क्षेत्रीय विकास में ग्रामीण बाजार एवं स्थानिक संगठन की भूमिका (बालोद जिले के विशेष संदर्भ में)
प्रो. सरला शर्मा1ए रीना2
1प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष, भूगोल अध्ययनशाला पं. रविशंकर शुक्ल वि. वि. रायपुर (छ.ग.)
2शोध छात्रा, भूगोल अध्ययनशाला पं. रविशंकर शुक्ल वि. वि. रायपुर (छ.ग.)
शोध सारांशरू
प्रस्तुत अध्ययन का मुख्य उद्देश्य बालोद जिले के विशेष संदर्भ में क्षेत्रीय विकास में ग्रामीण बाजार एवं स्थानिक एवं कालिक परिप्रेक्ष्य में भौगोलिक विश्लेषण करना है। बालोद जिले में फूटकर व्यापार में संलग्न लोगों की संख्या केन्द्रीय सूचकांक के आधार पर क्रमशः घोटिया 137.96 प्रथम पद, पचेड़ा 127.06 द्वितीय पद, मटिया बोड़की 111.42 तृतीय पद, कोड़ेकसा 39.78 चैथे पद, संजारी 30.04 पांँचवें पद, खोलझर 25.55 छटवें पद, ठेमाबुर्जुग 24.18 सातवें पद, सरबदा 13.72 आठवें पद, भेड़ी सु. 8.1 नवमें पद, मार्री बंगला दसवें क्रम पर है, जिसमें डौण्डी विकासखण्ड में अन्य विकासखण्डों की तुलना में फूटकर व्यापार का केन्द्रियता सूचकांक अधिक प्राप्त हुआ, वहीं निवास स्थान से ग्राम बाजार तक विक्रेताओं का अधिक प्रतिशत क्रमशः 0से 5 कि.मी. में घोटिया ( डौण्डी ) से 29ः, 6से 10 कि.मी. में तार्री (गुरूर) से 80ः ए 11से 15 कि.मी. में घोटिया ( डौण्डी ) से 60ः तथा 15से अधिक कि.मी. की दूरी में पचेड़ा ग्रामीण बाजार ( डौण्डी ) से 66.7ः प्राप्त हुई ।
कुँजी शब्द रू ग्राम बाजार, बाजार स्थल, क्रेता-विक्रेता, वस्तुएँ।
बाजार केन्द्र पृथ्वी धरातल के किसी भी भौगोलिक क्षेत्र में मानव समुदाय द्वारा विकसित किए गए सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक संगठन कार्यों का एक महत्वपूर्ण तत्व है। मानव सभ्यताओं का जैसे-जैसे विकास होते गया, वैसे-वैसे ही बाजार प्रक्रिया के साथ वस्तुओं के विनिमय से बाजार प्रारंभ हुई। श्रीवास्तव (1974)1 के अनुसार केन्द्र “ऐसे स्थान जहाँ नियमित रूप से विभिन्न वस्तुओं के विक्रेता एवं ग्राहक एक निश्चित समयान्तराल पर मिलते है ‘बाजार’ कहलाता है”। ई. जेरोम मैकार्थी2 के अनुसार ”उपभोक्ता मागों के अनुरूप उत्पादन योग्यताओं को समायोजित करने की आवश्यकता का व्यापार द्वारा दिया जाने वाला उत्तर बाजार कहलाता है।“ ब्रोमले एवं सायमस्की (1971)3 ने माना है कि ”विपणन तन्त्र सामाजिक, आर्थिक संगठन का महत्वपूर्ण तथ्य है।” एक व्यक्ति अपनी स्थिति को सुधारने के लिए साधारणतः इस अर्थ में स्वतन्त्र होता है कि वह किसी भी अवसर का, अपनी स्थिति सुधारने के लिए लाभ उठा सकता है। जब कभी समाज के व्यक्ति, एक दूसरे से पर्याप्त रूप से घनिष्ठ सम्पर्क के द्वारा इस प्रकार के असंख्य अवसरांे से अवगत होते हंै तथा उनका लाभ उठाने को स्वतन्त्र रहते हैं तभी ‘बाजार‘ निर्मित होता है।
अध्ययन क्षेत्र:- बालोद जिले कि स्थिति एवं विस्तार
बालोद (24˚44̕ उत्तरी अक्षांश से 20.73˚ उत्तरी अक्षांश एवं 81˚12̕ पूर्वी देशान्तर से 81˚2 पूर्वी देशान्तर), छत्तीसगढ़ राज्य के पश्चिमी मध्य क्षेत्र में विस्तृत है। इसका कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 3,52,700 हेक्टेयर (2,780 वर्ग कि.मी.) है, जिसमें प्रदेश का 3.52 प्रतिशत क्षेत्र समाहित है। बालोद जिला उत्तर में दुर्ग, पश्चिमोत्तर भाग में राजनांदगंाव उच्चभूमि, दक्षिण में कांकेर, पूर्व में धमतरी जिले से घिरा हुआ है। इसका मातृ जिला-दुर्ग है।
सन् 2011 की जनगणना के अनुसार बालोद जिले की कुल जनसंख्या 8,26,165 व्यक्ति, ग्रामीण जनसंख्या 720667 है जिसमें पुरूषों की जनसंख्या (50.58ः), महिलाओं की जनसंख्या (49.42ः) से अधिक हैै। जिले की कुल जनसंख्या वृद्धि दर 10.24 है। जिले की कुल जनसंख्या में 87.23 प्रतिशत व्यक्ति ग्रामीण से हंै। जिले में 70.30 प्रतिशत व्यक्ति साक्षर है जिसमें पुरूषों का प्रतिशत (55.15ः), महिलाओं (44.85ः) से कम है। कुल जनसंख्या में 31.35 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति एवं 8.28 प्रतिशत अनुसूचित जाति का है। जिला का लिंगानुपात 1,022 महिला प्रति हजार पुरूष है। छत्तीसगढ़ लिंगानुपात में बालोद जिला तीसरा स्थान रखता है।
बालोद जिले में सन् 2011 के आधार पर तहसीलों की कुल संख्या 05 संजारी बालोद, गुण्डरदेही, डौण्डीलोहारा, डौण्डी, गुरुर है जबकि ग्राम पंचायत 393 एवं राजस्व गाँव 687, जनपद पंचायत-विकासखण्ड 05 है। कृषि फसल उत्पादन की प्रमुख फसलें है- धान, गेहूँ, तिवरा, गन्ना, अरहल, मूंग, अलसी, चना, आदि है, इसके अलावा हरे पत्तेदार साग-सब्जियों का भी उत्पादन अच्छे रूप में किया जाता हंै। सिंचाई परियोजना में तांदुला बाँध प्रमुख है जिसका निर्माण ‘तान्दुला नदी‘ पर 1923 ई. में किया गया। सर्वाधिक सिंचित जिले में बालोद जिलें का स्थान (43 प्रतिशत) छत्तीसगढ़ में पाँचवा है। तांदुला बाँध प्राकृतिक सौन्दर्य के लिए एक सुन्दर पर्यटक स्थल भी है। अपवाह तंत्र के रूप में शिवनाथ नदी की सहायक नदियाँ खरखरा (उद्गम-डौण्डी), खारून (उद्गम-बालोद) एवं तांदुला (उद्गम-भानुप्रतापपुर) नदियाँ प्रमुख है।
अध्ययन विधि:-
प्रस्तुत अध्ययन प्राथमिक एवं द्वितियक आँकड़ों पर आधारित है। अध्ययन के लिए सर्वप्रथम बालोद जिले के सभी विकासखण्डों से ग्राम बाजारों की सूची तैयार कर यादृच्छिक निदर्शन द्वारा 15 प्रतिशत प्रतिदर्श ग्रामीण बाजार का चयन किया गया। चयनित प्रतिदर्श ग्रामीण बाजार के प्रतिदर्श के आकार का सांख्यिकीय विधि द्वारा परीक्षण किया गया। सांख्यिकीय विश्लेषण के लिए निम्न सूत्र प्रयुक्त किया गया।
मानक प्रसरण त्रुटि (ट) त्र ध् छ
इस प्रकार जिले से कुल 36 गाँव चयनित हुए, चयनित प्रतिदर्श ग्रामीण बाजार से क्रेता एवं विक्रेता संबंधी जानकारी साक्षात्कार अनुसूची एवं ग्राम डायरी के द्वारा प्राप्त की गई।
उद्देश्य:-
प्रस्तुत अध्ययन का मुख्य उद्देश्य बालोद जिले के विशेष संदर्भ में क्षेत्रीय विकास में ग्रामीण बाजार का स्थानिक एवं कालिक परिप्रेक्ष्य में भौगोलिक विश्लेषण करना है। ग्राम बाजार अधिकांशतः साप्ताहिक और द्वैसाप्ताहिक होते है, जिसका आकार छोटा होता है जहाँ एक निश्चित खाली मैदानों व कहीं कहीं चबूतरों में पसरे लगाकर बैठकर सामानों का विक्रय किया जाता है।
इन बाजारो में लोग अपनें घर में छोटे बाड़ी के रूप में उत्पादित किए गए सामानों का विक्रय कर अपनी आवश्यकताओं की पूर्ती करते हैं। लोग एक निश्चित दूरी तय कर सामान खरिदने व बेचने, बाजार तक मोटर, गाड़ी में एवं नजदीक के लोग सायकल से सेवा प्राप्त करने व प्रदान करने आते है।
बालोद जिलेे में साप्ताहिक बाजारों की स्थिति
बाजार एक ऐसी व्यवस्था है, जो हर क्षेत्र में अलग-अलग रूपों में बड़ी या छोटी होती है, जो वहाँ की जनसंख्या और प्राप्त संसाधनों पर निर्भर करती है। जितनी अधिक मात्रा में संसाधनों की प्राप्ति होगी बाजार उतना विस्तृत होगा। ग्रामों में बाजार साप्ताह में एक दिन, दो दिन व कही-कही प्रतिदिन ़लगाएँ जाते है। सप्ताह में एक दिन लगने वाले बाजारों को साप्ताहिक, दो दिन लगने वाले को द्वै-साप्ताहिक और रोजाना लगने वाले को दैनिक बाजार में रखा है। प्रस्तुत अध्ययन क्षेत्र में बालोद जिले के ग्रामीण बाजारों के प्रतिदर्श ग्राम में साप्ताहिक बाजारों की संख्या 27 है, जो कुल ग्रामीण बाजारों का 75 प्रतिशत, द्वै-साप्ताहिक बाजार 22.2 प्रतिशत और दैनिक बाजार 2.8 प्रतिशत है। साप्ताहिक बाजारों की संख्या बालोद जिले में अधिक है, जबकी द्वै-साप्ताहिक और दैनिक बाजार कहीं-कहीं ही है। (सारणी 1. बालोद जिलेे में ग्राम बाजारों का विवरण वर्ष 2016) में देखे।
ग्राम बाजारों का केन्द्रीयता सूचकांक:-
किसी भी क्षेत्र के विकास में प्रमुख योगदान में वहाँ उपस्थित संसाधनों की मात्रा और अन्य सुविधाएँ (परिवहन, सड़क मार्ग, रेल) का महत्वपूर्ण स्थान है। छत्तीसगढ़ के बालोद जिले में शिवनाथ नदी की सहायक नदियाँ खरखरा, खारून और तांदुला जलाशय कृषि फसल उत्पादन के लिए बहुत ही सहायक रहा है, जिसके कारण यहाँ के मुल निवासी अधिकांश-तह छोटे-छोटे बाजार व्यवस्था से अपने उत्पादित किए गए सामानो का विक्रय करते हैं और अन्य ग्राम बाजारों से लोगों को उत्पादित वस्तुएँ प्रदान करते है। प्राप्त धनराशि से अपनें आवश्यकताओं की भी पूर्ती करते हंै। बालोद जिले में सभी ग्राम बाजार छोटे सेवा केन्द्रों के रूप में फूटकर व्यापार के रूप में विकसित किया गया है।
केन्द्रीय सूचकांक के आधार पर चयनित सभी ग्राम बाजारों में से प्रथम दर ग्राम बाजारों में केन्द्रीय सूचकांक अपेक्षाकृत अधिक रहा इन ग्राम बाजारों में घोटिया, पचेड़ा, मटिया बोड़की, कोड़ेकसा, संजारी, खोलझर, ठेमाबुर्जुग, सरबदा, भेड़ी सु., सांकरी प्रमुख है। इनमें सबसे अधिक केन्द्रीय सूचकांक घोटिया ग्राम बाजार (137.96) में प्राप्त हुआ जबकि पचेड़ा (127.06) एवं मटिया पी. (111.42) में भी केन्द्रीय सूचकांक अपेक्षाकृत अधिक रहा इसके बाद बाजारों में सांकरी (6.11) में केन्द्रीय सूचकांक सबसे कम रहा दस पद के बाद बाजारों के केन्द्रीय सूचकांक छः से भी कम रहा। घोटिया, पचेड़ा, मटिया पी, ग्रामीण बाजारों में केन्द्रीय सूचकांक अधिक होने का प्रमुख कारण बाजार की विशालता है जहाँ अधिक सामनों की अधिक विक्रेता एवं क्रेता उपस्थित होते है। ये तीनों बाजार केन्द्र पक्की सड़क मार्गो के मिलन स्थल पर स्थापित है। जिससे क्रेता-विक्रेता के सामनों के क्रय-विक्रय में सुविधा होती है। बड़ी आबादी वाले ग्राम होने के कारण विक्रेताओं द्वारा अधिक सामानों की बिक्री की जाती है। घोटिया बाजार ग्राम में जलप्राप्ति का प्रमुख साधन कुआँ और नलकुप है, जो फसल के उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है इस प्रकार घोटिया एवं पचेड़ा को अपेक्षाकृत अधिक साधन सम्पन्य गावं होने के कारण बाजारों की केन्द्रीकरण में उच्च स्थान प्राप्त हुआ, जबकि मटिया पी. बालोद का सर्वाधिक विकसीत गाँव है जहां तांदुला सिंचाई सुविधा के कारण कृषि उन्नत है, इसके विपरित अन्य सभी बाजार गाँव के व्यापारी विकासखण्ड से विपरण सामाग्री प्राप्त करते हंै जिससे इन सभी गावों में बजार का विस्तार कम हुआ है।
बाजारों में संलग्न विक्रेताओं का केन्द्रीय सूचकांक ज्ञात किया गया। (सारणी 2. बालोद जिले के ग्राम बाजार में फूटकर व्यापार में लगे लोगों की संख्या) में देखे। क्रिस्टाॅलर महोदय ने फुटकर व्यापार में लगे लोगो की केन्द्रीय सूचकांक इस सूत्र के माध्यम से बताया है। बालोद जिले में लगे फुटकर व्यापार का केन्द्रीय सूचकांक का परिकलन निम्नलिखित सूत्र से किया गया :-
सूत्र:-
ग्राम बाजार के विकास में विक्रेताओं पर दूरी का प्रभाव :-
भू-वैन्यासिक रूप में मानव हमेशा बाजार केन्द्रों का निर्माण एवं विकास वहां करता है जहां उनके कार्यों को कम लागत में अधिकतम लाभ प्राप्त हो सके, इसका सीधा सम्बन्ध क्षेत्र की जनसंख्या व उसके आस-पास के दूसरे क्षेत्रों से होता है, जिन्हें वह बाजार की सुविधाएँ प्रदान करता है। बाजार केन्द्रों का वर्तमान में आधुनिक स्वरूप निर्धारित हुआ है, जो कि मानवीय अधिवासों, सड़क, परिवहन व दूरसंचार के साधनों एवं स्वरूपों को प्रभावित करता है।
बालोद जिले के चयनित ग्राम बाजारों में विक्रेताओं द्वारा बजार स्थल तक अधिक्तम दूरी 80 कि.मी. है। परिणामतः विक्रेता विक्रय सामाग्री को साइकिल, ठेले दोपहिया एवं चारपहिया वाहनों द्वारा बाजार में लाते है। बाजार गाँव अथवा आस-पास गाँव के वे किसान, जो छोटे व बड़े रूप में सब्जियों का स्वयं उत्पादन करते है, कृषि बाजार के विकास में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। बालोद जिले में ग्राम बाजार तक सामाग्री वहन का सर्वाधिक अधिकतम प्रतिशत 5 कि.मी. से कम दूरी वाले ग्राम बाजारों में 75.11 प्रतिशत प्राप्त हुआँ। दूरी बड़ने के साथ ही विक्रेताओं की संख्या में कमी हुई है। जिले में 15 कि.मी. से कम दुरी वाले व्यापारी अधिक होते है, जिसका प्रमुख कारण ग्राम बाजार की नजदिक होना , सड़क व परिवहन सुविधाएँ उपलब्ध होना, कम समय में सामाग्रीयों को बिना नुकसान पहुँचाएँ ग्राम बाजार तक पहुँचाना है, इसमें बालोद , गुण्डरदेही , गुरूर विकासखण्ड प्रमुख है। जहां 15 से कि.मी. से कम दूरी वाले व्यापारी अधिक उपलब्ध है।
निकटवर्ती गाँव के व्यवसायि को आस-पास के ग्राम बाजारों के विक्रय से बची वस्तुओं को तुरन्त दूसरे दिन विक्रय हेतु प्रस्तुत करना आवश्यक होता है विशेषरूप से सिघ्र नष्ट होने वाली वस्तुएँ जैसे- सब्जि, फल, मटन आदि। अतः विक्रेता कम दूरी के ग्राम बाजारों को अधिक महत्व देते है, जिससे सामान खराब नहीं होता और वस्तु क्रेता तक पहुच जाए। इसके विपरित 15 कि.मी. से अधिक दूरी के ग्राम बाजारों में जाने वाले व्यवसायि डौण्डी एवं डौण्डीलोहारा विकासखण्ड के अपेक्षाकृत अधिक है, इन क्षेत्रों में परिवहन वाहन की विशेष सुचिधा के कारण विक्रेता कपड़े, राशन, फैंसी-सामाग्री, मिठाई आदि का विपरण अधिक करते हैं। इस प्रकार विक्रेताओं की संख्या बाजार गाँव एवं सम्प्रस्थ निकटवर्ती गाँव की जनसंख्या की माँग पर निर्भर करती है। जिससे ग्रामीण बाजारों का आकार एवं बाजार प्रारूप तथा क्रेता-विक्रेताओं की संख्या से प्रभावित होती है।
साप्ताहिक बाजारों का स्थानिक संगठन एवं संरचनाः
बालोद जिले के विकासखण्ड आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए पूर्णतः आत्मनिर्भर नहीं हैं। जिले के कई ग्रामों में सामाग्री की स्थाई दुकानें नहीं है, जहां से लोग आवश्यकताओं का सामान खरीद सके। अतः उन्हें अन्य आवश्यक सामानों के लिए दूसरे गाँव के विक्रेता से सामान का क्रय करके विक्रय करना पड़ता है। सेवा केन्द्र के रूप में विकसित इन छोटे ग्राम बाजारों में सप्ताह के एक दिन, दो दिन व दैनिक रूप में विक्रय काम सम्पन्न किया जाता है। बाजार का आकार व स्वरूप बाजार स्थल पर निर्भर करता है, वह क्रय एवं विक्रय वस्तुएँ है:- हरे पत्तेदार सब्जियाँ, आलू प्याज, दाल, मूर्गा-मटन, भूंजी मछली, कपड़ा, बर्तन, भजिया की दूकान, घड़ी इलेक्ट्राॅनिक वाले, गुपचूप वाले, मनिहारी, चूड़ी वाले, काॅम्लेक्स में मेडिकल की दूकानें, नास्ता होटेल, चना मूर्रा वाले, मिठाई की दूकान, फल, साबुन तेल, राशन, जूते चप्पल, चाय की दूकान, नाई, मिट्टि के बर्तन, सोनार। ग्राम बाजार आकार का आरेख इस प्रकार प्रस्तुत हैः-
इन ग्राम बाजारों का आकार निर्धारित बाजार स्थल के आधार पर गोलाकार, वर्गाकार, आयताकार व रेखीय रूप में अलग-अलग स्वरूप में है। जिले के डौण्डीलोहारा एवं डौण्डी आदिवासी विकासखण्ड है। अतः यहां के चयनित सभी (16 बाजार) ग्राम बाजार पंचायत स्थल में बस्ती से दूर स्थापित है जहां परिवहन सुविधा मार्ग एवं परिवहन रखने की प्र्याप्त सुविधा उपलब्ध होती है जिससे आस-पास के ग्रामीण क्षेत्रों के क्रेता-विक्रेताओं को आने-जाने में सुविधा हो सके। इसके विपरित गुण्डरदेही, बालोद एवं गुरूर विकासखण्ड मैदानी क्षेत्र में स्थित है, अतः यहां के सभी चयनित ग्राम बाजार (20 ग्राम बाजार) सड़क किनारे दो- तीन परिवहन मार्गोंं के मिलन स्थल पर स्थापित किए गए है। इस प्रकार मैदानी क्षेत्र के सभी ग्रामीण बाजार रेखीय रूप में लम्बवत (तवेरा, झिटिया, रौना, परसाडिह, सोरर, धानापुरी, कुलिया, पचेड़ा, गुजरा, मुजगहन, मार्री बंगला, ओड़ारसकरी), गोलाकार (सतमरा,) अथवा आयताकार (जामगांव, सरबदा, गारका, बरबसपूर, ओड़ारसकरी, भेड़ी सुरेगाँव, कोरगुड़ा जेवरतला, पांगरी, कुलिया, बोड़की,) वर्गाकार ( भूरकाभाठ सांकरा, मटिया पी, बोड़ेना, सांकरी, संजारी, अर्जुनी, खोलझर, ठेमाबुर्जुग, डेंगरापार,) स्वरूप में विकसित है।
निष्कर्ष:-
बालोद जिले कें क्षेत्रीय विकास में ग्रामीण बाजार एवं स्थानिक एवं कालिक परिप्रेक्ष्य में ग्राम बाजार में संसाधनों की उपल्बधता के आधार पर विक्रेताओं द्वारा दूरी तय कर सेवाएँ प्रदान की जाती है जो क्रेताओं एवं विक्रेताओं की संख्या, बाजार आकार व केन्द्र के रूप में, बाजार प्रारूप को प्रदर्शित करता है।
संदर्भ सूची
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3. श्रीवास्तव, वीरेन्द्र कुमार एवं हरिहर प्रसाद, 1980ः ”विपणन केन्द्र स्थलों का उद्भव एवं विकास”, उत्तर भारत भूगोल पत्रिका, गोरखपुर, अंक-16, संख्या-2,, पृ, 115-124. .
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Received on 02.11.2017 Modified on 10.11.2017
Accepted on 20.12.2017 © A&V Publication all right reserved
Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 2017; 5(4): 229-235 .