छत्तीसगढ़ का प्रयाग राजिम कुम्भ
डॉण् अंशु गौड़
गेस्ट लेक्चररए ऑल्टियस इंस्टिट्यूट ऑफ़ यूनिवर्सल स्टडीज इंदौर(म‐प्र.)
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भारतीय संस्कृति स्वयं में असीम आकृतियाँ समेटे हुए हे । भारतीय संस्कृति का गौरव प्रतिक भी हमें भारत ही नहीं अपितु संपूर्ण विश्व में देखने को मिलता हे। जैसा की कहा जाता हे जल ही जीवन हे उसी तरह इस शाश्वत संस्कृति का उद्गम भी नदी तटो पर ही हुआ हे।
राजिम कुम्भ , प्रयाग , छत्तीसगढ़ ।
राजिम कुम्भ
नदी तट पर जो मंदिर बसे हे वह हमारी संस्कृति का गान करते हे वहाँ समय. समय पर मेंले लगते है पर्वो को धूमधाम से मनाया जाता है इनके करण जन समुदाय का आपस में संपर्क बना रहता है तथा सामूहिक रूप से उत्सव की परंपरा को बढ़ावा मिलता है इस तरह मनुष्य को एक सामाजिक प्राणी बनाए रखने में इन मंदिरो मेंलो व नदियों की महत्वपूर्ण भूमिका है।
राजिम कुम्भ हमारी आस्था एवं विश्वास है, जिस देव भूमि में त्रिवेणी का संगम है, जहॉ देवो के देव महादेव विराजमान है, जहॉ भगवान राजीव लोचन और पंचकोशी का पवित्र संयोग है , वहा हर वर्ष कुम्भ का आयोजन होना छत्तीसगढ़ के पौराणिक इतिहास को वर्त्तमान सन्दर्भ में जोड़ना है ।
लोकमानयता में मृतक कर्म से सम्बन्ध शास्त्र अनुमोदित समस्त क्रिया . कर्म के संपादन हेतु राजिम संगम क्षेत्र को गया, कशी , प्रयाग राज , हरिद्वार के ही सामान मुक्ति दाता तीर्थ क्षेत्र स्वीकार किया गया है ।1
राजिम को इलाहाबाद जैसा एक संगम स्थल माना गया है। यहाँ पर 8 वी और 9 वी शताब्दी के प्राचीन मंदिरो से लेकर वर्तमान में कई जातियों एवं सम्प्रदायों के देवालय निर्मित हो गए। लोग राजिम को छत्तीसगढ़ का प्रयाग मानते है , यहाँ पैरी नदी , सोढूर नदी और महानदी का संगम है, इसलिए इस संगम में अस्थि विसर्जन तथा संगम किनारे पिंडदान, श्राद्ध एवं तर्पण किया जाता है।
पिंडदान के पश्चात राजीव लोचन के दर्शन करने के बाद ही लोग वापस लौटते है। राजीव लोचन का प्रसाद चावल से बनी पीडियाँ सभी जाती सम्प्रदाय के लोग साथ ले जाते है । खास कर अस्थि विसर्जन व पिंडदान के बाद तो ले ही जाते हैं। कई गावो में इसे पीडियो के लिए सुरक्षित रख दिया जाता है , क्योकि वे मानते है की किसी को मृत्यु के कुछ घंटो पहले यदि यह प्रसाद खिलाया जाए तो उसे स्वर्ग की प्राप्ति होती है। पीडिया बहुत साल तक रख सकती है। राजीव लोचन का प्रसाद पीडियों का महत्व इस प्रकार बहुत ज्यादा है।2
रायपुर से दक्षिण . पूर्व में करीब ४५ किण्मीण् पर राजिम के त्रिवेणी संगम पर हर साल माघ पूर्णिमा से महाशिवरात्रि तक लाखो श्रद्धा के तार एक साथ बजते है, तब राजीव लोचन की उपस्थिति और ऋषि परम्परा से सारा जगत अर्थवान हो जाता है। अनादिकाल से चल रहे चेतना के स्फुरण को , परंपरा और आस्था के इस पर्वो को राजिम कुम्भ कहा जाता है । विशेष बात यह है की इस त्रिवेणी संगम में तीनो नदिया साक्षात् प्रगट है जबकि इलाहाबाद के त्रिवेणी संगम में सरस्वती लुप्तावस्था में है ।
राजिम मेले की गिनती राज्य के विशालतम मेलो में है । राज्य बनने के बाद इस के स्वरुप और आकार में बढ़ोतरी हुई है । माघ पूर्णिमा पर भरने वाले इस मेले का केंद्र राजिम होता है , किन्तु विस्तार पंचकोशी, क्षेत्र पटेशवर , कोपेशवर , फिंगेशवर के करण मेले का माहौल शिवरात्रि तक बना रहता है ।विगत वर्षो में मेले का रूप लघु कुम्भ जैसा हो गया है , और अब श्री राजीव लोचन कुम्भ के नाम से आयोजित हो रहा है । इसके दौरान कल्पवास और संत समागम से यहाँ प्रतिवर्ष आगंतुकों की संख्या में वृद्धि हो रही है ।3
कमल फूल के पराग पर विष्णु भगवान का मंदिर है और पंखुड़ियों पर पंचकोसी धाम बसा हुआ हैं राजिम में पंचकोसी की यात्रा हर साल कार्तिक अगहन से पौष माह तक चलती हैं, यह पंचकोसी यात्रा कुलेशवरनाथ मंदिर से शुरू होती है और वही समापन की जाती हैं। यह कमल दल से ढका भू .भाग बाद में पद्म क्षेत्र के नाम से प्रसिद्ध हुआ । छत्तीशगढ़ अंचल में इस पद्म क्षेत्र की प्रदक्षिणा का विशेष धार्मिक महत्व है । इस अंचल के सभी क्षेत्रों से लोग राजिम की पंचकोसी यात्रा में भाग लेने के लिए आते हैं।
राजिम कुम्भ का नामकरण
राजिम इलाहाबाद के बाद दूसरा प्रयाग हैं। जहाँ चित्रोत्पला गंगा, पैरी और सोढूर नदी का संगम हैं। संगम पर ही कुलेशवर महादेव का मंदिर हैं जहाँ शिव लिंग की स्थापना राम के वनवास काल में माता सीता ने की थी ।4
राम और शिव एक दूसरे के उपासक है , राजिम में कुलेश्वर महादेव के मंदिर के ठीक सामने राजीव लोचन भगवन राम मंदिर है । हरी और हर एक दूसरे को दिन रात देखते और भजते है इसलिए राजिम को हरीहर क्षेत्र भी कहा जाता है। त्रिवेणी संगम तथा हरी हर और कमल क्षेत्र होने के कारण विद्वानों के अनुसार कुम्भ स्नान के लिए राजीव पांचवा महत्वपूर्ण तीर्थ है । कुम्भ या कलश में सभी देवताओ का निवास माना जाता है तथा इसके पूर्व में ऋग्वेद , दक्षिण में यजुर्वेद , पश्चिम में सामवेद तथा उत्तर में अथर्ववेद की उपस्तिथि रहती है । त्रिवेणी संगम तथा हरी हर और कमल क्षेत्र होने के कारण कुछ विद्वानों का मत है की कुम्भ स्नान के लिए राजीव पांचवा महत्वपूर्ण तीर्थ है । कुम्भ कलश की प्राथना में शिव, विष्णु , ब्रह्मा, सूर्य , वसु , रूद्र , विश्वदेव आदि का जागृत स्वरुप मानकर कहा जाता है ।
शिवः स्वयं खमेवासी , विष्णुस्त्वं च प्रजापतिः ।
आदित्याः वसवो , रुद्रा विश्वदेवो सैपितृकाः ।5
यात्रा के दिन पहले राजीव लोचन के मंदिर में जाकर देव विग्रह की पूजा अर्चना करते है इसके बाद पंचकोसी यात्रा करने के बाद फिर राजीव लोचन के मंदिर में जाते है । पूजा करने के बाद ष्आटे का ष् प्रसाद और चावल कपडे एवं पैसे अर्पित करते है चावल के आटे का प्रसाद जिसका पीडिया नाम है । यह छत्तीसगढ़ की मुख्य ऊपज धान का प्रतीक स्वरुप नैवेद्य है । यात्रा काल के हर शिव नगरी में यात्री विश्राम करते है। रात के वक्त भजन, कीर्तन और जप करते है ।
राजीव लोचन के मंदिर में पूजा करने के बाद यात्री जाते है संगम पर उत्पले वर शिव मंदिर में जाते है । वहाँ दर्शन पूजा करके पटेश्वर महादेव के दर्शन करने पटेवा गावँ जाते है । यात्रा का यह पहला पड़ाव है । पटेवा राजिम से 6 किण् मीण् दूर है ।6
पटेश्वर महादेव ‘सद्योजात‘ नाम वाली भगवन शम्भू की मूर्ति कहे जाते है । इनकी अर्धांगनी है, भगवती अन्नपूर्णा वहाँ पूजा करते समय मंत्र उच्चारण करते है, उसमे अन्न की महिमा का वर्णन किया जाता है । उस मंत्र में यह कहते है की अन्न ही ब्रह्म है और इस प्रकार अन्न के रूप में ब्रह्म की उपासना करते है यात्री यहाँ पहुँचकर रात में विश्राम करते है और सुबह शिवजी के तालाब में नहाकर पूजा करके चल पड़ते है । अगले पड़ाव की ओर ।7
अगला पड़ाव है , चम्पारण ग्राम में चम्पकेश्वर महादेव चम्पारण पहले चम्पारण्य के नाम से जाना जाता था, जिसका अर्थ चम्पक ;चम्पा फूल द्ध का अरण्य ;जंगलद्ध यह चम्पक का आरयण्य १८ एकड़ में फैला हुआ है । चम्पकेश्वर महादेव को तत्पुरुष महादेव भी कहा जाता है । यहाँ उनकी अर्धांगिनी है कलिका पार्वती । चम्पकेश्वर महादेव का स्वयं . भू लिंग यहाँ जब प्रतिष्ठित हुआ तब शिव भगवन को ही पूजते थे यहाँ , बाद में वल्लभाचार्य के कारण यह एक वैष्णव पीठ के रूप में प्रतिष्ठित हुआ शैव एवं वैष्णव सम्प्रदायों के संगम स्थल के रूप में एकता का प्रतिक बन गया ।
इसके बाद यात्री जाते है ब्रह्मनी गांव ब्रह्मकेश्वर महादेव की पूजा होती है। चम्पारण से ९ किण्मी दूर ब्रह्मनी या बधनई नदी के किनारे अवस्थित है । यहाँ शंभू की अघोर वाली मूर्ति है उमा देवी इनकी भक्ति है । अघोर महादेव या ब्रह्मके वर महादेव ब्रह्म के आनंदमय रूप में पूज जाते है ऐसा विश्वास करते , इस अभिनन्दन स्वरुप को जो एक बार देख लेते है , वे कभी भी भयभीत नहीं होते । बधनई नदी के किनारे एक कुंड है जिसमे उत्तरी छोर पर ब्रह्मकेशवरी महादेव का मंदिर है । इस कुंड में जल का स्तोत्र है जिसे भवेत् या सेत गंगा के नाम से जानते है ।9
इसके बाद यात्री फणीकेश्वर जाते है । जो राजिम से १६ किण्मी दूर है । यहाँ शम्भू की ईशान नाम वाली मूर्ति है ।इनकी अर्धागनी है अम्बिका ऐसा कहते है की फणिकेश्वर महादेव प्रतिक है ष् विज्ञानमय कोष ष् के और भक्तो को शुभगति देते है ।10
यहाँ के यात्री कोपरा गांव जाते है जो राजिम से 16 किण्मीण् दूर है जहाँ कर्पूरेशवर महादेव का मंदिर है। कुछ लोग उन्हें कोपेश्वर नाथ के नाम से जानते है । ये जगह है पंचकोसी यात्रा का आखरी पड़ाव। कोपरा गांव के पश्चिम में दलदली तालाब क हे, उसी तालाब के भीतर गहरे पानी में यह मंदिर है इस तालाब को भाक सरोवर भी कहा जाता है ।11
कपूरेश्वर महादेव में शम्भू की ष्वामदेवष् नाम की मूर्ति है । जिनकी पत्नी भवानी है । कपूरेश्वर महादेव आनंदमय कोष के प्रतिक । ऐसा कहा जाता है की सभी आनंद को चाहते है पर जानकारी न होने के कारण आनंद पा नहीं सकते ।12
इस प्रकार यात्रा पूर्ण होती है । और यात्री छत्तीसगढ़ के राजिम कुम्भ में डुबकी मारकर यात्रा पूरी करते हुए आनंदित होता है । उसे यह भी भान होता है की राजिम कुम्भ का माहात्म्य क्या है ।
सन्दर्भ
1. राजिम कुम्भ
2. अवलोकन पर आधारित
3. अवलोकन पर आधारित
4. हरिभूमि , अंक .21फरवरी 2008
5. उपरोक्त
6. अवलोकन पर आधारित
7. उपरोक्त
8. उपरोक्त
9. उपरोक्त
10. उपरोक्त
11. उपरोक्त
12. उपरोक्त
Received on 23.01.2019 Modified on 21.02.2019
Accepted on 10.03.2019 © A&V Publications All right reserved
Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 2019; 7(2):606-609.