अनुसूचित जाति एवं जनजाति की आर्थिक स्थिति का समीक्षात्मक अध्ययन

(दमोह जिले के विशेष सन्दर्भ में)

 

Dr Sunita Jain

 

Prof. of Economics Dept. SVN University, Sagar (M.P.)

*Corresponding Author E-mail: drsunitajain.sagar@gmail.com

 

हमारे दश्ेा में कमजोर एवं वंचित समूहों को संवैधानिक शब्दावली में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति कहा गया है। इन दोनो श्रेणियों का अनुसूचित इसलिये कहा जाता है क्योंकि इन जातियों का संविधान की धारा के अन्तर्गत उल्लेख किया गया है। 1‘‘अनुसूचित जातियों का उद्भव प्राचीन हिन्दू और सनातन धर्म की वर्ण व्यवस्था से हुआ है। प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद के अनुसार अनुसूचित जातियांे की उत्पत्ति का आधार वर्ण व्यवस्था मे निहित बतलाया गया हे। हिन्दू वर्ण व्यवस्था के अनुसार हिन्दू समाज को चार वर्गो में विभाजित किया गया है। प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद के अनुसार श्रम-विभाजन के सिद्धांत के आधार पर हिन्दू समाज को चार भागों - ब्राह्यण, क्षत्रिय, वैष्य और शूद्र जातियों में बांटा गया है। मनुस्मृति के अनुसार ब्राह्यण वर्ग जो सर्वश्रेष्ठ जाति का है सर्वोपरि देवता के मुख से, क्ष्त्रिय उनके भुजा से, वैश्य उनके उदर से ओर शूद्र (ईश्वर) के पैर से निर्मित हुये है। शूद्र जाति का मुख्य कार्य समाज के उच्च तीनो वर्गो की सेवा करना एवं अन्य तुच्छ कार्यो को करने तक सीमित किया गया था।’’1

 

2‘‘आधुनिक काल में अनुसूचित जाति शब्द का प्रयोग पहलेसाइमन कमीशनने 1927 मे किया। अंग्रेजी शासनकाल में अनुसूचित जातियों के लिये सामान्यतया दलित वर्ग का प्रयोग किया जाता था। कहीं-कहीं इन्हें बहिष्कृत अपृष्य या बाहरी जातियाॅं भी कहा जाता था। हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गाॅंधी ने इन्हें हरिजन (ईश्वर की संतान) कहा। भारत शासन अधिनियम 1935 में जो अब हमारे संविधान का अंग हैं, इन अछूत जातियों को अनुसूचित जातियाॅं कहा गया है। भारतीय संविधान के निर्माता डाॅ. भीमराव अंबेडकर को सही मायनों में अनुसूचित जातियों का मसीहा कहा जाता है, जिनके अथक विशिष्ट प्रयासों से ही भारतीय संविधान में ही छुआछूत को अपराध माना गया है एवं संसद राज्य विधानसभाओं तथा शासकीय सेवाओं में अनुसूचित जाति एवं जनजाति वर्गो के आरक्षण के लिये विशेष प्रावधानों को सम्मिलित किया गया है।’’2

 

परिभाषा-

भारतीय संविधान में अनुसूचित जातियों के बारे में लिखा है - 3‘‘किसी भी प्रदेश या केन्द्रशासित क्षेत्र में राज्यपाल की सलाह से राष्ट्रपति किन्हीं जातियों या जनजातियों, समूहों समुदायो  या उसके भाग को विशिष्ट घोषित कर सकता है और ये उस प्रदेश या 

केन्द्रश्शासित क्षेत्र के संबंध में संविधान के संदर्भ मंे अनुसूचित जातियाॅ मानी जायेगी।‘‘ अनुसूचित जातियों का वर्गीकरण हिन्दू वर्ण व्यवस्था धार्मिक विधियों शुद्धता-अशुद्धता, ऊॅंच-नीच, भेदभाव एवं अंतरजातीय संबंधों के आधार पर किया गया है। इसके मुख्य आधार सामाजिक- सांस्कृतिक पृथक्करण, उपेक्षा, अस्पृष्यता, सामाजिक-भेदभाव, सामुदायिक, सीमित अन्तः क्रियायें इत्यादि हैं। रैगर (चर्मकार) एवं हरिजन प्रमुख अनुसूचित जातियाॅं है। पष्चिमी बंगाल में बागड़ी एवं राजवंशी, मध्यप्रदश्ेा में  महार, जाटव, अहरवाल, चढ़ार, आदि, आंध्रप्रदेश में माला एवं माडिगा, केरल में चेरूयन पुलयन, रकवा तथा तमिलनाडु में पल्ला एवं परिया प्रमुख अनुसूचित जातियाॅं है।’’3

 

4‘‘अनुसूचित जनजाति में वे आदिम जातियाॅं जिनका उल्लेख संविधान की अनूसूची में किया गया है, अनुसूचित जनजाति कहलाती है। अंग्रेजी काट्राइब (ज्तपइम)’ लैटिन भाषा के ट्राइब्स से बना है, जिसका अर्थ है- समाज के विभिन्न हिस्से या भाग। यूरोप ओर अफ्रीका में इस शब्द के स्थान पर ऐसे समुदायों के लिये देशज या देशी़; (प्दकपहमदवने) लोग शब्दावली का प्रयोग करते किया जाता है।

2001 की जनगणना के अनुसार भारत में कुल जनसंख्या का 8.2 प्रतिशत भाग (84.52 मिलियन) अनुसूचित जनजातियों का है। वर्तमान में भारत में करीब 700 आदिम जातियों को अनुसूचित जनजातियों का दर्जा प्राप्त है। भारत में अनुसूचित जाति, जनजातियाॅं, अधिकांशतः ग्रामीण ओर सुदूर जगं ली और पहाड़ी क्षेत्रांे में जीवनयापन करने के लिये बाध्य है एवं भारतीय समाज की प्रगति की मुख्यताया धारा से जुड़ने में असमर्थ पाते है, शासकीय स्तर पर उनके सामाजिक ओर आर्थिक सुधार हेतु सभी सरकारें अधिक सक्रिय एवं संवेदनशील हो चुकी है, प्रो बैरियर एलविन ने बैगा, मारिया, मुंडा, ओशिया, बिरहोर, खारिया, कोल, अबोर, कयार तथा अन्य आदिम जातियो के जीवनशैली और सामाजिक क्रियाकलापों का विषद अध्ययन किया है अनेक समाजशास्त्रियों एवं सुधारकों के द्वारा समय समय पर अनुमानित सर्वेक्षण में किया गया है।‘‘4

 

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 366 के अनुसार, 5‘‘अनुसूचित जनजातियों से ऐसी जाति, समूह या उनके भाग अभिप्रेत हैं, जिन्हें इस संविधान के प्रयाजनों के लिये अनुच्छेद 342 के तहत अनुसूचित जनजाति समझा जाता है। अनुच्छेद 342 के अनुसार -राष्ट्रपति किसी प्रदेश या केन्द्रशासित क्षे़त्र के संबंध में वहां के राज्यपाल से परामर्ष के पश्चात लोक अधिसूचना द्वारा उन जनजातियों या समूहों को विनिर्दिष्ट कर सकेगा, जिन्हे इस संविधान के प्रयाजनों के लिये यथास्थिति उस प्रदेश या केन्द्रशासित क्षेत्र के संबंध में अनुसूचित जनजाति समझा जाता है।’’5 इस प्रकार संवैधानिक प्रावधानो से स्पष्ट है कि-

 

1.  अनुसूचित जनजातियों की सूची राज्य या केन्द्रषासित प्रदेश स्तर पर तैयार होती है, राष्ट्रीय स्तर परनहीं।

2. किन जातियो को अनुसूचित जनजातियो का दर्जा दिया जाए यह निर्णय राज्यो  के राज्यपालोके

परामर्ष से राष्ट्रपति करता है अनुच्छेद 342 के अनुसार अनुसूचित जनजातियो के लिये पांच विषेषताओं का होना आवष्यक है।

 

दमोह जिले में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति

दमोह जिले में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के स्थिति के व्यापक अध्ययन के पूर्व

यह सर्वथा उचित होगा कि सम्पूर्ण भारत मे अनुसूचित जाति ओर जनजाति की जनसंख्या की स्थिति की मूलभूत पहलुओं का अध्ययन प्रस्तुत किया जाये वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार भारत की कुल जनसंख्या में अनुसूचित जाति और जनजाति की जनसंख्याा का लेखा-जोखा नीचे सारणी क्रमांक 1.0 में प्रदर्शित हैः-

 

भारत में राज्यवार इनकी जनसंख्या की जानकारी नीचे दिये सारणी क्रमांक 6.02 एवं 6.03 में  प्रदर्षित किया गया है।

 

भारत में अनुसूचित जनजाति बाहुल्य वाले राज्य सारणी क्रमांक 3.0 के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि निरपेक्ष जनसंख्या की दृष्टि से, भारत में अनुसूचित जनजाति की सर्वाधिक जनसंख्या मध्यप्रदेष राज्य में 12233474 है, जो सर्वाधिक है। इस क्रम में महाराष्ट्र, उड़ीसा गुजरात और राजस्थान तथा झारखण्ड और छत्तीसगढ़ आदि राज्यो का क्रम स्थान बाद में आता है। जहाॅ तक अनुपातिक जनसंख्या का प्रष्न है, पंजाब राज्य में अनुसूचित जाति जनसंख्या का अनुपात 33.92 से अधिक है जबकि अनुसूचित जनजाति भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में मिजोरम (89 प्रतिषत), मेघालय (85 प्रतिषत) तथा अरूणाचल प्र्रदेष में (65 प्रतिषत) है।

 

दमोह जिले में अनुसूचित जाति ओर अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या - विष्लेषण

दमोह जिला बुन्देखण्ड क्षेत्र में सागर संभाग के पांच जिलों में सर्वाधिक अनुसूचित जाति ओर जनजाति बाहुल्य जिला माना जाता है नीचे दिये गये सारणी क्रमांक 4.0 के अवलोकन से वास्तविक तथ्य स्वतः उजागर होता है।

 

सारणी क्र. 4.0 के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि दमोह जिले मे अनुमानतः 20.5 प्रतिषत जनसंख्याा अनुसूचित जाति तथा लगभग 14.56 प्रतिषत जनसंख्या अनुसूचित जनजाति वर्गो का है। अतः जिले की अनुमानतः 35 प्रतिषत जनसंख्या अनुसूचित जाति और जनजाति की है दमोह जिले में स्थित बैंकिंग संस्थाओं की वित्तीय सहायता की विविध जनकल्याणकारी योजनाओ में इस पिछड़े वर्ग को सर्वोच्च प्राथमिकता देना होगा।

 

दमोह जिलें में तहसीलवार अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के विभाग-

दमोह जिला प्रषासनिक दृष्टि से सात तहसीलो में विभाजित है। लेकिन अनुसूचित जाति अेोर अनुसूचित जनजाति जनसंख्या का विभाजन सभी तहसीलो मंे प्रदर्षित सारणी 5.0 से स्पष्ट होता है। एक समान नहीं है। जैसा कि नीचे सारणी क्र. 5.0 दमोह जिले तहसीलवार अनुसूचित जाति और अनु. जनजाति

 

1. अनुसूचित जाति वर्ग की सर्वाधिक जनसंख्या दमोह तहसील में है, जो जिले का मुख्यालय भी है। इस क्रम में दूसरे, तीसरे और चैथे क्रम में सर्वाधिक जनसंख्या क्रमषः पथरिया दमोह ओर बटियागढ़ तहसीलों में दिखाई देता है।

2. अनुसूचित जाति वर्ग की सर्वाधिक जनसंख्या तेन्दूखेड़ा तहसील में है। इसके बाद क्रम में, जबेरा सर्वाधिक  जनसंख्या क्रमषः पथरिया दमोह ओर बटियागढ़ तहसीलों में दिखाई देती है।  तेन्दूखडे़ा ओर जबेरा तहसीलों को यदि मिला दिया जाए तो यह स्पष्ट होता कि दमोह जिले में लगभग 50 प्रतिषत सेअधिक अनुसूचित जनजाति वाले लोग इन्ही दो तहसीलों मंेंरहते है। अतः आवष्यकता इस बात की है कि दमोह जिले की संस्थागत वित्त की योजनाओं में अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति की आर्थिक उत्थान में उन तहसीलों को प्राथमिकता देना होगा जहा इसकी जनसंख्या क्रमषः सर्वाधिक है।

 

भारत के समान दमोह जिले में भी शासकीय सेवाओं में अनुसूचित जाति ओेेर अनुसूचित जनजाति के सामाजिक और आर्थिक उत्थान हेतु पृथक-पृथक अनेक प्रकार की विषिष्ट योजनाएं और कार्यक्रम संचालित हैं। जिनका लाभ अनु. जाति वर्ग के लोग अधिक और अनु. जनजाति के लोग अपक्ष्े ााकृत कम लाभउठाते रहे है।

 

दमोह जिलें में तहसीलवार अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की आर्थिक स्थिति का क्षेत्रवार अध्ययन वर्ष 2011 की जनगणना उपयुक्त सारणी के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि दमोह जिले की कृषि अर्थव्यवस्था में आर्थिक नियोजन के 60 वर्ष पष्चात् भी अनुसूचित जाति और जनजाति श्रेणी के लोग अपनी आय अर्जन ओर रोजगार के लिये इसी प्राथमिक क्षेत्र से जुडे हुये हे। जिले के औधोगिक क्षेत्र में रोजगार प्राप्ति में भी इन्हें अत्यन्त सीमित अवसर प्राप्त होते है। तृतीयक क्षेत्र में शासकीय सेवाओ में जहाॅं आरक्षण का निर्धारित प्रावधान विद्यमान है अनु. जाति एवं जनजाति वर्ग अपेक्षित लाभ मिला है, लेकिन निजी क्षत्रे में बीड़ी उद्योग व्यवसाय के कुछ लाभ के अतिरिक्त सर्वत्र बेरोजगारी आरै  दयनीय आर्थिक स्थिति के कारण निर्धनता की निम्न सीमा के नीचे निवास करने वाले जनसंख्या का अनुपात सर्वाधिक प्रतीत होता है।

 

शोध प्राविधिरू

दमोह जिले में अनु. जाति एवं जनजातियों की तहसीलदार आर्थिक स्थिति का सर्वेक्षण  शोध की सविचार विधि, देव न्यादर्ष विधि दोनो का मिश्रित रूप से प्रयोग किया गया है -

 

अनुसूचित जाति वर्ग की आर्थिक और सामाजिक स्थिति के अध्ययन के लिए तीन सर्वाधिक जनसंख्या वाले दमोह तहसील, पथरिया तहसील हटा तहसील  के 500-500 परिवारों को सविचार पद्वति से चिन्हित किया गया। इसके बाद प्रत्येक  तहसील के 500 परिवारो में से दैव निदर्षन की पद्वति से 200 परिवारों का चयन किया गया प्रष्नावली के माध्यम से 200 परिवारों की वांछित जानकारी संकलित की गयी।

 

अनुसूचित जनजाति की आर्थिक और सामाजिक स्थिति के अध्ययन हेतु जिले में अनुसूचित जनजाति बाहुल्य वाले तीन तहसीलों तेन्दूखेड़ा तहसील, जबेरा ओर दमोह तहसीलो के 200-200 परिवारो का सविचार पद्वति से सर्वप्रथम चयन किया गया। इसके बाद प्रत्येक तहसील के 200 चिन्हित परिवारों में से देव निदर्षन पद्वति से 100-100 परिवार का न्यायदर्ष के रूप में चयन करके प्रष्नावली के माध्यम से वांछित जानकारी प्राप्त की गई।

 

सर्वेक्षण से जो तथ्य उजागर हुए है उसकी मुख्य बाते निम्नलिखित हैं-

1. दमोह तहसील जो नगरी क्षेत्र में स्थित है ओर सम्पूर्ण जिले का मुख्यालय है इसके विपरीत अन्य सभी  तहसीलों/ग्रामीण और कृषि अर्थव्यवस्था की प्रधानता है ओर नगरी क्षेत्र की तुलना में औद्योगिक अन्य व्यवसायिक गतिविधियाॅं कम है।

2. दमोह तहसील के नगर में अनुसूचित जाति के मात्र 35 से 40 प्रतिषत परिवार निर्धनता की सीमा के नीचे जीवनयापन के लिये बाध्य है जबकि ग्रामीण क्षेत्र मे निवास करने वाली 65 से

75 प्रतिषत परिवार निर्धनता की निम्न सीमा के नीचे जीवनयापन करने के बाध्य है अर्थात

नगरी क्षेत्र की तुलना में ग्रामीण क्षेत्र मे सर्वाधिक निर्धन अनुसूचित वर्ग के लोग येन-केन प्रकरण जीवन यापन करने के लिये बाध्य है।

3. नगरी क्षेत्र में 60 प्रतिषत परिवार शासकीय योजनाओं का आंषिक या पूर्ण लाभ प्राप्त कर रहा है जबकि ग्रामीण क्षेत्र में निवास करने वाले अनुसूचित जाति के सामाजिक आर्थिक उत्थान हेतु निर्धारित योजनाओ का केवल 24 प्रतिषत परिवार इन योजनाओ का हितग्राही है। इसकी वजह अषिक्षा अज्ञानता और समुचित जानकारी के अभाव के कारण ग्रामीण परिवार दूर तक इनशासकीय योजनाओं के लाभ से वंचित है।

4. नगरी क्षेत्र में निवास करने वाले 66 प्रतिषत परिवार आरक्षण का लाभ उठाने में सक्षम पाये गये जबकि ग्रामीण परिवार में केवल 35 प्रतिषत परिवार आरक्षण का लाभ उठाने के प्रति जागरूक पाये गये।

5. शासकीय सेवाओं में सर्वाधिक लाभान्वित अनूसूचित जाति के नगरी क्षेत्र में निवास करने वाली जनसंख्या है। जिसमंे सर्वेक्षित परिवारों में 16 प्रतिषत ऐसे परिवार मिले जिसमंे परिवार के 3-4 लोग शासकीय सेवाओं मंे पदस्थ पाये गये है ओैर जो क्रिमी लेयर के अंतर्गत उच्च आय वर्ग  की श्रेणी में आय करों का भुगतान भी करते है लेकिन 64 प्रतिषत परिवार का कोई भी सदस्य शासकीय सेवाओं में कार्यरत नहीं हैं। इसके विपरीत ग्रामीण क्षेत्र में निवास के 12 प्रतिषत सर्वेक्षित परिवार का सदस्य शासकीय सवे चतुर्थ श्रेणी में सेवारत पाये गये। ाओं में कार्यरत पाया गया है जो ज्यादातर तृतीय 6. नगरी क्षेत्र में निवास करने वाले अनु. जाति के 34 प्रतिषत परिवां के किसी किसी सदस्य का बैंकों में जमा खाता पाया गया जिसमंे 20 प्रतिषत परिवारों के कोई कोई सदस्य बैंक से ऋण प्राप्त किया है। जबकि ग्रामीण क्षेत्र मंे केवल 18 प्रतिषत सर्वेक्षित परिवारांे के सदस्यांे का जमा खाता है ओर केवल 12 प्रतिषत परिवार बैंकों से किसी किसी व्यवसाय के लिये ऋणप्राप्त किया है।

7. जहाॅं तक स्वरोजगार योजना के अंतर्गत बेरोजगारों को लघु कुटीर एवं व्यापार के लिये बैंको से ऋण प्राप्त करने तथा 10000 रू. तक अनुदान का भी प्रावधान है लेकिन सर्वेक्षण से जो तथ्य उजागर हुये है कि उसके अनुसार 32 प्रतिषत सर्वेक्षित परिवारों ने स्वराजे आवेदन दिये जिसमें 22 प्रतिषत स्वीकृत और ऋण प्राप्त किये है।  गार हेतु बैंकों को

8. जहाॅं तक अनुसूचित जाति ओर अनु. जन जाति के छात्रवृत्ति योजना का प्रष्न है, शासन द्वारा मैट्रिक स्तर, स्नातक स्नातकोत्तर स्तर पर सभी अध्ययनरत छात्र-छात्राओं को छात्रवृत्ति का लाभ मिलता है। लेकिन शोध से एक नवीन जानकारी प्राप्त हुई है कि 2001-2013 तक केन्द्र लोक सेवा आयोग की परीक्षा में विभिन्न स्तरों पर सफलता प्राप्त करने पर प्रोत्साहन राषि प्राप्त करने की पात्रता ळें

9. सर्वेक्षण द्वारा एक नया तथ्य सामने आया कि हटा एवं पथरिया जैसे अनुसूचित जाति बाहुल्य वाले तहसीलों में जिले की बैंक की कुल 88 शाखाओं का केवल 8 प्रतिषत (7 शाखायें) तथा जिले की तेन्दूखेड़ा ओर जबेरा जैसे अनुसूचित जनजाति बाहुल्य तहसीलों में कुल 88 में 6 विभिन्न बैकों की शाखायें स्थापित और कार्यरत है जो यह संकेत करती है कि अनुसूचित जाति ओर जनजाति बाहुल्य क्षेत्रों में बैंकिंग सुविधायें अनुपात से बहुत कम है।

सुझावरू

1. दमोह जिले में अनुसूचित जाति ओर जनजाति बाहुल्य बैैंकों की अधिक से अधिक नई शाखाओं का विस्तार होना चाहिए।

2. अनुसूचित जाति आरै में संचालित करना। अनु. जनजाति के विकास हेतु नये-नये कार्यक्रमों को बैंकों के मार्गदर्षन

3. अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों का बैंकों में बचत खाता अधिक से अधिक क्रियाओं के विस्तार में उचित सहायता देना।

4. दमोह स्थित समस्त बैंकिंग संस्थाओं को स्वतः पहल करके अनुसूचित जाति ओर जनजाति बाहुल्य क्षेत्रों एवं परिवारों को चिन्हित करना और बैकिंग, बैंक और वित्त प्रदान कर उन्हें आर्थिक ओर उद्यमी क्रियाओं को प्रोत्साहित करना।

5. बैंकिग वित्तीय सुविधाओं की सभी जानकारी ओर सुविधाओं का प्रचार करना।

6. केन्द्र राज्य सरकारों द्वारा संचालित विभिन्न कार्यक्रमों को समाज के अंतिम इकाई इन जातियों के परिवारों तक प्रभावपूर्ण तरीकों से लागू करना और वांछित परिणाम प्राप्त करना।

 

संदर्भ ग्रंथ सूचीरू

1. भारत की जनगणना प्रतिवेदन वर्ष 2001 एवं 2011.

2. मध्यप्रदेष में जनगणना प्रतिवेदन- अनुसूचित जाति एवं अनु. जनजाति का विषेष अध्ययन .प्र. सरकार - भोपाल प्रकाषन, 2012

3. दमोह का वार्षिक सांख्यिकी पुस्तिका वर्ष 2010-11.

4. भारत के आर्थिक विकास में अनुसूचित जाति एवं जनजाति को वर्तमान स्थिति का एक विषेष अध्ययन- कु. सुनीता राव एवं विनिता मंडल, एव. चांद, प्रकाषन नई दिल्ली, 2010, पृ. 84

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Received on 01.08.2016       Modified on 10.09.2016

Accepted on 16.10.2016      © A&V Publication all right reserved

Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 4(4): Oct.- Dec., 2016; Page 237-242