छत्तीसगढ़ में वाणिज्यीकरण का मात्रा
(Degree of Commercialization in Chhattisgarh)
डाॅ. अनुसुइया बघेल1, डाॅ. टिके सिंह2
1प्राध्यापक, भूगोल अध्ययनशाला, पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर
2सहायक प्राध्यापक, भूगोल अध्ययनशाला, पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर
*Corresponding Author E-mail: anusuiya_baghel@yahoo.com, drtikesingh@gmail.com
ABSTRACT:
वाणिज्यीकरण की मात्रा कृषि विकास का एक अति विशिष्टि महत्वपूर्ण सूचक है। प्रस्तुत अध्ययन के उद्देश्य छत्तीसगढ़ में वाणिज्यीकरण की मात्रा ज्ञात करना तथा उसको प्रभावित करने वाले भौतिक, सामाजिक तथा आर्थिक कारकों की व्याख्या है। प्रस्तुत अध्ययन कृषि सांख्यिकीय 2015-16 पर आधारित है। छत्तीसगढ़ में वाणिज्यीकरण की मात्रा अति न्यून है। प्रदेश के पश्चिमी भाग में जो कि काली मिट्टी का क्षेत्र है, अखाद्य फसलों की अधिकता होने से वाणिज्यिक की मात्रा अधिक है। इसके विपरीत प्रदेश के दक्षिण भाग में बस्तर के पठार में वाणिज्यीकरण की मात्रा अति न्यून है, जबकि सरगुजा उत्तरी भाग में यह उच्च स्तर पर है। बस्तर के पठारी भाग में जनसंख्या यद्यपि कम है। फिर भी वाणिज्यीकरण की मात्रा कम है, क्योंकि विषम धरातल के कारण प्रति इकाई उत्पादकता कम है। निराफसली क्षेत्र एवं सिंचाई साधनों की कमी से खाद्य फसलों का उत्पादन कम होता है।
KEYWORDS: वाणिज्यीकरण, जोत, नवाचार
प्रस्तावना
वाणिज्यीकरण कृषि का सबसे महत्वपूर्ण प्रकार्यात्मक स्वरूप तंत्र तथा किसी क्षेत्र में कृषि विकास का अति विशिष्ट सूचक है। अतः इसकी मात्रा या स्तर कृषि की विशेषताओं की व्याख्या करता है। कृषि भूदृश्य एवं बहु-प्रकार्यात्मक रचना है, जिसमें फसलों, पशुओं तथा कृषीय उद्यमों, कृषि पद्धति, कृषि में गहनता की मात्रा तथा कृषीय उपजों के निस्तारण ;क्पेचवेंसद्ध के उद्देश्य का संयोजन पाया जाता है।
कृषि उपजों के निस्तारण के उद्देश्य को आधार पर नगदी या वाणिज्यिक फसलों के क्षेत्रों को निर्वाहक कृषि के क्षेत्रों से पृथक किया जा सकता है।
निर्वाहन कृषि के विपरीत वाणिज्यिक कृषि में वस्तुओं का उत्पादन विक्री के लिए किया जाता है। एण्डरसन (1970) के अनुसार वाणिज्यिक कृषि में पूंजी का उपयोग ट्रेक्टर, मशीनों उर्वरकों, पौध संरक्षण के साधनों, वेहतर नस्लों के पशुओं तथा अन्य अनेक प्राविधिक नवाचारों को खरीदने के लिए किया जाता है।
फार्म की थोडी सी उपज की स्थानीय रूप से विक्री मात्र से कृषि वाणिज्यिक नहीं हो जाती है, कृषि को तब तक वाणिज्यिक नहीं कहा जा सकता, जब तक कि इससे कमाए गए धन का उपयोग कृषक की घरेलू आवश्यकताओं की वस्तुएँ खरीदने के बाद खेती के लिए आधुनिक विनिष्ठयों को खरीदने में नहीं किया जाता है। वाणिज्यिक कृषि से संगठित कृषक बाजार की दशाओं से बहुत प्रभावित होते हैं, जबकि निर्वाहक कृषकों पर बाजार के उतार-चढ़ाव का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। इस प्रकार निर्वाहक कृषि तथा पूर्णतः वाणिज्यिक कृषि परस्पर सर्वथा भिन्न होती है। किंतु जब निर्वाहन कृषि वाणिज्यिक कृषि में परिवर्तित होने लगती है, तो उसको क्रमशः परिवर्तन की पद्धति को चिन्हित करना कठिन हो जाता है। वाणिज्यीकरण के स्तर का विश्लेषण स्थान, फार्म के आकार, फार्म परिवार के आकार, उद्यम के प्रकार तथा कृषकों के जीवन स्तर के अनुसार भिन्न-भिन्न होता है।
वाणिज्यीकरण, कृषि तथा कृषक की जीवन पद्धति के स्थानांतरण की प्रक्रिया है। इसमें परम्परागत निर्वाहक अर्थव्यवस्था बजारोन्मुख अर्थव्यवस्था में परिवर्तन होती है। इसलिए समय-समय पर वाणिज्यीकरण के स्तर को मापने की विभिन्न विधियाँ प्रयुक्त की गई है। जुहार सिंह (1979) ने नगदी के बदले में कृषीय उपज के अनुपात के अनुसार वाणिज्यीकरण के स्तर मापन के पक्ष में है। इस विधि को व्यवहार में लाने के लिए सर्वप्रथम विविध कृषीय उपजों को एक समान मापक पर रखना होता है। इसके लिए विभिन्न फसलों के उत्पादन तथा विक्री के अन्य तुल्याकों ;ळंपद मुनपसपअंसमदजेद्ध या धन मूल्य में बदलना पडता है। सिंह ने प्रायोजन फार्म उपज को चालू बाजार मूल्य के आधार पर धन में परिवर्तित करने के लिए निम्न सूत्र का उपयोग किया है-
क्षेत्रीय इकाई की बेची गई उपजों का धन में मूल्य
वाणिज्यीकरण का स्तर = ---------------ग 100
उसी क्षत्रीय इकाई की कुल कृषित उपजों का धन में मूल्य
पूर्वी देशों में नगदी फसलों के अंतर्गत शस्य भूमि का प्रतिशत तथा प्रति 1000 वर्ग किमी. कृषित क्षेत्र पर नियंत्रित कृषि विपणन केंद्रों के घनत्व का स्तर कृषि के वाणिज्यीकरण की मात्रा (स्तर) को मापने का सूचक है।
विश्व के अधिकांश कृषि प्रधान देशों की जनसंख्या अपनी आय का अधिकांश भाग कृषि व्यवसाय से प्राप्त करती है। कृषि क्षेत्र के अंतर्गत सामान्यतः सूक्ष्म तथा मोटे अनाजों से फार्म की आय का अधिकांश आय प्राप्त होता है। लघु आकार के जोतों के वर्ग में घरेलू उपयोग के लिए कृषीय उपजों का अंशदान अधिक होता है। अतः वाणिज्यीकरण का स्तर जोतों के आकार से संबंधित है। साथ ही वाणिज्यीकरण का उपज सूचकांक नगदी फसलों, व्यापारिक अन्न उत्पादन, दुग्ध व्यवसाय तथा मिश्रित कृषि अपनाने वाले बड़े आकार के फार्मों वाले क्षेत्रों में मिलता है।
किसी भी प्रदेश के विकास के स्तर को वहाँ की कृषि के व्यापारिक तथा विपणन संबंधी विश्लेषणों के आधार पर मापा जा सकता है। इसके अतिरिक्त कृषकों के आर्थिक स्तर, खाद्यान्न एवं वाणिज्यिक फसलों के उत्पादन का सापेक्षिक महत्व, कृषि उत्पादन के उपभोग की मात्रा तथा कृषि विकास की भावी योजनाओं, आदि कई तथ्यों का अध्ययन कृषि की विपणन संबंधी विशेषताओं से संबंधित है।
वर्तमान में सम्पूर्ण विश्व में वाणिज्यिक कृषि का महत्व बढ़ गया है। कृषि में वाणिज्यीकरण को प्रभावित करने वाले कई कारक हैं। इसमें विकसित और विकासशील दोनों देशों के अर्थव्यवस्था में तीब्र वृद्धि, नई तकनीकी का ज्ञान, बाजार का विस्तार, व्यापार का उदारीकरण ;स्पइमतप्रंजपवदद्ध, नगरीकरण, भोजन के लिए मांग में तीब्र वृद्धि, कृषि जनसंख्या में कमी, कृषि क्षेत्रों में सुविधाओं में विकास और शासकीय कृृषि नीति महत्वपूर्ण है। कृषि में वाणिज्यीकरण कोई नई घटना अधोसंरचनात्मक नहीं है। 1950 के आसपास कई देशों में किसान वाणिज्यीकरण कृषि की ओर आकृष्ठ हुए हैं (डंींसपलंदंकतंबीबीपए त्ण् च्ण् ंदक त्ण् ।ण् डण् ैण् ठंदकंदंए 2006)। ज्ीम थ्ववक ंदक ।हतपबनसजनतम व्तहंदप्रंजपवद ;थ्।न्द्ध 1989 ने कुल उत्पादन में बाजार योग्य अतिरिक्त उत्पादन के आधार पर कृषकों कों तीन वर्गों में रखा है-
1. जीवन मूलक कृषक ;ैनइेपेजमदबम थ्ंतउमतेद्ध . बाजार योग्य अतिरिक्त उत्पादन, कुल उत्पादन का 25 प्रतिशत से कम हो।
2. ज्तंदउपजपवद थ्ंतउमते . बाजार योग्य अतिरिक्त उत्पादन, कुल उत्पादन का 25 से 50 प्रतिशत हो।
3. व्यापारिक कृषक ;ब्वउउमतबपंस थ्ंतउमतेद्ध . बाजार योग्य अतिरिक्त उत्पादन, कुल उत्पादन का 50 प्रतिशत से अधिक हो।
अध्ययन के क्षेत्र ;ैजनकल ।तमंद्ध
नवगठित छत्तीसगढ़ राज्य का गठन भारत के 26 वें राज्य के रूप में 1 नवम्बर 2000 को हुआ। क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत में प्रदेष का स्थान 11 वां एवं जनसंख्या की दृष्टि से 17 वां है। छत्तीसगढ़ 17°46श् से 20°6श् उत्तरी अक्षांष एवं 80°15श् से 84°24श् पूर्वी देषांष के मध्य 1,35,194 वर्ग कि.मी. क्षेत्र में विस्तृत है। 2011 की जनसंख्या के अनुसार छत्तीसगढ़ की कुल जनसंख्या 2,55,45,198 है। प्रदेष में जनसंख्या का घनत्व 189 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है। 2001 से 2011 के दषक में राज्य की जनसंख्या में 22.6 प्रतिषत की वृद्धि हुई है। राज्य की 76.8 प्रतिषत जनसंख्या गाँव में निवास करती है। राज्य की 12.8 प्रतिषत जनसंख्या अनुसूचित जाति एवं 30.6 प्रतिषत जनसंख्या अनुसूचित जनजातियों की है। राज्य की कुल जनसंख्या में से 71.04 प्रतिषत जनसंख्या साक्षर है।
छत्तीसगढ़ प्रायद्वीप भारत का एक भाग है जो प्रचीन गोंडवाना लैंड का एक हिस्सा है। प्रदेश के उत्तरी एवं दक्षिणी भागों में आर्कियन शैल समूह का सर्वाधिक विस्तार है। दण्डकारण्य का अधिकांश भाग इसी चट्टानों से निर्मित है। प्रदेश के मैदानी भागों में कडप्पा चट्टानें पाई जाती है। महानदी बेसिन और मध्यवर्ती मैदान में चट्टानें कडप्पा शैल समूह की हैं। हसदो, केलो तथा मांड नदी घाटियों पर गोंडवाना समूह के बाराकर सीरीज के दृश्यांश पाये जाते हैं। क्षेत्र की प्रमुख नदी महानदी तथा एवं उनकी सहायक नदियों का प्रवाह क्षेत्र है। महानदी बेसिन का ढ़ाल पूर्व की ओर है। छत्तीसगढ़ का मैदान चारों ओर से उच्च भूमि द्वारा घिरा हुआ है। यह उच्च भूमि गोंडवाना और डक्कन ट्रैप इत्यादि शैल समूहों द्वारा निर्मित है। उत्तर में जशपुर सामरी पाठ प्रदेश प्राचीन शैलों से निर्मित है इसके अंतर्गत सामरी पाट, जशपुर पाट और मैनपाट शामिल है। दण्डकारण्य प्रदेश छत्तीसगढ़ के दक्षिण भाग में स्थित है। दण्डकारण्य मध्य पश्चिम में अबूझमाड की पहाडियों स्थित है। यह क्षेत्र इंद्रावदी नदी का प्रवाह क्षेत्र है। प्रदेश में दक्षिण-पश्चिम मानसूनी जलवायु से वर्षा होती है। अतः यहां की जलवायु को मानसूनी जलवायु कहते है। छत्तीसगढ़ के उत्तरी भाग से कर्क रेखा गुजरती है। जिसके कारण यहां अधिक गर्मी पढ़ती है। कृषि के अध्ययन के वर्षा का महत्वपूर्ण स्थान होता है। छत्तीसगढ़ में सर्वाधिक वर्षा के क्षेत्र (150 सेमी. से अधिक) जशपुर, रायगढ़ और दण्डकारण्य प्रदेश है। छत्तीसगढ़ में कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 44.21ः वनाच्छाादित है। छत्तीसगढ़ में महानदी घाटी के निचले भागों पर कन्हार मिट्टी पाई जाती है। यह प्रदेश की सबसे उपजाउ मिट्टी है। प्रदेश के उत्तरी एवं दक्षिणी भागों में भाठा मिट्टिी पाई जाती है। जिसमें जल धारण की क्षमता कम होती है।
अध्ययन के उद्देश्य ;व्इरमबजपअमेद्ध
प्रस्तुत शोधपत्र के उद्देश्य निम्नलिखित हंै -
1. छत्तीसगढ़ में वाणिज्यीकरण की मात्रा एवं स्तर को ज्ञात करना।
2. प्रदेश की वाणिज्यीकरण की मात्रा को प्रभावित करने वाले भौतिक, सामाजिक और आर्थिक कारकों की व्याख्या करना है।
आंकडों के स्रोत एवं विधितंत्र ;ैवनतबमे व िक्ंजं ंदक डमजीवकवसवहलद्ध
प्रस्तुत शोधपत्र कृषि सांख्यिकी ;।हतपबनसजनतंस ैजंजपेजपबेद्ध एवं कृषि संगणना ;।हतपबनसजनतम ब्मदेनेद्ध 2015-16 छत्तीसगढ़ पर आधारित है। आनाज, खाद्यान्न, खाद्य फसल, अखाद्य फसल के आंकड़े प्रदेश के सभी जिलों के लिए उपलब्ध हैं एवं वाणिज्यीकरण की मात्रा एवं स्तर सभी 27 जिलों के लिए ज्ञात की गई है। वणिज्यीकरण की मात्रा को प्रभावित करने वाले कारकों निराफसली क्षेत्र, सिंचाई का प्रतिशत, रासायनिक खाद, आधुनिक कृषि यंत्रों का उपयोग के साथ सहसंबंध गुणांक ;ब्वततमसंजपवद ब्वमििपबपमदजद्ध ज्ञात किया गया है।
सम्पूर्ण भारत के समान छत्तीसगढ़ प्रदेश की कृषि भी खाद्यान्न प्रधान है। अतः कृषक अपने उत्पादन का एक बडा हिस्सा उपभोग करने के बाद वस्त्र, मकान, शिक्षा जैसी अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु बाजार में बेच देता है। कुछ कृषक ही पूर्णतः उत्पादित फसलों ;ब्ंेी बतवचेद्ध पर निर्भर करता है। परंतु इनकी संख्या नगण्य है। वाणिज्यीकरण की मात्रा कृषि को प्रभावित करने वाला एक महत्वपूर्ण कारक है। साथ ही कृषि विकास का एक प्रमुख सूचकांक है। निर्वाहमूलक एवं वाणिज्यिक कृषि में पैमाना एवं पूंजी निवेश का बहुत अंतर होता है। निर्वाहमूलक कृषि में जोत का आकार छोटा एवं पूृंजी निवेश अल्प होता है। जबकि व्यपारिक कृषि में फार्माें का आकार बड़ा होने के कारण टेªक्टरों और कृषि यंत्रों, सिंचाई, कीटनाशक दवाओं, उरर्वकों, उन्नत किस्म के बीज और उन्नत तकनीक को अपनाया जाता है। क्योंकि इससे कृषि का उद्देश्य अत्यधिक लाभ प्राप्त करना होता है।
वाणिज्यीकरण की मात्रा से तात्पर्य कुल फसलों के उत्पादन में से कितना प्रतिशत उत्पादन विक्रय के लिए बाजारों में जाता है। वाणिज्यीकरण की मात्रा ज्ञात करने के लिए कुल उत्पादन में वाणिज्यिक उत्पादन के आनुपातिक प्रतिशत की विधि का उपयोग किया जाता है। जे. कोस्ट्रोविकी (1974) ने वाणिज्यीकरण की मात्रा ज्ञात करने के लिए समस्त फसलों के उत्पादन को मानक इकाईयों में परिवर्तन करने की सलाह दी है। तत्पश्चात् निम्नलिखित सूत्र के अनुसार वाणिज्यीकरण की मात्रा ज्ञात की जा सकती है।
कुल वाणिज्यिक फसलों का उत्पादन
वाणिज्यीकरण की मात्रा = --------------× 100
कुल फसलों का उत्पादन
छत्तीसगढ़ प्रदेश में खाद्यान्न फसलों की तुलना में वाणिज्यिक फसलों के उत्पादन का अधिकांश हिस्सा कृषकों एवं कृषि श्रमिकों के परिवार की निजी खपत के लिए उपयोग में लाया जाता है और शेष उत्पादन को बाजार में विक्रय हेतु भेजा जाता है। अतः वाणिज्यीकरण की मात्रा को ज्ञात करने के लिए न केवल वाणिज्यिक फसलों के उत्पादन को आधार बनाना होगा, वरन् खाद्यान्न की बचत की मात्रा (बाजार के लिए अतिरिक्त उपज) को भी ज्ञात करना आवश्यक है। किंतु प्रदेश मेें बाजार योग्य अतिरिक्त उत्पादन से संबंधित आंकडें उपलब्ध नहीं है। अतः वाणिज्यिक उत्पादन मुख्यतः बाजार योग्य खाद्यान्नों के अतिरिक्त उपज तथा नगद फसलों के उत्पादन की मात्रा पर निर्भर है। प्रदेश में अखाद्यान्न फसलों के उत्पादन के आंकडों का संकलन पृथक स्तर से उपलब्ध है। परंतु बाजार योग्य खाद्यान्नों के उत्पादन के अतिरिक्त उपज की मात्रा से संकलित आंकडों का संकलन नहीं है। अतः अर्थशास्त्रियों ने बाजार योग्य अतिरिक्त खाद्यान्न ज्ञात करने के लिए निम्न सूत्र का सुझाव दिया है-
ड त्र च्.ब़्त्
ड त्र बाजार योग्य अतिरिक्त खाद्यान्न
च् त्र कुल खाद्यान्नों का उत्पादन
ब् त्र प्रति व्यक्ति (ग्रामीण जनसंख्या) 518 ग्राम (2250 कैलोरी) प्रतिदिन की दर से वर्ष भर का उपयोग
त् त्र विभिन्न उद्देश्यों के लिए खाद्यान्नों का उपयोग कुल उत्पादन का 12.5 प्रतिशत बीज, पशुओं के भोजन तथा उपव्यय के लिए।
इसके पश्चात् अखाद्यन्न फसलों के कुल उत्पादन तथा नगद योग्य खाद्यान्नों के उत्पादन का योग कर कुल वाणिज्यिक उत्पादन की मात्रा ज्ञात की गयी है।
कुल वाणिज्यिक फसलों का उत्पादन
(बाजार योग्य खाद्यान्नों के अतिरिक्त उपज ़ अखाद्यान्न फसलें )
वाणिज्यीकरण की मात्रा = --------------× 100
कुल फसलों का उत्पादन
सारणी क्र. 1 में प्रदेश के सभी 27 जिलों में वाणिज्यीकरण की मात्रा को प्रदर्शित किया गया है। प्रदेश में वाणिज्यीकरण की औसत मात्रा 39.0 प्रतिशत है, जो कि निम्न वाणिज्यीकरण की मात्रा का द्योतक है। सामान्यरूप से 20 प्रतिशत से कम वाणिज्यीकरण की मात्रा होने पर कृषि जीविका मूलक, 20 से 40 प्रतिशत होने पर अर्द्ध जीविका सूचक, 40 से 60 प्रतिशत होने पर कृषि अर्द्ध व्यापारिक होता है। 60 से 80 प्रतिशत वाणिज्यिक की मात्रा व्यापारिक कृषि का सूचक है और 80 प्रतिशत से अधिक होने पर यह उच्च व्यापारिक कृषि को स्पष्ट करता है। प्रदेश में निम्न वाणिज्यीकरण की मात्रा का कारण उसके कृषि के अर्द्ध जीविका मूलक स्वरूप है, जिसमें लघु जोतों की संख्या अधिक, सिंचाई की साधनों की कमी, प्रति हेक्टेयर खाद्यान्नों की कम उत्पादकता, कृषि यंत्रों एवं उर्वरकों का सीमित प्रयोग आदि अनेक कारक सम्मिलित है।
वाणिज्यीकरण की मात्रा ;क्महतमम व िब्वउउमतबपंसप्रंजपवदद्ध किसी भी क्षेत्र में वाणिज्यीकरण के स्तर से वहाँ के कृषकों की आर्थिक स्थिति तथा कृषि के विकास में विभिन्न फसलों के सघन एवं कृषि की स्थिति, आदि अनेक महत्वपूर्ण तथ्यों की जानकारी प्राप्त होती है। कुल कृषि भूमि पर प्रति हेक्टेयर वाणिज्यिक फसलों के उत्पादन की मात्रा ही कृषि के वाणिज्यीकरण की स्तर को व्यक्त किया जाता है। यदि कृषि उत्पादकता तथा वाणिज्यिक फसलों का उत्पादन निम्न स्तर पर हो तो वाणिज्यीकरण का स्तर भी निम्न होगा।
कुल वाणिज्यिक उत्पादन की गणना के पूर्व अनेक फसलों के उत्पादन को मानक इकाई में बदला गया है ताकि फसलों के उत्पादन का एक ही मापदंड निर्धारित हो सके। वाणिज्यीकरण के स्तर ;स्मअमस व िब्वउउमतबपंसप्रंजपवदद्ध को ज्ञात करने के लिए निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया गया है -
कुल वाणिज्यिक उत्पादन
(मानक इकाई में)
वाणिज्यीकरण की स्तर = ----------------- कुल उत्पादन भूमि
वाणिज्यीकरण का स्तर (प्रति हेक्टेयर/क्विंटल में)
पूरे छत्तीसगढ़ में वाणिज्यीकरण की मात्रा 39.0 प्रतिशत है जो कि निम्न वाणिज्यीकरण की मात्रा को व्यक्त करता है। वाणिज्यीकरण की मात्रा प्रदेश के धमतरी जिले में सर्वाधिक 59.8 प्रतिशत और सबसे कम बलौदाबाजार जिले में 15.4 प्रतिशत है। प्रदेश के जिलों को वाणिज्यीकरण की मात्रा के आधार पर तीन भागों में बाँटा गया है (मानचित्र 1)
1. अपेक्षाकृत मध्यम वाणिज्यीकरण की मात्रा के क्षेत्र (40 से 60 प्रतिशत)
2. निम्न वाणिज्यीकरण की मात्रा के क्षेत्र (20 से 40 प्रतिशत)
3. अति निम्न वाणिज्यीकरण की मात्रा के क्षेत्र (20 प्रतिशत से कम)
1. अपेक्षाकृत मध्यम वाणिज्यीकरण की मात्रा के क्षेत्र ;।तमंे व ित्मसंजपअमसल डमकपनउ क्महतमम व िब्वउउमतबपंसप्रंजपवदद्ध
इस वर्ग में प्रदेश के 13 जिले शामिल है, जहाँ वाणिज्यीकरण की मात्रा 40 प्रतिशत से अधिक है। इनमें से चार जिले में यह प्रतिशत 50 प्रतिशत से भी अधिक है। वाणिज्यीकरण की मात्रा धमतरी जिले में 59.8, बेमेतरा जिले में 57.0, जांजगिर-चांपा जिले में 52.9 प्रतिशत और बालोद जिले में 50.8 प्रतिशत है (सारणी 1)। वाणिज्यीकरण के अधिक मात्रा के क्षेत्र प्रदेश के मध्यवर्ती मैदानी क्षेत्र में पाया गया है। जहाँ कृषि भूमि अधिक है। साथ ही खाद्यान्न उत्पादन की मात्रा भी अधिक है, जिससे बाजार योग्य अतिरिक्त उत्पादन की मात्रा अधिक है। मुंगेली, बेमेतरा, कबीरधाम, राजनाँदगाँव, धमतरी तथा बालोद जिले में अखाद्यान्न फसलों का उत्पादन अधिक है। इसका कारण मैकल श्रेणी क्षेत्र से बहाकर लाई गई उपजाऊ काली मिट्टी है। इन क्षेत्रों में सिंचाई की सुविधा भी अधिक है। रायपुर जिले में निराफसली क्षेत्र का 82 प्रतिशत सर्वाधिक है। जांजगिर-चांपा और धमतरी जिले में निराफसली क्षेत्र का 78 प्रतिशत भूमि एवं दुर्ग जिले में 61 तथा बालोद जिले में 51 प्रतिशत क्षेत्र सिंचित है। इसके विपरीत बस्तर के पठार के अंतर्गत सुकमा एवं दंतेवाड़ा जिले में सिंचित भूमि शून्य है। इन क्षेत्रों में साक्षरता अधिक होने तथा सम्पन्न कृषक तथा महत्वाकांक्षी कृषक समुदाय के कारण उरर्वकों तथा कीटनााशक दवाईयों तथा उन्नत बीजों का अधिक उपयोग किया जाता है। प्रदेश के दक्षिण में बस्तर के पठार के अंतर्गत दंतेवाड़ा तथा सुकमा जिले तथा उत्तर में देवगढ़ उच्च भूमि के अंतर्गत जशपुर जिले में वाणिज्यीकरण की मात्रा मध्यम (40-50 प्रतिशत) है। इन क्षेत्रों में अल्प जनसंख्या घनत्व तथा अखाद्यान्न फसलों विशेषकर तिलहन फसलों की अधिकता है।
यद्यपि इन क्षेत्रों में जनसंख्या का ग्रामीण घनत्व बहुत अधिक है। यह घनत्व जांजगिर-चांपा जिले में 313, दुर्ग जिले में 266 एवं बेमेतरा जिले में 255 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी. है, किंतु इन जिलों में कृषि की उपयुक्त दशा उपलब्ध होने के कारण प्रति हेक्टेयर उत्पादन अधिक है। इन जिलों में धान प्रदेश की प्रमुख फसल है। प्रति हेक्टेयर उत्पादन क्रमशः1.45 मि. टन से अधिक है। यही कारण है कि बाजार योग्य अतिरिक्त उत्पादन की मात्रा इन जिलों में अधिक है साथ ही इन जिलों में अखाद्यान्न व्यापारिक फसलों का उत्पादन अपेक्षाकृत अधिक है। कुल उत्पादन में अखाद्यान्न फसलों का प्रतिशत कबीरधाम जिले में यह 11.6ः, बेमेतरा जिले में 5.7ः राजनाँदगाँव जिले में 3.7ः, मुंगेली जिले में 2.1ः, महासमुंद तथा दुर्ग जिले में 2ः है। अतः इन जिलों में उत्पादन अधिक होने के साथ-साथ कुल वाणिज्यिक उत्पादन की मात्रा अधिक है। दुर्ग, बेमेतरा, मुंगेली एवं कबीरधाम जिलों में अखाद्यान्न फसलों में सोयाबीन एवं अलसी प्रमुख हैं।
इन क्षेत्रों में निराफसली क्षेत्र प्रतिशत अधिक है। निराफसली क्षेत्र का प्रतिशत बेमेतरा जिले में 78.6 प्रतिशत, मुंगेली जिले में 77.5 प्रतिशत, जांजगिर-चांपा जिले में 70.3 प्रतिशत, धमतरी जिले में 68.6 प्रतिशत, दुर्ग जिले में 63.3 प्रतिशत एवं बालोद जिले में 63.8 प्रतिशत है। कृषि भूमि अधिक होने के साथ इन जिलों में सिंचाई की सुविधाओं का विस्तार अधिक हुआ है। जिससे द्विफसली क्षेत्रों का प्रतिशत अधिक है, जिससे कुल फसली क्षेत्र में वृद्धि हुई है। सिंचाई सुविधाओं में वृद्धि से रबी फसलों के प्रतिशत में भी वृद्धि हुई है, जिससे कुल उत्पादन में वृद्धि संभव हुआ है। मुंगेली जिले में कुल निराफसली क्षेत्र 62.9 प्रतिशत, बेमेतरा जिले में 50.3 प्रतिशत, धमतरी जिले में 50.8 प्रतिशत, बालोद जिले में 44.6 प्रतिशत एवं दुर्ग जिले में 30.9 प्रतिशत सिंचित क्षेत्र है। यही कारण है कि रबी फसलों का प्रतिशत बेमेतरा जिले में 41.6 प्रतिशत, मुंगेली जिले में 43.7 प्रतिशत, बालोद जिले में 31.2 प्रतिशत, धमतरी जिले में 28.3 प्रतिशत एवं दुर्ग जिले में 26.6 प्रतिशत है। इन जिलों में प्रति हजार निारफसली क्षेत्र में ट्रेक्टर की संख्या 20 से अधिक है। प्रति हजार निराफसली क्षेत्र में ट्रेक्टर की संख्या धमतरी जिले में 25, रायपुर जिले में 22, दुर्ग जिले में 20 तथा महासमुंद एवं बेमेतरा जिले में 18 है। इन जिलों में 75 प्रतिशत से अधिक क्षेत्रों में रासायनिक उरर्वकों का उपयोग किया जाता है। प्रति हेक्टेयर फसलों का उत्पादन इन जिलों में 1.45 मि. टन से अधिक है। प्रति हेक्टेयर फसलों का उत्पादन धमतरी जिले में 2.14, दुर्ग जिले में 1.53, मुंगेली जिले में 1.49 और बेमेतरा जिले में 1.48 और बालोद जिले में 1.45 मि. टन है। ये क्षेत्र समतल मैदानी उपजाऊ मिट्टी का क्षेत्र है। प्रति हेक्टेयर फसलों का उत्पादन इन क्षेत्रों में अधिक है। इसका प्रमुख कारण कृषकों द्वारा रासायनिक खाद, कीटनाशी दवाईयों एवं प्रमाणित बीजों का उपयोग तथा आधुनिक कृषि यंत्रों का उपयोग है। मध्यम वाणिज्यीकरण के क्षेत्र में शामिल जिलों धमतरी, जांजगिर-चांपा, बालोद, बेमेतरा, मुंगेली एवं दुर्ग जिलों में वाणिज्यीकरण की स्तर अपेक्षाकृत मध्यम है।
कबीरधाम जिले में अखाद्यान्न फसलों का प्रतिशत (11.6 प्रतिशत) अधिक है। यही कारण है कि कबीरधाम जिले अतिरिक्त बाजार योग्य उपज कम होने के बाद भी वाणिज्यीकरण की मात्रा मध्यम स्तर पर है। इस जिले में अखाद्यान्न फसलों का उत्पादन बाजार योग्य खाद्यान्न फसलों का आधा है। अखाद्यान्न फसलों का उत्पादन जांजगिर-चांपा, रायपुर, धमतरी एवं बालोद जिलों में 0.5 प्रतिशत से कम है। किंतु खाद्यान्न फसलों का उत्पादन अधिक होने से बाजार योग्य अतिरिक्त उपज प्राप्त हो जाती है। वाणिज्यीकरण का स्तर धमतरी जिले में 1.93, जांजगिर-चांपा जिले में 1.49 बेमेतरा एवं मुंगेली जिले में 1.07 और बालोद जिले में 1.01 उच्च है।
2. निम्न वाणिज्यीकरण की मात्रा के क्षेत्र
छत्तीसगढ़ प्रदेश में निम्न वाणिज्यीकरण की मात्रा के वर्ग में प्रदेश के 9 जिले शामिल है। इस वर्ग में वाणिज्यीकरण की मात्रा 20 से 40 प्रतिशत है। इनमें बीजापुर और बिलासपुर जिले में वाणिज्यीकरण की मात्रा अपेक्षाकृत न्यून क्रमशः 36.1 तथा 33.4 प्रतिशत है। इसमें मुख्य रूप से प्रदेश के उत्तर में सरगुजा उच्चभूमि तथा मध्यवर्तीय मैदानी क्षेत्र में रायपुर तथा गरियाबंद जिले शामिल है। इन जिलों में यद्यपि जनसंख्या का घनत्व कम है तथापि खाद्यान्न फसलों की उत्पादकता कम है। कृषि पूर्णताः वर्षा पर आधारित है। कृषि मानसून पर अधारित होने से कृषि फसलों का उत्पादन बहुत अधिक प्रभावित होता है। यहाँ तिल, आलू, मक्का के अंतर्गत पर्याप्त क्षेत्रफल है, किंतु इनका स्थानीय उपभोग अधिक होने के कारण बाजार योग्य बचत कम है। देवगढ़-रायगढ़ उच्चभूमि में पहाड़ी होने के कारण यातायात के साधन सीमित और विपणन व्यवस्था भी दोषपूर्ण है।
इन क्षेत्रों में जनसंख्या का ग्रामीण घनत्व बहुत ही कम है। यह घनत्व सुकमा जिले में 39, बीजापुर में 34 और दंतेवाड़ा जिले में 63 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी. है। इसी तरह कोरिया जिले में 76 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी. है, किंतु विषम धारातल के कारण केवल खाद्यान्न फसलों का उत्पादन हो पाता है। सिंचाई सुविधाओं की कमी है। इन क्षेत्रों में धान का क्षेत्र कुल फसली क्षेत्र के 40ः से भी कम क्षेत्र है। इन विषम धरातल के क्षेत्रों में आनाज कोदो, कुटकी, मक्का की कषि बहुतायत से की जाती है। अखाद्यान्न फसलों का उत्पादन प्रदेश के दक्षिण भाग में 1ः से भी कम है। प्रदेश के उत्तर में वाणिज्यिक फसलों का प्रतिशत सरगुजा जिले में 4.3ः, सूरजपुर में 4.2ः एवं कोरिया जिले में 2.5ः अपेक्षाकृत अधिक है। तथापि इन क्षेत्रों में वाणिज्यीकरण का स्तर न्यून है। इन क्षेत्रों में अखाद्यान्न फसलों में तिल, सरसों और अलसी प्रमुख हैं।
अखाद्यान्न फसलें जिन क्षेत्रों में अधिक है उन क्षेत्रों में वाणिज्यीकरण की मात्रा अधिक हो यह आवश्यक नहीं है, क्यांेकि छत्तीसगढ़ में अखाद्यान्न फसलों का प्रतिशत मात्र 2.2 प्रतिशत है, जिनका योगदान वाणिज्यीकरण की मात्रा निर्धारण में योगदान कम है।
3. अति निम्न वाणिज्यीकरण की मात्रा के क्षेत्र ;।तमंे व िटमतल स्वू क्महतमम व िब्वउउमतबपंसप्रंजपवदद्ध
छत्तीसगढ़ प्रदेश के पाँच जिलों में वाणिज्यीकरण की मात्रा 20 प्रतिशत से भी कम है। इनमें बलौदाबाजार, बस्तर, कोंडागाँव, बलरामपुर और नारायणपुर जिले इस वर्ग के अंतर्गत शामिल हंै। इसमें मुख्य रूप से बस्तर के पठार शामिल है। यहाँ की कृषि पूर्णतः जीविका मूलक है। विषम धरातल, वनाच्छादित तथा दुर्गम क्षेत्र होने के कारण वाणिज्यीकरण की मात्रा कम है, क्योंकि खाद्यान्न की उत्पादकता कम है, जो कि सिंचाई के साधनों की कमी, विषम धरातल, साथ ही साक्षरता की कमी से तकनीकी ज्ञान की कमी से संबंधित है। इन क्षेत्रों में सिंचाई के साधन नगण्य है। उरर्वकों का उपयोग अत्यन्त न्यून है।
इन क्षेत्रों में जनसंख्या अत्यंत विरली है। बस्तर के पठारी क्षेत्र में जनसंख्या का ग्रामीण घनत्व नारायणपुर जिले में 17 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी. है। किंतु उत्पादन अत्यन्त न्यून होने के कारण वाणिज्यीकरण की मात्रा न्यून है। इसी तरह से इन क्षेत्रों में खद्यान्न फसलों की कमी है। अखाद्यान्न फसल अत्यन्त कम होने के कारण बाजार योग्य अतिरिक्त उत्पादन बहुत ही कमी है।
अति निम्न वाणिज्यीकरण मात्रा के क्षेत्र हैं। प्रदेश के उत्तरी एवं दक्षिणी विषम पहाड़ी क्षेत्र है। इन क्षेत्रों में अनुसुचित जनजातियों की प्रधानता है। जनसंख्या का घनत्व यद्यपि इन क्षेत्रों में कम है किंतु विषम धरातल, कृषि की पिछड़ी दशा के कारण कृषि उत्पादन कम है। जनसंख्या का घनत्व नारायणपुर जिले में 17 प्रति वर्ग किमी. ग्रामीण जनसंख्या का घनत्व है। अर्थात् भोज्य पदार्थों में खर्च कम होता है। किंतु इन क्षेत्रों में प्रति हेक्टेयर उत्पादन कम होने से बाजार योग्य अतिरिक्त उपज कम मिल पाता है। इन क्षेत्रों में विषम धरातल, अनुसुचित जनजाति का निरक्षर होना, घने वन, सिंचाई के साधनों का अभाव कृषि के उन्नत उपकरणों का कम उपयोग से फसलों का उत्पादन बहुत कम है। इन क्षेत्रों में सिंचाई निराफसल का 2ः से भी कम है। कृषि नवाचार का स्तर भी निम्न है। इसके अतिरिक्त कृषि वाणिज्यिक फसल का उत्पादन 1ः से भी कम है। मात्र बलरामपुर जिले में वाणिज्यिक फसल 5.8 प्रतिशत है।
प्रदेश के उत्तरी भाग में आखाद्यान्न फसलों का प्रतिशत बलरामपुर जिले में 5.8, सरगुजा जिले में 4.3, सूरजपुर जिले में 4.2, जशपुर जिले में 3.9, रायगढ़ जिले में 3.3 एवं कोरिया जिले में 2.5 प्रतिशत है। ये सभी जिले विषम धरातल के क्षेत्र हैं। जिससे निराफसल क्षेत्र का प्रतिशत 45 प्रतिशत से कम है। सिंचाई 15 प्रतिशत से कम क्षेत्र में उपलब्ध है, जिससे द्विफसली एवं रबी क्षेत्र मात्र 10 से 15 प्रतिशत है, जिससे उत्पादन कम होने से बाजार योग्य फसल नहीं बच पाता है। यही कारण है कि इन जिलों में अखाद्यान्न फसल अपेक्षाकृत अधिक होते हुए भी वाणिज्यीकरण मात्रा न्यून है।
इसके विपरीत प्रदेश के दक्षिण में बस्तर के पठार में अखाद्यान्न फसल 1.0 प्रतिशत से भी कम है। इन क्षेत्रों में पहाडी विषम धरातल एवं उनुपजाऊ मिट्टी के कारण निराफसल का क्षेत्र 45 प्रतिशत से कम है। बस्तर के पठार में सिंचाई सुविधा निराफसली क्षेत्र के 1 प्रतिशत से भी कम है जिससे रबी फसल तथा द्विफसली क्षेत्र का अभाव है। इन क्षेत्रों में द्विफसली क्षेत्र 3 प्रतिशत और रबी फसल 5 प्रतिशत से भी कम है। अतः यहाँ फसलों का उत्पादन बहुत ही कम है, जिसके कारण बाजार योग्य अतिरिक्त उपज नगण्य है। निष्कर्ष में इन क्षेत्रों में अखाद्यान्न फसलों की कमी तथा बाजार योग्य अतिरिक्त उपज की कमी से वाणिज्यीकरण का स्तर निम्न है। वाणिज्यीकरण का स्तर नारायणपुर जिले में 0.13, बलौदाबाजार एवं बलरामपुर जिले में 0.18 है।
छत्तीसगढ़ में वाणिज्यीकरण की मात्रा तथा प्रति हेक्टेयर उत्पादन के मध्य (़.69) सार्थक धनात्मक सहसंबंध पाया गया है। इसी तरह से निराफसली क्षेत्र (़.64), द्विफसली (़.659), रबी फसल (़.52), सिंचाई (़.413), रासायनिक खाद (़.33), प्रति 1000 हेक्टेयर निराफसली क्षेत्र पर आधुनिक कृषि यंत्रों विशेषकर (़.345) एवं प्रमाणिक बीजों के साथ (़.244) धनात्मक सहसंबंध पाया गया है। निष्कर्ष में यदि फसलों का उत्पादन की मात्रा अधिक होगा तो जनसंख्या की भोजन की आवश्यकताओं की पूर्ति के बाद भी बाजार योग्य अतिरिक्त उपज उपलब्ध हो जाती है।
जनसंख्या के घनत्व तथा वाणिज्यीकरण के स्तर के मध्य (़.26) धनात्मक सहसंबंध पाया गया है, यद्यपि यह सार्थक नहीं पाया गया है । इसका कारण जिन जिलों में उत्पादन अधिक है उन्हीं जिलों में जनसंख्या का घनत्व भी अधिक है। अतः जनसंख्या की भोज्य आवश्यकताओं की पूर्ति में खाद्य फसलों की खपत अधिक होती है और बाजार योग्य अतिरिक्त खाद्यान्न कम मिल पाता है।
निष्कर्ष
छत्तीसगढ़ प्रदेश में वाणिज्यीकरण की मात्रा न्यून है। वाणिज्यीकरण की मात्रा प्रदेश के धमतरी जिले में सर्वाधिक और सबसे कम बलौदाबाजार जिले में है। प्रदेश में मैकल श्रेणी क्षेत्र में वाणिज्यीकरण की मात्रा मध्यम है। इसके विपरीत बस्तर के पठारी भाग में यह अति न्यून है। जबकि देवगढ़ की उच्चभूमि में वाणिज्यीकरण की मात्रा न्यून है। मध्यम वाणिज्यीकरण के क्षेत्र में शामिल जिलों धमतरी, जांजगिर-चांपा, बालोद, बेमेतरा, मुंगेली एवं दुर्ग जिलों में वाणिज्यीकरण की स्तर मध्यम है। वाणिज्यीकरण की मात्रा निराफसली क्षेत्र, प्रति इकाई उत्पादन, जनसंख्या का घनत्व तथा अखाद्यान्न फसलों को उत्पादन पर निर्भर करता है। प्रति इकाई उत्पादन का संबंध सिंचाई सुविधा, उन्नत बीजों का उपयोग तथा रासायनिक उर्वरकों के उपयोग, उन्नत कृषि उपकरणों का उपयोग, कृषकों का तकनीकी ज्ञान पर निर्भर होता है। कबीरधाम जिले में वाणिज्यिक फसलों का उत्पादन यद्यपि सर्वाधिक है। विषम धरातल के कारण उत्पदान कम होने से बाजार योग्य अतिरिक्त खाद्यान्न उपज कम होने से वाणिज्यीकरण का स्तर मध्यम है। अतः जिन क्षेत्रों में अखाद्यान्न फसल अधिक है, उन क्षेत्रों में वाणिज्यीकरण का स्तर उच्च हो यह आवश्यक नहीं है। छत्तीसगढ़ में वाणिज्यिक स्तर तथा प्रति हेक्टेयर उत्पादन तथा निराफसली क्षेत्र के मध्य उच्च सार्थक धनात्मक सहसंबंध पाया गया है। जनसंख्या के घनत्व तथा वाणिज्यीकरण के स्तर मध्य धनात्मक सहसंबंध पाया गया है। यद्यपि यह उच्च स्तर पर सार्थक नहीं पाया गया है।
REFERENCES:
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Received on 06.03.2021 Modified on 21.03.2021
Accepted on 27.03.2021 © A&V Publications All right reserved
Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 2021; 9(1):48-56.