नक्सली क्षेत्र के माध्यमिक विद्यालयों में अध्ययनरत छात्रों और छात्राओं के समायोजन एवं चिंता स्तर का अध्ययन

 

डाॅ.(श्रीमती) एविस चिन्तामनी1, अंजू श्रीवास्तव2

1प्राध्यापक (शिक्षाशास्त्र) सैम हिंगिन बाॅटम यूनिवर्सिटी आॅफ एग्रीकल्चर टेक्नोलाॅजी एण्ड साइंससेज इलाहाबाद

2शोधार्थी (शिक्षाशास्त्र) सैम हिंगिन बाॅटम यूनिवर्सिटी आॅफ एग्रीकल्चर टेक्नोलाॅजी एण्ड साइंससेज इलाहाबाद

*Corresponding Author E-mail:

 

ABSTRACT:

वर्तमान समय में नक्सलवाद की समस्या, भारत में शिक्षा की गिरता हुआ गुणवत्ता स्तर और विद्यार्थियों की विविध उपलब्धि में पतन तथा नकारात्मक मनावैज्ञानिक तत्वों में तेजी से विकास को लेकर गहन रूप से चिंता व्याप्त है। शिक्षा प्रणाली एवं उसके सहींे क्रियान्वयन ही राष्ट्र एवं शिक्षा के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती कै रूप में उभर रहा है। बालाघाट .प्र. राज्य का ऐसा ही आदिवासी बहुल इलाका है, शिक्षा एवं अन्य क्षेत्र में काफी पिछड़ा है। चूंकि शिक्षा के अभाव में वे अभी तक प्रगति से कोसों दूर है। अतः इस क्षेत्र के विद्यार्थियों की व्यक्तिगत विकास संबंधी समस्याओं, वातावरण के कारण उत्पन्न समस्याएं जो उनकी उपलब्धि, व्यवहार एवं व्यक्तित्व को प्रभावित करती है। उनकी शैक्षिक उपलब्धि एवं अन्य चरों जैसे संवेगात्मक बुद्धि एवं सुरक्षा की भावना के स्तरों का पता लगा कर उनके स्तर को वृद्धि की ओर पहंुचाने का प्रयास किया जा सकता है। तथा शैक्षिक उपलब्धि में बाधक चरों जैसे सामान्य दुश्चिंता एवं असुरक्षा की भावना कैसे नियंत्रण करना है या उनको कम करने के उपाय के संबंध में यह अध्ययन महत्वपूर्ण हो सकता है। चूंकि यह क्षेत्र वैसे भी विभिन्न हिंसात्मक, दहशतजद स्थितियों का लगातार लंबे समय से सामना कर रही है अतः इनका उनके स्वास्थ्य, व्यवहार, व्यक्तित्व में निश्चित ही प्रभाव दिखाई देना स्वाभाविक हो जाता है। ऐसे में नक्सलवाद समाप्त करने की दशा में राज्य का सर्वोच्च प्रयास होना चाहिए। इस क्षेत्र के विद्यालय में मानव संसाधनों जैसे योग्य, अनुभवी एवं विषय विशेषज्ञ शिक्षकौं का अभाव भी शिक्षा के विकास की राह में बहुत बड़ा बाधा के रूप में उभर कर सामने आया है। जिसके कारण इस क्षेत्र के विद्यार्थियों की शैक्षिक उपलब्धि एवं संवेगात्मक बुद्धि के स्तरांे मैं अंतर आया है। विद्यालय एवं विद्यार्थी दोनों ही इनके कारण असुरक्षा दबाव एवं दुश्चिंता का सामना कर रहैं हैं। क्षेत्र के सांस्कृतिक स्थिति का सहीं अध्ययन कर उसके अनुकूल प्राथमिक स्तर से शिक्षा के ढ़ांचे में आमूलचूल परिवर्तन के लिए नयी योजनाओं का निर्माण एवं उसका सहीं क्रियान्वयन की मांग इस क्षेत्र की आवश्यकता है। ऐसे ही अनेक कारकों के कारण यह अध्ययन अपने आप में विशेष महत्व रखता है।

 

KEYWORDS: नक्सलवाद, माध्यमिक विद्यालयीन शिक्षा, मानवीय संसाधन

 

 


INTRODUCTION:

आज हमें इस सत्य को स्वीकार करना ही होगा कि नक्सलवाद अपने मूल मे कानून और व्यवस्था की समायस्या नहीं बल्कि राजनैतिक और अर्थिक समस्या के साथ-साथ शैक्षिक, सामाजिक और सांस्कृतिक समस्या भी है। एक अनुमान के अनुसार देश के 20 राज्यों के लगभग 170 जिलों में नक्सली अपने संगठनों का विस्तार कर चुके है। ये राज्य मुख्य रूप से है बिहार, मध्यप्रदेष, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, झारखंड, पष्चिम बंगाल, उड़ीसा, तेलंगाना एवम् आंध्रप्रदेष। आज कल नक्सली अपने प्रभाव वाले क्षेत्रों में शासकीय संस्थानों को भी चुनौती देने लगे है। जिससे राष्ट्र को भारी क्षति हो रही है।

 

किसी भी राष्ट्र के लिए उसके भौतिक एवं मानवीय संसाधन ही किसी राष्ट्र को अग्रणी राष्ट्रांे की श्रेणी में खड़ा करने में सक्षम होते हैं। भौतिक संसाधनों की उपलब्धता सीमित एवं प्रकृति जन्य होने के कारण आज के युग में मानव संसाधनों के विकास पर अधिक जोर दिया जाने लगा है। निः संदेह किसी भी राष्ट्र अथवा समाज का महत्वपूर्ण साधन मानव है। कोई भी राष्ट्र तथा उन्नति करता है जब उस राष्ट्र के सभी नागरिकों को विकास के सर्वाेत्तम अवसर प्राप्त होते है। तथा वे उनका लाभ उठाने में समर्थ हो। माघ्यमिक षिक्षा राष्ट्र निर्माण की रीढ़ की हड्डी है।

 

माध्यमिक षिक्षा दो प्रकार के माध्यमिक विद्यालयों द्वारा दी जाती है। एक वित्तपोषित/स्वयं वित्तपोषित माध्यमिक विद्यालय और दूसरा राजकीय या शासकीय माध्यमिक विद्यालय। जहाँ शिक्षा प्राप्त कर छात्र अपने भविष्य की चुनौती के लिए तैयार होते है। लेकिन जिन क्षेत्रों में नक्सली समस्या अधिक होती है उन क्षेत्रों के माध्यमिक स्तर के छात्र अपने आपको असुरक्षित महसूस करने लगते है।

 

नक्सली क्षेत्र के माध्यमिक स्तर के छात्रों का जीवन दर्षन ही बदल गया है। इस क्षेत्र के छात्रों एवं छात्राओं के आत्मविश्वास में कमी जाती है तथा उनको अच्छे अंक प्राप्त करने के लिए चिंता उत्पन्न हो जाती है।  इस स्तर पर छात्र एवं छात्रा अपने भविष्य को असुरक्षित महसूस करने लगते है। वह अपने षिक्षण कार्य में 10 2 के बाद भविष्य के बारे में विचार करने लगते है कि वह अपने भविष्य के आने वाले समय की तरफ ध्यान देने लगते है। ताकि कैसे सफलता प्राप्त करें यह चिंतन उसके दिमाग में अनावरत चलता रहता है। जिससे उसके अन्दर असुरक्षा और चिंता को जन्म देता है। वह छात्र एवं छात्रा जो चिंता से ग्रसित है उन्हें कई प्रकार की मानसिक बीमारी जैसे-अवसाद, बैचेनी, नींद ना आना, चिड़चिड़ापन, हिंसक हो जाना आदि हो जाती है, जिसके कारण वे सामान्य से कार्य करने में भी परेशान हो जाता है। ऐसे छात्र एवं छात्रा किसी भी परिस्थिति काल में लोगों और समाज से समायोजन स्थापित नहीं कर पाते है।

 

शोध क्षेत्र:-

बालाघाट वैनगंगा नदी की गोद में दक्षिणदृपूर्वी मध्यप्रदेश का एक शान्त, सुन्दर शहर। बालाघाट शहर सतपुड़ा पर्वतमाला के छोर पर मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ की त्रिकोणीय सीमा पर बसा है। वैसे तो यह शहर शुद्ध हिन्दी भाषी है, पर यहां कुछ बोलियां भी प्रचलित है। इसके 50 भाग में जंगल है। यह एक नगरपालिका बालाघाट जिले का प्रशासकीय मुख्यालय है। बालाघाट 21.8° 80.18° म्ख्1, अक्षान्श पर स्थित है। इसकी समुद्र तल से औसत ऊचाई 288 मी (944 फीट) है। वर्ष 2001 की जणगणना के अनुसार इस शहर की जनसन्ख्या 75061 है जिसमे 51 पुरुष और 49 महिलाये है। जिले का साक्षरता प्रातिशत 79 है। वर्ष 2011 कि जनगणना के अनुसार जिले कि जनसंख्या 1701156 है। पुरुषो की साक्षरता 87.13 महिला 69.87 है मध्य प्रदेष के बालाघाट जिले के नक्सल प्रभावित शासकीय एवम् वित्तपोषित/स्वयं वित्तपोषित माध्यमिक विद्यालयों के छात्रों एवं छात्राओं  को शोध की जनसंख्या के रूप में लिया गया।

 

उद्देश्य:-

     वित्तपोषित/स्वयं वित्तपोषित एवं शासकीय माध्यमिक विद्यालयांे मंे छात्रों एवं छात्राओं  के चिन्ता स्तर का अध्ययन करना।

     वित्तपोषित/स्वयं वित्तपोषित एवं शासकीय माध्यमिक विद्यालयांे मंे छात्रों एवं छात्राआंे के समायोजन स्तर का अध्ययन करना।

     वित्तपोषित/स्वयं वित्तपोषित एवं शासकीय माध्यमिक विद्यालिय मंे छात्रांे एवं छात्राआंे का चिन्ता स्तर एवं समायोजन स्तर का तुलनात्मक अध्ययन करना।

 

पूर्व शोध की समीक्षा

शर्मा (2008) ने किशोरों में संवेगात्मक बुद्धि का उनके समायोजन एवं रक्षात्मक युक्तियों में  संबंध में अध्ययन के लिए न्यादर्श के रूप में दंकौर एवं बिलासपुर जिला गातैम बुद्ध नगर के सेकंडरी एवं हायर सेकंडरी स्कूलों में अध्ययनरत् 120 किशोर विद्यार्थियों को यादृच्छिक न्यादर्श प्रविधि से लिया आरै उपकरण के रूप में उन्होनंे डांॅ एस0के0 मंगल एवं डांॅ शुभ्रामंगल निर्मित मंगल का संवेगात्मक मापनी  डांॅ व्ही.के. मित्तल का समायोजन मापनी (.डी.) तथा डांॅ  एन0आर0 मृणाल एवं डांॅ उमा मृणाल निर्मित रक्षात्मक युक्तियां मापनी (क्डप्) का प्रयोग किया। तथा निष्कर्ष दिया कि संवेगात्मक बुद्धि एवं समायोजन के मध्य सार्थक संबंध है, किन्तु संवेगात्मक एवं रक्षात्मक युक्तियों के बीच सार्थक संबंध नहीं पाया।

 

सारडा (2009) ने माध्यमिक स्तर पर अध्ययनरत् सामान्य एवं अनुसूचित जाति के विद्यार्थियों  की संवेगात्मक बुद्धि, शैक्षिक दुश्चिंता एवं शैक्षिक उपलब्धि की तुलना संबंध का अध्ययन किया। इस उद्देश्य को प्राप्त करने हेतु शोधकर्ता द्वारा सवक्षर््ेाण विधि का प्रयोग किया गया। चरों के मापन हेतु मंगल एवं मंगल द्वारा निर्मितसंवेगात्मक बुद्धिमापनी डाॅ. .के.सिंह एवं डाॅ. सेनगुप्ता द्वारा रचितशैक्षिक दुश्चिंता अनुसूची तथा शैक्षिक उपलब्धि मापन के लिए विद्यार्थियों  के पिछली बोर्ड परीक्षा के प्राप्तांकों को आधार बनाया गया। न्यादर्श के लिए 80 विद्यार्थियों का चयन किया गया। प्राप्त आंकडा़ें से निष्कर्ष दिया कि सामान्य एवं अनुसूचित जाति के विद्यार्थियों के संवेगात्मक बुद्धि एवं शैक्षिक दुश्चिंता में अंतर है किंतु उनकी शैक्षिक उपलब्धि में  अंतर नहीं है। साथ ही निष्कर्ष प्राप्त हुआ कि संवेगात्मक बुद्धि तथा शैक्षिक दुश्चिंता में परस्पर संबंध नहीं के बराबर है। इसी प्रकार शैक्षिक दुश्चिंता एवं शैक्षिक उपलब्धि में भी परस्पर संबंध नहीं के बराबर है जबकि संवेगात्मक बुद्धि एवं शैक्षिक उपलब्धि परस्पर एक दूसरे को प्रभावित करते हैं।

 

देवानाथ जी (2008) - अपने अध्ययन के माध्यम से अभिक्षमता कुशलता में विषय ज्ञान, अध्ययन व्यवस्था जागरूकता अध्ययन नियमों की जानकारी, शैक्षिक योग्यता, मन स्थिति एवं विद्यार्थीयों के प्रति उचित दृष्टिकोण पर निर्भर करता है।

कुमार (2007) - चिन्ता एवं शैक्षणिक उपलब्धियों का बी. एस. गणित के प्रशिक्षुओं पर अध्ययन किया तथा पाया कि द्वितीय एवं तृतीय वर्ष के छात्रों की शैक्षणिक उपलब्धियों के बीच व्यापक अन्तर।

 

ग्रगर एसद्रिक (2005) - परिक्षण चिन्ता इसके साथ रहना इनका स्वयं के लिए प्रयोग करने का अध्ययन किया तथा पाया कि पूर्व चिन्ता स्तर एवं प्रदर्शन के बीरच सम्बंध न्यूनतम नहीं  है। अपितु यह चिन्ता स्तर अच्छे परीक्षण प्रदर्शन को दर्शाता है।

 

नमिता (1998) - विद्यालय के छात्रों के बीच चिन्ता का अध्ययन किया तथा पाया कि लड़कियों में लड़कों की अपेक्षा चिन्ता स्तर अधिक या जिनके प्रमुख कारक मानसिक स्तर तथा ध्यान लक्षण थे।

 

परिकल्पना:-

स्वयं वित्तपोषित माध्यमिक विद्यालयों के छात्रों और छात्राओं के चिन्ता स्तर में कोई सार्थक अन्तर नहीं पाया गया।

1.     शासकीय एवं वित्तपोषित माध्यमिक विद्यालयों के छात्र और छात्राओं के चिन्ता स्तर में कोई सार्थक अन्तर नहीं होगा।

2.     स्वयं वित्तपोषित-वित्तपोषित माध्यमिक विद्यालयों के छात्रों और छात्राओं के चिन्तास्तर में कोई सार्थक तुलनात्मक अन्तर नहीं पाया गया।

3.     शासकीय एवं स्वयं वित्तपोषित माध्यमिक विद्यालयों के छात्रों एवं छात्राआंे के समायोजन स्तर में कोई अन्तर में कोई अन्तर नहीं होगा।

 

अध्ययन की आवश्यकता:-

जब हम शिक्षा को आजीवन चलने वाली प्रक्रिया के रूप मंे देखते है। तो हम शिक्षा को एक साधन के रूप मंे सिर्फ विद्यालय से ही नहीं वरन् उन अनेक संस्थाआंे को भी समन्वित करते है। जिनमंे व्यक्ति जीवन पर्यन्त रहता है। और व्यक्ति उपयोगी या अनुपयोगी ज्ञान प्राप्त करता है। इन संस्थाआंे को हम शिक्षा संस्थाआंे के नाम से पुकारते है। समाज मंे शिक्षा संस्थाआंे के नाम से पुकारते है। समाज मंे शिक्षा के कार्यो को करने के लिए अनेक विशिष्ट संस्थाआंे का विकास किया गया है। इन्ही संस्थाआंे को शिक्षा का साधन कहा गया है।

 

.प्र. के बालाघाट जिले के नक्सल प्रभावित क्षेत्र मंे कई वित्तपोषित/स्वयं वित्तपोषित एवं शासकीय माध्यमिक विद्यालय है। जिनके द्वारा छात्रों एवं छात्राओें को उनके भावी जीवन मंे आने वाली कठिनाईयांे के लिए तैयार किया जाता है। यहाँ छात्र एवं छात्रा अपने भविष्य को लेकर अत्यन्त चिन्तित है। आज का छात्र एवं छात्रा इस चिन्ता की प्रवृत्ति के कारण ठीक प्रकार से अपने वातावरण और दूसरे लोगांे के साथ समायोजन नहीं कर पाता है।

 

अध्ययन का महत्व:-

क्षेत्र निर्धारण इस युग कि मौलिक समस्या है क्षेत्र निर्धारित हो जाने से विषय सीमाओं में बंध जाता है और इसका अध्ययन तुलनात्मक दृष्टि से कम हो जाता है, भौतिक विभागों के क्षेत्र में  कठिनाई नहीं आती है इसका कारण यह है कि भौतिक घटनाएँ मूर्त होती है और उन पर आसानी से प्रयोग किये जा सकते हैं। सामाजिक अनुसंधान के क्षेत्र में निर्धारण में जो कठिनाई आती है वह यह है कि इनका सम्बन्ध अमूर्त और प्रयोग रहित होता है।

 

प्रस्तुत अध्ययन ‘‘नकस्ली क्षेत्र के माध्यमिक विद्यालयों में अध्ययनरत छात्रों और छात्राओं के समायोजन एवं चिंता स्तर का अध्ययन’’ बालाघाट जिले के विशेष सन्दर्भ में तैयार किया गया है।

 

शोध प्रविधि:-

मानव एक जिज्ञासु प्राणी है वह अज्ञात तत्वों का पता लगाने की दिशा में निरन्तर आगे बढ़ता जा रहा है। सामाजिक घटनायें भी अपने आप में काफी जटिल है एक ही घटना के पीछे अनेक कारण हो सकते हैंै, उन सभी कारणों को खोज निकालना कोई सरल कार्य नहीं है। जब सामाजिक क्षेत्र की समस्याओं के हल खोजने का व्यवस्थित प्रयास किया जाता है, उसे ही सामाजिक अनुसंधान, शोध अन्वेषण या खोज का नाम दिया जाता है।

 

शोध कार्य में नकस्ली क्षेत्र के माध्यमिक विद्यालयों में अध्ययनरत छात्रों और छात्राओं के समायोजन एवं चिंता स्तर का अध्ययन से सम्बन्धित वास्तविक एवं विश्वसनीय आंकड़ों को प्राप्त करने के लिये प्राथमिक एवं द्वितीयक दोनों प्रकार के आंकड़ों को एकत्र कर पूर्ण किया गया है। प्राथमिक आंकड़े स्वयं कार्य स्थल पर जाकर मूल स्रोतो एवं साक्षात्कार अनुसूची द्वारा एकत्र किये गये हैं। जबकि द्वितीयक आंकड़े नकस्ली क्षेत्र के माध्यमिक विद्यालयों में अध्ययनरत छात्रों और छात्राओं के समायोजन से संबंधित विभिन्न प्रकाशित-अप्रकाशित पुस्तकों, शोध पत्र-पत्रिकाओं, समाचार पत्रों, शासकीय प्रतिवेदनों आदि से एकत्र कर प्रयोग किये गये हैं।

 

तथ्यों का सारणीयन विश्लेषण एवं व्याख्या -

शोधार्थी द्वारा किया गया कोई भी शोघ कार्य सही अर्थों में तभी प्रभावी होते है, जब शोधार्थी द्वारा उस समस्या की वास्तविक स्थिति का मूल्यांकन किया जाये। इसके लिये यह आवश्यक है कि शेाधार्थी द्वारा शोध अध्ययन मेें उपयोग किये गये समस्त शोध उपकरण द्वारा प्राप्त जानकारियों को व्यवस्थित क्रम में सारणीबद्ध किया जाये।

 

शोध क्षेत्र में नकस्ली क्षेत्र के माध्यमिक विद्यालयों में अध्ययनरत छात्रों और छात्राओं के समायोजन एवं चिंता स्तर के अध्ययन हेतु शोधार्थी ने कुछ शोध उपकरणों की सहायता ली है, जिसके द्वारा एकत्रित तथ्यों का सारणीयन, विश्लेषण एवं व्याख्या द्वारा वस्तु स्थिति की  जानकारी प्रस्तुत की गयी है। जो इस प्रकार है-

 

उपर्युक्त सारणी इस बात की ओर इशारा कर रही है कि शोध के दौरान शोधार्थी को एकल परिवार का प्रतिशत ज्यादा रहा है। जिससे संयुक्त परिवार की परम्परा महत्वहीन नजर रही है।

 

 

उपर्युक्त सारणी में प्राप्त आकड़ो से यह पता चलता है कि स्नातक तथा स्नातकोत्तर में काफी कम संख्या दर्ज की गई है।

 

 

प्रस्तुत आॅकड़ो से यह ज्ञात होता है कि 100 छात्र मे से 78 प्रतिशत छात्र छात्राओ को विद्यालय जाना अच्छा लगता है तथा 22 प्रतिशत छात्र छात्राओ को विद्यालय जाना अच्छा लगता है।

 

दी गई तालिका क्रमांक 2 के अनुसार 88 प्रतिषत छात्र-छात्राओ अनुसार विद्यालय द्वारा अध्ययन समाग्री प्रदान की जाती है जबकि 12 प्रतिषत छात्र -छात्राओ के अनुसार विद्यालय द्वारा अध्ययन सामग्री प्रदान नही की जाती है।

 

तालिका क्रमाॅक 4 के अनुसार स्पष्ट होता है 91 प्रतिशत छात्र छात्राओं के अनुसार विद्यालय द्वारा निःशुल्क पाठ्य पुस्तिका प्रदान की जाती है जबकि 9 प्रतिशत छात्र छात्राओं के अनुसार निःशुल्क पाठ्य पुस्तिका प्रदान नहीं की जाती है।

 

निष्कर्ष

शिक्षा मनुष्य के विकास के लिए आवश्यक हैं। मनुष्य के भीतर मूलभूत या जन्मजात गुणों का विकास या प्रकटीकरण शिक्षा के बिना संभव नहीं है शिक्षा मनुष्य को पूर्णत्व प्रदान करने का साधन है। शिक्षा और जीवन अन्तपरिवर्तनीय शब्द है जीवन ही शिक्षा है ऐसी कोई शिक्षा नहीं है जो प्राणहीन हो। शिक्षा जन्म के साथ ही शुरू होती है और जीवन के अंत तक चलती रहती है शिक्षा ही व्यक्ति को इस योग्य बनाती है कि वह समस्याओं को सुगमता से परखकर उसका निराकरण करने में सफल होता है।

 

बालाघाट के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के विद्यार्थियों की संवेगात्मक बुद्धि, सामान्य दुश्चिंता एवं सुरक्षा- असुरक्षा की भावना का उनकी शैक्षिक उपलब्धि पर प्रभाव का अध्ययन पर और इस क्षत्रे में अध्ययन एवं शोध का अत्यंत अभाव है। प्रस्तुत शोध पत्र इस अभाव की पूर्ति में सहयोग करेगा ,साथ ही शोधकर्ता द्वारा प्रस्तुत अनुसंधान में इन्हीं बिंदुआंे पर गहनता से विचार करते हुए ‘‘बालाघाट के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के विद्यार्थियों की संवेगात्मक बुद्धि, सामान्य दुश्चिंता एवं सुरक्षा-असुरक्षा की भावना का उनकी शैक्षिक उपलब्धि पर प्रभाव का अध्ययन‘‘ यह जानने के लिए किया है कि क्या बालाघाट  के नक्सल प्रभावित क्षत्रेों के ग्रामीण परिवेश (जहां नक्सली आवाजाही एवं हिंसात्मक गतिविधि हुई या होती रही हो) तथा शहरी परिवेश (इसी क्षत्रे के विकासखंड मुख्यालय) में स्थित विद्यालयों में अध्ययनरत् विद्यार्थियों की संवेगात्मक बुद्धि, दुश्चिंता एवं सुरक्षा-असुरक्षा की भावना एवं शैक्षिक उपलब्धि समकक्ष हैं ? या कम अथवा ज्यादा हैं ? लिंगभेदानुसार विद्यार्थियों के उपरोक्त चरों के प्राप्तांक समकक्ष हैं ? या उनमें अंतर हैं ? इन क्षेत्रों के विद्यार्थियों में क्या ये चर उनकी शैक्षिक उपलब्धि को स्वतंत्र एवं संयुक्त रूप से प्रभावित करते हैं ? या उनसे कोई सहसंबंध रखते हंैंै? क्या ये चर आपस में भी एक दूसरे से सहसंबंधित हैं? इन अनेक प्रश्नों के समाधान के उद्देश्य से शोधकर्ता द्वारा अनुसंधान कार्य किया जा रहा है।

 

सुझाव -

सुझाव किसी भी शोध अध्ययन का महत्वपूर्ण अंग होता है शोधार्थी अपने शोध अध्ययन के निष्कर्षो के आधार पर शोध कार्य के उपरान्त जो तथ्य प्रकट करता है वही सुझाव है शैक्षिक शोध अध्ययनों के परिपेक्ष्य में सुधारात्मक सुझावों का विशेष महत्व होता है क्योकि इन्ही सुझावों के आधार पर शोध समस्या से संबंधित व्यक्तियों अभिभावकों शिक्षकेां प्रधानाध्यापकों एवं अधिकारियो को मार्गदर्शन मिलता है अतः शोधार्थी ने अपने शोध अध्ययन के आधार पर सर्व शिक्षा अभियान की सफलता हेतु निम्नलिखित सुझाव दिये है-

1.     बच्चों के लिये निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम का क्रियान्वयन ईमानदारी से किया जाये।

2.     शोध क्षेत्र के निजी विद्यालयों में भी शिक्षा के अधिकार अधिनियम द्वारा निर्धारित आरक्षण के प्रावधानों का ईमानदारी से पालन किया जाये।

3.     शोध क्षेत्र में प्रारंभिक शिक्षा स्तर के सभी विद्यालयों में आधारभूत सुविधाएॅ उपलब्ध करायी जाये।

4.     विद्यालयों मे पुस्तकालय एवं खेलकूद की सामग्री पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध करायी जाये।

5.     शोध क्षेत्र में 6 से 14 वर्ष तक के प्रत्येक बच्चे को अनिवार्य प्रवेश उपस्थिति शिक्षा की समाप्ति सुनिश्चित की जाये।

6.     शोध क्षेत्र के जीर्ण शीर्ण एवं भवन विहीन विद्यालयों का जीर्णोद्धार कर उनमे सभी सुविधाए उपलब्ध करायी जाये।

7.     छा़त्र छात्राओ को मध्यान्ह भोजन के साथ साथ छात्रवृत्ति भी उपलब्ध करायी जाये।

8.     शिक्षकों के रिक्त पदों को भरने के लिये आवश्यक कदम उठाये जायें।

9.     विद्यालय मे पाठ्य सहगामी क्रियाओं पर विशेष ध्यान दिया जाये।

 

संदर्भ सूची:-

1ण्    उपाध्याय डाॅ. प्रतिमा (2005), ‘‘भारतीय षिक्षा में उदीयमान प्रवृतियों संस्करण 3 पृष्ठ संख्या 256 शारदा पुस्तक भवन, इलाहाबाद।

2ण्    करलिंगर .. (1973), ‘‘फाउन्डेषन आॅफ विहेवियरल रिसर्च’’ सुरजी पब्लिकेषन्स 7 के कोल्हापुर रोड़, कमलानगर दिल्ली।

3ण्    कुमार डाॅ. अजीत (2005), परम्परागत उच्च षिक्षा प्रणाली में गुणवत्ता का एक  प्रसंग ज्वलंत पदप्त क्वालिटी एसुरेन्स इन डिस्टेन्स एजुकेषन, संस्करण प्रथम पृष्ठ संख्या 283 एकेडमी प्रेस इलाहाबाद।

4ण्    कपित एच. के. अनुसंधान विधि ‘‘अनुसंधान विधियाँभार्गव भवन, इलाहाबाद

5ण्    गुप्ता डाॅ. एस.पी.एवं गुप्ता डाॅ. अलका (2008) उच्चतर षिक्षा मनोविज्ञान’’ संस्करण शारदा पुस्तक भवन, इलाहाबाद।

6ण्    पाण्डेय के. पी. शैक्षिण अनुसंधान ‘‘विष्वविद्यालय प्रकाषन वाराणसी’’

7ण्    राय पारसनाथःअनुसंधान परिचय लक्ष्मी नारायण अग्रवाल हाॅस्पीटल रोड़, आगरा - 3

8ण्    उत्तर प्रदेष हिन्दी संस्थानका त्रिमासिक पत्रिका का टवसनउमे 3 4 दृ अतेवा

9ण्    चैहान षिवराज 7 मध्यप्रदेष की विकास गाथा प्रभात प्रकाषन-आगरा

10ण्   बी. बी. सी. पे लेख-नक्सलवाद की मूलक

11ण्   सम्पाती विजयकुमार -‘‘जनम’’

12ण्   शर्मा राषि-‘‘राजनीतिक समाजषास्त्र की रूपरेखा’’ च्भ्प् स्मंतदपदह च्अजण् स्जकण्

13ण्   सक्सैना विवेक, सुषील-नक्सली आतंकवाद प्रभात प्रकाषन आगरा

14ण्   तिवारी अरूण-‘‘पे्ररणा’’ पे्ररणा प्रकाशन आगरा

15ण्   सिन्हा अनुज कुमार-‘‘प्रयोग की कहानी’’ प्रभात प्रकाषन आगरा

16ण्   लूनिया कुसुम-‘‘षिखर तक चलो’’ प्रभात प्रकाषन

17ण्   मिश्रा समीरात्मज-‘‘निबन्ध मंजूषा’’ ज्ंजं डबळतंूदृभ्पसस म्कनबंजपवदण्

 

 

 

 

 

 

Received on 17.09.2019            Modified on 22.09.2019

Accepted on 28.09.2019            © A&V Publications All right reserved

Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 2019; 7(3):681-686.