है, वह उनके बछड़ों के लिए है अर्थात्  उनमें उनके बच्चों का हक है।

 

पेय पदार्थ

उल्लेखनीय है कि अध्ययन क्षेत्र के उरांव जनजातीय कृषक परिवारों में  निम्न आय वर्ग अर्थात् भूमिहीन( 51.4 प्रतिशत), सीमान्त एवं लघु कृषकों( 29.3प्रतिशत) की अपेक्षाकृत अधिक है। फलस्वरूप चाय एवं अन्य महंगे  पेय पदार्थों का उपभोग जहां नगण्य है, वहीं स्थानीय रूप से वनांे द्वारा संग्रह किये गये महुआ बीज से तैयार घरेलू कच्ची शराब एवं हड़ियाका सेवन अधिक है। कच्चे चावल को सड़ा कर तथा वनों द्वारा संग्रह किए गए जड़ी-बूटियां मिलाकर हंडियातैयार किया जाता है। पेय पदार्थों में इसका सेवन का प्रचलन उरांव जनजातीय परिवारों में अपेक्षाकृत अधिक है, क्यांेकि दाम में यह पेय पदार्थ सस्ता है।

 

पोषण स्तर

सर्वेक्षित गांवों में दैनिक उपभोग पर आधारित प्राप्त पोषण तत्वों के आधार पर पोषण स्तर प्रतिरूप भारतीय चिकित्सा अनुसंधान समिति द्वारा निर्धारित मानदण्डों को ध्यान में रखकर पोषण स्तर का मापन किया गया है एवं प्रति 100 ग्राम आहार पदार्थों में विद्यमान भोज्य तत्वों की मात्रा निश्चित की गयी है। भोजन में कैलोरी का सर्वोपरि स्थान है। कैलोरी द्वारा मानव शरीर को ऊर्जा की प्राप्ति होती है। कैलोरी की आवश्यकता व्यवसाय के आधार पर भिन्न-भिन्न होती है।कैलारी की आवश्यकता आयु वर्ग, लिंग के लिए एक औसत पुरूष की आवश्यकताओं को मानकर किया जाता है।सर्वेक्षित गांवों में कैलोरी का औसत उपभोग प्रति प्रतिदिन व्यक्ति 1712 है, जो अनुशंसित निर्धारित मात्रा 2400 से 688 कम है।भूमिहीन परिवारों में कैलोरी का औसत उपभोग (971 प्रतिदिन प्रति व्यक्ति) बहुत कम है।जिले के सर्वेक्षित गांव बासेन बगीचा विकासखण्ड में सर्वाधिक कैलोरीमध्यम जोत आकार परिवार (2693 कैलोरी प्रतिदिन प्रति व्यक्ति) में जहां अनुशंसित मात्रा से 293 किलो कैलोरी अधिक है।

 

सर्वेक्षित ग्रामों में सर्वाधिक मात्रा में प्रोटीन का उपभोग वृहद् जोत आकार वाले उरांव कृषकों में बैघिमा (65.8 ग्रा.), घोघर (65.8 ग्रा.), टेम्प (61.2 ग्रा.)ू, बरजोर (57.9ग्राम) एवं पटवाकोना( 56.9ग्रा.) में प्रतिदिन प्रति व्यक्ति प्राप्त हुआ, वहीं बासेन गांव (बगीचा विकासखण्ड)में 71.1 ग्राम प्रतिदिन प्रति व्यक्ति अधिक प्राप्त हुआ।भूमिहीन परिवारों में सबसे कम प्रोटीन पोषक तत्व पाया गया।

 

जिले में थाइमिन एवं विटामिन 2” का औसत उपभोग प्रतिदिन प्रति व्यक्ति, जो अनुशंसित मात्रा कम है। जिले के उरांव जनजाति परिवारों में आयरन का औसत उपभोग 16.03 मिलीग्राम प्रति व्यक्ति है, जो अनुश्ंासित मात्रा से 3.97 मिली ग्राम कम है। सर्वेक्षित उरांव परिवारों में आयरन का सर्वाधिक उपभोग बैघिमा ( 26.5 मिलीग्राम प्रतिदिन प्रति व्यक्ति) वृहद् जोत कृषकों में है, जबकि सेमरकछार गांव (13.1 मिलीग्राम प्रतिदिन प्रति व्यक्ति) भूमिहीन परिवारों में उपभोग कम है।

 

रोग प्रतिरूप

अध्ययन क्षेत्र के सर्वेक्षित गांवों में कुल 465 परिवारों की कुल 2158 जनसंख्या है। सर्वेक्षण अवधि छः महीनों में प्राप्त आंकड़े द्वारा सर्वेक्षित परिवारों की कुल 2158 जनसंख्या में से 29.6 प्रतिशत व्यक्ति, रोग से ग्रसित पाये गये। उल्लेखनीय है  कि शोध का विषय जशपुर जिले में पोषणस्तर का मूल्यांकन है अतः पोषण संबंधी रोगों के विश्लेषण को भौगोलिक कारकों के आधार पर विश्लेषित किया गया है।

 

 

 

 

 

बीमारी गहनता

जशपुर जिले में बीमारी गहनता ज्ञात करने के लिए प्रत्येक गांव के सम्पूर्ण बीमार व्यक्तियों के योग करके संबंधित सर्वेक्षित गांव की  कुल जनसंख्या से भाग देकर 100 से गुणा करके प्रतिशत ज्ञात किया गया है। विश्लेषित आंकड़ों से स्पष्ट है कि अध्ययन क्षेत्र में औसत बीमारी गहनता का प्रतिशत 29.7 है,जबकि सर्वाधिक बीमारी गहनता क्रमशः ग्राम -बरजोर (44.8 प्रतिशत),सकरडीह (41.6) वहीं मुण्डाडीह (40.5 प्रतिशत) प्राप्त हुआ । इसका प्रमुख कारण यहां प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र का अभाव तथा स्वास्थ्य केन्द्र की दूरी गांव से 6.4 किलोमीटर है, वहीं वनाच्छादित क्षेत्र, विरल जनसंख्या एवं उच्च शिक्षा की कमी, जोत के आकार का असमान वितरण जिसका प्रभाव उनके खाद्यान्न उपभोग एवं पुरानी संस्कृति एवं नैसर्गिक जीवनशैली अद्यतन प्रचलित है।

 

इसके विपरीत अध्ययन क्षेत्र में बीमारी गहनता स्तर उन भागों में कम है, जहां स्वास्थ्य सुविधाएं प्राप्त है तथाउन परिवारों में साक्षरता की दरें ऊंची है,जिसकासीधा संबंध उनके रहन-सहन तथा खान-पान पर पड़ता है । सर्वेक्षित गावां में सबसे कम बीमारी गहनता ग्राम अम्बाचुआ (25) एवं पटवाकोना (26 प्रतिशत) प्राप्त हुआ, जो कुनकुरी विकासखण्ड़ के समीप होने के कारण मिशनरियों के संपर्क तथा नगर के करीब होने का कारण प्रमुख है(सारणी क्र.-2)

 

सर्वेक्षित परिवारों में रोगों की स्थिति में रोगोपचार

अध्ययन क्षेत्र के उरांव जनजाति अपने समीपवर्ती क्षेत्र अर्थात् प्राकृतिक पर्यावरण पर आज भी निर्भर हैं। उनकी पुरानी संस्कृति एवं नैसर्गिक जीवनशैली अद्यतन प्रचलित है । फलस्वरूप उनके दैनिक आहार उपभोग में उनके सामाजिक रीति- रिवाज एवं पुरानी परम्पराओं, अज्ञानता का प्रभाव प्रत्यक्ष रूप से दिखाई पड़ता है। परिणामस्वरूप आज भी जड़ी-बूटी एवं घरेलू झाड़-फूक पर ही विश्वास करते हैं, लेकिन जो परिवार मिशन से जुड़े हैं एवं  शिक्षित हैं, वे परिवार एलोपैथिकदवाओं का सेवन करते है।

 

अध्ययन क्षेत्र के सर्वेक्षित जनजातीय परिवारो मंें 36.9 प्रतिशत बीमार की स्थिति में ऐलोपैथिक दवाओं का उपभोग करते है, जबकि 23.9 प्रतिशत एलोपैथिक एवं घरेलू दवाओं का प्रयोग एवं 28.3 प्रतिशत एलोपैथिक एवं झाड़फूंक दोनों का उपयोग करते हैं, जबकि आज भी 11 उरांव प्रतिशत परिवार घरेलू झाड़फूंक के द्वारा रोगोपचार करते हैं(सारणी क्रमांक-3)

 

 

 

निष्कर्ष:

उरांव जनजाति अपने पारम्परिक संस्कृति एवं सभ्यता के सन्निकट रहकर पारम्परिक कृषि उत्पादन द्वारा अपना जीवन निर्वहन करते हैं। सिंचित क्षेत्र की अल्पता, अज्ञानता एवं निम्न आर्थिक स्तर के कारण कृषि नवप्रवर्तन के उपकरणों के कम उपयोग से उरांव जनजाति कृषक परिवारों की उपज दर अन्य क्षेत्रों से कम है। उरांव जनजाति के खाद्यान्न उपलब्धता का प्रभाव उनके आहार प्रतिरूप पर स्पष्ट दिखाई देता है। चावल की उत्पादकता के कारण उरांव जनजाति के भोजन में चावल का उपभोग सर्वाधिक है। जिसके कारण कार्बोहाइड्रेट पोषक तत्व अपेक्षाकृत अधिक प्राप्त हुआ, किन्तु अन्य पोषक तत्वों की कमी के कारण अनेक रोगों से ग्रसित है। जोत के आकार के आधार पर उरांव जनजाति के पोषण स्तर में वृद्धि की प्रवृत्ति दृष्ट्रव्य हुई ,तथापि पोषण स्तर अनुशंसित मात्रा से कम प्राप्त हुआ, जो उनके निम्न आय स्तर एवं अज्ञानता का परिणाम है। उरांव जनजाति में उच्च शिक्षा की कमी के कारण कृषि विकास भी पिछड़ी अवस्था में प्राप्त हुआ। अज्ञानता के कारण उरांव जनजाति शासन द्वारा क्रियान्वित योजनाओं का लाभ प्राप्त करने में समर्थ नहीं हो पाते, इसके लिए उनके पारम्परिक सभ्यता, संस्कृति महत्वपूर्ण उत्तरदायी कारक सिद्ध हुए हैं।

 

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Received on 22.05.2015       Modified on 14.06.2015

Accepted on 23.06.2015      © A&V Publication all right reserved

Int. J. Rev. & Res. Social Sci. 3(2): April- June. 2015; Page 89-93