छत्तीसगढ़ के महिलाओ के सामाजिक स्थिति का अध्ययन
डॉ. कुबेर सिंह गुरुपंच
प्राध्यापक एवं अधिष्ठाता, भारती विश्वविद्यालय, दुर्ग (छ.ग.)
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ABSTRACT:
प्रस्तुत शोध पत्र का उद्देश्य छत्तीसगढ़ के महिलाओ के सामाजिक स्थिति का अध्ययन करना है यह प्राथमिक एवं द्वितीयक आकड़ो पर आधारित है इसलिए छत्तीसगढ़ के विभिन्न वर्गों के महिलाओ की सामाजिक स्थिति का विश्लेषण किया गया है। छत्तीसगढ़ प्रारंभ से ही विषम भौगोलिक परिस्थितियों तथा संघर्ष पूर्ण इतिहास की भूमि रहा है। यहां के विभिन्न सामाजिक, सांस्कृतिक धार्मिक, राजनीतिक व ऐतिहासिक तत्वों में एक ओर जहां महिलाओं की गरिमा को बढ़ाया है, वहीं दूसरी ओर इनकी स्थिति को विषम बनाने में भी सहायक भूमिका अदा की है। महिला विकास हेतु अनेक योजनाओं के माध्यम से सुधार का प्रयास किया गया है। जिसमें भारतीय समाज में महिलाओं के स्थान को दर्शाया गया है। महिलाओं को सशक्त बनाना है तो स्वास्थ्य-शिक्षा के साथ-साथ उन्हें अधिकार और आगे बढ़ने के सुरक्षित अवसर देने होंगे। उन्हें आर्थिक रूप से संपन्न बनाने के लिए नये रास्ते बनाना भी जरूरी हैे। इसी सोच के साथ छत्तीसगढ़ सरकार ने महिलाओं को अधिकार संपन्न बनाने के साथ उनके स्वावलंबन की नीति अपनाई है। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की पहल पर महिलाओं की रचनात्मक क्षमता को बढ़ाने के साथ उनकी सृजन क्षमता को स्थानीय संसाधनों के साथ जोड़ा गया है। महिलाओं की व्यक्तिगत, सामाजिक और आर्थिक स्थिति से जुड़ा यह दृष्टिकोण उनके लिए विकास के नये आयाम खोलता है। नीति आयोग द्वारा जारी वर्ष 2020-21 की इंडिया इंडेक्स रिपोर्ट के अनुसार लैंगिक समानता में छत्तीसगढ़ पहले स्थान पर है। राज्य शासन द्वारा मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान दिए जाने के कारण वर्ष 2016 से 2018 के बीच 159 एमएमआर वाले छत्तीसगढ़ का एमएमआर अब घटकर 137 पर पहुंच गया है। कुपोषण और एनीमिया से लड़ाई में भी छत्तीसगढ़ को बड़ी सफलता मिली है। छत्तीसगढ़ में 2 अक्टूबर 2019 से शुरू हुए मुख्यमंत्री सुपाषण अभियान से अब तक 2 लाख 65 हजार बच्चे कुपोषण मुक्त तथा एक लाख 50 लाख महिलाएं एनीमिया मुक्त हो चुकी हैं। एनीमिया मुक्त भारत अभियान के अंतर्गत बच्चों, किशोरों, गर्भवती तथा शिशुवती महिलाओं को आईएफए (आयरन फोलिक एसिड) सप्लीमेंटेशन उपलब्ध कराने में छत्तीसगढ़ देश में तीसरे स्थान पर है।
KEYWORDS: महिलाओ के सामाजिक स्थिति, सांस्कृतिक धार्मिक, राजनीतिक।
INTRODUCTION:
राष्ट्रीय महिला सशक्तीकरण नीति (2001)
जेंडर समानता का सिद्धांत भारतीय संविधान की प्रस्तावना, मौलिक अधिकारों, मौलिक कर्तव्यों और नीति निर्देशक सिद्धांतों में प्रतिपादित है। संविधान महिलाओं को न केवल समानता का दर्जा प्रदान करता है अपितु राज्य को महिलाओं के पक्ष में सकारात्मक भेदभाव के उपाय करने की शक्ति भी प्रदान करता है। लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था के ढांचे के अंतर्गत हमारे कानूनों, विकास संबंधी नीतियों, योजनाओं और कार्यक्रमों में विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं की उन्नति को उद्देश्य बनाया गया है। पांचवी पंचवर्षीय योजना (1974-78) से महिलाओं से जुड़े मुद्दों के प्रति कल्याण की बजाय विकास का दृष्ठिकोण अपनाया जा रहा है। हाल के वर्षों में, महिलाओं की स्थिति को अभिनिश्चित करने में महिला सशक्तीकरण को प्रमुख मुद्दे के रूप में माना गया है। महिलाओं के अधिकारों एवं कानूनी हकों की रक्षा के लिए वर्ष 1990 में संसद के एक अधिनियम द्वारा राष्ट्रीय महिला आयोग की स्थापना की गई। भारतीय संविधान में 73वें और 74वें संशेाधनों (1993) के माध्यम से महिलाओं के लिए पंचायतों और नगरपालिकाओं के स्थानीय निकायों में सीटों में आरक्षण का प्रावधान किया गया है जो स्थानीय स्तरों पर निर्णय लेने की प्रक्रिया में उनकी भागीदारी के लिए एक मजबूत आधार प्रदान करता है।
महिलाओं की उन्नति को बढा़वा देने के लिए केंद्रीय तथा राज्य स्तरों पर विद्यमान संस्थागत तंत्रों को सुदृढ़ किया जाएगा। ये उन उपायों के माध्यम से किए जाएंगे जो उपयुक्त हों तथा अन्य बातों के साथ-साथ ये महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए स्थूल नीतियों, विधायन, कार्यक्रमों आदि को कारगर ढंग से प्रभावित करने के लिए पर्याप्त संसाधनों, प्रशिक्षण तथा समर्थनीय कौशलों आदि के प्रावधान से संबंधित होंगे। इस नीति के प्रचालन की नियमित आधार पर निगरानी करने के लिए राष्ट्रीय तथा राज्य परिषदों गठन किया जाएगा। प्रधानमंत्री राष्ट्रीय परिषद के अध्यक्ष होंगे तथा मुख्य मंत्री राज्य परिषदों के अध्यक्ष होंगे और इसकी संरचना व्यापक स्वरूप की होगी जिसमें संबंधित मंत्रालयों/विभागों, राष्ट्रीय तथा राज्य महिला आयोगों, समाज कल्याण बोर्डों, गैर सरकारी संगठनों, महिला संगठनों, कारपोरेट क्षेत्र, श्रमिक संघों, वित्तीय संस्थाओं, शिक्षाविदों, विशेषज्ञों तथा सामाजिक कार्यकर्ताओं आदि के प्रतिनधि शामिल होंगे। ये निकाय वर्ष में दो बार इस नीति के क्रियान्वयन में हुई प्रगति की समीक्षा करेंगे। राष्ट्रीय विकास परिषद को सलाह तथा टिप्पणियों के लिए नीति के अंतर्गत आरंभ किए गए कार्यक्रम की प्रगति के संबंध में समय-समय पर सूचित भी किया जाएगा। सूचना एकत्र करने तथा प्रसार करने, अनुसंधन कार्य आरंभ करने, सर्वेक्षण करने, प्रशिक्षण तथा जागरूकता सृजन कार्यक्रम आदि क्रियान्वित करने के अधिदेश के साथ राष्ट्रीय और राज्य महिला संसाधन केन्द्रों की स्थापना की जाएगी। उपयुक्त सूचना नेटवर्किंग प्रणालियों के माध्यम से इन केंद्रों को महिला अध्ययन केंद्रों तथा अन्य अनुसंधान और शैक्षिक संस्थाओं के साथ जोडा जाएगा। यद्यपि जिला स्तर पर संस्थाओं को सुदृढ किया जाएगा, बुनियादी स्तर पर, आंगनवाड़ी/ग्राम/कस्बा स्तर पर स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) में संगठित तथा सुदृढ़ करने के लिए सरकार द्वारा अपने कार्यक्रमों के माध्यम से महिलाओं की सहायता की जाएगी। महिला समूहों की सहायता की जाएगी ताकि वे अपने आप को रजिस्टर्ड सोसाइटियों के रूप में संस्थानीकृत कर सकें तथा पंचायत/नगर पालिका स्तर पर संघबद्ध हो सकें। बैंकों तथा वित्तीय संस्थाओं समेत सरकारी तथा गैर सरकारी चौनलों के माध्यम से उपलब्ध संसाधन आहरित करके तथा पंचायतों/ नगर पालिकाओं के साथ गहन अन्तरापृष्ठ (संबंध) स्थापित करके ये सोसाइटियां सामाजिक तथा आर्थिक विकास संबंधी सभी कार्यक्रमों का सहक्रियात्मक क्रियान्वयन करेंगी।
पंचायती राज संस्थाएं
भारतीय संविधान के 73वें और 74वें संशोधनों (1993) ने राजनीतिक अधिकारों की संरचना में महिलाओं के लिए समान भागीदारी तथा सहभागिता सुनिश्चित करने की दिशा में महत्वपूर्ण सफलता दिलाई है। पंयायती राज संस्थाएं सार्वजनिक जीवन में महिलाओं की सहभगिता बढ़ाने की प्रक्रिया में केंद्रीय भूमिका निभाएंगी। पंचायती राज संस्थाएं तथा स्थनीय स्वशासन संस्थाएं बुनयादी स्तर पर राष्ट्रीय महिला नीति के क्रियान्वयन तथा निष्पादन में सक्रिय रूप से शामिल होंगी।
स्वैच्छिक क्षेत्र के संगठनों के साथ भागीदारी
महिलाओं को प्रभावित करने वाली सभी नीतियों तथा कार्यक्रमों के निर्माण, क्रियान्वयन, निगरानी तथा पुनरीक्षा में शिक्षा, प्रशिक्षण और अनुसंधान से संबंधित काम करने वाले स्वैच्छिक संगठनों, संघों, परिसंघों, श्रमिक संघों, गैर सरकारी संगठनों, महिला संगठनों तथा संस्थाओं की सहभागिता सुनिश्चित की जाएगी। इस प्रयोजनार्थ, उन्हें संसाधन और क्षमता निर्माण से संबंधित उपयुक्त सहायता पदान की जाएगी तथा महिलाओं की अधिकारिता की प्रक्रिया में उनकी सक्रिय भागीदारी को सुकर बनाया जाएगा।
निष्कर्ष -
भारत में पंचायत राज संस्थाओं के माध्यम से दस लाख से अधिक महिलाओं ने सक्रिय रूप से राजनीतिक जीवन में प्रवेश किया है। 73वें और 74वें संविधान संशोधन अधिनियमों के अनुसार सभी निर्वाचित स्थानीय निकाय अपनी सीटों में से एक तिहाई महिलाओं के लिए आरक्षित रखते हैं। हालांकि विभिन्न स्तर की राजनीतिक गतिविधियों में महिलाओं का प्रतिशत काफी बढ़ गया है, इसके बावजूद महिलाओं को अभी भी प्रशासन और निर्णयात्मक पदों में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाया है।
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Received on 03.10.2023 Modified on 31.10.2023 Accepted on 24.11.2023 © A&V Publication all right reserved Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 2023; 11(4):303-305. DOI: 10.52711/2454-2687.2023.00051 |