छपरा नगरवासियों के पोषक-गतिकी पर वैष्वीकरण का प्रभाव
अनिता कुमारी1, अरुणा कुमारी2
1षोध-अध्येता, जय प्रकाष विष्वविद्यालय छपरा बिहार.
2सहायक आचार्य, लोकमान्य महाविद्यालय, छपरा बिहार.
*Corresponding Author E-mail: tiwary_cb@rediffmail.com
सरांषरू
वैष्वीकरण का प्रभाव किसी भी समुदाय के पोषण परिवत्र्तन की ओर अग्रसर हैं क्योकि आज उपभोक्ता अधिक उर्जायुक्त भोजनों के प्रयोगात्मक मूल्यों से प्रभावित हो रहे हैं। वैष्वीकरण के माध्यम से बहुराष्ट्रीय कंपनियों के उत्पादो में षर्करा तथा वसा की मात्रा अधिक होने के कारण हम पोषण-संक्रमण की दौर से गुजर रहें है। वैष्वीकरण के आर्थिक मूल्यों की ओर केन्द्रीकरण से पारम्परिक भोजनों की अपेक्षा तैयार भोजनों या षीध्र पकने वाले भोजनों से गृहव्यवस्था में समय प्रबंधन तो हो रहा है, लेकिन मध्यम तथा निम्न आय वर्ग में अधिक षर्करा तथा वसायुक्त तैयार भोजनों के प्रति आकर्षण एवं दिनचर्या में उर्जा खपत के न्यूनीकरण से मोटापा बढ़ने के साथ ही मधुमेह तथा उच्चरक्तचाप जैसे बिमारियों की संभावना बढ़ रही है।
शब्द कुंजीरू नगरवासियों के पोषक-गतिकी पर वैष्वीकरण.
INTRODUCTION:
वैष्वीकरण को सामाजिक मूल्यों एवं सांस्कृतिक विरासतों से अलग वैष्विक उपलब्धियों में पूँजीगत अर्थव्यवस्थाओं का देन माना जाता है। इस उदारीकरण से पूँजीपतियों में लाभ वृद्धि लेकिन समाज के कमजोर वर्गो में अधिक कैलोरीयुक्त उत्पादों के प्रयोग से कुपोषण तथा संक्रमणषील पोषण की धारणा परिलक्षित हुई है।
किसी भी समुदाय के आहार-व्यवस्था तथा पोषण पर सामाजिक प्रवृति, संस्कृति तथा पारम्परिक मान्यताओं के प्रभाव के साथ ही भूमिका महत्वपूर्ण होती है। हाल के दषको में शीध्र परोसने योग्य भोजनों में कैलोरी की अधिक मात्राबं एवं दिनचर्या व्यस्त होने से आहार-व्यवस्था में क्रमषः परिवत्र्तन हो रहा है। वैष्वीकरण के प्रभाव से पारम्परिक भोजन का स्थान पिज्जा, बर्गर तथा चैमीन जैसे उत्पादों की बिक्री तथा उपभोग दर बढ़ रहा है।
छपरा नगरवासियों के पोषण पर नगरीकरण आय में वृद्धि, प्रत्यक्ष विदेषी निवेष तथा बाजार की उपलब्धता जैसे आंतरिक प्रवृत्तियों का प्रभाव स्वाभाविक रुप से दिख रहा है। यहाँ गाँवो से षहर की ओर प्रव्रजन से आय वृद्धि का प्रभाव नगरवासियों के खरीदने की क्षमता पर पड़ा है। हाल के वर्षो में पारम्परिक होटलों के स्थान पर अधिक उर्जावाले तैयार व्यंजनों वाले आधुनिक होटलों की संख्या बढ़ी है। आज धरेलू रसोई से लेकर आधुनिक होटलों में पिज्जा, बर्गर, मोमो तथा भारतीय पास्ता का प्रवेष हुआ है। हाँलाकि दक्षिण भारतीय व्यंजनों के प्रति भी लोगों का रुझान बढ़ा है। अब प्रोसेस्ड तथा ब्रांड भोजनों के प्रति समय पर उपलब्धता, विज्ञापनों के प्रभाव से नये भोजनों के प्रवेष हेत् आध्ुनिक होटलों का प्रचलन बढ़ने की प्रवृत्ति (एफएओ, 2004) कायम है।
षोध तकनीक:-
ठस अध्ययन में छपरा नगरवासियों के पोषण-परिवर्तन के लिए बाजार में उपलब्ध पारम्परिक भोजन उत्पादो के सापेक्ष गुणात्मक प्रक्रिया द्वारा एक सैद्धांतिक माॅडेल का निर्माण निहित है। इसमें एक समूह के साक्षात्कार द्वारा प्रतिदर्षो के चयन हेत् उत्तम प्रतिभागियों को अवसर दिया गया एवं इस प्रकार प्रष्नावली विधि से उत्तम प्रतिषत प्राप्त हुए। ऐसे अध्ययनों के लिए पूर्व के षोधार्थियों (बेकवेल तथा अन्य 2006 एव किम तथा अन्य 2009) ने भी साक्षात्कार विधि का प्रयोग किया है।
इस अध्ययन में विभिन्न सामाजिक-आर्थिक वर्गो से उत्तम प्रतिभागियों के व्यक्तिगत तथा समूह साक्षात्कार विधि का प्रयोग किया गया। यहाँ साक्षात्कार अवधि 30-35 मिनट रखकर लोगो के पोषण-परिवर्तन के मुख्य कारण तथा पारम्परिक भोजनों की अपेक्षा वैश्वीकरण के प्रभाव में कार्यस्त प्रभावी कारको का अध्ययन षामिल रहा। प्रतिभागियों की संख्या 100 रखी गयी थी।
परिणाम एवं विवेचना:-
इस षोधकार्य में जनसांख्यिकीय आँकड़ो में वर्गीकृत छपरा नगरवासियों के पारम्परिक भोजनों की अपेक्षा आधुनिक भोजनों की ओर आकर्षण के मुख्य कारणों को तालिका में रखा गया है।
सारणी 1ः आधुनिक भोजनों की ओर आकर्षण के मुख्य कारण
चित्र 1: पोषण-संक्रमण का पैटर्न
उपरोक्त चित्र में वैष्वीकरण के प्रभावों को स्पष्ट करने का प्रयास हुआ है। वैश्वीकरण द्वारा आये भोजन-उत्पादों से अधिक वसा तथा षर्करा की मात्रा छपरा नगरवासियों में मोटापा एवं हड्डी के रोगों में वृद्धि होती है। यह मान्यता हैं कि पोषण सम्बंधी असंक्रमषील रोगो की अधिकता हो जाती है। वैष्वीकरण से प्रभावित व्यक्ति व्यवहारिक परिवत्र्तन द्वारा इन बिमारियों से मुक्त हो सकता हैं ा
छपरा नगरवासियों के षारीरिक बनावट में परिवत्र्तन पर वैश्वीकरण का प्रभाव है। यहाँ वैश्वीकृत अधिक कैलोरीयुक्त भोजना के प्रयोग से विभिन्न उम्र-समूहों में मोटापा को षरीर-द्रव्यमान सूचकांक के रुप में लक्षित किया गया है। मोटापा में वृद्धि षरीर-द्रव्यमान में वृद्धि के साथ ही मधुमेंह एवं उच्च रक्तचाप जैसी बीमारियों को जन्म देता है। इसी तरह चित्र 3 में पारिवारिक आय का प्रभाव वैष्वीकृत्त भोजनों पर दर्षाने का प्रयास हुआ है। प्रायः उच्चवर्गीय आय वाले लोगों में अधिक कैलोरीयुक्त भोजन की सुगम उपलब्धता एवं समय की बचत को आधार माना गया है। छपरा नगरवासियों के षैक्षिक-स्तर का षीध्र तैयार भोजनों एवं षीतल पेयों पर प्रभाव डालता दिखता है। प्रायः उच्च षिक्षित लोगों में वैष्वीकृत भोजनों का आकर्षण कम है जो सारणी 2 में प्रदर्षित किया गया है।
सारणी 2ः छपरा शहर का जीएनपी एवं कैलोरीयुक्त पेय-पदार्थो का उपयोग
इस अध्ययन के सारणी-1 में प्राप्त आँकड़ों की वैद्यता पूर्व के अनुसंधानों (अली तथा अन्य, 2010, बिनहोकर तथा अन्य 2007, दोहारे, 2015) से समानता दिखाता है। प्रायः उच्चवर्ग की महिलाओं की कार्यषैली उत्तम लेकिन पोषण उर्जा उपभोग में कमी प्रदर्षित हुआ है। इस अध्ययन में निम्न सामाजिक वर्ग के महिलाओं की कार्यषैली मध्यम लेकिन पोषण-उर्जा के उपभोग में अधिक रुचि देखी गयी।
वैष्वीकरण से प्रभावित भोजन-उत्पादांे का असर नगरवासियों के शारीरिक बनावट पर स्पष्ट परिलक्षित हुआ है। इसी प्रकार के निष्कर्ष प्रारम्भिक अनुसंधान (पाॅपकिन, 2002) में भी स्पष्ट प्रदर्षित है। गुओ तथा अन्य (2002) का अध्ययन भी प्रस्तुत षोध के परिणामों को प्रमाणित करता है।
प्रायः पारिवारिक आय का प्रभाव पोषण-प्रवृतियों पर दिखता है। इस अध्ययन के परिणामों की प्रमाणिकता लोहर तथा अन्य (2007) के साथ ही ओसवाल्ड तथा अन्य (2012) तथा सिलोई तथा स्पीस (2012) के पूर्व अध्ययनों से समानता प्रदर्षित करता है। इसी प्रकार, सारणी-2 के शौक्षिक स्तरों का पोषण-प्रवृतियों पर परिणाम दर्षित है। यहाँ प्राप्त परिणामों की समानता डोक तथा अन्य (2005) के अध्ययन से दिखता है। छपरा नगरवासियों के जीएनजी का प्रभाव कैलोरीयुक्त पेय-पदार्थो के उपभोग पर परिलक्षित हुआ है।
निष्कर्षः-
अतः छपरा नगरवासियों के पोषण-प्रवृत्तियों का अध्ययन संक्रमण अवस्था दिखाता है। यहाँ पारंपरिक से वैश्वीकृत भोजनों की ओर उत्तरोत्तर आकर्षण बढ़ने के अनेक कारणों का मुल केन्द्र सामाजिक आर्थिक स्थिती से प्रभावित हुआ है।
संदर्भसूचीः-
1. अली जे, कपूर एस एंड मूर्ति जे (2010) बाइंग बिहेवियर आॅफ कनज्यूमर्स फोर फुड इन एन इमर्जिंग इकोनोमी, ब्रिटिष फुड जर्नल, 112 (2): 109-124
2. ओसवाल्ड एन तथा डिट्रीचसी (2012)ः सस्टेनेबल फुड कंसपषन एंड अर्बन लाईफ स्टाइल्सः द केस आॅफ हैदराबाद, इंडिया
3. बिनहाॅकर इडी, फाॅरेल डी एंड जैनुल्लाह एस (2007)ः ट्रेकिंग द ग्रोथ आॅफ इंडियाज मिडल क्लास, मैककिन्सी क्वार्टर्ली, 3ः50
4. बेकवेल जीएम, हेमंड एमएस, फिफ्षाॅसी एड स्मिथ जेए (2006)ःरिसर्च मेंथडस इन साइकोलाॅजी (थर्डं एडिषन), सेग लंदन
5. सिलोई तथा स्पीस एम (2004)ः पैकेजिंग एंड परचेज डिसीजंसः एन एक्सपलेनेटरी स्टडी आॅन द इम्पैक्ट आॅफ इंवोल्वमेंन्ट लेवल ऐड टाईम प्रेषर ब्रिटिष फुड, 106 (8)ः 607-628
6. दोहारे स्नेहा (2015)ः ए स्टडी आॅफ रिलेषनषिप एमिड कनज्यूमर एटीट्यूड एंड इंस्टान्ट फुड प्रोडक्टस इन उद्यम इंटरनेषनल जर्नल इन मैनेजमेंट एण्ड सोशल साईस, 3 (7)ः 557-586
7. किम एस एस, लीसी के, लोनोवस्की डीबी (2003)द इन्फ्लूएंस आॅफ एंड पुल फैक्टर्स एट कोरियन नेषनल पाक्र्स, ट्यूरिज्म मैनेजमेंन्ट (24)ः169-180
8. गुओ एक्स, रोज टी ए, पाॅपकिन बी एम एंड झााई एफ (2000)ःस्ट्रक्चरल चेन्जेज इन द इम्पेक्ट आॅफ इन्कम आॅन फुड कमसम्पषन इन चाइना, इकोडेव कल्चरल चेन्ज (48)ः737-760
9. डोकसीण्म तथा अन्य (2005)ः द ड्यूअल र्बउेन हाउस होल्उ एंड द न्यूट्रीषन ट्रांजिषन पैराडाॅक्स इंटरनेषलन जर्नल, 29ः 129-136
10. पाॅपकिन बीएम (2002)ः एन ओबरवियू आॅन द न्यूट्रीषन ट्रांजिषन एंड इट्स हेल्थ कम्पलीकेषंसः द बैलेजियम मीटिंग पब्लिक हेल्थ नेचर 5ः93-103
11. लोहर के एंड डिट्रीचसी (2007)ःचेन्जिंग फुड परचेजिंग एंड कंसम्पषन हेबिटस एमंग अर्बन मिडल क्लासेज इन हैदराबाद हम्बोल्ट यूनिवर्सिटी, बर्लिन, डिपाटमेंन्ट आॅफ एग्रीकल्चर इकोनाँमिक्स।
Received on 08.02.2021 Modified on 03.03.2021
Accepted on 24.03.2021 © A&V Publications All right reserved
Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 2021; 9(1):6-8.