श्रमजीवी महिलाएँ एवं पारिवारिक संगठन का एक समाजशास्त्रीय अध्ययन (गाजीपुर जिले के विशेष संदर्भ में)
वेद प्रकाश तिवारी
शोधार्थी (समाजशास्त्र), शास टी.आर.एस. महाविद्यालय, रीवा (म.प्र.)
श्रमजीवी महिला शब्द का प्रयोग प्रायः नौकरी करने वाली के संदर्भ में किया जाता है अर्थात् वे महिलाएॅ जो घरों के बाहर नियमित रूप से आर्थिक या व्यवसायिक गतिविधियों में व्यस्त रहती है काम (श्रम करने वाले स्वयं श्रम करना ही नही, वरन दूसरे व्यक्तियों से काम लेना तथा उनके कार्य की निगरानी करना एवं निर्देशन आदि देना भी सम्मिलित है। आज के भौतिकवादी परिवेश में हर महिला का श्रमजीवी होना एक अनिवार्यता बन गयी है। घर की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये पति और पत्नी दोनों का ही कार्य करना आवश्यक हो गया है जिससे पत्नी की परम्परागत प्रस्थिति एवं भूमिका में परिवर्तन आये हैं घर के बाहर काम करने के कारण पत्नी को घर और बहार दोनों ही क्षेत्रों की भूमिकाओं का निर्वहन करना पड़ता है। जिससे कभी-कभी ऐसी स्थिति भी आती है कि दोनों भूमिकाओं में तनाव उत्पन्न हो जाता है। इस प्रकार हम देखते है कि श्रम (पेशे) का परिवार के निर्माण पर परिवार की संरचना पर, परिवार की भूमिका पर और परिवार के विघटन पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। इसका कारण यह प्रतीत होता है कि जो महिलाओं में नौकरी करने की लहर आयी है उसका प्रभाव उसके सम्पूर्ण व्यक्तित्व पर तथा पारिवारिक संबंधों पर पड़ता है अब उसे एक तरह गृहणी, पत्नी, माॅ और दूसरी तरह जीविकोपार्जन दोनों की भूमिका निभानी पड़ती है। इस तरह दोहरी भूमिका को निभाने में उसकी शक्ति और समय खर्च दोनों होता है और इसका परिणाम यह होता है कि पारिवारिक संबंधों पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। गृह कार्य के लिये समय का अभाव होता है। एक ही समय में घर की व्यवस्था करना और नौकरी पर जाने की तैयारी करना आसानी से सम्भव नहीं है। महिलाएॅ अपने पति को स्वामी न मान कर एक मित्र की भाॅति मानने की भावना इन महिलाओं में परिलक्षित होती है। इस कारण श्रमजीवी महिलाओं के दाम्पत्य जीवन के साथ ही परिवारों में तनाव की स्थिति प्रारंभ हो जाती है। पति श्रेष्ठ है तथा पत्नी उसके आधीन है, यह भावना आ जाती है जिसने इस भावना के आगें अपने को सम्पूर्ण समर्पण कर दिया वह परिवार में सभायोजित हो जाती है। यदि पति-पत्नी को एक दूसरे को समझना सुखमय दाम्पत्य जीवन का रहस्य है। पति पत्नी में आपसी समझ बूझ के अभाव में व्यक्तिगत मान्यताओं को प्रथम स्थान देते हैं। अतः इससे एक दूसरे को सहयोग देने कीबात ही नही उठती है घर और बाहर भी जिम्मेदारियों को एक साथ ढ़ोना श्रमजीवी महिलाओं के लिये असम्भव है इस अवधि में वह पति से सहयोग की अपेक्षा रखती है यदि पति अपने पत्नी के अपेक्षा पर खुश उतरती है वो महिला अपने दोहरी जिम्मेदारियों को कुशलतापूर्वक निर्वहन कर सकती है। यदि पति अपनी पत्नी का सहयोग नहीं करता है तो परिवार में तनाव सुनिश्चित है।
श्रमजीवी महिला, पारिवारिक संबंध, सामाजिक आर्थिक पृष्ठभूमि, आत्मनिर्भरता।
प्रस्तावना
परम्परागत भारतीय समाज में महिलाओं के द्वारा घर की चार दीवारी से बाहर निकल कर कोई भी आर्थिक कार्य करना सामाजिक प्रतिष्ठा के विरूद्ध माना जाता था। वर्तमान में महिलाओं को आर्थिक रूप में आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। स्वतंत्रता एवं समानता के सांवैधानिक अधिकारों, बढ़ती हुई जनसंख्या, महिलाओं में बढ़ती जागरूकता एवं शिक्षा तथा सुविधाओं और विलासता के साधनों की माॅग ने महिलाओं की आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रेरित किया है। आज पे घर की चार दिवारों से बाहर निकलकर लगभग सभी क्षेत्रों में पुरूषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है। भारतीय समाज को विवाहित श्रमजीवी महिलाओं की दोहरी भूमिका होती है। एक ही साथ वे कार्यकर्ता के साथ-साथ गृहणी भी होती है। इन दोनों भूमिकाओं में संघर्ष की भूमिका बनी रहती है। यदि गृहणी की भूमिका वह बड़ी ही ईमानदारी से निभाये तो कार्योजन की भूमिका धूमिल पडे़गी (बोगल 1960) श्रमजीवी महिला (कामकाजी) शब्द का प्रयोग प्रायः नौकरी करने वाली महिला के संदर्भ में की जाती है। अर्थात् वे महिलाएॅ जो घरों के बाहर नियमित रूप से आर्थिक व व्यावसायिक गतिविधियों में व्यस्त रहती है। काम करने का तत्पर्य स्वयं कार्य करना ही नही बल्कि दूसरे व्यक्तियों से काम लेना तथा उनके कार्य की निगरानी करना एवं निर्देशन आदि देना भी सम्मिलित है।
यदि श्रमजीवी महिलाएॅ कार्योजन की भूमिका में अत्यधिक रूचि ले तो गृहणी की भूमिका की उपेक्षा होगी श्रमजीवी महिलाओं के जीवन में यह विरोधाभास की समस्या है यदि परिवार के सदस्य उसकी दोनों भूमिकाओं को समर्थन न प्रदान करें तो वह परिवार और कार्य से भलीभाॅति समायोजित नहीं कर सकती।
एक परम्परागत परिवार की सामाजिक संरचना में पति-पत्नि के आपसी संबंधों के विशिष्ट ढ़ाचे में यह स्वीकार किया गया है कि परिवार में पुरूष का प्रमुख होगा और नारी उसके अधीन होगी। परिवार चाहे संयुक्त हो या एकांकी पत्नी को मुख्यतः विभिन्न भूमिकाओं के अनुरूप अपनी अपेक्षाओं और दायित्वों के पूर्ति करनी होती है। व्यक्ति की मौलिक आवश्यकताओं की पूर्ति तथा जीवन में सुख, समृद्धि एवं विलासिता संबंधी भौतिक वस्तुओं की उपलब्धि और उपयोग उसकी आर्थिक स्थिति पर निर्भर करते हैं। इतना ही नही बल्कि व्यक्ति की सामाजिक प्रस्थिति के निर्धारण में भी उसकी स्थिति का महत्वपूर्ण योगदान होता है। व्यक्ति की आर्थिक स्थिति एक ओर जहाॅ उसके शारीरिक और बौद्धिक विकास को प्रभावित करती है। नहीं दूसरी ओर उसके जीवन शैली तथा व्यक्तित्व को भी निर्धारित करती है। भारतीय समाज में श्रमजीवी महिलाओं की संघर्षपूर्ण जीवन शैली का मूल्यांकन उनकी भूमिका दायित्वों में ही संभव है। परिवार में महिलाओं की भूमिका माॅ एवं पत्नी के रूप में महत्वपूर्ण होती है। परिवर्तनों के बावजूद महिलाओं को पारिवारिक भूमिकाओं का निर्वाह करते हुए परम्परागत लैंगिक असमानता का भी सामना करना पड़ता है। आज के भौतिकवादी परिवेश में महिलाओं का कामकाजी होना एक आवश्यकता सी बन गयी है। घर की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये पुरूषों और महिलाओं दोनों का ही कार्य करना आवश्यक हो गया है। जिससे महिलाओं की परम्परागत प्रस्थिति एवं भूमिका में परिवर्तन आये हैं। बाहर कार्य करने के कारण महिला को घर और बाहर दोनों ही क्षेत्रों की भूमिकाओं में कठिनाई उत्पन्न हो जाता है। ‘‘भूमिका एक समूह मंे एक विशिष्ट पद से संबंधित सामाजिक प्रत्याशाओं एवं व्यवहार प्रतिमानों का एक ऐसा योग है। जिससे कर्तव्यों एवं सुविधाओं दोनों का समावेश होता है। घर के बाहर जिन शर्तो और परिस्थितियों में पुरूष कार्य करते हैं। उन्हीं में महिलाएॅ भी कार्य करती है। फिर भी वे घर में कार्य करने की जिम्मेदारियों से मुक्त नहीं होती कार्य का दोहरा बोध उनसे शारीरिक मानसिक और भावनात्मक तनाव उत्पन्न करना है। परिवर्तन प्रकृति का नियम है जनसंख्या बढ़ने के साथ-साथ श्रम विभाजन का स्वरूप बदल रहा है और आधुनिक चुनौतीपूर्ण तथा भौतिकबादी युग में महिलाओं की रूचि पारिवारिक कार्यो के अतिरिक्त उन सभी कार्यो में भी होने लगी जिन पर कभी पुरूषों का अधिकार होता था। आज महिलाओं की सहभागिता तीव्र गति से बढ़ते हुए पुरूष के साथ कंधे से कंधे मिलाकर चल रही है। कार्य का शायद ही ऐसा कोई क्षेत्र हो जहाॅ महिलाओं ने अपनी उपस्थिति अंकित न कराई हो। आधुनिक युग में व्यक्ति के सामाजिक, सांस्कृतिक आर्थिक एवं राजनीतिक जीवन को गतिशील बनाने तथा उन्हें राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय विचारधाराओं से जोड़ने की सूचना एवं सम्प्रेषण साधनों का प्रकार्यात्मक महल है। ये साधन न केवल व्यक्ति को उसके अधिकारों के प्रति सचेष्ट कराते है बल्कि उसे नवीन तथ्यों, ज्ञान एवं प्रविधियों का बोध कराते हुए उसके वैचरिकी जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन का मार्ग भी प्रशस्त करते हैं। इतना ही नहीं संचार एवं सूचना स्रोंतों के नवीन साधना व्यक्ति की दूरदर्शिता, सामाजिक, राजनैतिक जीवन के प्रति जागरूकता तथा सहभागिता में की महत्वपूर्ण अदा करते हैं अतः प्रस्तुत अध्याय में यह पता लगाने का प्रयास किया है कि श्रमजीवी महिलाएॅ परिवार और कार्य के बीच किस प्रकार के समायोजित है। (पाण्डेय कान्ती 1975) परिवार का प्रभाव बच्चों पर बहुत अधिक पड़ता है। सामान्य तौर पर मान्यता यह रही है कि एकांकी परिवार की अपेक्षा संयुक्त परिवार में बच्चों का देख-रेख तथा पालन-पोषण अधिक अच्छी तरह हो जाता है। क्योंकि संयुक्त परिवार में बहुत से लोग होते हैं इस लिए बच्चों की देखभाल एवं पालन-पोषण अच्छी प्रकार से हो जाता है। दूसरी तरफ एकांकी परिवार में पति-पत्नी दोनों के नौकरी पर चले जाने से बच्चे अकेले रह जाते हैं। उनकी देखभाल नौकरों के सहारो होती रहती है जिससे की बच्चों का सर्वागीण विकास अच्छी तरह से नहीं हो पाता है। प्रायः समाज द्वारा यह तर्क दिया जाता है कि महिलाओं द्वारा नौकरी करने से उनके बच्चों का समुचित विकास नहीं हो पाता है। नाई और हांकमैन (1973) ने यूरोपीय माताओं के अध्ययन, श्रीवास्तव द्वारा किये गये अध्ययन (1972) में कुछ पत्रिकाओं द्वारा नौकरी करने वाली माताओं के सर्वेक्षण, ग्लासगों विश्वविद्यालय में किये गये स्कार्ट के अध्ययन (1965) में तथा भारत में किये गये प्रमिला कपूर के अध्ययन (1973), श्रीवास्तव द्वारा किये गये अध्ययन (1972) में कुछ पत्रिकाओं द्वारा नौकरी करने वाली माताओं के सर्वेक्षण (धर्मयुग: 1968) जिसमें यह पूछा गया है कि उनके विचार में उनकी नौकरी का उनके बच्चों पर क्या असर पड़ता है इन सभी अध्ययनों में से सही निष्कर्ष निकलता है कि माताओं द्वारा नौकरी करने का बच्चों के जीवन पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता है और न ही उनके व्यक्तित्व के विकास में बाधा पहुॅचती है और न ही उनके शारीरिक तथा मानसिक स्वास्थ्य पर कोई बुरा असर पड़ता है। अग्र वर्णित सारणी में हमने यही देखने का प्रयास किया है। कि परिवार के प्रकार का और साथ ही नौकरी का बच्चों के ऊपर कैसा प्रभाव पड़ता है।
मानव जिस समाज में रहता है। उससे संगठन और व्यवस्था का होना अत्यंत आवश्यक है पारिवारिक, सामाजिक व्यवस्था में व्यक्ति के निश्चित स्थान को उसकी प्रस्थिति या पद कहते हैं। इस स्थिति से संबंधित कुछ निश्चित क्रियाएॅ होती है पारिवारिक संगठन को बनाये रखने के लिये अथवा पारिवारिक संरचना को एक स्थिर रूप देने के लिये यह आवश्यक होता है। कि परिवार में प्रत्येक व्यक्ति का स्थान दूसरे सदस्यों के संघर्ष में निश्चित कर दिया जाये। यही स्थान परिवार में व्यक्ति की प्रस्थिति कहलाती है। एक समय में एक परिवार में एक ही व्यक्ति की अनेक स्थितियाॅ हो सकती है।
पुरूष प्रधान समाज में समायोजन के प्रति महिलाओं की चेतनात्मक अभिवृत्ति को समझना।
श्रम जीवी महिलाओं की सामाजिक आर्थिक पृष्ठभूमि का पूर्ण ज्ञान प्राप्त करना।
श्रमजीवी महिलाओं की शैक्षिक स्तर का पता चलेगा।
श्रमजीवी महिलाओं के कार्य की विभिन्न दशाओं की जानकारी प्राप्त करना।
श्रमजीवी महिलाओं के पतियों का सामाजिक आर्थिक स्तर की जानकारी प्राप्त करना।
श्रमजीवी महिलाओं का कार्योजन में आने के कारणों की जानकारी प्राप्त करना।
श्रमजीवी महिलाओं के पतियों का सामाजिक आर्थिक स्तर की जानकारी प्राप्त करना।
श्रमजीवी महिलाओं का कार्योजन में आने के कारणों की ज्ञानकारी प्राप्त करना।
श्रमजीवी महिलाओं का परिवार में भूमिका संघर्ष का सम्यक अनुशीलन।
श्रमजीवी महिलाओं के अपने कार्य/कार्यस्थल में भूमिका संघर्ष की जानकारी प्राप्त करना।
श्रम जीवी महिलाओं का घरेलू कार्यो को करने की अभिरूचि की जानकारी प्राप्त करना।
श्रम जीवी महिलाओं की दोहरी भूमिका के फलस्वरूप उत्पन्न समस्याओं का विश्लेषण करना फलस्वरूप उत्पन्न समस्याओं का विश्लेषण करना।
श्रम जीवी महिलाआं के विभिन्न परिस्थितियों की समस्याओं का विश्लेषण करना।
श्रमजीवी महिलाओं के कार्योजन स्थल पर अधिकारियों द्वारा कार्य सम्पादन के प्रति प्रतिक्रिया की जानकारी प्राप्त करना।
श्रमजीवी महिलाओं के रागात्मक जीवन पर कार्योजन के प्रभाव की जानकारी प्राप्त करना।
श्रीमती महिलाआंे का स्तर और पारिवारिक समायोजन की जानकारी प्राप्त करना।
अध्ययन का क्षेत्रः
जिला गाजीपुर वाराणासी मंड़ी के पूर्वी भाग में स्थित है। इस जनपद का उत्तरी आक्षांसीय विस्तार 25019‘ से 25054‘ तथा पूर्वी देशान्तरीय विस्तार 8304‘ से 83058‘ के मध्य है। जिले की पूर्व से पश्चिम की लंबाई लगभग 90 कि.मी. तथा उत्तर से दक्षिण की चैड़ाई लगभग 64 कि.मी. है। इसके एक तरफ गंगा नदी तथा दूसरी तरफ कर्मनाशा नदी बिहार प्रांत को अलग करती है। इसके पूरब में जिला बलिया तथा बिहार प्रांत का जिला बक्सर, पश्चिम में जिला जौनपुर, वाराणासी, आजमगढ़ तथा उत्तर मेें मऊ एवं बलिया तथा दक्षिण में चंदौली जिला स्थित है जिले की सतत् प्रवाहशील नदियाॅ गंगा, कर्मनाशा एवं गोमती है। गाजीपुर कुल जनसंख्या (जनगणना 2011 के अनुसार) 3620268 है, जिसमें पुरूषों की संख्या 1855075 एवं महिलाएँ 1765193 है। गाजीपुर में परिवारों की संख्या लगभग 546664 एवं आवासीय मकानों की संख्या 499162 है। गाजीपुर का क्षेत्रफल 3377.00 वर्गकिलोमीटर है।
पूर्व साहित्य के अध्ययन की समीक्षा:-
70 वर्षो में भारत में जो महिलाओं में सामाजिक परिवर्तन हुए है, उनसे यहाॅ की पूरी आबादी प्रभावित हुई है। शहरों में हरने वाले मध्यम वर्गीय शिक्षित लोगों को आर्थिक प्रभावित किया है। सरकार स्वतंत्रता के बाद की बढ़ती हुई सामाजिक आर्थिक परिस्थितियाॅ महिलाओं की शिक्षा और रोजगार के अवसरों में काफी वृद्धि हुई और इन नई हालातों के फलस्वरूप इनके लिये अपनी समानता की अभिव्यक्ति और उनकी प्रतिष्ठा के लिये रास्ते खुल गये हैं। इस बात की पूरी सम्भावन है कि उन्हें जो नई राजनीतिक कानूनी सुविधाएॅ दी गयी हैं। अधिकांश आर्थिक प्रजातियों में स्त्रियों से काम लिया जा रहा है बल्कि शायद उनसे काम लेन की जरूरत महसूस की जा रही है। और लगभग सभी प्रणालियों में वे अपना जीवन-यापन के लिये और मनुष्य के नाते संतोष के लिये काम करती रही है। कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था के विकास के साथ ही स्त्रियों की भूमिका ज्यादा वास्तविक और सुस्पष्ट हो गयी है। उनके काम का महत्वपूर्ण स्थान नहीं रखते हैं।
मूर्ति ने अपने अध्ययन में भारतीय श्रमजीवी महिलाओं की समस्याओं का विवेचन करते हुए लिखा है हमारी महिलाओं के वैतनिक और लाभ पूर्ण काम-धन्धों में बढ़ते प्रवेश से श्रम विभाजन की वह प्रचलित धारणा छिन्न-भिन्न हो गयी हे। जिसके अनुसार पुरूष खेत के लिये और महिलाएॅ घर के लिये मानी जाती थी। इतने पारिवारिक ढ़ाचे और कत्र्तव्यों में हलचल पैदा कर दी है। इसने महिलाओं से यह चाहा है कि वे ऐसा शारीरिक एवं मनोवैज्ञानिक सामंजस्य स्थापित करे जो शायद ही उनके सम्मान, व्यक्तिगत तथा नीति के अनुकूल है।
चन्द्रकला हाटे ने बहुत सारे अध्ययन श्रम जीवी महिलाओं पर किया है। इन्होंने अपने प्रथम अध्ययन में बम्बई से शिक्षित श्रमजीवी महिलाओं के सामाजिक आर्थिक अवस्था का अध्ययन है तथा दूसरा अध्ययन इन्होंने हिन्दु महिलाओं के कार्योजन में आने से व्यक्तित्व और आर्थिक स्तर पर परिवर्तन आया है तथा विभिन्न समस्याओं के प्रति भारतीय नारी के बदले तरीके को भी प्रभावित किया है। इन्होंने बताया है कि भारतीय महिला के स्वतंत्रता के बाद राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक अवस्था में परिवर्तन हुआ है। इन्होंने बाम्बे, पूना, नागपुर और सोलापुर में रहने वाली भारतीय महिला तथा उन्नति करती हुई देश की महिला भारतीय महिला तथा उन्नति करती हुई देश की महिला परिवार को सहारा देने के लिये कार्य करती है। महिलाओं की दो अवस्था घर और बाहर में काम की जो की भूमिका करती है। महिलाओं की दो अवस्था घर और बाहर में काम की जो कि भूमिका करती हे। महिलाओं की दो अवस्था घर और बाहर में काम की जो भूमिका हे। उसको वह पूरी तरह स्वीकार नहीं करती है। बहुत सी औरते दुविधा और द्वन्द में रहती है और एक अपराध में ग्रसित हो जाती है। भारतीय महिला इन उलझे हुए स्वरूप को एक निश्चित धारा देने के लिये बहुत से सुझाव दिये हैं।
पद्यमी सेन गुप्ता ने नये क्षेत्र के बार में जो मूल्यवान अध्ययन किया है इनका क्षेत्र बहुत बड़ा है, इन्होंने काम करती हुई महिलाएॅ फैक्टरी लदानों में खेतों में और अन्य क्षेत्रों में व्यवसाय एजेन्सी तथा बहुत सारे दूसरे संस्थाओं और गवर्नमेन्ट के सर्वे पर आधारित है। तथा इसकी और इन्होंने ऐतिहासिक अध्ययन में पाया है कि विभिन्न आधुनिक मान्यताओं की वजह से नवयुतियों का परम्परागत स्त्री क्षेत्र में बंधे रहना अब ठीक नहीं लगती है। वे अपने व्यक्तित्व विकास तथा आत्म संतुष्टि के लिये वह घर से बाहर निकलकर काम करना चाहती है। यह भी स्वीकार किया गया है। स्त्रियों के योगदान का उपयोग करने के लिये शहरों में उनके लिये नौकरियों की व्यवस्था की जानी चाहिये तथा उन्हें तकनीकी तथा अन्य व्यवसाओं की उच्च से उच्च शिक्षा मिलनी चाहिये।
सेना गुप्ता ने अपने अध्ययन के दौरान यह बताया है कि उच्च प्रशासकीय पदों पर वे केवल कुशल और निष्पक्ष ही प्रभावित हुई बल्कि उनकी ईमानदारी तथा चारित्रिक निष्ठा का भी लोहा माना गया है। इन्होंने यह भी बताया है कि विभिन्न संस्थाओं तथा औद्योेगिक प्रतिष्ठानों में कर्मिक कल्याण तथा जन सम्पर्क अधिकारियों के रूप में स्त्रियों बड़ी संख्या में प्रवेश कर रही है। वे उच्च पदों पर सफलतापूर्वक कम कर रही है। वे आगे बताती है कि हर्ष का विषय है कि जिन सेवाओं में अधिक से अधिक स्त्रियाॅ काम कर रही है। तथा डनहें अधिक वेतन मिलता है। दिल्ली बम्बई तथा मद्रास आदि महानगरों में महिला वकीलों की संख्या विशेष रूप से बदली जा रही है।
नस्ल उमा नन्दा ने अपने सर्वेक्षण से बताया है कि मध्यवर्गीय स्त्रियाॅ अपनी नौकरी के प्रति उभय भावी होती है। वह नौकरी इसलिये करना चाहती है कि इससे उन्हें आर्थिक तथा मनोवैज्ञानिक संतुष्टि मिलती है। तथा वह परिवार की आमदीन में अपनी योगदान कर पाती है। फिर भी नौकरी से संबंधित कठिनाईयों तथा पति एवं बच्चों की सुख-सुविधा को ध्यान होने से वह नौकरी करना पसन्द भी नहीं करती, क्योंकि इसके कारण उनको मानसिक संघर्ष से गुजरना पड़ता है। शिशुओं की देखभाल करने वाली कल्याण संस्थाओं के अभाव की वजह से भी स्त्रियाॅ अपने व्यवसायिक जीवन में प्रगति नहीं कर पाती तथा उन्हें प्रायः निराशा ही हाॅथ लगती है।
प्रमिला कपूर ने अपने अध्ययन में बताया है कि आर्थिक लाभ की ही वजह से स्त्रियाॅ नौकरी नहीं करती है बल्कि पीछे अन्य दूसरे सामाजिक और मनोवैज्ञानिक कारण भी है - जैसे अपनी प्रतिभा का सदुपयोग करना अपने लिये उच्च दर्जा प्राप्त करना, आर्थिक रूप से स्वावालम्बी होना। लोगों से मिलने-जुलने की स्वतंत्रता प्राप्त करना घर की चहार दिवारी से उबने वाली वातावरण से राहत, पाना समाज के लाभार्थ काम करना अपने विशेष व्यवसाय के प्रति मेाह अपना मन चाहा पेशा अरिब्तार करने की मन भावना की पूर्ति आदि इन शोध का कार्य उद्देश्य इस बात की जानकारी प्राप्त करना है। कि नौकरी की वजह से शिक्षित स्त्रियों के दैनिक में जो परिवर्तन हुए है। उसके बावजूद भी वे अपने वैवाहिक और पारिवारिक जीवन में किस हद तक सामजस्य और खुशहाली बनाये रखने में सफल रही है। दाम्पत्य जीवन के समांजस्य को प्रभावित करने वाले तथ्यों उनकी प्रसंगति तथा महत्व का पता लगाना तथा जिस तरह वे प्रभाव डालते है। उसका विश्लेष्ज्ञण करना शोध कार्य का दूसरा उद्देश्य था। इसलिये इन्होंने विभिन्न सामाजिक सांस्कृतिक दर्जे तथा आर्थिक स्तरों वाली और शिक्षण कार्य में कार्यालयों में तथा डाक्टरी पेशों में लगी तीन सौ शिक्षित स्त्रियों का गहन अध्ययन किया।
शोध प्रविधि:
शोध एक व्यवस्थित तथा सुनियोजित प्रक्रिया है, जिसके द्वारा मानवीय ज्ञान में वृद्धि की जाती है, और मानव जीवन को सुगम तथा भावी बनाया जाता है। प्रस्तावित शोध अध्ययन के व्यवस्थित पूर्ण करने हेतु समकालिक, मौलिक स्त्रोतो, स्थल सर्वेक्षणों और सहायक ग्रन्थों का सूक्ष्म अध्ययन करते हुए शोध को दोनों (प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष) ही पद्धतियों का सहयोग लिया जायेगा। इसके साथ ही व्यक्तिगत निरीक्षण प्रश्नावली साक्षात्कार एवं अनुसूचियों का भी प्रयोग किया जायेगा।
समंको का संकलन एवं प्रयुक्त विधियाँ
समंक किसी भी अध्ययन के निकाले गये निष्कर्षो के लिये आधार प्रदान करता है। समंको के मुख्यतः दो स्त्रोत है। पहला प्राथमिक स्त्रोत और दूसरा द्वितीयक स्त्रोत है। प्राथमिक स्त्रोत के अंतर्गत मुख्यतः निरीक्षण या अवलोकन, साक्षात्कार, अनुसूची व प्रश्नावली के माध्यम से सूचनाएॅ एकत्र की गयी है। अपने शोध प्रवंध में प्राथमिक एवं द्वितीयक तथ्य सामग्री का प्रयोग किया है, जो कि पत्र-पत्रिकाओं, वार्षिक प्रतिवेदन अखवारों, शेाध रिपोर्ट आदि से एकत्र किया जाएगा। तथ्य संकलन के लिए उद्देश्यपूर्ण निदर्शन पद्धति का चयन कर समस्त में से 100 उत्तरदातों/इकाइयों का चयन किया गया है। तथा उनसे प्राप्त उत्तरों को सांख्यिकी द्वारा विश्लेशण किया गया है। महिलाओं का राजनीति में प्रवेश के कारण कई क्षेत्र प्रभावित हुए है प्रभावित क्षेत्रों का विवरण निम्नानुसार है-
श्रमजीवी महिलाओं के कार्योजन से संबंध में पदोन्नति के लिए सेवा काल में प्राप्त सहयोगियों एवं उच्चधिकारियों की कार्य के प्रति सकारात्मक प्रक्रिया से संतुष्टि आदि ऐसे कारक जो श्रमजीवी महिलाओं के लिए पदोन्नति के अवसर प्रदान करते है। इन श्रमजीवी महिलाओं की कार्यस्थल पर प्रस्थिति के संदर्भ में इनसे प्रश्न पूछा गया। उन्होंने जो इस संदर्भ में उत्तर दिया वो निम्न तालिका के अनुसार प्रस्तुत है।
प्रस्तुत सारणी से ज्ञात होता है कि श्रमजीवी महिलाओं में सें 23 प्रतिशत श्रमजीवी महिलाओं ने अपनी प्रस्थिति को निम्न 50.00 प्रतिशत मध्यम प्रस्थिति तथा 27 प्रतिशत श्रमजीवी महिलाओं मेें अपनी प्रस्थिति को उच्च बताया है। इस विवेचना के आधार पर यह कहा जा सकता है कि बहुसंख्यक श्रमजीवी महिलाओं की कार्यस्थल पर प्रस्थिति मध्यम स्तर की है।
सहयोगियों का व्यवहार :-
श्रमजीवी महिलाओं के कार्योजन के संबंध में उनके सहयोगियों का व्यवहार सकारात्मक प्रक्रिया है।
प्रस्तुत सारणी के विश्लेषण से ज्ञात होता है कि 66 प्रतिशत श्रमजीवी महिलायें अपने सहयोगियों के व्यवहार को मित्रवत, 14 प्रतिशत श्रमजीवी महिलायें उपेक्षात्मक व्यवहार तथा 20.00 प्रतिशत श्रमजीवी महिलायें असहयोगात्मक व्यवहार बताती है इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि सहयोगियों का व्यवहार श्रमजीवी महिलाओं के प्रति मित्रवत है।
प्रस्तुत सारणी के अवलोकन से ज्ञात होता है कि कार्योजन स्थल पर अधिकारियों द्वारा कार्य संपादन के प्रति विचार संबंधी तथ्यों का विश्लेषण किया गया है और यह प्रदर्शित कार्य होता है। कि 70 प्रतिशत ने श्रमजीवी महिलाओं कि कार्य निष्पादन पर अधिकारी महिलाओं की प्रशंसा करते है। जब कि 5 प्रतिशत श्रमजीवी महिलाओं को कार्य करने से अधिकारी संतुष्ट नही है जिससे महिलाओं को अपमानित करते है तथा 25 प्रतिशत श्रमजीवी महिलायें इस संदर्भ में किसी प्रकार का उत्तर नहीं दिया। इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि बहुसंख्यक श्रमजीवी महिलाओं को उनके अधिकारी कार्य करने के बाद श्रमजीवी महिलाओं की प्रशंसा करते है। जिससे उनका आत्मविश्वास बढ़ता है। साथ ही साथ कार्य प्रतिबद्धता में वृद्धि होती है।
कार्यस्थल पर अधिक समय तक रूकना:-
श्रमजीव महिलाये जिस कार्यस्थल पर कार्य करती है तो कभी-कभी निर्धारित समय से अधिक समय तक कार्य करना पड़ता है इससे संबंधित कुछ श्रमजीवी महिलाओं से जानकारी प्राप्त की गयी जिसके विवरण निम्न है।
प्रस्तुत सारणी के अंर्तगत श्रमजीवी महिलाओं को देर तक रूकने संबंधी जानकारी का विश्लेषण किया गया है और यह प्राप्त हुआ कि संपूर्ण श्रमजीवी महिलाओं में 63 प्रतिशत महिलाओं ने इस बात की पुष्टि की है। 13 प्रतिशत श्रमजीवी महिलाओं ने ये कहा है कि उन्हें कार्य पूर्ण करने हेतु उनके अधिकारी समयावधि के बाद भी रोकते है तथा 24 प्रतिशत श्रमजीवी महिलायें तटस्थ रही जब कि उनके अधिकारी उन्हें कार्यस्थल पर अधिक देर तक नही रोंकते है और श्रमजीवी महिलाओं को कार्य की समयावधि पूरा होने पर उन्हें घर जाने की अनुमति मिलती है।
श्रमजीवी महिलाओं के पदोन्नति के अवसर:-
श्रमजीवी महिलायें जिस कार्योजन के क्षेत्र में कार्य करती है और इनके कार्य अच्छे, नियमित और समयावधि में पूर्ण होने से अधिकारी वर्ग प्रसन्न रहते है तो उनके पदोन्नति हेतु संतुष्टि प्रदान करते है। इस कार्य कुछ श्रमजीवी महिलाओं से जानकारी प्राप्त किया गया जिनका विवरण निम्न सारणी में प्रस्तुत है।
उपरोक्त आंकड़ों से स्पष्ट होता है कि 76 प्रतिशत श्रमजीवी महिलाओं के पदोन्नति के अवसर है तथा 24 प्रतिशत श्रमजीवी महिलाओं के पदोन्नति के अवसर नही है। इस प्रकार उपर्युक्त तथ्यों के अवलोकन से स्पष्ट हो जाता है कि अधिकांश प्रतिशत श्रमजीवी महिलाओं को पदोन्नति का अवसर प्राप्त है और भविष्य में उन्हें कार्यरत पदों से उच्च पदों पर स्थान प्राप्त हो सकता है।
श्रमजीवी महिलाओं के वेतन क्रम के संदर्भ में:-
श्रमजीवी महिलायें जिस पद पर कार्य कर रही है। उस कार्य पद के वेतन क्रम से संतुष्ट है कि नहीं इसी की पुष्टि हेतु कुछ श्रमजीवी महिलाओं के विवरण प्राप्त किया गया है जो एक सारणी के माध्यम से प्रस्तुत किया जा रहा है -
सारणी के अवलोकन से ज्ञात होता है कि 70 प्रतिशत श्रमजीवी महिलाये अपने कार्योजन के प्राप्त वेतन से संतुष्ट है तथा 30 प्रतिशत श्रमजीवी महिलाओं का यह कहना है कि जिस कार्योजन में है वे कठिन परिश्रम करती है। उसके सापेक्ष वेतन इतना नहीं प्राप्त होता है कि वे अपनी आवश्यकताओ की पूर्ति कर सके।
उपर्युक्त तथ्यों से स्पष्ट हो जाता है कि अधिकतम प्रतिशत उन श्रमजीवी महिलाओं का है जो कि अपने वेतन से संतुष्ट है उनका कहना है कि जितना वेतन प्राप्त होता है उतने से ही अपने आवश्यकताओं की पूर्ति कर लेती है।
सुझाव:-
भारत के संदर्भ में यदि देखें तो महिलाओं की स्थिति अत्यन्त सोचनीय है उनकी स्थिति को बेहतर बनाने के लिए निम्न सुझाव दिये जा सकते हैं:-
सर्वप्रथम महिलाओं के राजनीतिक स्थिति में सुधार के लिए प्रयास करने होगे। महिला संगठनों, स्वयं सेवी संस्थाओं को इस दिशा में प्रयास करने होगे।
महिलाओं को इनके कानूनी अधिकारी की जानकारी, महिलाओं का यौन उत्पीड़न रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिये गये निर्देशों का सख्ती से पालन, शोषण, उत्पीड़न सम्बन्धी मामलों का जल्दी निराकरण, महिला मामलों में पुलिस की पूरी सजगता एवं सक्रियता महिलाओं के लिए पृथक महिला थानों की स्थापना आदि महिलाओं का शोषण रोकने के लिए आवश्यक है।
वर्तमान समय में लागू महिला सम्बन्धी कानूनों में व्याप्त विसंगतियों को दूर करना जिससे महिलाओं को राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक सांस्कृतिक आदि सभी क्षेत्रों में पुरूषों के समान कानूनी और व्यावहारिक रूप मंे सभी मानवाधिकार हासिल हों।
महिलाओं को अपनी मानसिक प्रवृत्ति में परिवर्तन लाना होगा जिससे उनमें आत्म विश्वास में वृद्धि होगी।
उपसंहार:
महिला समाज की धुरी है अगर धुरी टूट गई तो समाज भी टूट जायेगा। इतिहास गवाह है कि जिन समाजों ने महिलाओ को गुलाम बनाया वे खुद गुलाम बन गये, जिन समाजों ने महिलाओं को प्रगति का मौका दिया उन्हें सभ्यता के शिखर पर पहुंचने से कोई नही रोक सका। यद्यपि महिलाएँ तेजी से राजनीति के क्षेत्र में आ रही है, तथापि उन्हें राजनीति में बहुत सी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। अशिक्षा, भ्रष्टाचार, शोषण, आर्थिकपराधीनता, राजनीतिक सोच का आभाव आदि ऐसी प्रमुख बाधाएं है जो राजनीतिक क्षेत्र में आगे बढ़ने में रूकावट लाती है। महिलाओं को समाज एवं राजनीति में आगे लाने के लिये उन्हें आर्थिक दृष्टि से स्वावलम्बी बनाना होगा। अध्ययन क्षेत्र की महिलाओं में व्याप्त अशिक्षा और अंधविश्वास को दूर कर उनके आत्मविश्वास को बढ़ाने का दायित्व है। भ्रष्टाचार और शोषण से महिलाओं को मुक्त करके उन्हें राजनीति के क्षेत्र में आगे बढ़ाया जा सकता है। महिलाओं का शिक्षित और संस्कारित होना आवश्यक है अतः भारतीय परिवार में नारी का सर्वप्रथम दायित्व पत्नीत्व और मातृत्व के साथ राजनैतिक कार्यकलाप का समन्वय होना अतिआवश्यक है। एक सफल माँ और पत्नी की समाज और देश को सफल नेतृत्व दे सकती है।
21वीं शताब्दी की महिलाओं में आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक तथा व्यावसायिक आकांक्षा बहुत प्रबल हो गयी है वह आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होना चाहती है। इससे उसमें आत्मविश्वास बढ़ेगा और वह प्रगति की सीढ़ी पर चढ़ती जायेगी एवं समाज में फली बुराई रूपी अन्धकार को दूर कर सकेगी। नारियों के लिये आत्म अभिव्यक्ति और आत्म सन्तुष्ट के अवसर अनुचित रूप से सीमित रखे गये हैं। मशीनीयुग ने घर से बाहर ही वस्तु उत्पादन इतना अधिक बढ़ा दिया है। कि अंशतः आर्थिक आवश्यकता के चलते महिलायें अब घर से बाहर काम अपनाने लगी हैं।
निष्कर्षतः महिलाएं समाज का अनिवार्य अंग है। सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक क्षेत्र के साथ-साथ राजनीति के क्षेत्र में उनकी अहम भूमिका है। जैसे-जैसे शहरों के साथ ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं में राजनीति जागरूकता आ रही है। शिक्षा के प्रचार-प्रसार और बदलते सामाजिक परिवेश में राजनीति में महिलाएँ आगे आ रही है और केन्द्रीय, प्रान्तीय, स्थानीय शासन में अपनी भागीदारी निभा रही है। इसलिये महिलाअंो को सशक्त और सुदृढ़ बनाने पर ही समाज सुदृढ़ होगा। महिलाओं को सुदृढ़ करने के लिये उनका शिक्षित होना आवश्यक है ताकि अपने अधिकारों को समझ कर समाज एवं राष्ट्र का विकास कर सके।
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Received on 10.06.2019 Modified on 18.06.2019
Accepted on 25.06.2019 © A&V Publications All right reserved
Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 2019; 7(2):579-586.