नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति- चुनौतियाँ एवं समाधान
डॉ. कुबेर सिंह गुरूपंच
प्राचार्य, देव संस्कृति कॉलेज ऑफ एजुकेशन एण्ड टेक्नोलॉजी खपरी, दुर्ग छग.
*Corresponding Author E-mail: kubergurupanch@gmail.com
ABSTRACT:
आधुनिक भारत में नई शिक्षा नीति का विशिष्ट महत्व है। इनसे रचनात्मक और नवाचार को महत्व मिलेगा प्रस्तुत शोधपत्र में उच्च शिक्षा मंत्रालय के द्वारा जारी शिक्षा नीति के बारे में बताया गया है। समय के साथ शिक्षा नीति में परिवर्तन आवश्यक होता है ताकि देश की उन्नति सही तरीके से और तेजी से हो सके। इसी चीज को ध्यान में रखते हुए नई शिक्षा नीति को 34 वर्षो के बाद लाया गया है। नई शिक्षा नीति का उद्देश्य पालको को केवल किताबी ज्ञान देना नहीं है बल्कि उन्हें व्यवहारिक ज्ञान भी देकर उनकी मानसिक बौद्धिक क्षमता को और भी ज्यादा प्रबल बनाना है शिक्षा किसी भी देश और समाज के विकास की महत्वपूर्ण आधार होता है। शिक्षा के बलबूते ही किसी भी देश का विकास तेजी से किया जा सकता है। हालांकि समय के साथ-साथ हर चीजों में बदलाव आता है और उसके अनुसार शिक्षा में भी बदलाव किया जाना चाहिए क्योंकि पहले समय में टेक्नोलाॅजी का इतना विकास नहीं हुआ था लेकिन अब दिन प्रतिदिन टेक्नोलॉजी का विकास होते जा रहा है, लोग मॉडर्न टेक्नोलॉजी की और कदम बढ़ा रहे है। ऐसे में बालकों को न केवल किताबी ज्ञान बल्कि उन्हें व्यवहारिक ज्ञान और टेक्निकल ज्ञान भी दिया जाना चाहिए ताकि अपनी योग्यताओं को बढ़ा सके और उसके बलबूते अपने भविष्य को बेहतर बना सके। इसी बात को ध्यान में रखते हुए साल 2020 को संसद में नई शिक्षा नीति को लाने के लिए बिल पास किया गया। यह स्वतंत्र भारत की तीसरी शिक्षा नीति है। इससे पहले दो बार शिक्षण के तरीके से बदलाव हो चुका है पहला इंदिरा गांधी के दौरान और दूसरा राजीव गाधी के दौरान बच्चों को शिक्षा देने के लिए इस नई शिक्षा नीति के बारे में हर बच्चे और उनके माता पिता की जानकारी होनी चाहिए। इस शिक्षा के माध्यम से बच्चों के मन में नए-नए चीजों को सीखने के प्रति रुचि जगाना है। ताकि बच्चे जीवन में अपनी योग्यताओं के बलबूते एक अच्छे भविष्य का निर्माण कर सके। इसके अतिरिक्त अपने मातृभाषा को बढ़ावा देना भी इस शिक्षा नीति का उद्देश्य है। नई शिक्षा नीति में शिक्षा के पाठ्यक्रम को 5$3$3$4 के मॉडल में तैयार किया पहले यह 10$2 के अनुसार था। इस माॅडल के अनुसार प्रथम 5 वर्षों को फाउंडेशन स्टेज के रूप में रखा गया है, जिसका उद्देश्य के बेहतरीन भविष्य के लिए मजबूत नींव को तैयार करना है। इन 5 वर्षों के पाठ्यक्रम को एनसीईआरटी के द्वारा तैयार किया जाएगा। इसमें प्राइमरी के 3 और पहली और दूसरी कक्षाओं को सम्मिलित किया जाएगा। इस नई मॉडल के कारण बच्चों के लिए किताबों का बोझ हल्का हो जाएगा अब वे आनंद लेते हुए सीख पाएंगे। इसके अगले 3 वर्षों में तीसरी, चैथी और पाँचवी कक्षाओं को शामिल किया गया है, जिसका उद्देश्य बच्चों को भविष्य के लिए तैयार करना है और इन कक्षाओं के बच्चों को गणित, कला, सामाजिक विज्ञान और विज्ञान जैसे विषयों को पढ़ाया आएगा। इसके बाद के 3 वर्षों को मध्यम स्तर की तरह माना जाएगा, जिसमे 6, 7 और 8 वी कक्षाओं को शामिल किया जाएगा। इन कक्षाओं के बालकों को एक निश्चित पाठयक्रम के अनुसार पढ़ाया जाएगा। इतना ही नहीं इन पाहयक्रम के अतिरिक्त बच्चों को टेक्निकल ज्ञान भी दिए जाएंगे। बच्चों को कोडिंग भी सिखाया जाएगा, जिससे वे भी चाइना के बच्चों की तरह ही छोटी उम्र में ही सॉफ्टवेयर और एप बनाना सीख पाएंगे। आगे के 9वी से 12वी तक की कक्षाओं को अंतिम स्तर में रखा जाएगा, जिसके दौरान बच्चे अपने मनपसंद विषयों को अपने पाठ्यक्रम में शामिल कर पाए। इस तरीके से नई शिक्षा नीति के माध्यम से न केवल बालकों के पाठ्यक्रम में बदलाव होगा बल्कि बच्चों के शिक्षण के तरीके में भी सुधार है।
KEYWORDS: शिक्षा नीति.
प्रस्तावना:-
अध्ययन का उद्देश्य
इस शोध का मुख्य उदेश्य शिक्षा की मुख्य विशेषताओं पर प्रकाश डालना है तथा नई शिक्षा नीति 2020 से संबंधित प्राथमिक और माध्यमिक डेटा का विश्लेषण करना है। इसके अन्य मुख्य उदेश्य निम्नलिखित है।
ऽ नई शिक्षा नीति 2020 को पेश करना।
ऽ नई शिक्षा नीति 2020 में उच्च शिक्षा की मुख्य विशेषताओं को देखना।
ऽ उच्च शिक्षा में सकल नामांकन अनुपात में वृद्धि को दर्शाने लिए।
ऽ शिक्षा पर राज्य के खर्च को सकल घरेलू उत्पाद के 4 से बढ़ाकर 6 करने की एक झलक देने के लिए।।
विधितंत्र:-
यह अध्ययन पाठ्य, आलोचनात्मक, मूल्यांकनात्मक, वर्णनात्मक, विश्लेषणात्मक और व्याख्यात्मक विधियों का उपयोग करते हुए प्राथमिक और माध्यमिक स्रोतों के माध्यम से उच्च शिक्षा के विशेष संदर्भ के साथ एक महत्वपूर्ण दृष्टिकोण के रूप में नई शिक्षा नीति 2020 के संपूर्ण अध्ययन पर भी ध्यान केंद्रित करता है। इसमें एमएलए हैंडबुक ऑफ रिसर्च के 8वे संस्करण का सख्ती से पालन किया गया है।
1. डेटा संग्रह
शोध अध्ययन के लिए प्राथमिक एवं द्वितीयक स्रोतों से आंकड़ों का संकलन किया गया है जिसके आधार पर सम्पूर्ण प्रपत्र का विश्लेषण किया गया है।
प्राथनिक स्रोत
प्राथमिक संसाधन नई शिक्षा नीति 2020 के मूल पाठ से एकत्र किए गए है जो भारत सरकार द्वारा जारी किया गया है।
माध्यमिक स्रोत
एक माध्यमिक संसाधन एक स्रोत है जो नई शिक्षा नीति 2020 पर संदर्भ पुस्तकों सहित पुरानी या गैर-मूल जानकारी प्रदान करता है। माध्यमिक स्रोतों में जीवनी, लेखक के कार्यों के महत्वपूर्ण अध्ययन, शोध पत्र और शोध प्रबंध, शोध पुस्तक, व्यक्तिगत साक्षात्कार, विकिपीडिया, ब्रिटानिका और अन्य वेबसाइटें शामिल हैं।
अध्ययन का महत्व
वास्तविक तथ्यों पर आधारित इस अध्ययन के निष्कर्ष समाज के हित में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। इस अध्ययन क्षेत्र में पूर्व अनुसंधान को कमी के कारण यह शोध मॉडल इस अध्ययन के लिए प्रस्तावित है। शोधकर्ता इस वर्तमान अध्ययन के सभी पहलुओं को समझाने का प्रयास करेगा। वर्तमान शोध नई शिक्षा नीति 2020 के नियम एवं शर्तों के अनुसार उच्च शिक्षा के सुधारों को समझने में मदद करेगा। यह शोध शिक्षा नीति 2020 के बारे में पाठकों के बीच जागरूकता पैदा करने का प्रयास करेगा। यह संदर्भ सामग्री भी तैयार करेगा और आगे के अध्ययन के लिए गुंजाइश प्रदान करेगा।
साहित्य की समीक्षा
संक्षेप में, इसमें पिछले अध्ययनों की संगीक्षा प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है, जो इस अध्ययन से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रासंगिक है। इसमें नई शिक्षा नीति 2020 और विशेष रूप से उच्च शिक्षा से संबंधित अध्ययनों पर किए गए कार्यों की एक झलक देखने को मिलती है।
पीएस ऐथल और शुभ्रज्योत्सना ऐथल के अनुसार उनके शोध पत्र भारतीय राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का विश्लेषण इसके उद्देश्यों को प्राप्त करने की दिशा में भारत की राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 गुणवत्ता, आकर्षण, सामर्थय में सुधार के लिए नवीन नीतिया बनाकर और निजी क्षेत्र के लिए उच्च शिक्षा को खोलकर आपूर्ति बढ़ाने के लिए और साथ ही बनाए रखने के लिए सख्त नियंत्रण के साथ इस तरह के उद्देश्य को प्राप्त करने की दिशा में आगे बढ़ रही है। हर जय शिक्षा संस्थान में गुणवत्ता फ्री-शिप्स और स्कॉलरशिप के साथ योग्यता-आधारित प्रवेश को प्रोत्साहित करके संकाय सदस्यों के रूप में और अनुसंधान अधारित निरंतर प्रदर्शन और निकायों को विनियमित करने में योग्यता आधारित सिद्ध नेताओं और प्रौद्योगिकी आधारित के माध्यम से प्रगति की स्व-घोषणा के आधार पर द्विवार्षिक मान्यता व माध्यम से गुणवत्ता की सख्त निगरानी एनईपी-2020 के 2030 तक अपने उद्देश्य को पूरा करने की उम्मीद है। संबद्ध कॉलेजों के वर्तमान नामकरण के साथ सभी उच्च शिक्षा संस्थान बहु-अनुशासनात्मक स्वायत्त कॉलेजों के रूप में उनके नाम पर डिग्री देने की शक्ति के साथ विस्तार करेंगे या उनके संबद्ध विश्वविद्यालयों के घटक कॉलेज बने जायेंगे। एक निष्पदा एजेंसी नेशनल रिसर्च फाउंडेशन बुनियादी विज्ञान, अनुप्रयुक्त विज्ञान और सामाजिक विज्ञान और मानविकी के प्राथमिक वाले अनुसंधान क्षेत्रों में नवीन परियोजनाओं के लिए धन मुहैया कराएगी।
बच्चों को बेहतर शिक्षा मिले, इसीलिए समय के साथ शिक्षण प्रणाली में बदलाव करते रहना चाहिए। इसीलिए साल 2020 में बच्चों के शिक्षण प्रणाली को और भी ज्यादा बेहतर बनाने के लिए नई शिक्षा नीति को लाई गई, जो पहले की 10 $ 2 मॉडल पर ना होकर 5$3$3$4 के फॉर्मेट में तैयार किया जाएगा। इस फॉर्मेट में प्रथम 5 वर्षों को फाउंडेशन स्टेज की तरह माना गया है, जिसमें बच्चों को बेहतर शिक्षा मिले। इसके लिए मजबूत नींव तैयार करना है। अगले 3 वर्षों का उद्देश्य बच्चों को भविष्य के लिए तैयार करना है, जिसने तीसरी से पांच कक्षा को सामिल किया गया है। इसकी अगले तीन वर्षों में छठी से आठवी कक्षा को शामिल किया गया है, जिससे मध्यम स्तर माना जाएगा। उसके बाद के नौवी से बारवी कक्षा को अंतिम स्तर में शामिल किया गया है।
नई नीति के बाद ग्यारवी और बारहवी के पाठ्यक्रम में स्ट्रीम सिस्टम खत्म हो जाएगा। अब बच्चे अपने मनपसंद के अनुसार कोई भी विषय का चयन कर सकते हैं। जैसे यदि कोई साइंस स्ट्रीम का विद्यार्थी है और वह आर्ट स्ट्रीम के किसी विषय को पढ़ने की रूचि रखता है तो वह उसे भी पढ़ सकता है। इन सबके अतिरिक्त नौवीं से 12वीं तक की परीक्षा सेमेस्टर वाइज ली जाएगी, जिसके अनुसार साल में दो बार परीक्षा होगी और दोनों सेमेस्टर के माक्र्स को जोड़कर फाइनल रिजल्ट पेश किया जाएगा। ऐसे में अब बालकों को पूरे साल पढ़ाई करनी पड़ेगी। क्योंकि पहले ज्यादातर बच्चे जिन्हें पढ़ाई में मन नहीं लगता था, वे एग्जाम मे पास होने के लिए सिर्फ फाइनाल एग्जाम के कुछ दिन पहले तैयारी करते थे और रटा मारकर पासिंग माक्र्स तक ले आते थे अब ऐसा नहीं होगा। अब बच्चे को परीक्षा में पास होने के लिए रटना नहीं बल्कि समझकर पढ़ना होगा। इसके साथ ही यह बच्चे को किसी भी विशेष विषय में रूचि है और वह उसका प्रैक्टिकल ज्ञान लेना चाहता है तो वह इंटर्नशिप भी प्राप्त कर पाएगा। अपने इंटर्नशिप कार्य को यह स्कूल के दौरान ही कर सकता है। इससे यह फायदा होगा कि कोई भी बालक जिस विषय में उसको रुचि है, उस विषय में वह स्कूली शिक्षा के दौरान ही बेहतर बनने की तैयारी कर सकता है। अब बोर्ड की परीक्षाओं के तरीके भी काफी बदल जाएंगे। बोर्ड का परीक्षा बच्चों के लिए बोझ नहीं रहेगा, बच्चे अपने मन-पसंद भाषा में बोर्ड का परीक्षा दे पाएगे। इसके अतिरिक्त मार्कशीट भी पहले की तरह तैयार नहीं की जाएगी, उसमें भी काफी बदलाव होगा। अब जो मार्कशीट तैयार होगा, उसमें ना केवल बच्चों के विषय के माक्र्स बल्कि उसके व्यवहार, मानसिक क्षमता और एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटी को भी ध्यान में रखा जाएगा। इससे यह फायदा होगा कि अब बच्चों को केवल पढ़ाई के प्रति ही नहीं बल्कि अन्य गतिविधियों में रुचि लेने के लिए भी प्रेरित किया जाएगा। सरकार द्वारा लाई गई-नई शिक्षा नीति न केवल स्कूली बच्चों के लिए है बल्कि यह कॉलेज के छात्रों के लिए भी लागू होता है। जो बच्चे अपने स्कूल पास आउट कर चुके है और अब वे कॉलेज में एडमिशन कराने वाले हैं तो उनके लिए यह नीति काफी फायदेमंद होने वाली है। क्योंकि अब कॉलेज के पाठ्यक्रम भी पहले की तुलना में काफी बदल जाएंगे। स्कूली बच्चों की तरह अब कॉलेज के बच्चे भी अपने मनपसंद के अनुसार विषय का चयन कर पाएंगे। यही नहीं बल्कि जो बच्चें बारवी में खराब माक्र्स लाने के कारण अच्छे कॉलेज में एडमिशन नहीं ले पाते थे। अब उनको एक और मौका दिया जाएगा। जो बच्चे 12वीं में अच्छे माक्र्स नहीं लाए हैं, वे काॅमन एप्टिट्यूड टेस्ट दे सकते हैं और फिर इस टेस्ट में जो माक्र्स लाया जाएगा, उससे उनके बारहवीं कक्षा के माक्र्स के साथ जोड़कर रिजल्ट तैयार किया जाएगा और फिर इस अनुसार वे अपने मनपसंद और अच्छे कॉलेज मैं एडमिशन ले पाएंगे। यही नहीं अब ग्रेजुएशन कोर्स को 3 और 4 साल में बांट दिया गया है। पहले ग्रेजुएशन की डिग्री लेने के लिए पूरे 3 साल या 4 साल के कोर्स को कंप्लीट करना पड़ता था, उसके बाद ही ग्रेजुएशन की डिग्री मिलती थी। बीच में यदि कोई विद्यार्थी शिक्षा छोड़ देता था तो उसे ग्रेजुएशन की डिग्री नहीं मिलती थी। लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। अब जो बालक अपने ग्रेजुएशन कोर्स के दौरान यदि 1 साल में पढ़ाई छोड़ देते हैं तो उन्हें सर्टिफिकेट दिया जाएगा। वहीं यदि वे 2 साल के बाद फोर्स को छोड़ते हैं तो उन्हें डिप्लोमा सर्टिफिकेट दिया जाएगा, वहीं यदि 3 साल के कोर्स को पूरा करने के बाद छोड़ते हैं तो उन्हें बैचलर की डिग्री दी जाएगी। यदि कोई बालक ग्रेजुएशन की डिग्री 4 साल में करता है तो उसे रिसर्च सर्टिफिकेट के साथ बैचलर डिग्री दी जाती है। इससे उन बालकों के लिए फायदा होगा, जो कॉलेज के दौरान किसी प्रोजेक्ट पर काम कर रहे होते हैं। इस तरीके से अब ग्रेजुएशन के दौरान बच्चे किसी परिस्थितियों के कारणवश चाहे तो वह अपनी पढ़ाई को बीच में छोड़ भी सकते हैं और उसके अनुसार उन्हें सर्टिफिकेट दे दिया जाएगा और फिर बाद में परिस्थिति ठीक होने के बाद यदि वे आगे दुबारा पढ़ाई जारी रखना चाहते हैं और ग्रेजुएशन की डिग्री पूरा कंप्लीट करना चाहते हैं तो उन्हें दोबारा शुरुआत से पढ़ने की जरूरत नहीं पड़ेगी बल्कि जहां उन्होंने ड्रॉप किया था उसके बाद से ही उन्हें पढ़ने को मौका मिलेगा।
नई शिक्षा नीति से न केवल स्कूल कॉलेज के पाठ्यक्रम में बदत्सव आएंगे बल्कि मनमाने ढं़ग से बच्चों से फीस वसूलने का काम भी बंद हो जाएगा। अब कोई भी स्कूल या उच्च शिक्षा संस्थान अपने अनुसार बच्चों से फीस नहीं लेगा बल्कि एक निश्चित अमाउंट फीस के तौर पर तय किए जाएंगे और उस निश्चित अमाउंट से ज्यादा कोई भी स्कूल या कॉलेज बच्चों को फीस देने क लिए बाध्य नहीं कर पाएगी। स्कूल कॉलेज मे अन्य विषयों के अतिरिक्त संस्कृत के पढ़ाई पर भी जोर दिया जाएगा। उच्च शिक्षा संस्थानों में भी आट्र्स और हयूमनिटीज के विषय पढ़ाए जाएंगे, जिससे विज्ञान के बालक भी अन्य क्षेत्रों में अपनी योग्यता से कुछ बेहतर कर पाएंगे। इस तरीके से नई शिक्षा नीति के कारण बच्चे व्यवहारिक ज्ञान लेकर देश के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा पाएंगे।
“शिक्षा करेगी नव युग का निर्माण,
आने वाला समय देगा इसका प्रमाण।’’
पूरे 34 वर्षो के अंतराल के बाद शिक्षा नीति में बदलाव लाया गया है और बदलाव लाना जरूरी भी था। समय की जरूरत के अनुसार यह पहले ही हो जाना चाहिए था। लेकिन कोई नहीं पहले ना सही अब नई नीति को मंजूरी मिल चुकी है। उचित बुनियादी शिक्षा प्राप्त करना भारतीय संविधान के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति का जन्मसिद्ध अधिकार है। सूखी जीवन जीने के लिए तैयार होने के लिए एक बच्चे के विकास में शिक्षा बेहद महत्वपूर्ण तत्व है। भारत सरकार द्वारा 2030 तक नीतिगत पहलुओं को प्राप्त करने के उद्देश्य से नई शिक्षा नीति तैयार की गई है। यह विद्यार्थी की आत्म-क्षमताओं और अवधारणा पर आधारित सीखने की प्रक्रिया है न कि रटने वाली प्रक्रिया। इसके साथ ही केन्द्रीय सरकार ने एक और फैसला लिया, मानव संसाधन मंत्रालय का नाम बदलकर शिक्षा मंत्रालय कर दिया है।
शिक्षा का शाब्दिक अर्थ होता है सीखने एवं सिखाने की क्रिया। मगर केंद्र सरकार द्वारा 1986 की शिक्षा नीति के अंदर ना तो कोई सीखने को मिला और ना ही कोई सिखाने वाली वस्तु केवल उस नीति के अंदर बच्चे में रहने का ज्ञान लिया और कक्षा उत्तीर्ण (पास) करने के डर लगा रहता था। शिक्षा के शाब्दिक अर्थ को सार्थक करते हुए और बच्चे के सर्वागीण विकास वाली नई शिक्षा नीति 2020 (त्ंेीजतपलं ैीपोीं छपजप 2020) को केंद्र सरकार ने मंजूरी दी है। पहले की शिक्षा नीति 1986 मूल रूप में परिणाम देने पर ही केंद्रित थी, मतलब कि विद्यार्थियों का आकलन उनके द्वारा अर्जित अंको के आधार पर किया जाता था, जो कि एक एकल दिशा दृष्टिकोण है। नई शिक्षा नीति 2020 ठीक इसके विपरीत है, यानि छंप ैीपोीं छपज बहुल दिशा दृष्टिकोण पर केंद्रित है। जिसके द्वारा विद्यार्थियों का सर्वागीण विकास होगा और यही इस नीति का उद्देश्य है। इसके अलावा नई शिक्षा नीति में छात्र किताबी ज्ञान के अलावा भौगोलिक बाहरी जान को भी अच्छे से समझ व सीख पाएगा। बच्चे को कुशल बनाने के साथ-साथ, जिस भी क्षेत्र में वह रुचि रखता है, उसी क्षेत्र में उन्हें प्रशिक्षित करना है। इस तरह, सीखने वाले अपने उद्देश्य और अपनी क्षमताओं का पता लगाने में सक्षम होंगे। बस इसी उद्देश्य के कारण शिक्षा नीति में बदलाव लाने की आवश्यकता पड़ी।
नई शिक्षा नीति पहले की राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 का पुनर्मूल्यांकन है। यह नई संरचनात्मक रूपरेखा द्वारा शिक्षा की संपूर्ण प्रणाली का परिवर्तन है।
नई शिक्षा नीति (छंजपवदंस म्कनबंजपवद च्वसपबल) में रखी गई दृष्टि प्रणाली को एक उच्च उत्साही और ऊर्जावान नीति में देखा जा रहा है। शिक्षार्थी को उत्तरदायी और कुशल बनाने का प्रयास होना चाहिए। नई शिक्षा नीति में शिक्षक की शिक्षा और प्रशिक्षण प्रक्रियाओं के सुधार पर भी जोर दिया गया है। इस नीति को लाने में कितने साल लगे वो निम्नलिखित है।
ऽ नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 वर्तमान नीति, राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 की जगह ले चुकी हैं।
ऽ नई शिक्षा नीति के बारे में चर्चा जनवरी 2015 में कैबिनेट सचिव टीएसआर सुब्रमणियन के नेतृत्व में समिति द्वारा शुरू की गई थी और 2017 में समिति द्वारा एक रिपोर्ट प्रस्तुत की गई थी। ऽ
ऽ 2017 की रिपोर्ट के आधार पर बनाई गई राष्ट्रीय शिक्षा नीति का एक मसौदा, 2019 में पूर्व इसरो भारतीय अंतरिक्ष (मुख कृष्णस्वामी कस्तूरीरंगन के नेतृत्व में नई टीम द्वारा प्रस्तुत किया गया) अनुसंधान संगठन था।
ऽ मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा जनता और हितधारकों के साथ परामर्श के बाद मसौदा नई शिक्षा नीति की घोषणा की गई थी।
ऽ नई शिक्षा नीति 29 जुलाई, 2020 को अस्तित्व में आई।
नई शिक्षा नीति 2020 के प्रमुख बिंदु निम्न है
नई शिक्षा नीति में 5$3$3$4 डिजाइन वाले शैक्षणिक संरचना का प्रस्ताव किया गया है, जो 3 से 18 वर्ष की आयु वाले बच्चों को शामिल करता है।
ऽ पाँच वर्ष की फाउंडेशनल स्टेज 3 साल का प्री प्राइमरी स्कूल और ग्रेड-1,2
ऽ तीन वर्ष का प्रीपेट्रेरी स्टेज ग्रेड 3, 4, 5
ऽ तीन वर्ष का मध्य (या उच्च प्राथमिक) चरण - ग्रेड 6, 7, 8
ऽ 4 वर्ष का उच्च चरण (या माध्यमिक)- ग्रेड 9, 10, 11, 12
नई शिक्षा नीति 2020 के तहत भ्भ्त्व् द्वारा ’बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मक ज्ञान पर एक राष्ट्रीय मिशन’ की स्थापना का प्रस्ताव किया गया है। इसके द्वारा वर्ष 2025 तक कक्षा-3 स्तर तक के बच्चों के लिये आधारभूत कौशल सुनिश्चित किया जाएगा।
नई शिक्षा नीति 2020 में कक्षा 5 तक की शिक्षा में मातृभाषा/स्थानीय या क्षेत्रीय भाषा को अध्ययन के माध्यम के रूप में अपनाने पर बल दिया गया है। साथ ही इस नीति में मातृभाषा को कक्षा 8 और आगे की शिक्षा के लिये प्राथमिकता देने का सुझाव दिया गया है।
मोटे तौर पर कहे तो अगर कोई छात्र अपनी स्थानीय भाषा में पढ़ना चाहे तो वो बेझिझक उस भाषा में पढ़ पाएगा।
स्कूली और उच्च शिक्षा में छात्रों के लिये संस्कृत और अन्य प्राचीन भारतीय भाषाओं का विकल्प उपलब्ध होगा। परंतु किसी भी छात्र पर भाषा के चुनाव की कोई बाध्यता नहीं होगी। विद्यालयों में सभी स्तरों पर छात्रों को बागवानी, नियमित रूप से खेल-कूद, योग, नृत्य, मार्शल आर्ट को स्थानीय उपलब्धता के अनुसार प्रदान करने की कोशिश की जाएगी ताकि बच्चे शारीरिक गतिविधियों एवं व्यायाम वगैरह में भाग ले सकें।
ऽ इस नीति में प्रस्तावित सुधारों के अनुसार, कला और विज्ञान, व्यावसायिक तथा शैक्षणिक विषयों एवं पाठ्यक्रम व पाठ्येतर गतिविधियों के बीच बहुत अधिक अंतर नहीं होगा।
ऽ कक्षा 6 से ही शैक्षिक पाठ्यक्रम में व्यावसायिक शिक्षा को शामिल कर दिया जाएगा और इसमें इंटर्नशिप की व्यवस्था भी की जाएगी।
ऽ राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (छब्म्त्ज्) द्वारा स्कूली शिक्षा के लिये राष्ट्रीय पाठ्यक्रम की रूपरेखा तैयार की जाएगी।
ऽ छात्रों के समग्र विकास के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए कक्षा-10 और कक्षा 12 की परीक्षाओं में बदलाव किया जाएगा। इसमें भविष्य में सेमेस्टर या बहुविकल्पीय प्रश्न आदि जैसे सुधारों को शामिल किया जा सकता है।
ऽ छात्रों की प्रगति के मूल्यांकन के लिये मानक कार्य के रूप में परखनिर्धारक (नि-च्।त्।ज्ञभ्) नामक एक नए राष्ट्रीय आकलन केंद्र की स्थापना की जाएगी।
ऽ छात्रों की प्रगति के मूल्यांकन तथा छात्रों को अपने भविष्य से जुड़े निर्णय लेने में सहायता प्रदान करने के लिये कृत्रिम बुद्धिमत्ता (।प्) आधारित सॉफ्टवेयर का प्रयोग किया जाएगा।
ऽ शिक्षकों की नियुक्ति में प्रभावी और पारदर्शी प्रक्रिया का पालन तथा समय-समय पर किये गए कार्यप्रदर्शन आकलन के आधार पर पदोन्नति।
ऽ राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद द्वारा वर्ष 2022 तक शिक्षकों के लिये राष्ट्रीय व्यावसायिक मानक (छच्ैज्) का विकास किया जाएगा।
ऽ राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद द्वारा छब्म्त्ज् के परामर्श के आधार पर अध्यापक शिक्षा हेतु राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (छब्थ्ज्म्) का विकास किया जाएगा।
ऽ वर्ष 2030 तक अध्यापन के लिये न्यूनतम डिग्री योग्यता 4 वर्षीय एकीकृत बी.एड. डिग्री का होना अनिवार्य किया जाएगा।
नई शिक्षा नीति 2020 के तहत उच्च शिक्षण संस्थानों में सकल नामांकन अनुपात को 26.3ः (वर्ष 2018) से बढ़ाकर 50ः तक करने का लक्ष्य रखा गया है, इसके साथ ही देश के उच्च शिक्षण संस्थानों में 3.5 करोड़ नई सीटों को जोड़ा जाएगा।
नई शिक्षा नीति 2020 के तहत स्नातक पाठ्यक्रम में मल्टीपल एंटी एंड एक्जिट व्यवस्था को अपनाया गया है, इसके तहत 3 या 4 वर्ष के स्नातक कार्यक्रम में छात्र कई स्तरों पर पाठ्यक्रम को छोड़ सकेंगे और उन्हें उसी के अनुरूप डिग्री या प्रमाण पत्र प्रदान किया जाएगा (1 वर्ष के बाद प्रमाण-पत्र, 2 वर्षो के बाद एडवांस डिप्लोमा, 3 वर्षों के बाद स्नातक की डिग्री तथा 4 वर्षो के बाद शोध के साथ स्नातक)।
विभिन्न उच्च शिक्षण संस्थानों से प्राप्त अको या क्रेडिट को डिजिटल रूप से सुरक्षित रखने के लिये एक एकेडमिक बैंक ऑफ क्रेडिट दिया जाएगा, ताकि अलग-अलग संस्थानों में छात्रों के प्रदर्शन के आधार पर उन्हें डिग्री प्रदान की जा सके।
नई शिक्षा नीति के तहत एम. फिल. कार्यक्रम को समाप्त कर दिया गया, क्योंकि एम फिल का पाठ्यक्रम पीएचडी से मिलता जुलता है
नई शिक्षा नीति में देश भर के उच्च शिक्षा संस्थानों के लिये एक एकल नियामक अर्थात् भारतीय उच्च शिक्षा परिषद (भ्म्ब्प्) क गठन किया जायेगा, जिसमे विभिन्न भूमिकाओं को पूरा करने हेतु कई कार्यक्षेत्र होगे। भारतीय उच्च शिक्षा आयोग चिकित्सा एवं कानूनी शिक्षा को छोड़कर पूरे उच्च शिक्षा क्षेत्र के लिये एक एकल निकाय के रूप में कार्य करेगा।
भ्म्ब्ज् के कार्यों के प्रभावी निष्पादन हेतु चार निकाय -
1. राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा नियामकीय परिषद (छंजपवदंस भ्पहीमत म्कनबंजपवद त्महनसंजतवल ब्वनदबपस.छभ्म्त्ब्) यह शिक्षक शिक्षा सहित उच्च शिक्षा क्षेत्र के लिये एक नियामक का कार्य करेगा।
2. सामान्य शिक्षा परिषद (ळमदमतंस म्कनबंजपवद ब्वनदबपस ळम्ब्) यह उच्च शिक्षा कार्यक्रमों के लिये अपेक्षित सीखने के परिणामों का ढ़ांचा तैयार करेगा अर्थात् उनके मानक निर्धारण का कार्य करेगा।
3. राष्ट्रीय प्रत्यायन परिषद (छंजपवदंस ।बबतमकपजंजपवद ब्वनदबपस छ।ब्) यह संस्थानों के प्रत्यायन का कार्य करेगा जो मुख्य रूप से बुनियादी मानदंडों, सार्वजनिक स्वप्रकटीकरण, सुशासन और परिणामों पर आधारित होगा।
4. उच्चतर शिक्षा अनुदान परिषद (भ्पहीमत म्कनबंजपवद ळतंदजे ब्वनदबपस भ्ळथ्ब्) यह निकाय कॉलेज एवं विश्वविद्यालयों के लिये वित्तपोषण का कार्य करेगा।
नोटः गौरतलब है कि वर्तमान में उच्च शिक्षा निकायों का विनियमन विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी), अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) और राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) जैसे निकायों के माध्यम से किया जाता है।
देश में आईआईटी (प्प्ज्) और आईआईएम (प्प्ड) के समकक्ष वैश्विक मानकों के बहुविषयक शिक्षा एवं अनुसंधान विश्वविद्यालय (डम्त्न्) की स्थापना की जाएगी।
ऽ इस नीति का उद्देश्य असमानताओं को दूर करने विशेष रूप से भारतीय महिलाओं, अनुसूचित जनजातियाँ और अनुसूचित जाति समुदायों के लिये शैक्षिक अवसर की बराबरी करने पर विशेष जोर देना था।
ऽ इस नीति ने प्राथमिक स्कूलों को बेहतर बनाने के लिये “ऑपरेशन ब्लैकबोर्ड“ लॉन्च किया। ऽ
ऽ इस नीति ने इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय के साथ ’ओपन यूनिवर्सिटी’ प्रणाली का विस्तार किया।
ऽ ग्रामीण भारत में जमीनी स्तर पर आर्थिक और सामाजिक विकास को बढ़ावा देने के लिये महात्मा गांधी के दर्शन पर आधारित “ग्रामीण विश्वविद्यालय“ मॉडल के निर्माण के लिये नीति का आहवान किया गया।
ऽ अंतिम राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 में बनाई गई थी जिसमें वर्ष 1992 में संशोधन किया गया था।
ऽ वर्तमान नीति अंतरिक्ष वैज्ञानिक केकस्तूरीरंगन की अध्यक्षता वाली समिति की रिपोर्ट पर आधारित है।
ऽ नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 के तहत वर्ष 2030 तक सकल नामांकन अनुपात को 100ः लाने का लक्ष्य रखा गया है।
ऽ नई शिक्षा नीति के अंतर्गत केंद्र व राज्य सरकार के सहयोग से शिक्षा क्षेत्र पर जीडीपी के 69ः हिस्से के सार्वजनिक व्यय का लक्ष्य रखा गया है।
ऽ नई शिक्षा नीति की घोषणा के साथ ही मानव संसाधन प्रबंधन मंत्रालय का नाम परिवर्तित कर शिक्षा मंत्रालय कर दिया गया है।
नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 एक अच्छी नीति है। क्योंकि इसका उद्देश्य शिक्षा प्रणाली को समय, लचीला, बहुविषयक बनाना है। कार्यान्वयन है जिसमे नीति का आशय कई मायनों में आदर्श प्रतीत होता है। लेकिन यह व, जहां सफलता की कुजी निहित है।
निष्कर्ष
नई शिक्षा नीति कई उपक्रमों के साथ रखी गई है, जो वास्तव में वर्तमान परिदृश्य की जरूरत है। नीति का संबंध अध्ययन पाठ्यक्रम के साथ कौशल विकास पर ध्यान देना है। किसी भी चीज के सपने देखने से वह काम नहीं करेगा, क्योंकि उचित योजना और उसके अनुसार काम करने से केवल उद्देश्य पूरा करने में मदद मिलेगी। जितनी जल्दी एनईपी के उद्देश्य प्राप्त होंगे, उतना ही जल्दी हमारा राष्ट्र प्रगति की ओर अग्रसर करेगा।
अंत में सम्पूर्ण प्रपत्र के अध्यन करने के पश्चात यह कहा जा सकता है की नई शिक्षा नीति 2020 के अनुसार शिक्षा रटने वाले विषयों, समय सीमा को पूरा करने और अंक प्राप्त करने से कहीं अधिक है, लेकिन शिक्षा का वास्तविक अर्थ ज्ञान, कौशल, मूल्यों को प्राप्त करना और उस क्षेत्र में निरंतर कार्य करना और प्रगति करना है, जिसमें व्यक्ति अपनी रुचि खोज की करता है। इसमें कोई सन्देह नहीं कि अगर नई शिक्षा नीति 2020 को सही तरीके से लागू किया जाए तो यह भारतीय शिक्षा को नई ऊंचाइयों पर ले जा सकती है। हालाँकि इसके कुछ उद्देश्यों में लक्ष्यों की स्पष्टता का अभाव है, लेकिन हम वास्तव में इसका न्याय तब तक नहीं कर सकते जब तक कि इसकी लिखित योजनाएँ क्रिया में न आ जाएँ। हम केवल सर्वोत्तम परिणामों की आशा कर सकते हैं, आखिरकार, यह छात्रों के समग्र विकास और प्रगति को ध्यान में रखते हुए लाई गयी है।
सन्दर्भ सूची
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सन्दर्भ सूची
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6. तन्खा वरूण, सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता, राजस्थान पत्रिका नागौर, 26 अगस्त 2020, सम्पादकीय पृष्ट
7. सिंह दुर्गेश, क्रॉनिकल मासिक पत्रिका, मई 2020, पृष्ट संख्या 80-81
Received on 10.09.2022 Modified on 17.10.2022
Accepted on 20.11.2022 © A&V Publications All right reserved
Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 2022; 10(4):199-207.