केदारनाथ सिंह की कविताः संवेदना के संदर्भ में
प्रज्ञा त्रिवेदी
शोध-छात्रा, रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर छ.ग.
मनुश्य को समाज में अपने जीवन का अस्तित्व बनाये रखने के लिए बहुत से संघर्श करने पड़ते हैं जिससे उसे नाना प्रकार के अनुभव प्राप्त होते रहते हैं। यह अनुभूति काव्य में भाव-पक्ष से सम्बन्ध रखती है जबकि अभिव्यक्ति काव्य के शिल्प-पक्ष से सम्बन्ध रखती हैं पर दोनों ही एक दूसरे के पूरक हैं। अनुभूति का सम्बन्ध संवेदना से होता है और साहित्य का गहरा सम्बन्ध साहित्यकार की संवेदनाओं से होता है। किसी भी अनुभूति का स्वरूप वास्तव में प्रत्येक रचनाकार के मानसिक-स्तर पर निर्भर करता है और यह निर्भरता ही काव्य में समुचित भावों को उत्पन्न करने में सहायक होती है।
स्ंावेदना के महत्व की बात यदि हम करते हैं तो सबसे पहले तो यह समझना चाहिए कि मनुश्य जन्म लेने के कई वर्शों तक संवेदना एवं अनुभूति से काम लेता है क्योंकि बुद्धि या कल्पना का समावेश मानव-मन में बहुत बाद में होता है। एक शिशु रूप में वह समाज में आकर समाज से अनुभव ग्रहण करता है और उन अनुभव को ग्रहण करने हेतु उसे समाज की गतिविधियों का अवलोकन कर उन्हें आत्मसात करना आवश्यक हो जाता है बल्कि बहुत सी ऐसी भी सामाजिक गतिविधियाॅ होती हैं जिनका प्रभाव साहित्यकार पर बहुत गहरे तक पड़ता है। केदारनाथ सिंह का जन्म 7 जुलाई 1934, चकिया नामक गाॅव में हुआ जोकि बलिया जिला, उत्तर प्रदेश में स्थित है और बिहार की सीमा से लगा हुआ है। इनके इलाके से गंगा और सरयू जैसी प्रसिद्ध नदियाॅ बहती हैं, जिनका इनकी जातीय और सांस्कृतिक स्मृति-लोक से अविच्छिन्न संबंध है। इस क्षेत्र में प्राकृृतिक सुशमा भरी पड़ी है। ज़्यादातर लोग किसान हैं और केदार अपने गाॅव के अकेले ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त कर साहित्य के क्षेत्र में इतनी प्रगति की।
केदार के व्यक्तित्व पर कई कवियों का प्रभाव पड़ा। जिनमें निराला, मुक्तिबोध, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना एवं त्रिलोचन प्रमुख रूप से हैं। जिनमें से त्रिलोचन को तो ये अपना काव्य-गुरू ही स्वीकार करते हैं किंतु मुक्तिबोध को ये आधुनिक युग का सबसे सशक्त कवि मानते हैं। केदार के शब्दों में, सिर्फ उन्होंने अपनी कविताओं में हिंदुस्तान को बड़े परिप्रेक्ष्य में देखा तथा शहरी और ग्रामीण सच्चाई को मिलाकर प्रस्तुत किया। कहीं न कहीं इन पर मुक्तिबोध का प्रभाव भी देखा जा सकता है। इसका कारण है कि इन्होंने भी गाॅव और शहर की ज़िंदगी को पूरी सच्चाई के साथ अभिव्यक्त करने की कोशिश की है।
कृृतित्व का सामान्य परिचय
केदार की कविताओं का प्रारंभ सन् 1950 से हुआ । इनकी कविताओं के संकलनों का संक्षिप्त परिचय नीचे दिया जा रहा है-
1.अभी बिल्कुल अभीः-
‘अभी बिल्कुल अभी’ इनका पहला कविता-संग्रह है जो सन् 1960 में प्रकाशित हुआ था। इस संग्रह में अधिकांश कवितायें तीसरा सप्तक की हैं। इस संग्रह की कविताओं में कवि के युवावस्था की उमंग एवं उल्लास के साथ-साथ किशोर-मन की चिंताओं एवं संकट को परिलक्षित किया जा सकता है-
‘आजकल ठहरा नहीं जाता कहीं भी,
हर घड़ी हर वक्त ख़टका लगा रहता है,
कौन जाने कहाॅ वह दीख जाये,
हर नवागंतुक उसी की तरह लगता है,1
‘अभी बिल्कुल अभी’ संग्रह में संकलित सभी कविताओं में केदार के युवाकवि का उत्साह एवं स्वयं को साबित करने का जोश स्पश्ट परिलक्षित होता है जिससे युवा-संवेदना का पता चलता है। जो समकालीन समय में भी बराबर युवाओं की चिंता का विशय है।
2.जमीन पक रही हैः-
यह केदार का दूसरा कविता-संग्रह है जोकि सन् 1980 में प्रकाशित हुआ। पहले संग्रह ‘अभी बिल्कुल अभी’ से लगभग बीस वर्शाें बाद प्रकाशित इस संग्रह की कवितायें वास्तव में परिपक्व कवितायें हैं, जो अपनी जमीन का निर्माण स्वयं करती हुई प्रतीत होती हैं। केदार समय की आशंका एवं मोहभंग को सिर्फ इन पक्ंितयों में ही व्यक्त कर देते हैं-
वह उस औरत के पास जायेगा
और कहेगा-सब्जी अगर नहीं पकती
तो कोई बात नहीं
ज़मीन पक रही है
उसके सामने घोड़े की पीठ की तरह
फैली हुई ज़मीन
ज़मीन सिर्फ ज़मीन की तरह लग रही थी
सिर्फ ज़मीन थी
और उसका पकना था
जैसे बस्ती में गोश्त पक रहा हो’2
‘ज़मीन पक रही है’ की कविताओं में केदार जी ने खास प्रकार की भाशा का प्रयोग किया है, जिससे स्वभावतः उनके बिम्ब-निर्माण को भी प्रभावित किया है और साथ जमीन जैसी ठोस कवितायें घोडे़ की पीठ की तरह समतल नहीं है बल्कि संवेदना के कई भाव एक साथ उत्पन्न कर देने की क्षमता रखती हैं।
3.यहाॅ से देखोः-
यहाॅ से देखो इनका तीसरा कविता-संग्रह है जो सन् 1983 में प्रकाशित हुआ । ‘यहाॅ से देखो’ कविता-संग्रह में केदार की 41 कवितायें संग्रहीत हैं जिनमें प्रायः छोटी-बड़ी सभी कवितायें-‘टूटा हुआ ट्रक’, ‘पानी में घिरे हुए लोग’, ‘बनारस’, ‘कस्बे की धूल’, ‘जानवर’, ‘कीड़े की मृृत्यु’, ‘शीतलहरी में एक बूढ़े आदमी की प्रार्थना’ आदि छोटी-बड़ी कवितायें संवेदना की दृृश्टि से उच्चकोटि की कवितायें हैं। इसका शीर्शक जोकि एक दृश्टिकेाण की ओर संकेत करता है। इस कविता-संग्रह में ‘कविता क्या है’ शीर्शक कविता में कवि ने अपने कविता-लेखन का उद्येश्य स्पश्ट कर दिया है-
‘कविता क्या है
हाथ की तरफ़
उठा हुआ हाथ
देह की तरफ़
झुकी हुई आत्मा
मृृत्यु की तरफ़
घूरती हुई आॅखें’3
वस्तुतः ‘यहाॅ से देखो’ संग्रह की कविताओं में कवि के सामाजिक-दृृश्टिकोण का दायरा अधिक विस्तृृत रूप में सामने आया है जिसमें लोक से जुड़ने की प्रबल इच्छा देखी जा सकती है।
4.अकाल में सारसः-
यह कविता-संग्रह केदार का चैथा कविता-संग्रह है। इस संग्रह में 61 कवितायें संग्रहीत हैंजिनमें ‘मातृृभाशा’, ‘अकाल में दूब’, ‘अकाल में सारस’, ‘रास्ता’, ‘एक लम्बे अंतराल के बाद गंगा को देखकर’, ‘बालू का स्पर्श’, ‘पर्वस्नान’, ‘अड़ियल साॅस’, ‘नदी’, ‘जन्मदिन की धूप में’, ‘ठंड से नहीं मरते शब्द’ आदि कवितायें उल्लेखनीय हैं। ‘ठंड से नहीं मरते हैं शब्द’ कविता में जहाॅ कवि को शब्दों की गरिमा में विश्वास है वहीं दूसरी ओर समय रूपी खराब मौसम से भी शब्दों की शक्ति में क्षीणता आना स्वीकार करता है-
ठंड से नहीं मरते हैं शब्द
वे मर जाते हैं साहस की कमी से
कई बार मौसम की नमी से
मर जाते हैं शब्द’4
वस्तुतः इस संग्रह की कविताओं में कवि की संवेदना में प्रकृृति एवं मनुश्य दोनों के संबंधों की ओर अधिक झुकाव है जो शायद समकालीन परिवेश को उद्घाटित करने में समर्थ हैं जिसे एक साहित्यकार महसूस करता है और साहित्य के माध्यम से उसे परिवर्तित भी करना चाहता है।
5.बाघः-
बाघ’ नामक लम्बी कविता इक्कीस खण्डों में विभाजित कविता है जो केदार ने हंगरी भाशा के कवि यानोश पिलिंश्की की एक कविता से प्रभावित होकर लिखी थी, जो पढ़ने में जितनी ही सरल दिखती है वस्तुतः है नहीं। केदार के शब्दों में, ‘‘हर कालजयी कृति की तरह पंचतत्र का ढ़ाॅचा भी अपनी आपात सरलता में अनुकरणीय है। पर मुझे लगता है कि पंचतंत्र एक ऐसी कृति है जो एक समकालीन रचनाकार के लिए जितनी चाहे बड़ी चुनौती हो, पर जरा-सा रूक कर सोचने पर वह सृजनात्मक संभावना की बहुत-सी नई और लगभग अनुद्घाटित परतें खोलती-सी जान पडे़गी’’।
‘क्योंकि मैं ही
सिर्फ मैं ही जानता हॅू
मेरी पीठ पर
मेरे समय के पंजों के
कितने निशान हैं’5
केदार इस लंबी कविता में संवेदना के धरातल पर समकालीन परिदृश्य में व्याप्त हर उस चुभन को व्यक्त करते हैं जिसे शायद समाज का हर सामान्य-जीवन जीने वाला व्यक्ति महसूस करता है।
6.उत्तर कबीर और अन्य रचनायें:-
यह कवि का छठवाॅ कविता-संग्रह है जो सन् 1995 में प्रकाशित हुआ। इस संग्रह में केदार की 67 कवितायें संकलित हैं जिनमें कुछ छोटी कवितायें बड़ी कविताओं की अपेक्षा अधिक उत्कृृश्ट बन पड़ी हैं । ‘पोस्टकार्ड’, ‘गाॅव आने पर’, ‘नदियाॅ’, ‘कुदाल’, ‘हस्ताक्षर’, ‘मधुमक्खियों का हमला’, ‘पाणिनी की याद’, ‘आज़ादी का स्वाद’, ‘ठंड में गौरैया’, आदि कवितायें महत्वपूर्ण बन पड़ी हैं।यहाॅ एक प्रकार का आंतरिक विस्थापन है जो ‘उत्तर केदार और अन्य रचनायें’ संग्रह की कविताओं में देखी जा सकती है-
‘एक बूढ़े पक्षी की तरह लौट-लौटकर
मैं क्यों यहाॅ चला आता हॅू बार-बार’6
इस संग्रह की कविताओं में संवेदना का दायरा पिछली कविताओं की अपेक्षा अधिक व्यापक हुआ है जिसे विश्व-परिदृश्य से संबद्ध करके देखा जा सकता है।
7.तालस्ताय और सायकिलः-
यह संग्रह केदार की संवेदना का दस्तावेज कहा जा सकता है, जिसे समझने के लिए पाठक में भी गहरी संवेदना की आवश्यकता है और जो पाठक इन कविताओं को यह सोचकर पढ़ते हों कि एक बार में कवि की संवेदना को आत्मसात किया जा सकता है तो यह बहुत बड़ी भूल होगी-
‘हमारे समय में सही का पता
सिर्फ़ ग़लत से चलता है
सिर्फ़ चीखने पर मालूम होता है-
कि ध्रुपद में आज भी कितनी जान है 7
‘तालस्ताय और साइकिल’ कविता-संग्रह की लगभग सभी कविताओं में कवि वैश्विक स्तर पर चिंतित है। उसकी संवेदना में पाण्डुलिपियाॅ भी हैं, त्रिनीदाद के अप्रवासी लोग भी हैं, घोंसलों की चिंता भी है अर्थात सही मायने में कवि संसार की नवीन संरचना एवं मूल्यों में परिवर्तन लाना चाहता है।
8.सृश्टि पर पहराः-
केदार का यह संग्रह 57 छोटी-बड़ी रचनाओं का अनूठा संग्रह है जिसकी लगभग सभी कवितायें मन के तारों को झंकृत करने में समर्थ हैं। इनका यह संग्रह सन् 2014 में प्रकाशित हुआ है, जिसे इन्होंने अपने गाॅव के लोगों को समर्पित की है। जिसके तदनन्तर इन्हें भारतीय साहित्य का सबसे बड़ा पुरस्कार ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ मिलने की घोशणा हुई है। इस संग्रह की कविताओं में ‘विद्रोह’, ‘कपास के फूल’, ‘हिन्दी’, ‘घास’, ‘एक पुरबिहा का आत्मकथ्य’, ‘विज्ञान और नींद’, ‘नदी का स्मारक’, ‘सृृश्टि पर पहरा’, ‘भोजपुरी’ कवितायें बेहद आत्मीय-सी लगने वाली कवितायें हैं किंतु ‘मंच और मचान’ जोकि इस संग्रह की लम्बी कविता है संवेदना के दृृश्टिकोण से बेजोड़ कविता है जिसको शायद केदार की अभी तक की कविताओं में सर्वाधिक उच्चकोटि की कविता माना जा सकता है-
क्या किया जाये ?
हुक़्म दिल्ली का
और समस्या जटिल
देर तक खड़े-खड़े सोचते रहे वे
कि सहसा किसी एक ने
हाथ उठा प्रार्थना की-
‘चीन बाबा,
ओ...ओ...चीना बाबा !
बरगद काटा जायेगा’
‘काटा जायेगा ?
क्यों ? लेकिन क्यों ?’
जैसे पत्तों से फूटकर जड़ों से आवाज़ आई8
केदार का यह संग्रह अपने आपमें अनूठा है जिसमें बिस्तर से लेकर कुर्सी-मेज, अलमारी, शाॅल, टी.वी., फोन, नल और दरवाजे सभी विद्रोह पर उतर आये हैं। कह सकते हैं कि प्रकृृति-संवेदना का दायरा बढ़ा है। वस्तुतः समकालीन परिदृश्य ये अकेले ऐसे कवि हैं जो साहित्य के क्षेत्र में सामाजिक, सांस्कृतिक, प्राकृतिक, आधुनिक, वैज्ञानिक संवेदना को पाठकों के समक्ष लाने का निरंतर प्रयत्न कर रहे हैं।
संदर्भ-ग्रंथः-
1.अभी बिल्कुल अभी, पृ.10
2.जमीन पक रही है, पृ.19
3.यहाॅ से देखो, पृ.2
4.अकाल में सारस, पृ.27
5.बाघ, पृ.21
6.उत्तर कबीर और अन्य रचनायें, पृ.25
7.तालस्ताय और सायकिल, पृ.19
8.सृश्टि पर पहरा, पृ.30
Received on 02.01.2016 Modified on 06.02.2016
Accepted on 12.03.2016 © A&V Publication all right reserved
Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 4(1): Jan. - Mar., 2016; Page 31-34