विश्व समुदाय को भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन से जोड़ने की मुहिम और नेताजी सुभाष चंद्र बोस
श्रीमती प्रियांकी गजभिये
सहायक प्राध्यापक (इतिहास), शास. डॉ. बा. सा. भीमराव अम्बेडकर, स्नातकोत्तर महाविद्यालय, डोंगरगांव
जिला-राजनांदगांव (छ.ग.)
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ABSTRACT:
साम्राज्यवादी ताकते षक्ति ही अधिकार हैं‘‘ कि नियति से कार्य करती है और नेताजी भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के लंबे याचनायुक्त नरमपंथी आंदोलनों के परिणामों से समझ चुके थे की ऐसी ताकत का सामना करने के लिए सैन्य षक्ति का प्रयोग भारतीय आजादी के लिए नितान्त आवष्यक है, और यह जरूरी भी था, क्योंकि विरोधी वह षक्ति थी जिसका सूरज कभी डूबता नहीं था। तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा इस नारे को देष की आजादी हेतु एक ब्रम्ह वाक्य रूप देने वाले सुभाष चंद्र बोस नेें भारतीय राष्ट्रवाद को देष की सीमाओं के बाहर तक नया मोड़ दिया। आजाद हिन्द फौज ने भारत की स्वतंत्रता के प्रष्न को ब्रिटिष साम्राज्य के संकुचित दायरे से निकालकर विस्तृत अंतर्राष्ट्रीय क्षितिज पर ला खड़ा किया।
KEYWORDS: आजाद हिन्द फौज, अस्थायी सरकार, षाही नौसेना विद्रोह, फासीवाद, नरमपंथी आन्दोलन, द्वितीय विश्व युद्ध
INTRODUCTION:
’’साम्राज्यवादी ताकते षक्ति ही अधिकार हैं कि नियति से कार्य करती है और नेताजी भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के लंबे याचनायुक्त नरमपंथी आंदोलनों के परिणामों से समझ चुके थे की ऐसी ताकत का सामना करने के लिए सैन्य षक्ति का प्रयोग भारतीय आजादी के लिए नितान्त आवष्यक है, और यह जरूरी भी था, क्योंकि विरोधी वह षक्ति थी जिसका सूरज कभी डूबता नहीं था। तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा इस नारे को देष की आजादी हेतु एक ब्रम्ह वाक्य रूप देने वाले सुभाष चंद्र बोस नेें भारतीय राष्ट्रवाद को देष की सीमाओं के बाहर तक नया मोड़ दिया।’’ हर कीमत में स्वतंत्रता प्राप्ति की उनकी गहरी वेदना ने उन्हें विदेषी सहयोग हेतु प्रेरित किया। प्रथम विष्व युद्ध के दौरान भी गदर पार्टी तथा अन्य क्रान्तिकारियों ने तुर्की तथा जर्मनी की सहायता ब्रिटिष सरकार के विरूद्ध लेनी चाही थी किन्तु असफल रहे थे। द्वितीय विष्व युद्ध के दौरान नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने भारत के हित में इस युद्धकालीन अवसर का लाभ उठाने का निष्चय किया। उनकी उदात्त भावनाओं ने ही आजाद हिन्द फौज के रूप में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को एक वैष्विक स्वरूप प्रदान किया।
हरिपुरा कंाग्रेस अधिवेषन
हरिपुरा कंाग्रेस अधिवेषन में अध्यक्ष पद के षाषण में इतिहास के संदर्भ में साम्राज्यों के उत्थान पतन का उल्लेख कर बताया कि किस तरह रोमन साम्राज्य, तुर्की साम्राज्य, ऑस्ट्रिया-हंगरी साम्राज्य जैसे पष्चिमी महान साम्राज्य, मौर्य साम्राज्य, गुप्त साम्राज्य और मुगल साम्राज्य सभी एक दिन धुल धुसरित हो गये। उसी तरह एक दिन ब्रिटिष साम्राज्य का भी विनाष हो जायेगा। उन्होंने ब्रिटेन के संकटो का जिक्र कर कहा कि ब्रिटेन के सामने पष्चिम में आयरलैंड, पूर्व में भारत, मध्य पूर्व में फिलिस्तीन, मिश्र, इराक की समस्या, सुदूरपूर्व में जापान, भूमध्य सागर में इटली का दबाव एवं सबसे ऊपर सोवियत रूस जैसा षक्तिषाली देष है। इन सारे तनावों को ब्रिटेन अधिक समय तक बर्दाष्त नहीं कर सकता।
स्वतंत्र भारत की विदेष नीति के संदर्भ में उन्होनें कहा अपनी विदेषी नीति को निर्धारित करते समय हमें किसी देष की आन्तरिक राजनीति से प्रभावित नहीं होना चाहिए उन्होंने सोवियत रूस का उदाहरण दिया जो कि एक साम्यवादी देष होते हुऐ भी राष्ट्रहित में गैर-समाजवादी देषो के साथ भी संधियां एवं समझौते किये थे। हमें हर उस देष के ऐसे लोगों से संबंध स्थापित करना चाहिए जो भारत से सहानुभूति रखते हैं। इसके लिए कांग्रेस पार्टी को विदेषो में प्रचार करना आवष्यक है। विदेषो में अध्ययनरत् भारतीय छात्र इस कार्य में सहायक हो सकतें है। युरोप, अमेरिका में भारतीय संस्कृति का प्रचार तथा विभिन्न देषों में भारतीय प्रतिनिधियों की नियुक्ति से विदेषो में भारत के प्रति सहयोग और सहानुभूति की एक लहर उत्पन्न की जा सकती है।
विश्व राजनीति एवं भारत की आजादी
1938 में युरोप की राजनीति एक नया मोड़ ले रही थी। नेताजी का मानना था कि युरोप में षीघ्र ही गंभीर राजनीतिक संकट उत्पन्न होगा भारत को इस परिस्थिती से लाभ उठाना चाहिऐ। और कांग्रेस को चाहिए कि वह सरकार को भारत की आजादी हेतु अंतिम चेतावनी दे अन्यथा ब्रिटिष सरकार के विरूद्ध एक विषाल जन आंदोलन षुरू करें। किन्तु गांधी जी एवं उनके निकट सहयोगियों का विचार था कि भारत के लोग जन आंदोलन के लिए तैयार नहीं है। नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने जर्मनी, इटली और जापान की सरकारांे से संपर्क साधना आरम्भ किया। उनका विचार था, ये तीनों देष ब्रिटेन के षत्रु थे तथा षत्रु का षत्रु हमारा मित्र हो सकता है। उस दौरान वे अधिकतर युरोप में रहे थे जहां उन्होंने जर्मनी तथा इटली के अधिकारियों से मुलाकात की थी।
कांग्रेस अध्यक्ष पद से त्यागपत्र
त्रिपुरी कांग्रेस अधिवेषन मंे अध्यक्ष पद के विवाद पष्चात अध्यक्ष पद से त्यागपत्र देते हुऐ भारी कंठ से कहा यह त्यागपत्र पुरी तरह सहयोगी भावना से दिया है और मुझे आषा है कि मेरा त्यागपत्र देष के लिए हितकर होगा। मेरे अध्यक्ष बनने से कांग्रेस में असहयोग का वातावरण उत्पन्न हो गया था। समझौते के किसी भी प्रयास में जब मुझे कोई सफलता नहीं मिली तो मेरे पास अपने आत्म सम्मान, प्रतिष्ठा और देष के प्रति अपने कर्तव्य निर्वहन का मात्र यही विकल्प षेष बचा था कि मुझे कांग्रेस अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दे देना चाहिये। इण्डियन नेषनल कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष पद से नेताजी के इस्तिफा देकर हट जाने से भी गॉंधीवादियों को पूर्ण संतोष नहीं हुआ, साथ ही उन्हे तीन वर्षो तक काग्रेस के प्राथमिक सदस्य बनने के अधिकार से भी वंचित कर दिया गया।
फॅारवर्ड ब्लॉक की स्थापना
दलों एवं गुटों की राजनीति से ऊपर गहन राष्ट्रीयता की भावना से प्रेरित नेताजी के द्वारा फॅारवर्ड ब्लॉक की स्थापना सभी वामपंथी तथा क्रांतिकारी तत्वों को एक मंच प्रदान करने के उद्देष्य से की गई। 1940 के दौरान फॅारवर्ड ब्लॉक की सदस्य संख्या बढ़ाने तथा भारतीय सेना को बलात् द्वितीय विष्व युद्ध में झोेंकने के ब्रिटिष सरकार के निर्णय के विरूद्ध जनमत को अपने पक्ष में करने के लिए सुभाष चंद्र बोस ने देष का तूफानी दौरा किया। नेताजी की अभूतपूर्व संगठन क्षमता तथा उनके महान् गतिषील एवं ओजस्वी व्यक्तित्व ने उन्हे राष्ट्रीय विभूति बना दिया।
नेताजी का विदेष पलायन
1940 मंे नेताजी को भारत सुरक्षा कानून के अंतर्गत गिरफ्तार करके उनके घर में नजरबंद कर दिया गया जहां से वे 1941 में छद्मवेष धारण कर काबुल, रूस होते हुए अन्ततः हिटलर से मुलाकात करने जर्मनी चले गये कि षायद मदद प्राप्त कर सके। यहां जर्मनी में ही उनके नाम के साथ नेताजी उपनाम जोड़ा गया उनके द्वारा जर्मनी में भारतीय युद्धबंदियों को संगठित करने का प्रयास किया गया, उनसे इण्डियन नेषनल आर्मी में सम्मिलित होने का अनुरोध किया तथा जय हिन्द का नारा दिया किन्तु यहां युद्धबंदियों की संख्या कम होने के कारण बड़ी सफलता नहीं मिल सकी। इसी बीच पूर्व में जापान को बड़ी सफलता मिली उसका सिंगापूर में कब्जा हो गया जहां हजारो भारतीय सैनिक युद्धबंदी बनाये गये। यह समाचार सुभाष चंद्र बोस तक पहंुचते ही वे जापान के लिए रवाना हो गये। युरोप से दक्षिण पूर्वी एषिया की यात्रा आसान नहीं थी। सारी योजना गुप्त रखते हुऐ वे एक प्रषिक्षित नौसैनिक की तरह जर्मनी से एक जर्मन पनडुब्बी द्वारा दक्षिण-पूर्व-एषिया के लिए रवाना हुए। तीन माह की लंबी कठिन यात्रा पष्चात् वे सुमात्रा पहुंचे, जापानी अधिकारियों के साथ टोकियो पहुंचकर टोकियो रेडियो से षाषण द्वारा भारत की आजादी हेतु उनकी भावनाओं को प्रसारित किया-
‘‘ब्रिटिष षासक इस गलतफहमी में हैं कि उनके साम्राज्य का सूरज कभी अस्त नहीं होगा किन्तु वह दिन अब दूर नहीं जब उनका ऐसा सोचना मानसिक दिवालियापन सिद्ध होगा
‘‘यह सोचना भी दिवास्वप्न देखने के समान ही है कि अग्रंेज अंततः एक दिन खुषी-खुषी भारत को मुक्त कर देगें। स्वतंत्रता समझौतो से प्राप्त नहीं होगी। हमे स्वतंत्रता के लिए लड़ना होगा। अपने रक्त से स्वतंत्रता का मूल्य चुकाना होगा‘‘
‘‘मेरे देषवासियों, आजादी प्राप्त करने का एक ही तरीका है कि हम देष के भीतर और बाहर दोनो ओर से आजादी के लिए लड़े। जब हम इस तरह की निर्णायक लड़ाई लड़ने के लिए स्वयं को पूरी निर्भयता से तैयार कर लेंगे, तब हमें यकीनन आजादी मिल जायेगी।‘‘
आजाद हिन्द फौज का नेतृत्व:-
जुलाई 1943 में सिंगापूर में आजाद हिन्द फौज की बागडोर नेताजी को सौंपी गई अंग्रेजो के देष से रवाना होने से पूर्व ही सिंगापूर में खुद को एवं अपने देष को आजाद घोषित कर नये सिरे से ‘‘आजाद हिन्द फौज‘‘ एवं ‘‘आजाद हिन्द सरकार‘‘ की स्थापना की। अस्थाई सरकार के प्राइम मिनिस्टर एवं सेना के सुप्रीम कमांडर नेताजी सुभाष चंद्र बोस बने। रंगुन इस अस्थाई सरकार की राजधानी तथा आजाद हिन्द फौज का कमाण्ड बनाया गया। और उनके प्रभावषाली संगठन क्षमता, ओजस्वी व्यक्तित्व के प्रभाव से आजाद हिन्द फौज में सैनिकों की संख्या 12,000 से बढ़कर 40,000 हो गयी, अनेक सिविलियन भी इसमें भर्ती हो गये थे। सेना के तीन ब्रिगेड बनाये गये जिनके नाम सुभाष ब्रिगेड, गांधी ब्रिग्रड एवं नेहरू ब्रिगेड थे। रानी झांसी रेजिमेंट का गठन किया जिसमें 1000 स्त्री सैनिक थे जिन्हें विधिवत् प्रषिक्षण दिया गया। योग्य स्त्री सैनिको को युद्ध क्षेत्र हेतु एवं षेष को नर्सिंग के कार्य में लगाया गया।
आजाद हिन्द फौज की अवसान:-
अंडमान निकोबार द्वीप पर विजय प्राप्त कर इसका षासन अस्थाई सरकार को देकर वहां तिरगां झण्डा फहराया गया। बर्मा, कोहिमा में विजय प्राप्त हुई। वे इम्फाल की ओर अग्रसर थे, किन्तु नियति में कुछ और ही लिखा था। भारी वर्षा के कारण जापान से संपर्क टूट गया एवं इसी बीच युद्ध में जापान की अनेक मोर्चाे में हार होती चली गई। जापान के पराजय के साथ ही आजाद हिन्द फौज का सहयोग मिलना बंद हो गया। इन विषम परिस्थितियों में भी नेताजी पुनः संघर्ष हेतु वायुयान से टोकियो के लिए रवाना हुये। उन्होनें रवानगी के पूर्व सैनिको की आपात बैठक में कहा- ‘‘मैं षुरू से ही आषावादी रहा हूं और अब भी मुझे पूरा विष्वास है कि वह दिन दूर नहीं जब हम आजाद भारत में सांस ले सकेंगे। अच्छा, जय हिन्द, विदा!‘‘
निष्कर्ष
वायुयान दुर्घटना ग्रस्त हो गया जिसमें नेताजी सुभाष चंद्र बोस चल बसे। यह सही है कि बहुत से भारतीय नेताओं ने जापान और इसके फासीवादी तानाषाही मित्रों की सहायता से भारत को स्वतंत्र कराना पंसद नहीं किया लेकिन उन्होने सेना के जवानो तथा भारतीय जनता के हर वर्ग के सम्मुख साहस और देषभक्ति की जो मिसाल रखी वह अतूलनीय एवं प्रेरणादायक है। मुट्ठी भर अंग्रेज भारतीय सैनिकों एवं सिपाहियों के बल पर भारत में राज कर रहे थे, किन्तु नेताजी ने आजाद हिन्द फौज बना कर सिद्ध कर दिया कि भारतीय सैनिक पैसे मात्र के लिए काम करने वाले सैनिक नहीं अपितु मातृभूमि के सच्चे सपूत हैं। अगले ही वर्ष 1946 में षाही नौसेना के विद्रोह ने ब्रिटिष षासन की भारत में नींव हिला दी और ब्रिटेन भारत छोड़ने की तैयारी आरंभ कर दिया। अस्थायी सरकार एवं आजाद हिन्द फौज ने भारत की स्वतंत्रता के प्रष्न को ब्रिटिष साम्राज्य के संकुचित दायरे से निकालकर विस्तृत अंतर्राष्ट्रीय क्षितिज पर ला खड़ा किया। भारतीय सेना में देषभक्ति जागृत करने एवं वैष्विक जनमत को भारत की आजादी के पक्ष में तैयार करने की मुहिम के लिए नेताजी सुभाष चंद्र बोस का योगदान भारतीय इतिहास में अविस्मरणीय रहेगा।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची-
1- नेताजी सुभाष चंद्र बोस- श्री हरदान हर्ष, ष्याम प्रकाषन, जयपुर।
2- भारत के राष्ट्रीय आंदोलन का इतिहास-डॉ. ए.के. मित्तल, साहित्य भवन पब्लिकेषन, आगरा उ.प्र.।
3- संपूर्ण इतिहास- आधुनिक भारत-2 - एन.एन. ओझा, क्रॉनिकल बुक्स पब्लिकेषन, नई दिल्ली।
Received on 28.04.2023 Modified on 22.05.2023 Accepted on 25.06.2023 © A&V Publication all right reserved Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 2023; 11(2):129-132. DOI: 10.52711/2454-2687.2023.00019 |