शासकीय विद्यालयों में शिक्षा की स्थिति एवं समस्या
खोमन लाल साहू
शासकीय विश्वनाथ यादव तामस्कर स्नातकोत्तर स्वशासी महाविद्यालय, दुर्ग
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सभ्य समाज की पहचान शिक्षा है। एक व्यक्ति शिक्षित होता है तो पूरे समाज में शिक्षा की ज्योति जगाता है। शिक्षा मानव संसाधान विकास का सार है। भारत के नागरिक इसके मूल्यवान संसाधन हैं। भारत में शिक्षा विकास तेजी हो रहा है, लेकिन विकास की गति सभी राज्यों में एक समान नहीं है। वहीं छत्तीसगढ़ राज्य में साक्षरता दर में वृद्धि हुई, लेकिन शिक्षा स्तर में नहीं। शासकीय विद्यालयों को मिलने वाली सुविधाओं का विशेष अभाव है। सुविधा युक्त शिक्षण संस्थानों में कार्यरत कर्मचारी, शिक्षक तथा अध्ययन करने वाले विद्यार्थीयों में आगे बढ़ने की जिज्ञासा देखने को मिलती है, लेकिन यदि साधनहीन शिक्षण संस्थान जहां नियमित, प्रशिक्षित शिक्षक का अभाव, प्रायोगिक सामाग्री का अभाव, खेल के मैदान एवं खेल सामाग्री इत्यादि चीजों की कमी तथा प्रबंधन की अव्यवस्था से बेहतर एवं उच्च गुणवत्ता युक्त शिक्षण संस्थान की कल्पना व्यर्थ होगा।
ज्ञम्ल्ॅव्त्क्ैरू शिक्षण संस्थान, जिज्ञासा, प्रबंधन।
प्रस्तावना:-
भारतीय संविधान में शिक्षा को मौलिक अधिकार दिया गया है, लेकिन कई राज्य आज भी शिक्षा के कई पैमाने में बहुत पीछे हैं। देश की 26 प्रतिशत जनसंख्या आज भी निरक्षर है। ‘‘देश में जीवन का अधिकार का तात्पर्य न्यूनतम जीविका एवं आश्रय के साथ मानवीय सम्मान एवं आदर के साथ जीने का अधिकार एवं जीवन के सभी पहलू जिनमें मनुष्य की जीवन पूर्ण एवं जीने योग्य शिक्षा ही बनाता है।‘‘ इस योजना को प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा तक पहुँचाने और इसकी गुणवत्ता में सुधार करने के उद्देष्य के साथ मार्च 2009 में शिक्षा का अधिकार (त्ज्म्) शुरू किया गया है।
भारतीय राज्यों के शैक्षणिक स्तर में बहुत असमानता विद्यमान है। शिक्षा के क्षेत्र में अनेक विसंगतियां और समस्याएँ विद्यमान है। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के पष्चात अनेक शासकीय एवं निजी विद्यालय खुले, जहां अनेक सुविधाओं का अभाव आज भी विद्यमान है। ऐसे में विद्यार्थी भविष्य में देश का भावी नागरीक कैसे बने जिसमें प्रारम्भ से अभाव में अपना शिक्षण कार्य किया हो तथा विद्यार्थी ऐसे कई कारणों से अपना अध्ययन बीच में ही छोड़ देता है।
दुनिया में अच्छे शिक्षकों का अभाव है। ‘‘शिक्षक सिर्फ पाठ्यक्रम पढ़ाने वाले नहीं होते हैं। वे छात्र के जीवन में लाइट हाउस होते हैं, होने चाहिए।‘‘ एक अध्यापक ही एक क्रियाशील समाज के निमार्ण में उत्तम भूमिका निभाते हैं। हम यह भी कह सकते हैं कि अध्यापक कक्षा में किसी देश के भाग्य को आकृति देते हुए ज्ञान की वह शाखा जो शिक्षा के प्रशासन तथा प्रक्रियाओं का वैज्ञानिक रूप से अध्ययन कराता है। शैक्षिक समाजशास्त्र के नाम से जानते हैं।
भारत की शिक्षा प्रतिशत स्वतंत्रता के पष्चात वृद्धि हुई है, लेकिन सर्वथा शिक्षा में गुणवत्ता का अभाव प्रारम्भ से पाया गया है। ऐसे शिक्षा से गरीबी खत्म नहीं होगी। शिक्षण संस्थान छात्रों को बेहतर शिक्षा प्रदान नहीं करा रहें है। पूरे देश में कुछ राज्यों को छोड़कर सभी राज्यों की स्थिति एक जैसी है, जहाँ प्रशिक्षित शिक्षकों, भवनों, पाठ्यक्रमों की अनियमित्ता, प्रयोगशाला, खेल के मैदान, खेल सामाग्री का अभाव लगभग एक जैसी है, लेकिन ऐसा नहीं है कि शिक्षा के क्षेत्र में, शौक्षिण गुणवत्ता में वृद्धि नहीं हुई है।
शासकीय विद्यालयों में नामांकन में वृद्धि हुई है तथा विद्यालयों की संख्या बढ़ी है। ‘‘शिक्षा का संकट नैतिक और आर्थिक दोनों तरह का है, अगर लोगों को अच्छी शिक्षा दी जाती है तो वह बेहतर नौकरी, आय और स्वास्थ्य लाभ तथा नयी-नयी तकनीकों को विकसित कर सकते हैं।‘‘
उद्देश्य -
उद्देश्य निर्माण से ही अध्ययन त्रुटि रहित एवं निश्पक्ष होते हैं। प्रस्तुत अध्ययन हेतु निर्धारित उद्देश्य निम्नानुसार है-
1. विद्यार्थीयों की सामाजिक, आर्थिक एवं शौक्षणिक समस्या ज्ञात करना।
2. विद्यार्थीयों को विद्यालय से प्राप्त होने वाले सुविधाओं को ज्ञात करना।
3. विद्यार्थीयों की शिक्षा एवं भविष्य के प्रति रूचि ज्ञात करना।
शोध प्रविधि एवं अध्ययन क्षेत्र -
प्रस्तुत शोध कार्य वर्णात्मक शोध अभिकल्प की सहायता से किया गया है। समस्या के संबंध में पूर्ण विस्तृत यथार्थ तथ्यों की जानकारी प्राप्त करना इस शोध अभिकल्प का प्रमुख ध्येय है अध्ययन क्षेत्र के रूप में छत्तीसगढ़ राज्य के राजनांदगांव जिले के सभी तहसील (राजनांदगांव, खैरागढ़, छुईखदान, डांेगरगढ़, छुरिया, डोंगरगांव, अम्बागढ़ चैकी, मोहला एवं मानपुर) को लिया गया है।
आंकड़ों के स्रोत -
शोध विषय से संबंधत उद्देश्य के अनुरूप महत्वपूर्ण तथ्यों का संकलन निम्नांकित स्त्रोत की सहायता से किया गया है -
प्राथमिक आंकड़ों का स्त्रोत -
प्रस्तुत शोध अध्ययन में 500 उत्तरदाताओं से विभिन्न तथ्यों का संकलन साक्षात्कार अनुसूची एवं अवलोकन प्रविधि के द्वारा किया गया है। जिसमें शिक्षा संबंधी योजनाओं एवं क्रियान्वयन आदि सूचनाओं की प्राप्ति के लिए साक्षात्कार अनुसूची का प्रयोग किया गया है।
द्वितीयक आंकड़ों के स्त्रोत -
द्वितीयक आंकड़ों के रूप में तथ्यों का संकलन जिला व विकास खण्ड शिक्षा विभाग, भू-अभिलेख कार्यालय, शोध अकादमिक पत्रिका, इंटरनेट, सामाचर पत्र एवं विषय से संबंधित पुस्तक एवं विभिन्न सरकारी प्रतिवेदन द्वारा प्रकाशित सूचना की सहायता लिया गया है।
विश्लेषण -
विद्यालय में कम्प्यूटर की शिक्षा दिया जाना आज शासकीय, अशासकीय सभी कार्यों में वैज्ञानिकता के लक्षण दिखायी दे रहा है। ऐसे में विद्यार्थीयों को कम्प्यूटर शिक्षा दिया जाना अत्यंत आवष्यक होता जा रहा है। समाजशास्त्रीय महत्व एवं बढ़ती वैष्वीकरण की स्थिति को ध्यान में रखते हुए विद्यार्थीयों को विद्यालय में कम्प्यूटर शिक्षा दिया जाता है या नहीं? इस संबंध में आंकड़े एकत्रित किया गया है-
विद्यालय में कम्प्यूटर शिक्षा दिया जाना
उपरेाक्त सारणी के विष्लेषण से ज्ञात होता है कि सर्वाधिक 88.2 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने स्पष्ट किया कि विद्यालय द्वारा कम्प्यूटर की शिक्षा नहीं दिया जाता तथा 13.8 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने विद्यालय में कम्प्यूटर शिक्षा मिलने की जानकारी दिये।
तथ्यों के विष्लेषण से स्पष्ट होता है कि विद्यालयों में अत्यन्त आवश्यक तकनीकी शिक्षा से विद्यार्थियों को वंचित किया जा रहा है। शिक्षा के पारम्परिक तरीके का होना और सुविधाओं की कमी से कई विद्यार्थी पढ़ाई छोड़ देते हैं क्योंकि शिक्षा में रोचकता, उत्साह तथा प्रशिक्षित शिक्षकों का अभाव है। तकनीकी शिक्षा से इसका हल मिल सकता है।
सुझाव -
हमारे यहां शिक्षा जैसे बुनियादी क्षेत्र में समग्र विकास किया जाना चाहिए। शिक्षा क्षेत्र में विकास तथा प्रबंधन का विशेष योगदान होता है। शिक्षक एवं अभिभावकों को केवल अंक लाने पर जोर नहीं देने चाहिए। वर्तमान शिक्षा प्रणाली की अवधारणा गुणवत्तापूर्ण और समालोचनात्मक होना चाहिए। टेक्नोलाॅजी की सहायता से पढ़ाया जाना चाहिए। टेक्नोलाॅजी गेम चेंजर हैं। देश में टेक्नोलाॅजी के स्किल विकसिकत करने चाहिए जैसे रिसर्च कराना या उन्हें प्रेरित करने वाले पाठ्यक्रम का होना आवष्यक है। शासकीय विद्यालयों मंे खेल सामग्री की पूर्ति आवश्यक है। इससे छात्रों के प्रतिभा को निखारने का अवसर मिलता है। साथ ही प्रायोगिक सामाग्री की कमी नहीं होनी चाहिए। विद्यार्थियों में अपने अधिकार की जानकारी होनी चाहिए तथा शिक्षकों द्वारा देश एवं राज्य में होने वाले परिवर्तनों एवं सामान्य ज्ञान की बातें सप्ताह में एक-दो बार होने चाहिए।
निश्कर्ष -
अध्ययन से प्राप्त तथ्यों के आधार पर निश्कर्ष के रूप में शासकीय विद्यालयों में मूलभूत सुविधाओं की कमी है। विद्यालयों में टेक्नोलाॅजी को अधिक बढ़ावा नहीं दिया जा रहा है। शिक्षकों द्वारा पढ़ायी कराने के तरीके अधिकांश रट्टा करना में है तथा शिक्षकों में शिक्षण प्रशिक्षण की कमी है। शिक्षकों को वर्तमान में वैज्ञानिक विधियों से अध्यापन कार्य नहीं हो पा रहा है। अन्य तथ्यों के आधार पर निश्कर्ष निकाला जा सकता है कि 21वीं शताब्दी में भी हमारी शौक्षणिक स्थिति अन्य विकसित देशों की अपेक्षा पिछड़ी हुई है तथा शिक्षा बजट में कमी है।
संदर्भ-सूची
1ण् आंध्रप्रदेश राज्य, धारा 99.ेब 3297(1997) चण्16
2ण् डाॅ. जयंतीलाल भण्डारी, ‘‘शिक्षा में रोजगार‘‘, लेख 07/03/2018
3. “Learnig in realize rducation promises.’ World Development report, 2018
Received on 11.11.2018 Modified on 19.12.2018
Accepted on 20.01.2019 © A&V Publications All right reserved
Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 2019; 7(1):116-118.