सतत मूल्यांकन एवं परम्परागत मूल्यांकन से छात्रों की शैक्षिक उपलब्धि का अध्धयन एवं विश्लेषण

 

 

Prateek Chaturvedi1, Surendra Kumar Tripathi2, Kirti Gautam3

1Life long Learning Department, A.P.S. University, Rewa M.P.

2Assistant Professor, Govt. Education College, Rewa M.P.

3Govt. Girls P.G. College, Rewa M.P. India

*Corresponding Author E-mail: kirtitiwari.commerce@gmail.com

 

ABSTRACT:

जैसा समाज होगाए वैसी ही शिक्षा होगी। दूसरे शब्दों में जिस समाज के जैसे आदर्श होंगे वहॉं की शिक्षा भी उन्हीं आदर्शों के अनुरूप होगी। देश की पंचवर्षीय योजनाओं में शिक्षा के प्रसार के लिए बहुत ज्यादा धनराशि का उपयोग किया गया।

 

KEYWORDS:  Education, Kaushal Vikash, Rewa Education, Govt. scheme, Girls Education

 

 


प्रस्तावना

मूल्‍यांकन एक क्रमिक प्रक्रिया है जो कि सम्‍पूर्ण शिक्षा प्रणाली का एक अति महत्वपूर्ण अंग हैए और जो शैक्षिक उद्देश्‍यों से घनिष्‍ठ रूप में सम्‍बन्धित है। जैसा समाज होगाए वैसी ही शिक्षा होगी। दूसरे शब्‍दों में जिस समाज के जैसे आदर्श होंगे वहॉं की शिक्षा भी उन्‍हीं आदर्शों के अनुरूप होगी। इसी दृष्टि से यदि समाज की प्रकृति तानाशाही हैए तो निश्‍चय ही वहॉं की शिक्षा में अनुशासन तथा आज्ञा पालन पर विशेष बल दिया जायेगा।1

 

 

 

 

इसके विपरीत यदि समाज की प्रकृति जनतांत्रिक है तो वहॉ की शिक्षा में स्‍वतंत्रताए समानताए सहकारिता तथा सहयोग आदि पर बल देते हुए व्‍यक्तिगत तथा सामाजिक जीवन के आदर्शों को प्राप्‍त करने का प्रयास किया जायेगा।

 

स्‍वतन्‍त्र एवं गणतन्‍त्र देश के स्‍वरूप में भारतवर्ष में अपने नव विकास के लिए शिक्षा के क्षेत्र में दूरगामी परिवर्तन की आवश्‍यकता महसूस हुई। बेसिक शिक्षाए प्राथमिक शिक्षाए माध्‍यमिक शिक्षाए विश्‍वविद्यालयीन शिक्षा के साथ ही साथ स्‍थानीय भाषाए प्रान्‍तीय भाषाओं का प्रसारए छात्रवृत्तियों का प्रदायए वैज्ञानिक अनुसंधानए कलाए साहित्‍यए सांस्‍कृतिकए खेलकूद के आयोजनों को प्रोत्‍साहित करना व अन्‍य ऐसे कार्यक्रम हैं जो राष्‍ट्र की प्राथमिक शिक्षा को मजबूत बनाने के लिए विकसित किए गये। देश की पंचवर्षीय योजनाओं में शिक्षा के प्रसार के लिए बहुत ज्‍यादा धनराशि का उपयोग किया गया। शिक्षा के मापदण्‍डए योग्‍य शिक्षक का चयन एवं आर्थिक स्थिति1ए2ए3 में सुधार तथा छात्र कल्‍याणकारी योजनाएं आदि देश की प्राथमिक शिक्षा प्रणाली की महत्‍वपूर्ण समस्‍याओं के निवारण हेतुसमयण्समय पर केन्‍द्र सरकार द्वारा विभिन्‍न आयोगों एवं समितियों का गठन किया गया है। जिनके बहुउपयोगी सलाह व सुझावों पर प्रारम्भिक शिक्षा के मसौदे का निर्माण हुआ।

 

प्रदत्‍तों का वर्गीकरण एवं सारणीयन रू

शोधकर्ता द्वारा किया गया कार्य तभी प्रतिबिम्बित होता हैए जब शोधकर्ता शोध कार्य में परिकल्पित बिन्‍दुओं के आधार पर शोध उपकरणों3ए4ए5 का निर्माण करए चुने हुए न्‍यादर्श पर प्रशासित करे एवं इस प्रकार प्राप्‍त जानकारियों एवं आंकड़ों को सारणीबद्ध कर उसका वर्गीकरण करे। वर्गीकरण किसी भी वैज्ञानिक विश्‍लेषण के लिये मौलिक आधार शिला है। प्रदत्‍तों को उनके स्‍वरूपए प्र‍कृति और आवश्‍यकतानुसार विभिन्‍न पदों में इस प्रकार व्‍यवस्थित किया जाता हैए ताकि गणना सरल हो जाये तथा प्रमुख विशेषतायें स्‍पष्‍ट हो सके। इस तथ्‍य की प्रामाणिकता जेण्आरण्हिक्‍स के अधोलिखित वाक्‍य से होती हैण्

जेण्आरण्हिक्‍स ण् श्वर्गीकृत एवं क्रमबद्ध तथ्‍य अपने आप बोलते हैए अव्‍यवस्थि‍त रूप में वे मृत तुल्‍य होते है।श्

 

प्रदत्‍तों के वर्गीकरण को सारणी द्वारा दर्शाया गया है अर्थात सारणीयन संवर्गीकृत सामग्री को क्रमबद्धए स्‍पष्‍टए संक्षिप्‍त व बोधगम्‍य रूप प्रदान करती है। जिससे सांख्यि‍कीय विश्‍लेषण व विवेचन में सुविधा होती है।

कारलिंगर महोदयानुसार ण् श्सारणीयन केवल विभिन्‍न प्रकार के प्रत्‍युत्‍तरों की संख्‍याओं के प्रकारों को उनके उपयुक्‍त संवर्गों में अभिलेखित किये जाने को कहते हैं।श्

 

इसके पश्‍चात सांख्यिकीय विश्‍लेषण किया गया है।6 इसमें प्राप्‍त मूल आंकड़ों को प्रतिशतए माध्‍य पारस्‍परिक सहसम्‍बन्‍ध सूचकांक में परिवर्तित करके प्रस्‍तुत किया गया हैए तथा उसमें अन्‍तर की सार्थकता की जॉच के लिये उपयुक्‍त परीक्षणों को प्रयुक्‍त किया गया है। शोध समस्‍या के समाधान हेतु लिये गये प्रश्‍नों के समुचित उत्‍तर प्राप्‍त किये गये है।

 

शोध समस्‍या से सम्‍बन्धित ऑकड़े एकत्रित करने के लिए शोधार्थी ने विद्वान आचार्य एवं शोध निर्देशक के मार्गदर्शन में प्रश्‍नावली प्रपत्रए साक्षात्‍कार प्रपत्र व परीक्षण प्रपत्र का निर्माण किया है। न्‍यादर्श7ए8 में चुने गये शिक्षकों से व्‍यक्तिगत सम्‍पर्क करके प्रश्‍नावली वितरित करके उनसे वांछित जानकारी प्राप्‍त की गई। परीक्षण प्रपत्र के माध्‍यम से छात्रों की परीक्षा ली गई है।

 

प्रधानाध्‍यापक से साक्षात्‍कार के माध्‍यम से जानकारी एकत्रित की गई है। शोध समस्‍या से सम्‍बन्धित कुछ अन्‍य महत्‍वपूर्ण जानकारी एकत्रित करने के लिए शोधार्थी द्वारा एक अभिलेख परिणाम एवं अन्‍य वांछित जानकारियँ एकत्रित की गई है। इस प्रकार प्रदत्‍तों की पूर्ण जानकारी सावधानी पूर्वक यथेष्‍ट रूप में प्राप्‍त कर संकलित की गई है।

विश्‍लेषण एवं व्‍याख्‍या रू

 

शोधकर्ता ने रीवा जिले में संचालित प्राथमिक विद्यालयों में से 90 शासकीय प्राथमिक विद्यालयों को न्‍यादर्श हेतु चयनित किया है। जिनमें 90 प्रधानाध्‍यापक से साक्षात्‍कार प्रपत्र 90 शिक्षकों से प्रश्‍नावली प्रपत्र 90 अभिभावाकों से साक्षात्‍कारध्प्रश्‍नावली प्रपत्र 30 अधिकारियों से साक्षात्‍कार प्रपत्र एवं 450 छात्रों से साक्षात्‍कार प्रपत्र द्वारा सतत मूल्‍यांकन के सम्‍बन्‍ध में जानकारी प्राप्‍त की गई है।

 

सारणी क्रमांक -  1

सरल क्रमांक

जानकारी संकलन के स्रोत

न्‍यादर्श संख्‍या

संगत प्रश्‍न क्रमांक

सतत मूल्‍यांकन एवं परम्‍परागत मूल्‍यांकन से छात्रों की शैक्षिक उपलब्धि का आंकलन

हॉं

%

नहीं

%

1

प्रधानाध्‍यापक

90

3,4

72

80

18

20

2

शिक्षक

90

4,5

72

80

18

20

3

छात्र

450

5,6

360

80

90

20

4

अभि-भावक

90

3,4

72

80

18

20

5

अधिकारी

30

5, 6

24

80

6

20

 

 

सारणी क्रमांक – 2 सतत मूल्‍यांकन द्वारा छात्रों की शैक्षिक उपलब्धि स्‍तर का विश्‍लेषण

वर्गान्‍तर

आवृत्ति

f

मध्‍यमान

X-A

  विचलन

fd

fd²

0-10

1

5

-40

-4

16

-4

16

10-20

3

15

-30

-3

9

-9

27

20-30

3

25

-20

-2

4

-6

12

30-40

5

35

-10

-1

1

-5

5`

40-50

6

45

0

0

0

0

0

50-60

9

55

10

1

1

9

9

60-70

10

65

20

2

4

20

40

70-80

11

75

30

3

9

33

99

80-90

36

85

40

4

16

144

576

90-100

16

95

50

5

25

80

400

 

SN=�1

 

 

 

 

Sfd= 268

Sfd²= 1184

 


विश्‍लेषण रू

उपर्युक्‍त सारणी क्रमांक 1 जो शैक्षिक उपलब्धि के ऑंकलन पर आधारित है से निम्‍नलिखित बातें स्‍पष्‍ट होती है। यादृच्छिक विधि से 90 विद्यालयों में से सभी विद्यालयों में सतत मूल्‍यांकन की किसी किसी प्रक्रिया के माध्‍यम से अनवरत पालन किया जाता है।

 

इसमें कुल 450 छात्रों से जानकारी प्राप्‍त की गई जिसमें 40 छात्र मौखिक परीक्षा 60 छात्रों द्वारा लिखि‍त परीक्षा दी जाती है। लगभग 100 छात्रों की परीक्षा विषय वस्‍तु आधारित होती है। न्‍यादर्श के सभी विद्यालयों के चुने गये सभी 100 छात्रों ने मूल्‍यांकन की मासिक परीक्षा प्रणाली को अपने मतानुसार सामान्‍य बताया है। सभी प्रकार के परीक्षाओं में लगभग 90 छात्र उपस्थित रहते है। शेष 10 छात्र किसी किसी कारणों से विद्यालय में होने वाली विभिन्‍न परीक्षाओं में शामिल नहीं हो पाते।Mean        =         

=                 

                =              45 + 26.8

 

M1          =              71.8


 

सारणी क्रमांक – परम्‍परागत मूल्‍यांकन द्वारा छात्रों की शैक्षिक उपलब्धि स्‍तर का विश्‍लेषण

वर्गान्‍तर

आवृत्ति f

मध्‍यमान

X-A

विचलन

Fd

fd²

0-10

6

5

-40

-4

16

-24

96

10-20

12

15

-30

-3

9

-36

108

20-30

14

25

-20

-2

4

-28

56

30-40

16

35

-10

-1

1

-16

16

40-50

10

45

0

0

0

0

0

50-60

6

55

10

1

1

6

6

60-70

9

65

20

2

4

18

36

70-80

7

75

30

3

9

21

63

80-90

12

85

40

4

16

48

192

90-100

8

95

50

5

25

40

200

 

SN = 100

Sfd= 29

Sfd²= 773

 


Mean     =         

=                 

                =              45 + 2.9

M2          =              47.9

 

‘t’  test                                   df            = (N-1) + (N-1)

                                                                = (100-1) + (100-1)

                                                                = 99 + 99

                                                                = 198

t  =  6.78

 

विश्‍लेषण रू

सारणी क्रमांक 2 तथा 3 में यादृच्छिक विधि से चयनित 450 छात्रों की शैक्षिक उपलब्धियों पर सतत मूल्‍यांकन एवं परम्‍परागत मूल्‍यांकन29 के प्रभाव का विश्‍लेषण किया गया है। विश्‍लेषणोपरान्‍त छात्रों के सतत मूल्‍यांकन द्वारा प्राप्‍त औसत उपलब्धि परम्‍परागत मूल्यांकन द्वारा प्राप्‍त औसत उपलब्धि के मध्‍य अन्‍तर की सार्थकता की गणना ष्जष् परीक्षण द्वारा की गई है। ित्र 198 के लिए गणना से ष्जष् का मान 6ण्78 प्राप्‍त हुआ है। जबकि सारणी में ष्जष् का मानक मान 0ण्05 विश्‍वास स्‍तर पर 1ण्97 एवं 0ण्01विश्‍वास स्‍तर पर 2ण्60 है।

 

व्‍याख्‍या रू

गणना से प्राप्‍त ष्जष् का मान दोनो ही विश्‍वास स्‍तरों पर प्राप्‍त मानक मान से अधिक है। अतरू छात्रों के सतत मूल्‍यांकन एवं परम्‍परागत मूल्‍यांकन द्वारा छात्रों की शैक्षिक उपलब्धि में सार्थक अन्‍तर प्राप्‍त हुआ है1011

 

सारणी क्रमांक – 4

.क्र.

जानकारी संकलन के स्रोत

न्‍यादर्श संख्‍या

संगत प्रश्‍न क्र.

छात्रों के भावनात्‍मक क्रियात्‍मक एवं ज्ञानात्‍मक पक्ष के विकास का आकलन

भावनात्‍मक

क्रियात्‍मक

ज्ञानात्‍मक

हॉं

 %

नहीं

%

हॉं

 %

नहीं

 %

हॉं

%

नहीं

 %

 

1

प्रधानाध्‍यापक

90

5

27

30%

0

0%

36

40%

0

0%

27

30%

0

0%

 

2

शिक्षक

90

6

27

30%

0

0%

45

50%

0

0%

18

20%

0

0%

 

3

छात्र

450

7,8 ,9

180

40%

0

0%

135

30%

0

0%

135

30%

0

0%

 

4

अभिभावक

90

5

18

20%

0

0%

54

60%

0

0%

18

20%

0

0%

 

5

अधिकारी

30

6

9

30%

0

0%

12

40%

0

0%

9

30%

0

0%

 

 


विश्‍लेषण रू

उपर्युक्‍त सारणी क्रमांक 4 में भावनात्‍मक पक्षए क्रियात्‍मक पक्ष एवं ज्ञानात्‍मक पक्ष को सतत मूल्‍यांकन

 

का आधार मानते हुए विद्यार्थियों की शैक्षिक उपलब्धि को दर्शाया गया हैए जो निम्‍मलिखित तथ्‍यों को समाहित किए हुए हैं। न्‍यादर्श में यादृच्छिक विधि से चयनित1213 90 प्राथमिक विद्यालयों में कुल 450 छात्रों में से भावनात्‍मक पक्ष को विकसित होना मानते हैं लगभग 40 जब कि वहीं पर प्रधानाध्‍यापक महोदय द्वारा 30 विकास होना पाते है। जबकि 30 शिक्षक इसे छात्रों में विकसित होना बताते हैं। छात्रों के अभिभावकगणों द्वारा इस भावनात्‍मक पक्ष को अपने पाल्‍यों में 20 ही विकसित होना मानते हैं। जबकि विभिन्‍न अधिकारियों द्वारा छात्रों में इसके विकास का योगदान 30 ही मानते हैं। इसी प्रकार विद्यार्थियों में सतत मूल्‍यांकन से क्रियात्‍मक पक्ष का विकास होना विद्यालय के प्रधानाध्‍यापक महोदय 40 का योगदान मानते हैंए जबकि विद्यालय के शिक्षकों का 50 मानना है वहीं पर छात्र भी 30 की वृद्धि मानते हैं। जबकि अभिभावकों के मतानुसार उनके पाल्‍यों पर इसका प्रभाव 60 तक है। अधिकारियों की राय के अनुसार इसका प्रभाव 40 ही छात्रों में पड़ता है1415 विद्यार्थियों में सतत मूल्‍यांकन से उनके ज्ञानात्‍मक पक्ष पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्‍ययन किया गया और यह पाया गया कि इससे उनका जीवन प्रभावित हुआ है। इसकी पुष्टि हेतु प्रधानाध्‍यापक महोदय का मत है कि छात्रों में 30 तक शिक्षकों के अनुसार 20 विद्यालय में नामांकित छात्रों का मत है कि इसका 30 पभाव पड़ता है। छात्रों के अभिभावकों का कहना है कि इसका प्रभाव उनके पाल्‍यों पर 20 ही पड़ता हैए जब कि अधिकारियों के अनुसार इसका प्रभाव छात्रों में 30 पड़ा और वृद्धि होती है।

 

व्‍याख्‍या रू

उपर्युक्‍त विश्‍लेषण के अनुसार सतत मूल्‍यांकन का प्रभाव विद्यार्थियों की बौद्धिक क्षमता के साथ ही साथ उनकी सृजनात्‍मकता एवं रचनात्‍मकता की क्षमता में भी विकास देखा गया। उपर्युक्‍त आंकड़ों के अनुसार शोधार्थी का विश्‍वास है कि न्‍यादर्श विद्यालयों में भी इन स्‍तरों के विकास में सतत मूल्‍यांकन का ही प्रभाव माना है। चयनित विद्यालयों में प्रधानाध्‍यापक महोदयए शिक्षकगणए विद्यालयीन छात्रए अभिभावकगण एवं अधिकारियों ने इसको स्‍पष्‍ट स्‍वीकार किया है कि मूल्‍यांकन की नवीन अवधारणा ने छात्रों के क्रियात्‍मक स्‍तर को बढ़ाया है साथ ही भावनात्‍मक पक्ष को सुधारता हैए ज्ञानात्‍मक स्‍तर में वृद्धि को प्रगतिकारी बनाता है। जिसके परिणाम स्‍वरूप छात्रों के भविष्‍य को और अधिक उज्वल बनाने का सार्थक प्रयास किया जा सकता है।


 

 

सारणी क्रमांक -5

क्र.

जानकारी संकलन के स्रोत

न्‍यादर्श संख्‍या

संगत प्रश्‍न क्र.

छात्रों में प्रतियोगितात्‍मक जागरुकता  के विकास का अध्‍ययन

विज्ञान प्रदर्शनी

विज्ञान पहेली

विज्ञान प्रश्‍न मंच

गणित दौड़

हॉं

%

नहीं

%

हॉं

%

नहीं

%

हॉं

%

नहीं

%

हॉं

%

नहीं

%

1

प्रधानाध्‍यापक

90

6

81

90

9

10

72

80

18

20

63

70

27

30

18

20

72

80

2

शिक्षक

90

7

72

80

18

20

72

80

18

20

81

90

9

10

36

40

54

60

3

छात्र

450

18, 19, 20

315

70

135

30

315

70

135

30

270

60

180

40

135

30

315

70

4

अभिभावक

90

7

45

50

45

50

54

60

36

40

54

60

36

40

45

50

45

50

5

अधिकारी

30

6

27

90

3

10

27

90

3

10

21

70

9

30

3

10

27

90

 


विश्‍लेषण रू

उपर्युक्‍त सारणी क्रण् 5 में होने वाली वार्षिक गतिविधियों के अन्‍तर्गत प्रतियोगितात्‍मक जागरुकता को सतत मूल्‍यांकन का आधार मानते हुए छात्रों की शैक्षिक उपलब्धि को दर्शाया गया है। जो निम्‍नलिखित तथ्‍यों को समाहित किये हैं।

 

शोध विधि यादृच्छिक से चुने गये 90 शासकीय प्राथमिक विद्यालयों1617 में कुल 90 प्रधानाध्‍यापकए 90 शिक्षकोंए 450 छात्रए 90 अभिभावक सहित 30 अधिकारियों में से विज्ञान प्रदर्शनीए विज्ञान पहेलीए विज्ञान प्रश्‍न मंच गणित दौड़ में छात्रों की रुचि प्रधानाध्‍यापक महोदय के अनुसार 90 विज्ञान प्रदर्शनीए 80 विज्ञान पहेलीए 70 विज्ञान प्रश्‍न मंच तथा 20 गणित दौड़ में छात्रों की रुचि है। जबकि वहीं 10 विज्ञान प्रदर्शनीए 20 विज्ञान पहेलीए 30 विज्ञान प्रश्‍न मंच तथा 80 गणित दौड़ में छात्रों की रुचि नहीं है। न्‍यादर्श में चयनित विद्यालयों में पदस्‍थ्‍ा कक्षाध्‍यापकों का विचार है कि छात्रों में विज्ञान प्रदर्शनी के प्रति रुचि 80ःए विज्ञान पहेली में 80 विज्ञान प्रश्‍न मंच में 90 एवं गणित दौड़ के प्रति 40 छात्र ही रुचि रखते हैं। वहीं पर शिक्षकों का मत है कि 20 विज्ञान प्रदर्शनीए 20 विज्ञान पहेलीए 10 विज्ञान प्रश्‍न मंच 60 गणित दौड़ के प्रति कोई रुचि नहीं है। अभिभावकों द्वारा प्रकट की गई जानकारी के अनुसार उनके पाल्‍यों की रुचि 50 विज्ञान प्रदर्शनीए 40 विज्ञान पहेलीए 40 विज्ञान प्रश्‍न मंच तथा 50 गणित दौड़ के प्रति है। जबकि वहीं पर अरुचि का प्रतिशत 50 विज्ञान प्रदर्शनीए 40 विज्ञान पहेलीए 40 विज्ञान प्रश्‍न मंच तथा 50 ही गणित दौड़ के प्रति है। उच्‍चाधिकारियों के मतानुसार छात्रों में 90 विज्ञान प्रदर्शनीए 90 विज्ञान पहेलीए 70 विज्ञान प्रश्‍न मंच तथा 10 गणित दौड़ में छात्रों की रुचि है। जबकि वहीं पर अरुचि का प्रतिशत 10 विज्ञान प्रदर्शनीए 10 विज्ञान पहेलीए 30 विज्ञान प्रश्‍न मंच तथा 90 ही गणित दौड़ में कम से कम छात्रों ने प्रतिभागी के रूप में भाग लिया है। तथा जानकारी का अभाव पाया गया। छात्रों की स्‍वयं की अभिव्‍यक्ति क्रमशरू विज्ञान प्रदर्शनी में 70 ने भाग लिया 30 ने नहीं हिस्‍सा लिया। जबकि विज्ञान पहेली के अन्‍तर्गत 70 छात्रों ने रुचि दिखाई 30 छात्रों ने अरुचि को दर्शाया। तथा विज्ञान प्रश्‍न मंच में 60 ने रुचि 40 ने अरुचि दिखाई है। गणित दौड़ के प्रति जागरुकता का अभाव होने के कारण छात्रों ने 10 ही भाग लियाए जबकि शेष 90 छात्रों में इस प्रतियोगिता के प्रति अरुचि परिलक्षित है।

 

व्‍याख्‍यारू

उपर्युक्‍त विश्‍लेषण के अनुसार नामांकित छात्रों की बौद्धिक क्षमात के साथ.साथ उनकी विज्ञान विषयों में छात्रों की जिज्ञासा एवं सृजनात्‍मक क्षमता को बढ़ाने हेतु प्रत्‍येक वर्ष विभिन्‍न प्रकार की प्रतियोगिताओं का आयोजन होता है। जिसमें विज्ञान प्रदर्शनीए विज्ञान पहेलीए विज्ञान प्रश्‍न मंच गणित दौड़ एवं अन्‍य विज्ञान प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है। उपर्युक्‍त आंकड़ों के अनुसार यह कह सकते है कि हमारे चयनित न्‍यादर्श विद्यालयों में भी इन प्रतियोगिताओं में भाग लिया और विभिन्‍न स्‍तरों पर सफलता के साथ जो मूल्‍यांकन के द्वारा उनकी उपलब्धि के सूचक भी बने। जिससे विद्यार्थियों में प्रतियोगितात्‍मक जागरुकता का विकास हुआ है।

 

सुझाव रू

1ण् इकाईवार परीक्षण और मासिक परीक्षण को गंभीरता से लिया जाय।

2ण् छात्रों में प्रतियोगितात्‍मक भावना के विकास हेतु परीक्षा परिणामों के आधार पर कक्षा में स्थान निर्धारित किया जाय।

3ण् सभी विद्यालयों में रचनात्‍मक कार्यों को विशेष रूप से महत्‍व प्रदान किया जाय।

4ण् विज्ञान प्रदर्शनी एवं विज्ञान पहेलीए गणित दौड़ जैसी विभिन्‍न प्रतियोगिताओं का आयोजन सुनिश्चित किया जाय।

5ण् अभिभावाकों ध् पाल्‍यों को छात्रों की विभिन्‍न्‍ शैक्षिकए पाठ्येत्‍तर गतिविधियों की जानकारी एवं उनके दोषों के निराकरण हेतु शिक्षक.अभिभावक सम्‍मेलन अनिवार्य किया जाय।

6ण् कम्‍प्‍युटर शिक्षा को अनिवार्य किया जाय।

7ण् विद्यालयीन एवं छात्रए शिक्षकए अभिभावक के शैक्षिक परिदृश्‍य की समस्‍याओं के समाधान में वैज्ञानिक एवं मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाया जाय।

8ण् यह सुनिश्चित किया जाय कि किसी भी प्रकार से शिक्षकों का शोषण हो।

9ण् शिक्षकों का मनोबल चरित्र ऊॅचा रखने हेतु उन्‍हें मानसिकए राजनैतिकए आर्थिकए शारीरिक अन्‍य प्रकार के तापों से सुरक्षित रखा जाय। साथ ही साथ उनमें अपने भविष्‍य को लेकर सुरक्षा का बोध हो।

 

समस्‍याऍं एवं अवरोध रू

1ण् शिक्षकों को प्रश्‍नावली प्रपत्र वितरण के उपरान्‍त उसको संग्रहित करने के लिए कई बार संबंधित विद्यालयों में जाना पड़ा।

2ण् कई बार तो कुछ शिक्षकों की प्रश्‍नावली प्रपत्र गुम जाने के कारण उन्‍हें दोबारा जाकर दूसरी प्रश्‍नावली प्रपत्र देना पड़ा।

3ण् अधिकांश न्‍यादर्श में चयनित व्‍यक्तियों में से सही जानकारी देने में संकोच किया।

4ण् कुछ प्रधानाध्‍यापकों से साक्षात्‍कार हेतु इनके जनशिक्षा केन्‍द्र तथा संकुल क्षेत्र में जाने के कारण कई बार सम्‍बन्धित विद्यालय में जाना पड़ा।

5ण् कुछ विकासखण्‍ड स्रोत समन्‍वयक से साक्षात्‍कार हेतु कई बार उनके कार्यालयों में लम्‍बे समय तक प्रतीक्षा करनी पड़ी।

 

भावी शोध की संभावनाएँ रू

प्रस्‍तुत शोध में चयनित विषय इसकी प्रकृति अध्‍ययन के मुख्‍य उद्देश्‍य एवं परिकल्‍पनाओं के सन्‍दर्भ में विश्‍लेषण किया गया है। किन्‍तु शोधकर्ता को शोध अध्‍ययन की प्रक्रिया में कुछ ऐसे बिन्‍दु ज्ञात हुए है जिस पर विस्‍तृत अध्‍ययन की आवश्‍यकता महसूस हुई1617 ऐसे बिन्‍दुओं को इस अध्‍ययन में भावी शोध बिन्‍दुओं के रूप में आगे आने वाले वर्षों में शिक्षा संकाय में अनुसंधान करने वाले शोधार्थियों हेतु चिन्हित किया गया हैए जो कुछ इस तरह से है.

1ण् शोध क्षेत्र में स्थित प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षण सहायक सामग्री के निर्माण एवं कक्षा शिक्षण में प्रयोग का अध्‍ययन।

2ण् शोध क्षेत्र में शैक्षिक गुणवत्‍ता की वृद्धि में बाधक तत्‍व एवं निदान।

3ण् सतत मूल्‍यांकन की वर्तमान परिप्रेक्ष्‍य में प्रासंगिकता का अध्‍ययन।

4ण् सतत मूल्‍यांकन का प्राथमिक स्‍तर के छात्रों पर पड़ने वाले शैक्षिक प्रभाव का समीक्षात्‍मक अध्‍ययन।

5ण् छात्रों के सर्वांगीण विकास पर सतत मूल्‍यांकन से पड़ने वाले प्रभाव का अध्‍ययन।

6ण् सतत मूल्‍यांकन का छात्रों की शैक्षिक उपलब्धि पर पड़ने वाले प्रभावों का वृहद अध्‍ययन।

 

सन्‍दर्भ ग्रन्‍थ सूची

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2.      Gautam K, Gupta R.P., Tiwari S.,” A Study of Pradhan Mantry kaushal Vikash Yojana in Rewa”, Vindhya Bharti- A Journal of APS University, Rewa M.P. ISSN-0976-9968, No.16 Vol 1, july 2018.

3.      Gautam K, Gupta R.P., Tiwari T, Tiwari S., “प्रशिक्षण एवं आर्थिक सहयोग के लिए शासकीय योजनायें और कार्यक्रम का अध्यन”, Journal of Emerging Technologies and Innovative Research (JETIR), ISSN-2349-5162, Volume 6, Issue 6, June 2019.

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Received on 23.10.2020            Modified on 03.11.2020

Accepted on 19.11.2020            © A&V Publications All right reserved

Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 2020; 8(3):181-189.