युवावस्था में तनाव

 

Dr. Mrs.Vrinda Sengupta

Asstt. Prof. Sociology, Govt.T.C.L.P.G. College, Janjgir (C.G.)

 

 सारांश

युवावस्था जीवन की सबसे महत्वपूर्ण अवस्था है। 21 वर्ष की आयु से युवावस्था प्रारंभ हो जाती है। 21-45 वर्ष की आयु युवावस्था कहलाती है। यह अवस्था गृहस्थाश्रम कहलाती है। यह अवस्था जिम्मेदारियों के वहन की, कर्तव्यों के पालन की अवस्था है। व्यक्ति अपने व्यवसाय का चुनाव, जीवन साथी चुनाव, वृद्ध माता-पिता, सास-ससुर आदि की सेवा, सामाजिक दायित्वों का निर्वहन, नाम, यश, धन आदि के लिए कठोर परिश्रम करना पड़ता है।

 

यह कठोर परिश्रम एवं  संघर्ष की अवस्था है।  इस अवस्था में व्यक्ति जैसा कर्म करता है  उसे उसका  फल  बुढ़ापे में भुगतना पड़ता  है। इस अवस्था में शारीरिक एवं मानसिक परिवर्तन व्यक्ति के जीवन में आते हैं। उससे अधिक समस्याओं का उसे सामना करना पड़ता है जिससे उसे समायोजन में कठिनाई होती है। वास्तव में हम अवांछित स्थितियों को आमंत्रित कर तनाव और व्याधियां मोल लेते है। समय का उचित उपयोग नहीं कर पाते। तनाव आज के युवा के सबसे भयंकर मानसिक व्याधि है।

 

शब्द कुंजी:-युवावस्था, तनाव, व्याधियां, कर्तव्य ।

 

ई.बी. हरलाक  ने  20-40 वर्ष की अवस्था को युवावस्था माना है। यह  जीवन का कठिन पड़ाव है। इसमें कठिन परिश्रम व समायोजन की आवश्यकता पड़ती है। इस  अवस्था  व्यक्ति ने अपने धनार्जन के साधनों का विकास नहीं किया है। विद्यार्जन के लिए कठोर श्रम नहीं किया है तो उसे जीवन दुःख भोगना पड़ता है।

 

उसके जीवन दुःख, कलेष का डेरा होता है। परिवार के सदस्य उसे कोसते हैं। इस अवस्था व्यक्ति को सभी तरह के दायित्वों का निवर्हन करना पड़ता है।

 

हकीकत तो यह है कि युवावस्था ‘‘गुलाब के फूलों की सेज नहीं है जिस पर युवक आराम फरमाते रहे।’’ यह कांटों भरा रास्ता है जिस पर चलने के लिए काफी धैर्य, साहस व सावधानी की जरूरत है।

 

विषेशताएं:-

(1) युवावस्था व्यवसाय की चुनाव की अवस्था है।

(2) उपर्युक्त जीवन साथी के चुनाव की अवस्था है।

(3) युवावस्था विवाह बंधन में बंधने की अवस्था है।

(4) युवावस्था यौन संतुष्टि की अवस्था है।

(5) सामाजिक उत्तरदायित्वों के निर्धारण की अवस्था है।

(6) संतानोत्पत्ति व उनके लालन-पालन की अवस्था है।

(7) युवावस्था में रूचियों में परिवर्तन होता है।

(8) युवावस्था रिस्क लेने की अवस्था है।

(9) युवावस्था माता-पिता की देखभाल व सेवा करने की अवस्था है।

(10) युवावस्था माता-पिता एवं बच्चों के मध्य अंतक्रिया की अवस्था है।

 

तनाव:-

तनाव का कारक उस घटना, कारण या व्यक्ति की विषय परिस्थिति है जो व्यक्ति में तनाव तथा कुसमायोजन उत्पन्न कर देती है। तनाव के कारण व्यक्ति विकृतियों से ग्रसित हो जाता है। तनाव, भौतिक,मनोवैज्ञानिक, सामाजिक आर्थिक हो सकती है। व्यक्ति के जीवन में घटित अप्रिय घटनाएं तनाव को बढ़ाती है। युवावस्था में व्यक्ति जीवन परिवर्तन के तनाव में आता है।  तलाक, किसी परम प्रिय की मृत्यु, गर्भ, आर्थिक संकट, शारीरिक रोग आदि तनाव के साथ कुंठा को विकसित करते हैं। द्वंद,उत्तरदायित्वों को निभाने में कठिनाई, भविष्य सुरक्षा, आंतरिक कठिनाईयां, संवेग, व्यवहार आदि में असमायोजन का तनाव का कारण बनता है। इससे व्यक्ति प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होता है।

 

समाजशास्त्रीय महत्व:-

(1) जीवन की समस्याओं से लड़ने के लिए परिपक्व हो जाता है।

(2) समायोजन करने की क्षमता बढ़ जाती है।

(3) अपने अहम् की संतुष्टि करने में सक्षम होता है।

(4) व्यवसायिक महत्वकांक्षाओं की संतुष्टि एवं प्रतियोगिताओं में सफल होने की योग्यता में बढ़ोत्तरी होती है।

(5) विवाह एवं विवाहोपरांत जिम्मेदारियां उठाने मे सक्ष्म होना है।

(6) वह अपने साथ-साथ दूसरों के पथ प्रदर्षन एवं सहायता के लिए सक्षम होता है।

(7) वह अपनी दायताओं का वास्तविक आंकलन कर पाता है।

(8) पारिवारिक, आर्थिक व सामाजिक जिम्मेदारियां निभाने के लिए तैयार रहता है।

 

उद्देश्य:-

(1) युवा तनाव रूपी जड़ को पनपने न दें।

(2) युवा किसी भी कार्य को भली-भंांति समझकर उसे संपन्न करें।

(3) युवा समस्या के प्रति अपना दृष्टिकोण बदलें।

(4) युवा अपने व्यक्तित्व में सकारात्मकता लायें। जिससे तनाव से बचा जा सके।

(5) पाष्चात्य सभ्यता के अनुसरण से बर्चें।

 

उपकल्पना:-

(1) युवावस्था को स्वर्णिम अवस्था बनायें।

(2) समस्या या तनाव को दूर करने की क्षमता विकसित करें।

(3) पराधीन न हो।

(4) पारिवारिक व सामाजिक कर्तव्यों को धैर्य व सावधानीपूर्वक निभायें।

(5) चुनौतियों व असफलता का सामना करें, विचलित होने से बचें।

 

अध्ययन क्षेत्र/पद्धति:-

तनाव की समस्या का अध्ययन शासकीय महाविद्यालय के छात्राओं का साक्षात्कार एवं पड़ोस की महिलाओं का साक्षात्कार।

 

अध्ययन पद्धति प्राथमिक आंकड़ें एकत्र करना एवं द्वैतियक सामग्री का संग्रहण।

 

समस्याएं:-

(1) भावात्मक अस्थिरता/परिपक्वता की कमी।

(2) वैवाहिक असमायोजन।

(3) समस्याओं का बहु-आयामी होना।

(4) सकारात्मक दृष्टिकोण का न होना, तनाव का कारण बनता है।

(5) जीवन की तुलना अन्य के साथ करना।

(6) जिन परिस्थितियों को नहीं बदला जा सकता,उसे सोचकर दुःखी होते है।

(7) अंदर के अंहकार का त्याग नहीं कर पाता।

 

सुझाव:-

(1) समस्याओें को एक-एक करके सुलझाईये।

(2) जब तक सफलता नहीं मिल जाती पूर्ण आत्मविष्वास और धैर्य के साथ निरन्तर प्रयास करते रहियें।

(3) कार्यो को प्राथमिकता के आधार पर निपटायें।

(4) कार्य को आधा-अधूरा नहीं बल्कि समग्र रूप से किया जाये।

(5) कार्य के प्रति अपना दृष्टिकोण बदलकर सकारात्मक बनाकर तनाव को कम कर सकतें।

(6) यह मानकर चलें कि जीवन की प्रत्येक घटना परोक्ष या अपरोक्ष रूप से आप को लाभ पहुॅचाती है।

(7) वर्तमान को सफल बनाने पर ध्यान दें।

(8) अपने जीवन की तुलना अन्य के साथ कर चिंतित न हो।

(9) जिस परिस्थिति को आप नहीं बदल सकते उसके बारे में सोच कर दुःखी न हो।

(10) खुशी देने से खुशी बढ़ती है इसलिए सर्व को खुशी दो।

(11) ईष्र्या न करें, परन्तु ईश्वर का चिंतन करें।

(12) मन को शांत रखने के लिए योग का सहारा लें ।

(13) हर कार्य के लिए प्रयासरत बने रहिये।

 

निष्कर्शः-

निष्कर्श स्वरूप हम कह सकते है कि ‘‘युवावस्था में तनाव’’ इस अवस्था का अपरिहार्य अंग है। इस अवस्था में व्यक्ति के जीवन मेंविभिन्न प्रकार की स्थितियां होती है जों व्यक्ति को समस्याओं में डाल देती है। जिसके फलस्वरूप व्यक्ति तनाव से ग्रसित हो सकता है। तनाव आज के युग की सबसे भयंकर मानसिक व्याधि है। तनाव के कारण युवा अपने बहुमूल्य जीवन का मजा नही उठा पाता है। इसलिए रोगमुक्त जीवन, स्वस्थ जीवन जीने के लिए जीवन में सहजता अपनाना तथा तनावप्रद स्थितियों से बचने का प्रयास करना व अपनी समस्याओं का उचित तरीके से निरकरण कर हम तनाव से बच सकते है। समस्याओं से भागने की अपेक्षा उसका मुकाबला कर हम तनाव को कम कर सकते है। जिससे हमारा जीवन प्रसन्नचित बना रह सकता है।

 

केस स्टडी

केस क्र. 01:-

‘‘’’ की पत्नि नौकरी पेशा हैं एवं दोनों अलग-अलग स्थानों में नौकरी करते है। इस वजह से उनकी बेटी की जिम्मेदारी ‘‘‘‘ की पत्नि को उठानी पड़ती हैं इस वजह से अधिकतर तनाव में रहती हैं। क्योंकि दोहरी जिम्मेदारी उठाती हैं। जिस वजह से तनाव ग्रस्त रहती हैं  एवं उनके  पास समय का अभाव रहता हैं एवं कुछ न कुछ कारणों से पति से बहस होती रहती हैं जिससे परिवार का माहौल तनाव ग्रस्त रहता हैं।

 

केस क्रमांक 02:-

एक 22 वर्ष की युवती स्नातक में अघ्यनरत हैं। जो कि दिखने में सुंदर है- कुछ समय से महाविद्यालय से धर आना जाना सकुशल कर रही थी पर कुछ समय से आने जाने के रास्ते में कुछ युवकों का समूह उस लड़की से छेड़छाड़ करते हैं जिस वजह से वह लड़की कुछ समय से तनाव से ग्रसित हैं।

 

REFERENCE:

1    भार्गव, डाॅ. महेश: मानव विकास का

2    भार्गव, डाॅ. बीनू: मनोविज्ञान , भार्गव बुक हाउस पृ. 246 से 283

3    नवभारत समाचार पत्र: अवकास 27 फरवरी 2012

4    नवभारत समाचार पत्र: अवकास 20 दिसम्बर 2012

5    तनावमुक्त जीवन: प्रजापिता ब्रह्यकुमारी ईश्वरीय वि.वि. माऊंटआबू पृ.- 10,11,12,13

 

 

 

Received on 03.06.2015       Modified on 15.06.2015

Accepted on 25.06.2015      © A&V Publication all right reserved

Int. J. Rev. & Res. Social Sci. 3(2): April- June. 2015; Page 82-84