ग्रामीण उ़़द्योगों का आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका

(राजनांदगाव जिले में खादी ग्रामोद्योग के अंतर्गत हथकरघा उद्योग के विशेष संदर्भ में)

 

श्रीमती दीपा देवांगन1, डाॅ. के. एल. टांडेकर2

1शोधार्थी शास. दि. स्ना. महा. राजनांदगांव (..)

2शोध निर्देशक शास. डाॅ. बाबा साहेब अम्बेडकर महा. डोंगरगांव, राजनांदगांव (..)

ब्वततमेचवदकपदह ।नजीवत म्.उंपसरू 

 

शोध सारांशरू

प्रस्तुत शोधपत्र में ग्रामीण उद्योगों का विश्लेषणात्मक अध्ययन किया गया हैं। यह अध्ययन खादी ग्रामोद्योग के हथकरघा उद्योग के विशेष संदर्भ में हैं। ग्रामोद्योग क्षेत्र के औद्योगिक विकास का मूलाधार है। यही वह क्षेत्र हैं जो दूर-दराज के ग्रामीण क्षेत्रों के औद्योगीकरण में महत्वपूर्ण योगदान देता हैं। इस क्षेत्र के माध्यम सें उत्पादित कुल कपड़े का लगभग 19 प्रतिशत का योगदान देश और निर्यात में भी आय के लिए काफी योगदान देता हैं। हथकरघाउद्योग की अनुमति देने और नवाचारों को प्रोत्साहित करनें अपने लचीलेंपन और बहुमुखी प्रतिभा में यह अद्वितीय हैं। हथकरघाभारत की विरासत का एक हिस्सा है। देश की समृद्वि और हमारे देश की विविधता के लिए बुनकरों की कलात्मकता एक मिसाल हैं। यह शोधपत्र ग्रामीण क्षेत्र में आर्थिक उन्नति लाने, खादी ग्रामोद्योग की गतिविधियों, क्रियाओं प्रंबधन में परिवर्तन लानें रोजगार-स्वरोजगार बढ़ानें हेतु शासकीय नीति निर्धारकों के लिए सहायक सिद्ध होगा। 

 

कुँजी शब्दरू ग्रामीण उ़़द्योगों, आर्थिक विकास

 

 

 

 

 

प्रस्तावनाः-

ग्रामीण उद्योग देश के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 8 प्रतिशत विनिर्माण, उत्पादन का 45 प्रतिशत और निर्यात का 40 प्रतिशत योगदान देते हैं, वे कृषि के बाद रोजगार का सबसे बड़ा हिस्सा प्रदान करते हैं वे उद्यमशिलता और नवीनता के लिए नर्सरी है। इस क्षेत्र में न्यूनतम निवेश के साथ रोजगार सृजन की अपार क्षमता हैं। सरकार देश में के. वी. आई. सी. के प्रति वचनबद्ध हैं। ग्रामोद्योग में कुछ उद्योगों को छोड़कर अन्य सभी ग्रामोद्योग को वृहत आकार के उद्योगों द्वारा निर्मित वस्तुओं से प्रतियोगिता का सामना करना पड़ता हैं सूक्ष्म लघु और मध्यम उद्यम (एम. एस. एम. .) देश के आर्थिक विकास में सहभागी बन लाखो उद्योगों को आधार और रोजगार के कई अवसर और इसमें,हथकरघा उद्योग एक महत्वपूर्ण कड़ी हैं जिसके माध्यम से उन छुटे पहलुओं उन कमियों को भी दूर किया जा सकता हैं। जिसकी वजह से सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम देश के आर्थिक विकास में पूर्ण रूप से सहभागी नही बन पाए। भारत एक विकासशील देश है यहां पर सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम अर्थव्यवस्था के महत्वपूर्ण अंग बन चुके हैं इसके माध्यम से ग्रामीण एंव अर्द्ध ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ती बेरोजगारी एवं निर्धनता जैसी कई समस्याओं से छुटकारा पाया जा सकता है वर्तमान समय में उद्योग अपने विकास की उच्चतम अवस्था में हैं इनका उत्पादन अंतर्राष्ट्रीय, राष्ट्रीय, ग्रामीण एवं घरेलु स्तर पर किया जा रहा है।

 

उद्देश्यः-

1.        हथकरघा उद्योग में आधुनिक तकनीक के प्रयोग को प्रोत्साहन देकर आर्थिक दृष्टि से लाभप्रद बनाना।

2.        हथकरघा बुनकरों को सतत् रोजगार देकर इस उद्योग से संबद्ध कर बेरोजगारी निवारण का प्रयास करना।

3.        बुनकर सहकारी समितियों को प्रोत्साहित करते हुए उनके तकनीकी एंव आर्थिक उन्नयन के लिए प्रयास करना।

 

 

 

 

शोध परिकल्पनाः-

1.        जिले में हथकरघा उद्योग के कार्यक्रमों से ग्रामीणो का आर्थिक विकास हुआ है।

2.        जिले में हथकरघा उद्योग की अपार संभावनाए विद्यमान है।

 

शोध प्रविधिः-

शोध अध्ययन का क्षेत्र आथर््िाक सामाजिक या वैज्ञानिक समस्याओं से संबंधित उसकी पूर्व योजना प्रांरभ से ही बना ली जाती है। ताकि विस्तृत अध्ययन के पश्चात् स्पष्ट महत्वपूर्ण निर्णय प्राप्त हो सकें। प्राथमिक आकड़ो के संग्रहण हेतु प्रश्नावली, वर्गीकरण, सारणीयन,साक्षात्कार द्वारा आकड़ो का संग्रहण किया जाता हैं। द्वितीयक संमक के संग्रहण हेतु प्रकाशित पत्र पत्रिकाओं, समाचार पत्र, शोध पत्र दैनिक समाचार पत्र, पत्रिकाए,रोजगार नियोजन, योजना पत्रिका, कुरुक्षेत्र पत्रिका,उद्यमिता पत्रिका आदि का उपयोग किया जाता है। इस शोध पत्र के लिए द्वितीयक समंक का प्रयोग किया गया है।

 

हथकरघा विभाग द्वारा संचालित योजनाएंः-

हथकरघा विभाग के माध्यम से हथकरघा एवं हस्तशिल्प के कारीगरों को स्वरोजगार स्थापित किये जाने के उद्देश्य से बहुत सी योजनाएं चलायी जा रही है। जिसमें नवीन बुनकर प्रशिक्षण,अधोसंरचना निर्माण हेतु, बुनकर आवास योजना, उन्नत करघे एंव सहायक उपकरण, रिवाल्ंिवग फण्ड योजना, डिजाइन विकास योजना, अनुसंधान विकास योजना, स्वः श्री बिसाहूदास महंत पुरस्कार योजना, कबीर बुनकर प्रोत्साहन योजना, महात्मा गांधी बुनकर बीमा योजना आदि है, जिसके माध्यम से ग्रामीण उद्योगो के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है। विशेषकर जिले में इससे जुड़े हुए हितग्राहियों की स्थिति में सुधार आया है।

 

 

 

 

सहकारी समितियों के उत्पादन/ब्रिकी की स्थिति (रु. में)

 

 

इस प्रकार उपरोक्त तालिका स्पष्ट होता है। कि वर्ष 2013-14 में सहकारी समितियों का स्वयं का उत्पादन 86.68 था अपेक्स का 1620.39 था जो कि 2014-15 में वही रहा वर्ष 2015-16 में वृद्वि को दर्शाता है। लेकिन अपेक्स में बढ़ोŸारी रही जोकि 1737.53 था उसी प्रकार अगर बिक्री को देखा जाए तो वर्ष 2013-14 में स्वयं का 80.92 था जो कि 2014-15 में तो वही था लेकिन 2015-16 में घटकर 78.82 (माह जुलाई 2016 की स्थिति में)दर्शाता है। इस दिशा में प्रयास की जरुरत है। उसी प्रकार अपेक्स का 1482.50 था जो कि वर्ष 2015-16 (माह जुलाई 2016 की स्थिति में)में बढ़कर 1650.00 हो गया। इसी प्रकार कहा जा सकता है कि व्यापारिक लाभ हानि शुद्ध लाभ की स्थिति को दर्शाता है। जिसमें वर्ष 2015-16 में (माह जुलाई 2016 की स्थिति में) 155.55 104.67 रहा।

 

बुनकर सहकारी समितियों के करघे उत्पादन की स्थिति

 

इस प्रकार उपरोक्त तालिका स्पष्ट होता है। कि बुनकर सहकारी समितियों के करघे उत्पादन की स्थिति देखी जाए तो वर्ष 2009-10 में 694 था जो वर्ष 2013-14 1294 होगया जिसमें स्वयं/अन्य उत्पादन में संलग्न करघे की संख्या केवल 2013-14 में 64 दिखाया गया है। उसी प्रकार उत्पादन में 2009-10 में 585 था जोकि वर्ष 2013-14 में बढकर 1473 हो गया। वर्ष 2014-15 वर्ष 2015-16 की स्थिति उतरोत्तर बढ़ोत्तरी को दर्शाता है।

 

सुझावः-

राजनांदगांव जिलें  में बुनकरों  की स्थिति सुधारने के लिए निम्नलिखित कार्य किऐ जाने चाहिए-

1.        बुनकरों को कार्यशाला खोलने एंव औजार खरीदने के लिए सस्ती ब्याज दर पर ऋण दिलाने की व्यवस्था की जानी चाहिए। इस कार्य में सहकारी साख संस्थाओं एंव व्यापारिक बैकों की अच्छी भूमिका हो सकती है।

2.        इन्हें आवश्यक कच्चा माल उपलब्ध कराने की व्यवस्था की जानी चाहिए।

3.        बुनकरों की सहकारी समितियां गठित करके इन्हे संगठित किया जाए जिससे  इनकी आर्थिकस्थिति अच्छी हो सकें।

4.        बुनकरों को आधुनिक उत्पादन तकनीक का प्रशिक्षण सरकार द्वारा दिलवाने की चेष्टा की जानी चाहिए।

5.        इन्हें कर्ज के भार से मुक्त करानें का कार्य संस्थागत् साख के विस्तार द्वारा किया जाना चाहिए।

6.        इन्हें पढ़ानें और शिक्षित करानें की दिशा की ओर काम किया जाना चाहिए।

 

निष्कर्षः-

उपर्युक्तविषय काजिले में अध्ययन से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि हथकरघा उद्योग के संचालन से तथा आधुनिक तकनीक का प्रयोग करते हुए आर्थिक विकास संभंव हो पाया है। साथ ही बुनकरों को सतत् रोजगार मिल पाना संभव हुआ हैं बेरोजगारी की समस्या को भी बहुत हद तक कम किया गया हैं इस प्रकार हम कह सकते है कि उद्योग के माध्यम से आर्थिक उन्नयन संभव हुआ हैंआज के वर्तमान परिवेश में उद्योगो के महत्ता उनसे प्राप्त होने वाली आय, रोजगार और देश की आर्थिक स्थिति से समझी जा सकती हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में हथकरघा उद्योग की भूमिका दिनों दिन बढ़ती जा रही हैं,क्योंकि आज के प्रतिस्पर्धा समय में अपनें अस्तित्व को बनाए रखना ही संभव नही हों पाता, ऐसी स्थिति में उनकी बिक्री की मात्रा बढ़ाने के लिए, विभिन्न विपणन रणनीतियों का उपयोग करके अधिक से अधिक रिटर्न पानेहेतु विपणन तकनीकों का ज्ञान बहुत महत्वपूर्ण हो गया है। इसके अलावा शासकीय नीतियों की अनभिज्ञता ने भी नए बाजार की तालाश से वंचित कर रखा हैं वर्तमान समय में हथकरघा उद्योगों की स्थिति देश की आर्थिक स्थिति में भी अपना महत्वपूर्ण योगदान देना रोजगार के नए नए अवसरों को बढ़ावा देकर प्रति व्यक्ति आय में भी वृद्धि कर समाज देश की उन्नति का आधार बन एक नई दिशा प्रदान कर रही हैं।

 

 

अध्ययन में ली गई दो परिकल्पनाओं को द्वितीयक आकड़ों के माध्यम से स्पष्ट किया गया है। अध्ययन में ली गई पहली परिकल्पना से ग्रामीणों का आर्थिक विकास हुआ हैं तथा जिलें में हथकरघा उद्योग की अपार संभवनाएं विद्यमान है। अतः हम कह सकतें है कि शोधार्थी की दोनों परिकल्पना आकड़ो के विश्लेषण से सार्थक सिद्ध हुई हैं।

 

संदर्भ सूचीः-

1.        जिला हथकरघा कार्यालय राजनांदगांव

2.        रिसर्च लिंक-एन इंटरनेशल जनरल पेज नं. 133 अप्रैल 2015

3.        वार्षिक रिपोर्ट जिला हथकरघा कार्यालय राजनांदगांव

4.        जिला सांख्यिकी पुस्तिका जिला राजनांदगंाव

5.        खादी एंड विलेेज इंडस्ट्रीज इन इकोनामिक डेवलपमेंट-जगदानंद झा, दीप एंड पब्लिकेशन,नई दिल्ली 1990

6.        अग्रवाल, गुप्ता माथुर सहकारी चिन्तन एवं ग्रामीण विकासपेज नं. 75

7.        भारत में उद्योगों का संगठन विŸ व्यवस्था एवं प्रबन्ध

8.        त्रिपाठी प्रो. मधुसूदन भारत में लघु उद्योग

9.        बघेल डाॅ. डी .एस. भारत में ग्रामीण समाज

 

 

 

Received on 08.06.2018       Modified on 20.06.2018

Accepted on 26.06.2018   © A&V Publication all right reserved

Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 2018; 6(2):  183-186 .