बैगा जनजाति के परम्परागत लोक गीत, संगीत एवं नृत्य

 

गजेन्द्र कुमार1, डॉ० किशोर कुमार अग्रवाल2

1शोधार्थी, शा० वि० या० ता० स्ना० स्वशासी महा०, दुर्ग (छ० ग०)

2प्राध्यापक, डॉ० खूबचंद बघेल शास० स्ना० महा०, भिलाई-3 जिला-दुर्ग (छ० ग०)

ब्वततमेचवदकपदह ।नजीवत म्.उंपसरू हंरमदकतंेंीन1991/हउंपसण्बवउ

 

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बैगा जनजाति का अपना आदिम संगीत है। ये त्यौहार विवाह एवं अनेक पर्व में नाच-गान करते है। बैगा जनजाति के लोग दशहरा से वर्षारंभ तक नाच-गान करते है। ये बिना श्रृंगार के नृत्य नही करते है, नृत्य के लिए विशेष वेशभूषा होती है। बैगा कुछ नृत्य-गीत को स्त्री-पुरुष दोनों मिलकर समुह में करते है। नृत्य-गीत के समय पुरुष कमर में लहंगेनुमा घेरेदार साया पहनते है। शरीर में सलूखा (कमीज) तथा काली जाकिट पहनते है। सिर पर चकनुमा पगड़ी, उसपरमोर पंख कलगी’, गले में विभिन्न रंगों की मूंगा मालाएं, गिलट या पीतल के सिक्कों से बनेरूपयातथा कानों मे मुंगे-मोतियों के बाले पहनते है। तथा पैरों मे लोहे या पीतल के पैजन पहनते है। पीठ पर लाल नीली छिट का पिछोरा बांधते है। हांथ में ठिसकी होती है। वहीँ स्त्रियाँ नृत्य के लिए शरीर पर मुंगी लुगरा पहनती है। युवतियां बालों को अधिक सजाती है। सिर के जुड़े मे मोर पंख की कलगी खोसती है। बगई घांस के छोटे-छोटे छल्लों को मिलाकर बनाया गया सांकल नुमालाद्दाका गुच्छा जुड़े में बांधती है, जो कमर तक लटकता है। गले मे रंग बिरंगे माला, कानों मे तरकल और मुंगों की बाली, हाथों में गिलट के चूरे, अँगुलियों में मुंदरी पैरों मे पैरी या पैजन, पैर के अँगुलियों में चुटकी इत्यादि प्रकार के श्रृंगार करके नृत्य-गीत करती है।

 

ज्ञम्ल्ॅव्त्क्ैरू सलूखा, लाद्दा, मुंदरी, बिलमा, भड़ौनी, परघौनी, फरसा, नंगाड़ा, बठेना

 

 

 

 

 

 

 

प्रस्तावनाः-

दशहरा नृत्य

दशहरे के दिन प्रारंभ होने के कारण इस नृत्य को दशहरा नृत्य कहते है। विजय दशमी से इस नृत्य का सिधा सम्बन्ध नही है। बैगा जनजाति के लोग उल्लास के साथ एक दुसरे के गाँव नृत्य दल जा-जाकर नृत्य करते है। इस नृत्य में पुरुषों का दल अलग और स्त्रियों का दल अलग होता है। पुरुष दल के साथ स्त्रियाँ नही जाते दशहरा नृत्य के साथबिलमागीत गाते है जैसे-

तरी रे हनी तरी, तरी रे हनी तरी ...... सुआ रे।।

राछत-पूछत हमु आयन भूली, कुकरा भूकी देय..... सुआ रे

निकल पटेलिन आंगना मा, दर्शन देखो हमार... सुआ रे1

 

इस प्रकार के गीत गाते-गाते नृत्य करते है। नृत्य दलों का आव-भगत किया जाता है साथ ही नृतक दल अपने साथ कुछ खाने के लिए भी लाये रहते है, जिसेठोलाकहते है। ठोला को सब मिल बांटकर खाते है। इसी प्रकार यह नृत्य-गीत रात भर चलता रहता है और नृतक दल एक गाँव से दुसरे गाँव जा-जा कर करते रहते है। इसी प्रकार यह नृत्य दीपावली तक चलता रहता है।

 

करमा नृत्य

करमा नृत्य बैगा अपनेकर्मको नृत्य-गीत के माध्यम से प्रस्तुत करते है इसीकारण इस नृत्य-गीत को करमा कहा जाता है। करमा नृत्य विजयदशमी से वर्षा के प्रारंभ होने तक चलता है। इस नृत्य मे बैगा पुरुष बीच मे खड़े होकर मंदर एवं अन्य वाद्ययंत्र बजाते है और महिलाएं गोल घेरे बनाकर एक दुसरे के कमर मे हांथ डालकर घूम-घूम कर गीत गाते हुए नृत्य करते है एवं हांथ में ठिसकी होती है। इस नृत्य मे स्त्री एवं पुरुष दोनों समूह मर भाग लेते है। गीत के अनुसार करमा नृत्य कई भागों मे विभक्त है।

 

करमा खड़ी, करमा खाप, करमा झूलनी, करमा लहकी आदि है। करमा नृत्य को बैगा युवक-युवतियाँ टोली बनाकर एक दुसरे के गाँव जा जाकर नृत्य करते है। वर्तमान समय मे बैगा समूह जब नृत्य करने जाते है तो एक दुसरे का अतिथियों कि तरह स्वागत सत्कार किया जाता है। यह नृत्य लगभग रात भर होता है। शाम को नृत्य दल गाँव मे प्रवेश करते है। भोजन व्यवस्था गाँव वाले करते है और रात भर मांदर एवं अन्य वाद्ययंत्र के धुन के साथ नृत्य करते है। सभी प्रकार के करमा मे नृत्य करने की शैली एक सी ही होती है सिर्फ गीत गाने मे अंतर होता है, उसके लय के उतार चड़ाव के साथ ही ताल मिलाकर नृत्य किया जाता है। करमा के गीत कुछ इस प्रकार है।

 

 

खड़ी करमा

झूरा-झूरी पान मांगे जाये कैसे सोसी पड़े

पाने मंगावत सीता गारी खवाये

अंगना मा बैठकी मन मा विचार कैसे सोसी पड़े

कौन तोरे लानय कारे पान सरैपान

कौन तोरे लाने बीड़ा पान, कैसे सोसी पड़।2

 

करमा खाप

ये मदरी के मान राख दे पारदेसी माये ये मदरी के रे।

तात भयगय गोहूँ रोटी जुड़ भयगय दार।

ये सेवरो के मना ला उतार पारदेसी माये ये मदरी के रे।3

 

करमा झुलकी

खाले घाट कुमारी ला छेकवंढीमर

जाल फेकओं डढ़वारे मछली काहे बाज गए।

खरहाडीह मुकदम सौंपवों, मुसवा ला दीवाने,

कोतरी ला सोपवं कोटवारी डढ़वारे मछरी काहे

बाज गए मोहरिया ला इजर सोपवं बीमी दाने दार,

रोहू ला तो स्पेक्टर बनायवं कतला तहसीलदार,

डढ़वारे मछली कोहे बाज गए।4

 

करमा लहकी

तेज डारे बाई सुरता ला तेज डारे रे ।।

अंगरी के छुटकी रुन झुना बाजे,

जबय मांदर बाजे तब सुरता लागे,

तेज डारे सुरता परान ला तेज डारे रे .....।।5

 

इस प्रकार अलग-अलग गीतों के माध्यम से करमा नृत्य करते है।

 

झरपट नृत्य

झरपट नृत्य मे स्त्री एवं पुरुष आमने सामने होकर पंक्तियों में नृत्य करते है। यह भी समुह नृत्य होता है। नृतक दल के हांथों मेंठिसकीहोती है। झरपट नृत्य के गीत में सवाल जवाब होता है। महिला एवं पुरुष दल एक दुसरे को निरंतर निरुत्तर करने की कोशिश करते है। झरपट नृत्य की गति गीत के बोलों के साथ तेज होती जाती है।झरपटका अर्थ छेड़-छाड़ होता है। करमा के बाद यह नृत्य होता है। यह नृत्य भी पुरे रात चलता है।

झरपट के गीत इस प्रकार होते है-

 

 

झैंला-झैलो बारी के मुनगा उखाटी।

झैंय जाय रे बारी के मुनगा उखारी।।

झैंय जाय रे ।।

बारी के मुनगा उखारी झैंय जारे।

मोरे दगा छैयला बिछड़ी, झैंय जारे।6

 

रीना नृत्य

रीना नृत्य-गीत केवल स्त्रियाँ ही करती है। स्त्रियों के दो दल होते है। जो एक साथ घेरे मे तथा पंक्तिबद्ध होकर नृत्य करती है। रीना नृत्य के साथ रीना गीत भी गायी जाती है। पैरों का ताललहकी करमा की तरह होती है। नृत्य करते लड़कियों के हांथ मेचुटकीहोती है। मांदर और टिमकी की लय पर रीना तीन प्रकार की होती है। रीना गीत कुछ इस प्रकार होती है-

 

री रीना यो रिहन रीना,

री री ना यो रीना रे राय

कि री री नायो रे राम

दाई आवय पोहनी बनके

लूटा माज पानी दैयंव।

रोई- रोई भेंट करिव।7

 

बिलमा नृत्य

बिलमा विवाह नृत्य है। इस नृत्य कोबिरहानृत्य भी कहते है। गाँव से बारात बिदाई में युवक-युवतियाँ यह नृत्यविरह-वियोगमे करते है। इस नृत्य में पुरुष उछल-उछल कर नृत्य करते है और स्त्रियाँ धीरे-धीरे पैर को सरका-सरकाकर नृत्य करते है। इस नृत्य मे दोनों पक्षों मे कोमल भाव होते है। इस नृत्य के साथ गीत गाते है इस प्रकार है-

 

सुर सूरा सूरा सुर पवन चलतु है मोरे अछेरा

सरागा उड़ी जाय।

जा देखी आबे, मोरे अछेरा,

सरागा उड़ी जाय।

हथीले आवय मामा बेटामोरे अछेरा सकेल खोंची देय।

सरगा खोची जाय।8

 

भड़ौनी नृत्य

भड़ौनी भी विवाह नृत्य है। बारात जाने के बाद बराती जब आंगन मे बैठते है तब महिलायें यह नृत्य करती है। महिलाएं समधियों के लिये गालियाँ गाती है और करमा लहकी से मिलता-जुलता नृत्य करती है।9

परघौनी नृत्य

परघौनी विवाह नृत्य है। बारात की अगवानी करने के लिए पुरुष विशेष वेशभूषा में हांथ मेफरसालेकर नाचते है। यह नृत्य नंगाड़ा और टिमकी के साथ किया जाता है।  इसमे नंगाड़ा के तेज के साथ पुरुष भिन्न-भिन्न प्रकार के मुद्रा बनाकर तेजी से नृत्य करते है और जोर-जोर सेकिलकारीभी देते रहते है। इस अवसर पर लड़के वाले की ओर से हांथी बनाकर आंगन मे नृत्य कराया जाता है। नंगाड़ा के बजने के साथ उछल कूद करते हुए नृत्य करते रहते है।

इसमे गीत कुछ इस प्रकार होते है-

 

कोने बनावै हथिया रे घोरिया, कोने चढ़े असेवार ... दाई

कोने बनावै हथिया रे घोरिया, कोने चढ़े असेवार।

बैरी बनावै हथिया रे घोरिया, दादा चढ़े असेवार.... दाई।।

कोने बनावै हथ घोरिया सम्हारो, कोने हाथे तलवार ... दाई।।10

 

इस प्रकार बैगा जनजाति के लोग भिन्न-भिन्न अवसरों मे अनेक प्रकार के नृत्य-गीत करते रहते है और अपने संस्कृति को आज भी परंपरागत रूप से जीवंत करने का प्रयास करते रहे है। बैगा जनजाति के कुछ विशेष वाद्ययंत्र है जो इस प्रकार है-

 

मांदर

यह वाद्ययंत्र को रस्सी के सहारे गले मे टांगकर दोनों हांथों से थाप लगाकर भांति-भांति के ताल बजाये जाते है। मांदर बैगाओं का प्रमुख वाद्ययंत्र है। मांदर गिलास के आकार के समान एक सिरे पर कम गोलाई का होता है और दूसरे सिरे तक इसकी गोलाई क्रमशः बढ़ती जाती है। जिससे दूसरे सिरे पर यह तुलनात्मक रूप से जादा बड़ी गोलाई वाला होता है। मांदर को मिट्टी से बनाया जाता है और उसपर चमड़े को लगा दिया जाता है तथा चमड़े की पतली खाड़ी तगाने एक सिरे से दूसरे सिरे तक कस दीया जाता है। मांदर मिट्टी के होने के कारण अत्यधिक वजनिय होता है। मांदर का निर्माण ये स्वयं भी कर लेते है या फिर खरिद लिया जाता है।11

 

 

ढोलक

यह आम, शीशम, सागौन, बीजा, नीम,जामुन आदि लकड़ी से ढांचा तयार किया गया खोल मे मांदर की तरह दोनो तरफ बकरे के चमड़े को मढ़ दिया जाता है। ढोलक को सन की रस्सी से कसी जाती है। इसे विभिन्न अवसरों मे बजाया जाता है।12

 

नगाड़ा

नगाड़ा वाद्ययंत्रों का समुह होता है। जिसमे तारी, गुदुम, टिमकी एवं टठीया (थाली) शामिल होता है। तारी एवं गुदुम को एक व्यक्ति द्वारा बांस के दोबठेना’ (डंडियों) से बजाया जाता है तथा टिमकी एवं टठिया दुसरे व्यक्ति द्वारा बांस के बठेना द्वारा बजाया जाता है।13

 

ठिसकी

ठिसकी करमा-सैला नृत्य के समय बजाया जाने वाला वाद्ययंत्र है। इसे नृत्य के समय पुरुष एवं महिलायें हांथ मे लेकर बजाते हुए नृत्य करते है। इसे लकड़ी, लोहे एवं तार से बनाया जाता है। इसमे दो लकड़ी या लोहे के टकराने से जो ठस-ठस की आवाज आती है इसीकारण इसे ठिसकी कहा जाता है।14

 

डफड़ा

यह वाद्ययंत्र शुभ अवसरों पर बजाया जाता है। यह लकड़ी या लोहे के छल्लेनुमा ढांचा मे चमड़े को मढ़ कर बनाया जाता है। इसे गले में टांगकर बांस के डंडियों से पिट-पिटकर बजाया जाता है।15

 

सिंगबाजा

इस वाद्ययंत्र को भी शुभ अवसरों पर बजाया जाता है। इसे विवाह मे विशेष रूप से बजाया जाता है। इसे लोहे के पात्र मे उपर से चमड़े से मढ़ा जाता है। इसे मोटे रबड़ के लचिले सिंगनुमा टुकड़े से बजाया जाता है।16

 

इस प्रकार बैगा जनजाति के लोग अनेक प्रकार के वाद्ययंत्रों का उपयोग करते है और विभन्न अवसरों में बजाते है और नृत्य तथा गान करते है।

 

 

 

 

सन्दर्भ

1        रठुड़ीया, भागवती, बैगा गीत, आदिवासी लोक कला एवं बोली विकास अकादमी मध्यप्रदेश संस्कृति परिषद्, 2013 पृ० 60; भागवती रठुड़ीया, से प्राप्त साक्षात्कार, 07ध्09ध्2017, टी० आर० आई०, भोपाल

2        धुर्वे, अर्जुनसिंह, बैगा गीत, आदिवासी लोक कला एवं तुलसी साहित्य अकादमी मध्यप्रदेश, 2010, पृ० 66

3        अर्जुन सिंह धुर्वे, से प्राप्त साक्षात्कार, 07ध्09ध्2017, टी० आर० आई०, भोपालय

4        उपरोक्त पृ० 20

5        सुद्दु सिंह मुकादम, से प्राप्त साक्षात्कार, 07ध्09ध्2017, टी० आर० आई०, भोपाल

6        शेरसिंह बैगा, से प्राप्त साक्षात्कार, 26ध्08ध्2017, ग्राम लमनी, लोरमी

7        रठुड़ीया, भागवती, बैगा गीत, वही, पृ० 131

8        उपरोक्त पृ० 134

9        निरगुणे, बसंत, बैगा, आदिवासी लोक कला परिषद्, 1986, पृ० 13

10      रठुड़ीया, से प्राप्त साक्षात्कार, 07ध्09ध्2017, टी० आर० आई०, भोपाल

11      आदिमजाति अनुसंधान एवं विकास संस्थान, मध्यप्रदेश, भोपाल, शासकीय प्रतिवेदन कमांक 487, पृ० 57

12      शेरसिंह बैगा, से प्राप्त साक्षात्कार, 30ध्08ध्2017, ग्राम लालपुर, छुईखदान

13      शोधार्थी द्वारा बैगा ग्रामों के प्रत्यक्ष अवलोकन

14      शेरसिंह बैगा, से प्राप्त साक्षात्कार, 30ध्08ध्2017, ग्राम लालपुर, छुईखदान

15      शोधार्थी द्वारा बैगा ग्रामों के प्रत्यक्ष अवलोकन

16      सुक्कलसिंह, से प्राप्त साक्षात्कार, 27ध्01ध्2018 ग्राम लूप, बोड़ला

 

 

 

 

 

Received on 22.07.2018                Modified on 18.08.2018

Accepted on 20.09.2018            © A&V Publications All right reserved

Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 2018; 6(4):539-542.