छŸाीसगढ़ी एवं भोजपुरी भाषा की शब्द-रचना
श्रीमती शारदा सिंह1, डाॅ. शैल शर्मा2
1शोध-छात्रा, साहित्य एवं भाषा-अध्ययनशाला पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर (छ.ग.)
2शोध-निर्देशिका, साहित्य एवं भाषा-अध्ययनशाला पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर (छ.ग.)
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भारत एक बहुभाषी देश है। इनमें से कई भाषाएँ साहित्यिक एवं रूप-रचना की दृष्टि से अति संपन्न हैं। भारत की सभी प्रमुख भाषाओं में भाषिक स्तर पर समानता हिंदी और भारतीय भाषाओं के अंतर्संबंधों की व्याख्या करती है। इसी के अंतर्गत छŸाीसगढ़ी एवं भोजपुरी भाषा भी एक मधुर भाषा है।
ज्ञम्ल्ॅव्त्क्ैरू छŸाीसगढ़ी, भोजपुरी, भाषा, शब्द-रचना
प्रस्तावना:-
छŸाीसगढ़ी जनभाषा हिंदी की दक्षिण-पूर्वी रूप है, जो मुख्यतः छŸाीसगढ़ में बोली जाती है। भोजपुरी, पूर्वी अथवा मागधी परिवार की पश्चिमी बोली है। इस बोली का विस्तार उŸार में हिमालय की तराई से लेकर दक्षिण में सरगुजा रियासत तक है। छŸाीसगढ़ी एवं भोजपुरी भाषा की शब्द-रचना में प्रमुखतः मूल शब्द एवं मिश्र शब्द का अपना अलग ही अस्तित्व है।
मूल शब्द
मूल शब्द वे हैं जिन्हें हम और छोटे भागों में बाँट नहीं सकते अर्थात् उपसर्ग एवं प्रत्यय रहित सार्थक शब्द को मूल अथवा प्रतिपादक कहते हैं। छŸाीसगढ़ और भोजपुरी के अधिकांश प्रतिपादकों का विकास संस्कृत से हुआ है। यह मूल शब्द मध्यकालीन भारतीय आर्य भाषाओं में होते हुए छŸाीसगढ़ी एवं भोजपुरी में आए हैं, जैसे-
मिश्र वाक्य
मिश्र शब्द वे कहलाते हैं, जिनमें मूल शब्द के साथ अन्य शब्द-खंड (उपसर्ग-प्रत्यय) जुड़ते हैं तो उन्हें मिश्र शब्द कहते हैं। भाषा मूल शब्दों से उपसर्गों और प्रत्ययों के योग से नए शब्दों की उत्पŸिा करती है। छŸाीसगढ़ी और भोजपुरी में अपनी आंचलिक विशेषताओं के कारण भिन्नता है तथा कहीं-कहीं उपसर्ग-प्रत्ययों से बनने वाले शब्दों में समानता भी पाई जाती है।
उपसर्ग
उपसर्ग भाषा के वे लघुतम सार्थक खंड होते हैं, जो शब्द के आरंभ में लगाकर नए-नए शब्दों का निर्माण करते हैं और उनके अर्थ में विशिष्टता उत्पन्न करते हैं। उपसर्ग तत्सम, तद्भव, देशज, विदेशी होते हैं।
तत्सम उपसर्ग
‘तत्सम’ दो शब्दों के मेल से बना है- तत् = उसके, सम = समान अर्थात् उसके समान। छŸाीसगढ़ी और भोजपुरी ने भी अपने स्रोत-भाषा संस्कृत से ज्यों-के-त्यों शब्द ग्रहण किए हैं। स्रोत भाषा से शब्द ग्रहण की इस शृृंखला में छŸाीसगढ़ी-भोजपुरी के उपसर्ग संस्कृत के शब्दों से ज्यों-के-त्यों आ गए हैं, उन्हें तत्सम उपसर्ग कहेंगे। छŸाीसगढ़ी और भोजपुरी में प्रयुक्त उपसर्गों की कुछ सूची निम्नलिखित हैं-
तद्भव उपसर्ग
‘तद्भव’ शब्द भी दो शब्दों से मिलकर बना है- तद् = उससे, भव = होना अर्थात् संस्कृत भाषा से होने वाला। तद्भव वे शब्द हैं जो संस्कृत से परिवर्तित होकर हिंदी में आए हैं। तद्भव वे शब्द हैं जो संस्कृत से उत्पन्न हैं, किंतु पालि, संस्कृत और अपभ्रंश से विकृत होते हुए हिंदी में आए हैं अर्थात् जो शब्द संस्कृत से परिवर्तित रूप में हिंदी में प्रयोग किए जाते हैं, वे तद्भव शब्द कहलाते हैं।1 छŸाीसगढ़ी और भोजपुरी में प्रयुक्त तद््भव उपसर्ग के कुछ उदाहरण निम्न हैं-
देशज उपसर्ग
देशज ‘देश$ज’ अर्थात् देश में जन्मा। छŸाीसगढ़ी और भोजपुरी के दोनों के अपने देशज शब्द हैं, जिनका स्रोत स्वयं ही है। ‘‘रामचंद्र वर्मा के अनुसार देशज ऐसे शब्द हैं, जो किसी दूसरी भाषा से न लिकला हो, बल्कि प्रदेश में लोगों के बोलचाल से बनाया गया हो। जो देश में ही उपजा हो, जो न विदेशी हो और न किसी दूसरी भाषा के शब्द से बना हो, ऐसा शब्द जो न संस्कृत हो न संस्कृत का अपभ्रंश हो और न ही किसी दूसरी भाषा के शब्द से बना हो।’’2
अरबी-फारसी उपसर्ग
छŸाीसगढ़ी में अरबी-फारसी के रूप अक्षुण्ण हैं। यह हिंदी भाषा के संपर्क में आए हुए हैं। भोजपुरी में अरबी-फारसी के शब्द उर्दू भाषा के माध्यम से भोजपुरी में व्यवहृत होते हैं, जो उनकी उपलब्धि के आधार पर सन्निवेश किया जा चुका है, जैसे-
अँगरेज़ी उपसर्ग
प्रत्यय
शब्द-रचना के लिए शब्दों के पश्चात् जोड़े जाने वाले अक्षर या अक्षर-समूह को प्रत्यय कहते हैं। ‘‘जो शब्दांश शब्दों के अन्त में लगकर उनके अर्थ में परिवर्तन ला देते हैं, वे ‘प्रत्यय’ कहलाते हैं।’’3 प्रत्यय दो प्रकार के होते हैं- कृत प्रत्यय और तद्धित प्रत्यय।
कृत प्रत्यय
क्रिया या धातु के अंत में उपयोग होने वाले प्रत्यय को ‘कृत’ प्रत्यय कहते हैं। छŸाीसगढ़ी और भोजपुरी के कृत प्रत्यय के उदाहरण हम निम्नानुसार देखते हैं-
तद्धित प्रत्यय
क्रिया से भिन्न शब्दों के अंत में लगने वाले प्रत्ययों को तद्धित प्रत्यय कहते हैं। ‘‘धातु को छोड़कर अन्य शब्दों के अंत में जुड़ने वाले प्रत्यय तद्धित प्रत्यय कहलाते हैं। सामान्यतः तद्धि प्रत्यय संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण तथा अव्यय के अंत में लगते हैं।’’4 इसके कुछ उदाहरण नीचे देख सकते हैं-
उपर्युक्त विवेचन से यह ज्ञात होता है कि छŸाीसगढ़ी और भोजपुरी भाषा अलग-अलग क्षेत्रों की भाषा होते हुए भी दोनों की शब्द-रचना में अत्यधिक समानता एवं कुछ भिन्नता भी है तथा इनकी शब्द-रचना अधिक विस्तृत है। यहाँ पर केवल इनके मूल
रूप एवं मिश्र रूप का छोटा सा अध्ययन किया गया हैै। सं.=संज्ञा
सं.पु.=संज्ञा पुल्लिंग
सं.स्त्री.=संज्ञा स्त्रीलिंग
वि.=विश्लेषण
छ.ग.=छŸाीसगढ़ी
भो.पु.=भोजपुरी
संदर्भ-सूची
1ण् शर्मा, माधुरी एवं शालिनी शर्मा. मैं और मेरा व्याकरण. दिल्ली : सरस्वती हाऊस, 2011.
2ण् वर्मा, रामचंद्र. मानक हिंदी कोश. खंड तीसरा; 118.
3ण् रस्तोगी, आलोक कुमार. नव-आधुनिक हिन्दी व्याकरण तथा रचना. दिल्ली: विक्रम प्रकाशन, प्रथम संस्करण 1998; 99.
4ण् तरूण, हरिवंश. मानक हिंदी व्याकरण और रचना. नई दिल्ली: 1993; 152.
संदर्भ-ग्रंथ
5ण् कुमार, कांति. छŸाीसगढ़ी बोली, व्याकरण और कोष. दिल्ली-6 : राधा प्रकाशन; 1969.
6ण् गुरु, कामता प्रसाद. हिंदी व्याकरण. काशी: नागरी प्रचारिणी सभा. स. 2047.
7ण् चंद्राकर, चंद्रकुमार. मानक छŸाीसगढ़ी व्याकरण. रायपुर : शताक्षी प्रकाशन, प्रथम संस्करण.
8ण् दुबे, व्यास नारायण. छŸाीसगढ़ी जनभाषा.रायपुरः पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय.
9ण् तिवारी, उदयनारायण. भोजपुरी भाषा और साहित्य. पटना: बिहार राष्ट्रभाषा परिषद, तृतीय परिवर्द्धित संस्करण, 2011.
10ण् मिश्र, श्रीधर. भोजपुरी ध्वनियाँ: प्रकृति एवं स्वरूप. भाषा त्रैमासिक, दिसंबर 1969.
11ण् सिंह, चन्द्रमा. भोजपुरी साहित्य का समीक्षात्मक इतिहास. पटना: जानकी प्रकाशन, प्रथम संस्करण, 2004.
12ण् मिश्र, श्रीधर. लोक साहित्य, सांस्कृतिक अध्ययन. इलाहाबाद : हिन्दुस्तानी एकेडमी, प्रथम संस्करण, 1971.
13ण् सिंह, बैजनाथ. भोजपुरी लोक साहित्य सांस्कृतिक अध्ययन. इलाहाबाद: हिन्दुस्तानी
14ण् एकेडमी, प्रथम संस्करण, 1971.
15ण् वर्मा, नरेन्द्र देव. छŸाीसगढ़ी भाषा उद्विकास. 1979.
Received on 19.11.2018 Modified on 17.12.2018
Accepted on 28.01.2019 © A&V Publications All right reserved
Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 2019; 7(1):221-224.