भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश: भौगोलिक कारको का विश्लेषणात्मक अध्ययन
डाॅ. मनोज सिंह
एस.एस. महाविद्यालय, नगला सेवा कुरवारिया, बयाना, भरतपुर (राज.)
’ब्वततमेचवदकपदह ।नजीवत म्.उंपसरू
शोध सारांश:
वर्ष 2020 में भारत की जनसंख्या 135 करोड़ तक पहुंच जाने की संभावना है साथ ही बढ़ती जनसंख्या के तहत् अत्यधिक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की आवश्यकता पड़ सकती हैं। इसके लिए भारत सरकार एवं राज्य सरकारों को भौगौलिक कारकों को ध्यान में रखते हुए उचित पहल की आवश्यकता हैं। विदेशी पूंजी, निवेश, मशीनीकरण एवं यांत्रिकी क्रांति को ध्यान में रखते हुए उचित पाॅलिसी बनाने की आज जरूरत हैं। शोध अध्ययन में पाया गया है कि भारत मंे विदेशी निवेश राज्यवार वितरण न ज्यादा न कम और न ही बराबर हैं। महाराष्ट्र एवं गुजरात तथा तमिलनाडू एवं कर्नाटक में वर्ष 1991 से 2004 तथा 1991 से 1998 तक की स्थिति में पश्चिमी क्षेत्रों एवं दक्षिणी क्षेत्रों में सर्वाधिक वृद्धि होने का आकंलन किया गया हैं। विकासशील देशों की तुलना में विकसित देशों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश बेहतर हैं। भारत में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश को एक कारगर हथियार के तौर पर प्रयोग करने की आज जरूरत हैं। बैकिंग, परिवहन, पर्यटन बीमा के क्षेत्र में विदेशी निवेश भारत के लिए उपयोगी साबित होगा।
ज्ञम्ल्ॅव्त्क्ैरू प्रत्यक्ष विदेशी निवेश
प्रस्तावनाः-
प्रत्यक्ष विदेशी निवेशः अर्थ, परिभाषा एवं महत्व
परिभाषा - शोधकर्ता द्वारा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का सैद्वान्तिक विवेचन किया गया हैं।
जिसके अन्तर्गत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के अर्थ एवं परिभाषा विभिन्न विषय के विशेषज्ञों मतों को प्रस्तुत किया गया हैं।
पी.एस.ग्रेवल के अनुसार प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का अर्थ:
भौतिक सम्पदा जैसे कारखाने, भूमि, पूंजीगत वस्तुएं तथा आधारिक संरचना वाले क्षेत्रों में जब विदेशी निवेशक अपना धन लगाते हैं तो इसे प्रत्यक्ष विदेशी निवेश कहा जाता हैं। अधिकांश तथा इस प्रकार के निवेश बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ द्वारा किये जाते हैं। ग्रेवल के प्रस्तुत अर्थ के अनुसार भौतिक सम्पदा वाले क्षेत्रों में जव विदेश निवेश अर्थात अमेरिका, जापान, चीन आदि अपना धन भारत में लगाते हैं। तो इसे प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के नाम से जाना जाता हैं। हाँलाकि इस तरह की निवेश बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा लगाये जाते हैं। शोधकर्ता नेे यह अनुभव किया हैं। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को आम जनता के लिए समझ से परे हैं। सामान्य अर्थ में प्रत्यक्ष विदेशी निदेश का तात्पर्य हैं कि विदेशी कम्पनियाॅ भारत में आकर उद्योग स्थापित करना, नये नये तकनीकों को वाणिज्य व्यापार करना अर्थात विदेशी पूंजी भारत में विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न प्रयोजनों के लिए अपना पैसा लगाना ही प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के रूप में जाना जाता हैं।
कुलदीप गुप्ता के अनुसारः
विदेशी प्रत्यक्ष निवेश का तात्पर्य विदेशी निवेशकों द्वारा भारत में पूर्ण स्वामित्व वाली कम्पनियाँ बनाने और उनका प्रबन्ध करने से हैं। इसके अन्तर्गत प्रबन्ध करने के उद्देश्य से अंशों को खरीद कर अधिग्रहण की कम्पनी भी शामिल हैं। विदेशी प्रत्यक्ष निवेश एक पूंजी है, जो सीमान्त और राष्ट्रों के बीच एक सुव्यवस्था संबंध स्थापित करते हुए निवेेशित को प्राप्त की गई सम्पत्ति को नियन्त्रण कर व्यवसाय को समृद्ध करने में जो पूंजी लगाये जाते हैं। इस ही विदेशी प्रत्यक्ष निवेश कहा जाता हैं।
हाॅलाकि प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की परिभाषा स्पष्ट रूप से प्रावधिनिक नहीं हैं। जैसे बीमा कम्पनी भारत में विभिन्न पोलिसी बनाकर मानव के जीवन पर श्रम के जोखिमों को कम करने का प्रयास के अलावा संचार क्रांति में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की महत्वपूर्ण भूमिका रही हैं। हाँलाकि विकसित देशों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश कोई चुनौती पूर्ण टास्क नहीं हैं। लेकिन विकासशील अर्थव्यवस्था में इस तरह का निवेश एक हमेशा से ही चुनौतीपूर्ण कार्य रहा हैं।
वर्ष 1995 में सयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के अन्तर्गत भारत में सिचाई के पम्पसेट लगाए जाने हेतु 7 करोड़ रूपये का ऋण दिये जाने की सहमति हुई संयुक्त राष्ट्र अमेरिका का 1978 में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 22.38 मिलियन डाॅलर थी जबकि 1993 में 1135.41 मिलियन डालर होे गई अर्थात् इन दसकों में अमेरिका की विदेशी निवेश 4973.32ः वृद्धि हुई अर्थात हम यह कह सकते हैं। विदेशी निवेश का भारत में संयुक्त राज्य अमेरिका एक बड़ा साधन रहा हैं। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के अभाव में तथा विभिन्न देशों के अर्थव्यवस्था के मन्दी के चल वित्तीय आपात काल के संकट से गुजरना पड़ सकता हैं। हालाकि वर्तमान समय में सभी देशों में घरेलू निदेश में वृद्धि को महत्व दिया जा रहा हैं। 1994 में जिस तरह से यूरोप मे घरेलू बाजार सुरक्षा मंे अच्छी वापसी की वहीं अमेरिका निवेशकों में ब्याज में हानि उठानी पड़ी। संक्षेप मंे यह कह सकते हैं कि घरेलू एवं विदेशी निवेश को एक समन्वय स्थापित करते हुए अपने देश की अर्थव्यवस्था मजबूत करने की पहल की जा रही हैं। हालाकि सभी देश विशेषकर विकासशील देश विदेशी निवेश को बढ़ाने की सोच में वृद्धि की इसके अलावा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के बुरे प्रभावों से बचाव के लिए आवश्यक सुरक्षात्मक उपाय अपनाये जा रहें हैं।
भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेशः
भारत के तत्कालीन उद्योग मंत्री ने प्रत्यक्ष विदेशी निदेश के सन्दर्भ में कहा कि विदेशी निवेश केवल पूंजी का संचय नहीं हैं बल्कि वह साधन हैं जो आधुनिक तकनीक, प्रबन्धकीय ज्ञान, रोजगार के अवसर तथा भारत मे उत्पादित वस्तुओं के लिए नये बाजार उपलब्ध कराता हैं। इसके साथ ही बचत एवं निवेश के अन्तर को प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के द्वारा पूरा किया जा सकता हैं। शोधकर्ता द्वारा किये गये शोधकार्य में यह उल्लेखित किया गया हैं। भारत के आर्थिक विकास के लिए निम्नलिखित विदेशी निदेश की आवश्यकता पड़ती हैं।
(1) घरेलू निवेश के साथ मिलकर, अर्थव्यवस्था में कुल निवेश में वृद्धि करना।
(2) आधारभूत उद्योगों को विकसित करना।
(3) पूंजी की कमी पूर्ति ।
(4) तकनीकी का आगमन ।
(5) अधोसंरचना का विकास करना।
(6) निर्यात समता में वृद्धि।
(7) प्रतिकूल भुगतान शेष के कारण विदेशी मुद्रा में हुई कमी को दूर करना।
(8) प्रबन्धकीय तथा उद्यमशीलता योग्यता में सुधार लाना।
(9) प्राकृतिक साधनों को पूर्ण उपयोग करना।
(10) जोखिमपूर्ण तथा पूंजीप्रेरक उद्योगों को स्थापित करना।
(11) तकनीक में सुधार लाना।
(12) रोजगार के अवसरों में वृद्धि करना।
4. निवेश को प्रभावित करने वाले आर्थिक एवं भौगोलिक कारकः
निवेश से अभिप्रायः उन तथ्यों से है जो निवेश को प्रभावित करते हैं। प्रो. पीटरसन मैकेनिकल तथा नारमन एफ. कीजर आदि अर्थशास्त्रियों के अनुसार पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में मुख्य रूप से निम्नलिखित तथ्यों पर निर्भर करता हैं।
आर्थिक कारक
(1) तकनीकी विकास तथा नये आविष्कारः
प्रो. नारमन एफ. कीजर के अनुसार तकनीकी परिवर्तन काफी सीमा तक निवेश प्ररेणा को प्रभावित करता हैं। पिछले काफी सीमा तक निवेश प्रेरणा कृषि तथा उद्योग में श्रम बचत तथा पूंजी बचत मशीनों के विकास होने से इन क्षे़़त्रो़ं में निवेश काफी मात्रा में बढ़ा हैं । शूम्पीटर के अनुसार आविष्कार निवेश के स्तर को बढ़ाने मे सहायक सिद्ध होते हैं। इसी प्रकार नये आविष्कारों जैसे टैरीलिन के कपड़े, स्कूटर टेलीविजन, रेफ्रिजरेटर आदि ने भी निवेश के स्तर को बढ़ाने में सहायता दी है। संक्षेप में प्रो. मैकेनिकल के अनुसार,’’ नये आविष्कारों की बढ़ती हुई तेज रफ्तार निवेश को बहुत प्रेरणा देती हैं।’’
(2) प्राकृतिक साधनों की खोजः
प्राकृतिक साधनों जैसे खनिज, पेट्रोल आदि के नये स्त्रोत की खोज होने के फलस्वरूप निवेश में वृद्धि होती हैं। निवेशकर्ता प्राकृतिक साधनों के नये स्त्रोंतो को उपयोग करने के लिए अधिक निवेश करेंगे। इसके विपरीत यदि प्राकृतिक साधनों के मौजूदा स्त्रोंतों का उत्पादन कम हो जाता हैं या वे नष्ट हो जाते हैं तो निवेश में कमी हो जाती हैं।
(3) सरकारी नीतियंाः
सरकार की मौद्रिक तथा राजकोषीय नीतियों का भी निवेश पर प्रभाव पड़ता है। यदि सरकार सस्ती मौद्रिक नीति अपनाती हैं तथा साख का विस्तार करती हैं तो निवेश में वृद्धि होती हैं। इसके विपरीत यदि सरकार महंगी मौद्रिक नीति अपनाती हैं तथा साख का संकुचन करती है तो निवेश में कमी होती हैं। सरकार को कर तथा व्यय सम्बन्धी नीति का भी नीति का भी निवेश पर प्रभाव पड़ता हैं। कर व्यावहारिक लागतों का एक हिस्सा है और यदि ये कर अधिक हों तो लाभ की सम्भावना कम हो जाने से निवेश स्तर भी कम हो जायेगा परन्तु यदि कर कम होंगे तो निवेश को प्रोत्साहन मिलेगा। इसी प्रकार यदि सरकार नई परियोजना प्रारम्भ करती हैं तथा उन पर अधिक धन खर्च करती है तो निवेश व्यय बढ़ जाता हैं।
(4) विदेशी व्यापार:
यदि देश के विदेशी व्यापार के विस्तार की सम्भावना बढ़ जाती हैं तो निवेश पर इसका अनुकूल प्रभाव पड़ता है अर्थात् निवेश अधिक मात्रा में किया जाता हैं। उसके विपरीत विदेशी व्यापार की मात्रा कम हो जाने का निवेश पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता हैं अर्थात् निवेश कम मात्रा में किया जाता हैं।
(5) राजनैतिक वातावरणः
यदि देश का राजनैतिक वातावरण शान्तिपूर्ण होता है तथा देश में आन्तरिक तथा बाहरी शान्ति होती है तो इसका निवेश पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है अर्थात् निवेश में वृद्धि होती हैं। उसके विपरीत यदि देश में अशान्ति होती है, कानून व्यवस्था ठीक नहीं होती , विदेशी आक्रमण का भय बना रहता है तो इसका निवेश पर प्रतिकूल पड़ता है अर्थात् निवेश कम हो जाता हैं।
(6) आशंसाएः
व्यापारिक निवेश अनुमानित लाभ पर निर्भर करता है। पूंजी पदार्थ टिकाऊ होते हैं। अतः किसी निवेश से लाभ-प्राप्ति की आशा, उस पूंजी द्वारा पैदा किये गये पदार्थ की भावी बिक्री की आशंसा पर निर्भर करगी।
(7) जनसंख्या वृद्धि की दरः
यदि किसी देश में जनसंख्या तेजी से बढ़ रही हो तो वहाँ लोगों के लिए नये घर, स्कूल, सार्वजनिक सेवाएँ, सड़कें, मोटर गाड़ियाँ, फर्नीचर, उपभोक्ता पदार्थ आदि चाहिए। इसके अतिरिक्त, नारमन एफ. कीजर के अनुसार जनसंख्या में वृद्धि श्रम पूर्ति को भी बढ़ाती है। पूर्ति बढ़ने से निवेशित पूंजी से आय बढ़ेगी क्योंकि श्रम को पूर्ति का अर्थ होगा मजदूरी दरों का काम जाना।
(8) क्षेत्रीय विस्तारः
यदि किसी देश में जनसंख्या बढ़ने से बडे़ क्षेत्रों को आबाद किया जा रहा है तो वहाँ मकानों, यातायात के साधनों आदि को बनाने के लिए भी अधिक निजी व सार्वजनिक निवेश की आवश्यकता पड़ेगी।
(9) कीमत स्तरः
अर्थव्यवस्था में प्रचलित कीमत स्तर का भी निवेश पर प्रभाव पड़ता है। यदि कीमत स्तर के बढ़ने की प्रवृत्ति पाई जाती है निवेशकर्ता को लाभ बढ़ने की सम्भावना अधिक किया जायेगा । इसके विपरीत यदि कीमत स्तर के कम होने की सम्भावना पाई जाती है तो निवेश कम किया जावेगा।
(10) बाजार का ढ़ाचाः
बाजार के ढ़ांचे से अभिप्रायः बाजार में पाई जाने वाली प्रतियोगिता की प्रकृति से है। यदि बाजार में किसी एक चीज के बहुत सारे उत्पाद है तथा उनमें प्रतियोगिता पाई जाती है हो तो वे उत्पादन लागत को कम करने के लिए नई मशीनों तथा नई उत्पादन तकनीकों का अधिक प्रयोग करेंगे। इसके फलस्वरूप निवेश में वृद्धि होगी। इसके विपरीत यदि बाजार में प्रतियोगिता का अभाव तथा एकाधिकार की स्थिति पाई जाती है तो एकाधिकारी पुरानी मशीनों से हों उत्पादन जारी रखेंगे। इसका निवेश पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा अर्थात् निवेश में वृद्धि की सम्भावना कम होगी।
(11) वित की उपलब्धताः
निवेश पर वित की उपलब्धता का भी प्रभाव पड़ता है। किसी फर्म के वित के दो मुख्य साधन है (1) आन्तिरिक साधन तथा (2) बाहरी साधन।
यदि किसी फर्म के पास आन्तरिक साधन घिसावट के लिए रिजर्व फण्ड, बचा हुआ लाभ काफी मात्रा में है तो वह निवेश अधिक मात्रा में कर सकेगी। अतएव बाहरी वित की तुलना में जब आन्तरिक वित अधिक मात्रा में उपलब्ध है तो इसका निवेश पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है। बाहरी वित सरलता से तथा पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होगा तो भी निवेश में वृद्धि होगी।
(12) श्रम बाजार की स्थितिः
श्रम बाजार की स्थिति का भी निवेश पर प्रभाव पड़ता है। यदि श्रम बाजार में योग्य तथा प्रशिक्षित श्रमिक उपलब्ध है तो निवेश अनुकूल प्रभाव पडे़गा यदि श्रमिकों जथा मालिकों के परस्पर सम्बन्ध शान्तिपूर्ण होंगे तथा औद्योगिक झगड़े जैसे हड़ताल, तालाबन्दी आदि कम होते हैं तो भी निवेश अधिक किया जाता है।
(13) पूंजी का वर्तमान स्टाॅकः
किसी अर्थव्यवस्था में पूंजी के वर्तमान स्टाॅक का भी निवेश पर प्रभाव पड़ता है। यदि पूंजी की वर्तमान स्टाॅक आवश्यकता से अधिक है अर्थात् अतिरिक्त उत्पादन क्षमता पहले से ही विद्यमान है तो निवेश कम किया जावेगा। इसके विपरीत यदि पूंजी की वर्तमान स्टाॅक पहले से ही कम है तो निवेश की सम्भावना अधिक होगी।
(14) कुल मांगः
यदि कुल मांग में निरन्तर वृद्धि हो रही है तो निवेश के बढ़ने की सम्भावना अधिक होगी।
(15) आधारभूत संरचना विकासः
(अ) परिवहन साधनों का विकास
(ब) संचार साधनों का विकास
(स) शिक्षा का स्तर
(द) विद्युत की उपलब्धता।
(16) कानूनी सुरक्षाः
एक स्थिर सरकार जो उचित मात्रा में कानूनी सुरक्षा का प्रारूप तैयार करता है इससे बचत और निवेश को बढ़ाता है। निवेशकर्ता अपने निधि और निवेश करना चाहेंगे। यदि उनको विश्वास हो कि उनकी ठेकेदारी और सम्पत्ति अधिकार के हक की ठीक रक्षा करता है। भारत में निवेशकर्ता को दोहरा लाभ स्वतंत्र उद्यामकर्ता और सरकारी नियन्त्रण का लाभ होगा निजी उद्यमकर्ता और व्यापारिक मुकाबला के लिए स्वतंत्रता, योग्यता और उत्पादन की विश्वास (पक्का) दिलाती है। दूसरी तरफ मिश्रित अर्थव्यवस्था सरकार अनुशासन के नियंत्रण पर जोर देती है और कुछ जो स्वतंत्रता के उसमें कटौती करती है जो संयुक्त सार्वजनिक क्षेत्र पर सरकार का नियंत्रण होता है और निजी क्षेत्र को सलाह देने की स्वतंत्रता होती है। यह आशा होती है कि दोनों सामाजिक और पूंजीवादी व्यवस्था का लाभ बिना हानि के हो। भारत में राजनीतिक वातावरण निवेश को प्रेरणा देता है और अचल भूमि पर सरकार नियन्त्रण करती है वो पूंजी बाजार को स्थिर करती है।
(17) एक अचल मुद्राः
एक अच्छी प्रबन्ध वाली मौद्रिक नीति प्रणाली जिसका निश्चित योजना और उचित नीति एक निवेश बाजार के लिए प्राथमिक सुविधा जरूरी है। बहुत सारी निवेश जैसे बैंकिंग जमा राशि, जीवन बीमा राशि, शेयरों को एक निश्चित (स्थायी) देश की मुद्रा में दिये जाते हैं। एक निश्चित मौद्रिक नीति निवेश को बाहर निकालने के लिए बहुत दिशाएॅं होती हैं। जितना जल्दी सम्भव हो सके मौद्रिक नीति न तो नई स्फीति पर दबाव डाले और न ही स्फीति के विपरीत का नमूना हो इन दोनों को भी विश्वासपूर्वक नहीं हैं। कीमत स्फीति निवेश की खरीद शक्ति को बर्बाद करती है। किफायत को भी दण्डित किया जाता हैं। यदि जब शुद्ध ब्याज कर देने के बाद बढ़ी हुई कीमत से स्तर कम हो तो निवेशक की खरीद शक्ति कम हो जाती है जो उसके समय थी। मुद्रा-स्फीति आमतौर पर अस्थायी स्थिति में होती है। जैसे लड़ाई, बाढ़ आदि लेकिन पिछले 10 सालों में यह अन्तर खासकर विकसित देशों में देखा गया क्योंकि सरकारी बैंको की जमा राशि में भारी कमी आयी। मुद्रा-स्फीति हानिकारक है क्योंकि नाममात्र जो सामान की सूची,कारखाना और मशीनीकरण, जमीन और भवन भी कम हो जाते हैं। संयुक्त देशों में उदाहरण के तौर पर मुद्रा-स्फीति के बुरे प्रभाव 1929-30 के समय में देखे जाते थे। जब नाम मात्र कीमतों में इतना घटोत्तरी हुई, जिसे होलसेल का दीवालया हुआ।
उत्तरदायित्व स्थिर कीमत की सतह स्तर तो कि एक समझदार की मौद्रिक नीति बनाती है। वितरण का खास प्रबन्धन अच्छी सरकार आर्थिक भलाई और ठीक प्रबन्धन, अच्छी उपज वाला बाजार और निवेशकों की सुरक्षा है।
(18) प्रोत्साहित बचत की वित्तीय संस्था का अस्तित्वः
अच्छे वित्तीय संस्था की उपस्थिति जो बचत को बढ़ाते है। और उन्हें अच्छे उत्पाद प्रयोग को दिशा-निर्देश करके निवेश बाजार को वित्तीय संस्थाएँ बहुत सारे देशों में व्यापारिक बैंको, जीवन बीमा, निवेशक बैंकर और गिरवी रखने वाले बैंकर हैं। निवेशक बैंकर प्रतिभूति के व्यापारी होते हंै। निगमों और सरकारी हिस्सों के बाॅन्ड और स्टाॅक खरीदते हैं। दुबारा निवेशकों को बेचते हैं। निवेशक बैंकर की प्रतिभूति दलाल से भिन्न है। जो़ कि खरीदने और बेचने के दलाल हैं और पहले ही दलाली के लिए प्रतिभूति देते हैं। गिरवी करने वाले बैंकर कई व्यापारी के तौर पर काम करते हैं। कई बार गिरवी रखे ऋण पर एजेन्ट का आमतौर पर रहस्यी सम्पत्ति पर काम करते हैं। वो ऋण को इकट्ठा करने में, बेचने और खरीदने वाले मध्यस्थ व्यक्ति का काम करते हंै। व्यापारिक बैंक और वित्तीय संस्थान भी गिरवी रखने वाले बैंकर्स की भाँति काम करते हैं। अपनी सम्पत्ति रखकर ऋण लेते हैं और ऋण सेवा करते हैं। भारत में बहुत अधिक संख्या में वित्तीय संस्थान जो केन्द्र सरकार के अधीन है और राज्य सरकारों गाँवों की संस्थाओं ने बचत और निवेश को बढ़ा दिया हैं। उनमें से कुछ यह है जैसे जीवन बीमा निगम, भारत का संयुक्त व्यापार मण्डल, यह बचतों की बहुत सी किस्म की योजना देते हैं और कर में भी लाभ देती है। इसके अतिरिक्त विकसित बैंकों का भी एक अच्छा जाल हैं। जैसे भारतीय आॅद्योगिक विकसित बैंक, औद्योगिक जमा धन निवेश भारतीय निगम, भारतीय वित्तीय निगम, राजकीय स्तर पर भी राज्य वित्तीय निगम देहातों के लिए और कृषि राष्ट्रीय ग्रामीण और कृषि विकास बैंक, ये वित्तीय संस्थान और विकसित बैंक बड़ी मात्रा में नीतियाँ देती हैं। जो बचत और निवेश को बढ़ावा देती है। ये संस्थाएँ पूँजी बाजार के प्रारम्भिक ताकत देती हैं और अनुशासन को बढ़ावा देकर उपज बढ़ाती हैं।
(19) व्यापार गठन का आकारः
व्यापारिक गठन का आकार बचत और निवेश के लिए स्थायी सहायता वाला है। सार्वजनिक लिमिटेड़ कम्पनी इसका अच्छी प्रकार का गठन है। निगमों के लिए ये तीन विशेषताएँ निवेशकों के लिए बहुत उपयोगी हैं। (1) हिस्सेदार की देनदारी की सीमाबन्दी (2) लगातार जीवन (3) स्थानान्तरण और स्टाॅक शेयर का विभाजन। सार्वजनिक लिमिटेड कम्पनी अपने व्यापार को जारी रखने की योग्यता उनके सदस्यों को बिना जारी रखती है और व्यापार की क्रिया को अधिक समय और शोर गुल रहित बनाती है। सार्वजनिक लिमिटेड कम्पनी के विपरीत उन हिस्सेदारों का सीमित धन सम्पत्ति पूरे मालकीयत या फर्म की हिस्सेदारी में जो हिस्सेदारी जमा धन है, उसके लिए योग्य होता है। व्यक्तिगत तौर पर कुल जमा राशि के जिम्मेदार है। इन स्थितियों में निवेशक ऐसे ढ़ांचे वाली संस्था में अपनी बचत को लगाने के लिए नफरत करता है। इसका दूसरी तरफ अमान्य धन सम्पत्ति हिस्सेदार या मालकीयत उनका भी थोड़े समय की संस्था का नुकसान उठाते हैं। किसी हिस्सेदार के सेवानिवृत्त या मृत्यु होने पर उसकी फर्म हिस्सेदारी समाप्त हो जाती है। इसी प्रकार का मालकीयत वाला व्यापारी अपना जीवन काल ही व्यापार करता है। इन अस्थायी और अनिश्चित स्थितियों में निवेशक निवेश नहीं करना चाहेंगे। अन्तिम निष्कर्ष, सार्वजनिक लिमिटेड़ कम्पनी के शेयरों के दूसरे शेयरों में स्थानान्तरण कर देती है। सार्वतनिक लिमिटेड़ कम्पनी का ढ़ाचा लोकप्रिय है। निवेश के लिए क्योंकि निवेशक इसकी दिवालिया से लाभ उठाते हैं। इसके लम्बे समय और सहायता का लाभ उठाते हैं। अन्त में निर्णय लेते हैं कि लिमिटेड कम्पनी व्यापार के लिए अच्छी हैं। क्योंकि निवेशक निवेश का प्रचार-प्रसार और निवेश की सीमा को जानना चाहेगा। इस कारण वो अपने विवेक से सोचते हैं और अपनी बचत को वहाँ निवेश करेंगे जो उनकी सुरक्षा, स्थायी वापसी करें।
(20) औद्योगिक स्थितिः
तरणशील व्यापार की आशंसाएं औद्योगिक क्षेत्र में सफलतापूर्वक निवेश की ताल को उठाती हैं। निवेश की इच्छा को फाईल करने के लिए जैसा कि औद्योगिक उद्यमकर्ता स्मरण पत्र (प्म्डथ्) में इस क्षेत्र के लिए जो कि लाइसेंस बनाने की आवश्यकता नहीं रहती थी उसको फिर जनवरी, 2003 के बाद फिर उठाया गया जो कि पिछले सात सालों में बिल्कुल निष्क्रियता था। पिछले तीन सालों जनवरी, 2003 से दिसम्बर 2005 तक 15000 से ज्यादा औद्योगिक उद्यमकर्ता स्मरण पत्र को फाईल किया गया जिसमें 739637 करोड़ रूपया का निवेश के लिए प्रस्ताव किया गया और 2.96 मिलियन लोगों अतिरिक्त रोजगार पीढ़ी का प्रस्ताव किया। इस समय में 351 औद्योगिक लाइसेन्स पत्र दिये गये जिसका प्रस्ताव 9650 करोड़ की निवेश का था। अगस्त, 1991 के पश्चात् उदारीकरण अवधि 66600 से अधिक औद्योगिक उद्यमकर्ता स्मरण पत्र और उद्योगों की स्थिति 18,94,2002 करोड़ रूपये की निवेश के अर्थ से भरा गया।
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का एक अध्ययनः
शोधकर्ता द्वारा अपने शोध में साहित्यक अवलोकन के आधार पर भारत में वह देश जो प्रत्यक्ष विदेशी निवेश देते ही उनका ब्ंेम ैजनकल प्रवधि के अन्तर्गत किया गया है।
वह देश जो भारत को प्रत्यक्ष विदेशी निवेश देते हैंः
मारीशस, यू.एस.ए., यू.के., नीदरलैण्ड, सिंगापुर, जापान, जर्मनी, फ्रंास, स्विट्जरलैंण्ड, दक्षिण कोरिया, यू.ए.ई. आदि-आदि।
वह सैक्टर जो विदेशी प्रत्यक्ष निवेश को, विदेशी निवेश को विदेशी, देशों से आकर्षित करते हैं।
टेलीकम्यूनिकेशन जिसमें सेलुलर मोबाइल की सेवाओं, रेडियों, पेजिंग, और बेसिक टेलीफान,े रसायन, धात्विक उद्योग, भोजन प्रक्रिया उद्योग, परिवहन उद्योग, दवाईयाँ, औषध, ईंधन, इलैक्ट्रीकल उपकरण जिसमें इलैक्ट्रानिक और कम्प्यूटर साॅफ्टवेयर आते हैं।
सेवा क्षेत्र जिसमें वित्तीय, अवित्तीय शामिल हैं? जिप्सम और सीमेन्ट के पदार्थ आदि।
यू.के. से प्रत्यक्ष विदेशी निवेशः
यू.के. के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश ने कुछ पिछले सालों में तेज गति दिखाई है क्योंकि भारत सरकार ने कई प्रेरणाएँ दी हैं और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश यू.के. से आया उसमें बढ़ोत्तरी हुई जिससे देश की अर्थव्यवस्था को ऊपर उठाया। भारत विश्व में पाँचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और देश के पास ऐसा बाजार है जहाँ कमाने और वृद्धि के लिए आदेश करता हैं। इन कारको ने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को बड़ी राशि में आकर्षित किया।
उद्योगों जिन्हांेने भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को आकर्षित किया वह हैं इलैक्ट्रीकल उपकरण, सूचना-प्रौद्योगिकी, सेवा-सेक्टर, पर्यटक, धात्विक उद्योग।
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश जो यू.के. से भारत में आता है, कुछ सालों में बढ़ा हैं। यू.के. का तीसरा दर्जा हैं। उन देशों में जिन्होंने भारत में निवेश किया। यू.के. ने भारत में प्रत्यक्ष को बढ़ाया क्योंकि कुछ सालों से भारत सरकार ने कई प्रेरणाएँ दी।
भारत को यू.के. से जो प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आता हैं। उसका यह फायदा हुआ कि इसने देश में रोजगार उत्पन्न करने के कई नये मौके दिये और उद्योग तकनीक में सुधार किया और देश के आधारित संरचना का विकास किया।
नीदरलैण्ड से प्रत्यक्ष विदेशी निवेशः
नीदरलैण्ड ने जो भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश भेजा उसमें पिछले कुछ सालों में महत्वपूर्ण वृद्धि पंजीकृत की क्योंकि भारत सरकार ने कई प्रेरणाएँ दी और नीदरलैण्ड ने भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का अन्र्तप्रवाह बढ़ाया। देश की अर्थव्यवस्था की वृद्धि में सहायता की। निवेश अधिनियम को भारत ने उदारीकरण किया जिसका उद्देश्य देश में प्रत्यक्ष निवेश को बढ़ाना था।
भारत ने निवेश अधिनियम को उदारीकरण किया। इस उद्देश्य को लेकर भारत में प्रत्यक्ष विदेरूाी निवेश का अन्र्तप्रवाह बढ़े। ज्यादातर कम्पनियों ने भारत में पूरा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को खोला। जिसके साथ अन्र्तराष्ट्रीय निवेशक को 100 प्रतिशत अंश की भारतीय कम्पनियों में आज्ञा दी गई। उसी समय में भारतीय उद्योग विदेशी निवेश की सीमा कर रही।
वो उद्योग जिन्होंने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को आकर्षित किया वह है रसायन, टेलीकम्यूनिकेशन, सूचना प्रौद्योगिकी, भोजन प्रक्रिया उद्योग आदि।
पिछले कुछ सालों में नीदरलैण्ड से अन्र्तप्रवाह बड़ी तेजी से बढ़ा। भारत में निवेश करने के लिए नीदरलैण्ड के सारे देशों में छटवाँ नम्बर हैं। नीदरलैण्ड से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश जो भारत में आया उसका यह असर हुआ कि देश में बहुत सी किस्म उद्योगों की तकनीक में सुधार आया और नये नौकरी के अवसर प्राप्त हुए और देश की अर्थव्यवस्था को ऊँचा उठाया।
सिंगापुर से प्रत्यक्ष विदेशी निवेशः
सिंगापुर से जो भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का निवेश हुआ उसने सिंगापुर की कई फर्मों को जैसे सिंगटैल, टेमेसक, होल्डिंग, सिंगापुर तकनीक टेली मीडिया ने देश में निवेश किया। सिंगापुर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश भारत में अलग-अलग सेक्टरों में जो देश में निवेश किया जैसे परिवहन उद्योग, ईंधन, इलैक्ट्रीकल उपकरण, सिंगापुर सरकार के बड़े प्रोजेक्ट भारत में सम्बधित हैं। उनमें पोर्ट आॅफ सिंगापुर अथोरिटी उसमें शामिल हैं। जिसमें प्रबन्धक साथ ही ईक्विटी आॅफ गुजरात पिपावव और सिंगटेल की संयुक्त सहयोग, भारतीय टेलीकाॅम कम्पनी से। आगे सिंगापुर सरकार का बड़ा प्रोजैक्ट सम्बधित जो भारत में हैं वो सिंगापुर तकनीक टेलीमीडिया का मोदी कार्पोरेशन कम्पनी से सहयोग और पोर्ट आॅफ सिंगापुर अथोरिटी का तीन साल के लिए ठेका जो प्रबंधक और शल्य क्रिया तूतीकोरिन बंदरगाह को हैं।
जापान से प्रत्यक्ष विदेशी निवेशः
जापान से भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की वृद्धि पिछले कुछ सालों में हुई और देश की अर्थव्यवस्था में मदद की। जापान से जो प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का प्रवाह इसीलिए बढ़ा क्योंकि भारत सरकार ने बहुत सारी प्रेरणाएँ दी। भारत सरकार ने ने 1991 में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश निवेश की प्रक्रिया को, प्रवाह के लिए साहस बढ़ाया। भारत सरकार ने आगे उदारीकरण और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के प्रक्रिया को 1991 में आसान बनाया।
इन सारे साधनों ने बड़ी राशि में प्रत्यक्ष निवेश को भारत में आकर्षित किया। जिन सैक्टरों ने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को भारत में आकर्षित किया वो है सीमेन्ट, जिप्सम के पदार्थ, ईंधन, परिवहन उद्योग, औषध, औषधालय।
निष्कर्ष और सुझाव
निष्कर्षः
भारत एक प्रगतिशील देश है संयुक्त अर्थशास्त्र उदारीकरण का प्रस्ताव 1991 से प्रारम्भ किया हैं। वास्तविक परिणाम निकला हैं। मुद्रा स्फीति गिर गई हैं, ळक्च् में ज्यादा वृद्धि हुई जिसके कारण प्रशसनीय रही, आयात में वृद्धि हुई, वेतन के सन्तुलन की व्यवस्था भी आरामदायक हैं और औद्योगिक कृषि के क्षेत्र में अच्छे परिणाम निकले हैं। और विदेशी निवेश के लिए आदर्शकीय वातावरण बना है और निवेशकों ने सकारात्मक सम्मान किया जो देश ने 40 सालों में नहीं पाया इससे 4 सालों में ज्यादा पाया हैं।
फिर भी देश जो शक्तिशाली अर्थव्यवस्था अभी भी दुनिया को वेचनीय हैं, जबकि एशिया के कुछ देशों ने इससे पहले से ही प्रारम्भ कर दिया है इस दौड में भारत इसमें बाद में प्रारम्भ करने वाला है ये जो अन्र्तराष्ट्रीय बाजार की प्रतिस्पर्धा में स्थान बनाने के लिए भारत को अपनी नीतियाँ उचित परिप्रक्ष्य में बनानी पडे़गी। और विदेशी निवेशकों के लिए अनुकूल वातावरण बनाना पडे़गा।
भारतीय आर्थिक नीति जो बाजार आधार मैकनिज्म नीति में महत्वपूर्ण बदलाव हुआ हैं उससे उसको व्यवहार के निवेशकों ने भली-भाँति स्वीकार किया हैं। संस्थागत जो भारत पीछे रहा अब वह पूरे उत्साह से सम्मान करता है प्रत्यक्ष निवेश में धक्का लगाता हैं। और थ्च्प् को भारत में आगे धकेलता हैं जबकि वो आशावादी होने के साथ-साथ वह नीति के सुधार को भी वहीं स्थान देता हैं। यदि भारत अपनी आर्थिक सुधारों को कायम रखता है और नियंन्त्रण और आदेश अर्थव्यवस्था में वो स्वीकार वाला मामला शिफ्ट करता है जो अनियमित और स्वतंत्र बाजार व्यवस्था और यदि संरचना रूकावटें हटा लेता हैं निवेश से तो अर्थव्यवस्था में पक्के तौर पर विदेशी निवेश का प्रवाह बढ़ेगा, यह एक कहावत कि भारत में पहली औद्योगिक क्रंाति खो दी क्योंकि यहाँ बस्तीवाद था तो इसने दूसरी औद्योगिक क्रंाति समाजवाद के कारण खो दी इसलिए देश को तीसरी क्रंाति बिल्कुल खोनी नहीं चाहिए जो कि अभी गतिशील हैं।
सुझावः
विदेशी निवेश मेजवान की अर्थव्यवस्था को बढ़ाने में योगदान कई चैनलों से बढ़ा सकता हैं जैसे भौतिक सम्पदा निर्माण रचना में। इनमें तकनीकीकरण स्थानान्तरण मनुष्य की पूंजी विकास और व्यापार की तरक्की, विदेशी निवेश नीति की स्थानान्तरण से ही बढ़ता है उसका औद्योगिक क्षेत्र में, कुल निवेश क्षेत्र में अभी थोड़ा प्रतिशत ही स्थापित करना हैं। न ़ऋण वाले पूंजी का ये मुख्य साधन होने से ये अति जरूरी है कि ऐसे कारणों की गहराई में जाया जाये जैसा कि सामान्य अन्र्तप्रवाह जो विदेशी निवेश की देश में होता हैं। विदेशी निवेशकों को निवेश के लिए जो सुधारक कदम उठाने हैं वो निम्नलिखित हैं-
1. विदेशी निवेशक जो अमीर और विकासशील देश के है उनको आकर्षित करने के लिए भारत का जो भारतीय मिशन जो विदेश में है उसको देश की धारणा को ठीक ढ़ंग ऊँचा बनाना।
2. विदेशी निवेशकों को अपने देश को लाभांश ओर लाभ और पूंजी अपने देश को भेजने के लिए स्वतंत्र होना चाहिए। इस सन्दर्भ में कानूनी प्रारूप जो दाखिल को खोलने की वकालात करें और भेजने की नीति विदेशी निवेशकों के लिए हो।
3. प्राइवेट क्षेत्र में निवेश के लिए सहायक हो वहाँ पर अनुकूल और स्थिर बड़ी आर्थिक नीति चाहिए।
4. यह एक बात साफ है कि सिर्फ विदेशी निवेशकों के लिए दरवाजा खोलने से ही भीड़ नहीं करेंगे। नई नीतियाँ उन्हें बेचनी चाहिए विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए वास्तव में अच्छी होनी चाहिए आधे दिल से किये गये ढ़ग सिर्फ निवेश को सुखा देगे या वो थोड़ा-थोड़ा आयेगा जैसे 1990 में आया अपने देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को वृद्धि के लिए और सही दिशा में जाने के लिए कुछ निम्नलिखित दिये गये हैं-
विदेशी निवेश का प्रथम उददेश्य भारतीय औद्योगिक वैश्विक बराबरी वाला इसलिए विदेशी प्रत्यक्ष निवेश को एक हथियार के तौर पर तकनीकी ऊँचा करने के लिए लेना चाहिए असल में विदेशी कम्पनियों की भारत में कई उदाहरण हैं। जिसमें बैंक, तकनीक स्तर पर क्रियाकलाप जो घर पर स्तर हो ऐसे दृश्य लेख में भारत लुप्त तकनीक का भूमि एकत्रित बन जायेगी इसलिए विदेश से जो सस्ती पुरानी औैर थोड़ी समय वाली मशीनरी आदि पर रोक होनी चाहिए।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची:
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Received on 14.11.2018 Modified on 28.11.2018
Accepted on 10.12.2018 © A&V Publications All right reserved
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