कौशल विकास योजना का रोजगार के अवसरों के सृजन में योगदान
(रीवा जिले के विशेष संदर्भ में)
डॉ. आरती सोंधिया
वाणिज्य विभाग, अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय रीवा (म.प्र.)
*Corresponding Author E-mail:
ABSTRACT:
प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (पीएमकेवीवाई) (2016-2020) कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय (एमएसडीई), भारत सरकार (भारत सरकार) का एक प्रमुख और अनुदान और परिणाम आधारित कौशल प्रशिक्षण योजना है। इसे राष्ट्रीय कौशल विकास निगम ĽNSDC˝ द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है। देश की सबसे बड़ी कौशल प्रमाणन योजना के रूप में, पीएमकेवीवाई ने बड़े पैमाने पर गति और उच्च मानकों के साथ भारत को कौशल द्वारा दृष्टि को साकार करने की परिकल्पना की है। PMKVY Ľ2016&2020˝ केंद्र और राज्यों द्वारा केंद्र-संचालित केंद्र ĽCSCM˝ और केंद्र-प्रायोजित राज्य-प्रबंधित ĽCSSM˝ मोड के तहत संचालित किया जा रहा है। प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (पीएमकेवीवाई) देष के लाखों लोगों तक सफलतापूर्वक पहुंचाई गई है। इसने समावेषी एवं टिकाऊ अर्थव्यवस्था के लिए कुषल कार्यबल के निर्माण के उदेष्य के साथ देष के विभिन्न आबादी की जरूरतों को रणनीति के साथ पूरा किया है। यह पुस्तक 2016 में षुरू हुई यात्रा और दो वर्षो से भी कम समय में योजना ने जो सफलता एवं नवआविष्कार किए हैं, उसकी प्रतिबिंब है।
KEYWORDS: प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना, प्रशिक्षण, भारतीय अर्थव्यवस्था।
INTRODUCTION:
प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (पीएमकेवीवाई) कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय (एमएसडीई), भारत सरकार की एक अग्रणी परिणामोन्मुखी कौशल प्रशिक्षण योजना है। इस कौशल प्रमाणन और पुरस्कार योजना का उदेश्य बड़ी संख्या में भारतीय युवाओं की दक्षता प्रशिक्षण प्राप्त करने हेतु समर्थ बनाना तथा जुटाना है ताकि वे रोजगार प्राप्त कर सकें और अपनी आजीविका का अर्जन कर सकें।
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने दिनांक 20 मार्च, 2016 को भारत की सबसे बड़ी कौशल प्रमाणन योजना-प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना को स्वीकृति प्रदान की थी। तदुपरांत विश्व युवा कौशल दिवस के अवसर पर श्री नरेंद्र मोदी, माननीय प्रधानमंत्री द्वारा इस योजना का शुभांरभ किया गया था। इसके प्रथम वर्ष के सफलतापूर्वक कार्यान्वयन की वजह से केंद्रीय मंत्रीमंडल ने 12,000 करोड़ रुपए के परिव्यय के साथ देश के 10 करोड़ युवाओं को कौशल प्रशिक्षण प्रदान करने हेतु चार और वर्षों (2016-2020) के लिए इस योजना को अनुमोदन प्रदान किया। इस योजना को कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्रालय के अंतर्गत राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (एनएसडीसी)-एक सार्वजनिक निजी भागीदारी उद्यम के जरिए कार्यान्वित किया जा रहा है।
योजना के घटक:-
पीएमकेवीवाई के अंतर्गत प्रशिक्षण और मूल्यांकन शुल्क का पूर्णतया सरकार द्वारा भुगतान किया जाता है। प्रशिक्षण प्रदायकों (टीपी) को आम मानकों के अनुरूप धनराशि का भुगतान किया जाता है। इस योजना को निधियों और लक्ष्यों के 75ः25 आबंटन के साथ केंद्र और राज्य स्तर पर कार्यान्वित किया जा रहा है।
इस योजना के निम्नलिखित तीन घटक हैं:-
1. अल्पावधि प्रशिक्षण:
पीएमकेवीवाई प्रशिक्षण केंद्रों (टीसी) में प्रदान किए जा रहे अल्पावधिक प्रशिक्षण (एसटीटी) घटक का उदेश्य है कि इससे भारतीय राष्ट्रीयता प्राप्त ऐसे अभ्यर्थियों को लाभ मिलेगा जिन्होंने अपनी स्कूली/कॉलेज की शिक्षा पूरी नहीं की है अथवा जो बेरोजगार हैं। राष्ट्रीय कौशल अर्हता मानदंड फ्रेमवर्क (एनएसक्यूएफ) के अनुसार प्रशिक्षण प्रदान करने के अलावा प्रशिक्षण केंद्रों द्वारा छोटे-मोटे कौशल, उद्यमिता, वित्तीय और डिजीटल साक्षरता में भी प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है। मूल्यांकन सफलतापूर्वक पूरा करने के उपरांत अभ्यर्थियों को प्रशिक्षण प्रदायकों द्वारा रोजगार प्राप्त करने (प्लेसमेंट) में मदद प्रदान की जाती है।
2. पूर्वानुभव को महत्व देना:-
पूर्व शिक्षण संबंधी अनुभव ऐसे व्यक्तियों के कौशल का मुल्यांकन किया जाता है जिन्होनें स्वयं से या काम करते हुए कौशल प्राप्त किया हो और इस योजना के घटक पूर्व जानकारी को महत्व देना (आरपीएल) के तहत प्रमाणित किया जाता है। सेक्टर कौशल परिषद (एसएससी) अथवा (एमएसडीई/एनएसडीसी) द्वारा नामित किसी अन्य अभिकरण जैसी परियोजना कार्यान्वयन एजेंसियों (पीआईए) को तीन मॉडलों (आरपीएल शिविर, नियोक्ता के परिसर में आरपीएल तथा आरपीएल केंद्र) में से किसी भी एक में आरपीएल परियोजनाएं कार्यान्वित करने हेतु प्रोत्साहन दिया जा रहा है। ज्ञान संबंधी अंतराल को कम करने के लिए परियोजना कार्यान्वयन एजेंसियाँ पीआईए, आरपीएल अभ्यर्थियों के लिए साफ्ट कौशल संबंधी प्रशिक्षण और कार्य संबंधी सुरक्षा एवम् स्वच्छता कोर्स भी संचालित करती हैं।
3. विशेष परियोजनाएं:-
विशेष परियोजना (स्पेशल प्रोजेक्ट) पीएमकेवीवाई का एक घटक है, जिसके तहत एनएसक्यूसी द्वारा मंजूर कार्य विषयों में उम्मीदवारों को नए सिरे से कुशल बनाया/प्रशिक्षण दिया जाता है। परियोजना आधारित एवं अपेक्षाकृत अधिक लचीला होने के कारण यह घटक पीएमकेवीवाई के अल्पावधि प्रशिक्षण (एसटीटी) घटक से थोड़ा भिन्न है।
इसमें कई ऐसी विशेषताएं हैं जो एक परियोजना को विशेष परियोजना बनाती हैं। ये प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार हैं:-
क. विशिष्ट आबादी जैसे हाशिए पर जीवन बसर करने वालों की आबादी या कमजोर आबादी को लक्षित करता है।
ख. प्लेसमेंट यानि कॉरपोरेटों द्वारा 80 प्रतिशत कैप्टिव प्लेसमेंट या 90 प्रतिशत सवैतनिक रोजगार प्रदान करता है।
ग. जॉब रोल यानि पीएमकेवीवाई सूची के बाहर के कार्य विषय
घ. संस्थागत सेटिंग्स उदाहरण के लिए जेल परिसर, सरकारी संस्थानों के परिसर जैसे राज्यपाल निवास, राष्ट्रपति की रियासत आदि।
मिशन:
नीति में निम्नलिखित मिशन वाली राष्ट्रीय कौशल विकास पहल की स्थापना की परिकल्पना की गई है:
राष्ट्रीय कौशल विकास पहल बेहतर रोजगार हेतु पहुॅच योग्य बनाने के लिए परिष्कृत कौशलों, ज्ञान तथा राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय रूप से मान्यता प्राप्त अर्हताओं के माध्यम से सभी व्यक्तियों को शक्तियॉ प्रदान करेगी एवं वैश्विक बाजार में भारत की प्रतिस्पर्धात्मकता सुनिश्चित करेगी।
लक्ष्य:
देश में कौशल विकास के लक्ष्य निम्नलिखित के माध्यम से तीब्र और समग्र विकास प्राप्त करने में सहायता करना है।
क) किसी व्यक्ति की रोजगारपरकता (वेतन/स्वरोजगार) तथा बदलती हुई प्रौद्योकियों एवं श्रम बाजार मॉगों के अनुरूप स्वयं को ढालने की योग्यता में वृद्धि करना।
ख) लोगों की उत्पादकता तथा जीवन - स्तर में सुधार करना।
ग) देश की प्रतिस्पर्धात्मकता को सुदृढ़ करना।
घ) कौशल विकास में निवेश आकर्षित करना।
शोध क्षेत्र:-
किसी भी शोध अध्ययन के व्यवस्थित अध्ययन के लिये उसके क्षेत्र का निवर्हन भी करना चाहिए। क्षेत्र का निर्धारण आवश्यकता और उपयुक्तता के आधार पर किया जाता है। यदि शोध का क्षेत्र छोटा होगा तो हो सकता है कि वह शोध अध्ययन के निष्कर्षो से काफी दूर हो जाय। अर्थात निष्कर्ष विश्वसनीय नहीं रह जाते और यदि शोध क्षेत्र व्यापक हो तो इसे समय औंर श्रम की अत्यधिक आवश्यकता पड़ती है तथा आर्थिक साधन भी बहुत अधिक खर्च करने पड़ते है। शोधर्थाों का कार्य क्षेत्र सम्पूर्ण रीवा जिला है, जो प्रशासकीय दृष्टि से 06 तहसीलों में बाटॉं है जिले में 400 ग्राम पंचयाते एवं 1025 ग्राम हैं शोध प्रबंध में चुने गये गावों तथा ग्रामीण विकास के विभिन्न पक्षकारों से प्रश्नावली के माध्यम से समस्या के समाधान का प्रयास किया जायेगा
चूँकि शोधार्थी का अध्ययन क्षेत्र रीवा जिला को लिया गया है। रीवा जिलाका क्षेत्रफल 6314 वर्ग किमी. है। जनगणना 2011 के अनुसार रीवा जिले की जनसंख्या 23ए65ए106 है, जिसमें पुरूष 12ए25ए100 एवं महिला 11ए40ए006 शेष एवं अन्य वृद्ध एवं बच्चे सम्मिलित है। रीवा जिले का जनसंख्या वृद्धि 19ण्86ः है, जिले का लिंग अनुपात 1000 पुरूष पर 931 महिला है तथा साक्षरता दर 71ण्62ः है जिसमें पुरूष साक्षरता 81ण्43ः एवं महिला साक्षरता 61ण्16ः है। रीवा जिले जनसंख्या घनत्व 375 व्यक्ति प्रति वर्ग कि.मी. है।
पूर्व शोध की समीक्षा:-
कौशल विकास योजना के संबंध में अनेक शोधार्थियों द्वारा शोध किया गया है। किन्तु लगभग सभी शोधार्थियों ने कौशल विकास योजना का क्रियान्वयन उनके परिणामों आने वाली समस्या एवं समाधान के उपायो पर गहनता से अध्ययन नहीं किया प्रस्तावित शोध अध्ययन में कौशल विकास योजना का रोजगार के अवसरों के सृजन में योगदान का विश्लेषणात्मक अध्ययन कर वास्तविक परिणामों को जानने का प्रयास किया जाएगा एवं समाधान के उपायो पर भी विस्तृत प्रकाश डाला जाएगा।
पटेल और निमिष शाह (2014) ने अपने अध्ययन में रोजगार के बेहतर अवसरों के लिए व्यावसायिक शिक्षा प्रदान की। वैश्वीकरण ने तकनीकी शिक्षा के लिए कई चुनौतियों का सामना किया है। आगे सबसे बड़ी चुनौती कॉर्पोरेट जगत को तकनीकी रूप से प्रशिक्षित कर्मचारियों की आपूर्ति करना था। स्नातक स्तर के छात्रों को व्यावहारिक ज्ञान और उभरती हुई तकनीक के ज्ञान की कमी है और इसलिए, उन्होंने तेजी से बदलते परिवेश में रोजगार में कठिनाइयों का सामना किया। व्यावसायिक तकनीकी शिक्षा (टज्म्) कौशल और शिक्षार्थियों की दक्षता विकसित की जानी है। भारत में बेरोजगारी अनुपात ने खतरनाक अनुपात हासिल कर लिया है। इसके अलावा, उद्देश्य शैक्षिक अवसरों के विविधीकरण के लिए प्रदान करना है, व्यक्तिगत रोजगार की क्षमता को बढ़ाना और कुशल श्रमशक्ति की मांग और आपूर्ति के बीच अंतर को कम करना है।
श्रीवास्तव (2007) ने कहा है कि उच्च शिक्षा के वैश्वीकरण के कारण, तीसरी दुनिया के देशों में उच्च शिक्षा हाल के वर्षों में बहुत तेजी से बढ़ रही है। भारत से अधिकांश छात्र उच्च अध्ययन के लिए और विदेशी भाषा कौशल में सुधार करने और अवसरों को प्राप्त करने के लिए विदेश जा रहे हैं। व्यवसाय से संबंधित ज्ञान और कौशल के साथ बड़ी संख्या में उच्च विद्यालयों का विस्तार करना आवश्यक है। लेखक ने आगे तर्क दिया कि राष्ट्र के रोजगार योग्य कौशल को बढ़ाने के लिए एक व्यापक रणनीति की आवश्यकता है। यह वैश्विक स्तर पर छात्रों की नौकरी, आत्मरक्षा और सशक्तीकरण के लिए उपयोगिता है और संकायों और अनुसंधानों के बीच आदान-प्रदान और जुड़ाव, पाठ्यक्रम और कार्यक्रमों के अंतर्राष्ट्रीय विपणन में वृद्धि, पूरे देश में शैक्षणिक संस्थानों के बीच शिक्षा सहयोग के लिए स्थापना तंत्र। इसलिए, ऐसा लगता है कि भारतीय शिक्षा प्रणाली अन्य देशों के साथ शिक्षा के क्षेत्र में सहयोग करने और साझेदार बनाने के लिए घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ा रही है।
जैन (2007) ने कहा है कि भारत में उच्च शिक्षा का निजीकरण और शैक्षिक प्रणाली जीवंत लोकतंत्र की मांगों को पूरा करती है और इसे व्यापार के बजाय सामाजिक सेवा माना जाता है। इस प्रकार, तकनीकी रोजगार उन्मुख पाठ्यक्रमों के लिए विकास की मांग को पूरा करने के लिए, सरकार ने निजी संस्थानों को शिक्षा क्षेत्र में आने की अनुमति देने और शिक्षा में अधिक निजी निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए कहा और निजी प्रणाली बेहतर प्रबंधन के लिए मदद कर सकती है। लेकिन, निजीकरण लाभ के उद्देश्य की ओर निजी संस्कृति लाएगा और यह महंगा होगा जहां फीस का भुगतान गरीब छात्रों द्वारा नहीं किया जा सकता है। तो, उच्च शिक्षा केवल अमीर और उच्च वर्ग के लोगों तक ही सीमित होगी।
दिव्याथोमूर्ति (2013) ने स्पष्ट किया है कि गांधीवादी शिक्षा का मुख्य उद्देश्य यह है कि इससे व्यक्ति को बाद के जीवन में स्वावलंबी बनने में मदद मिल सके। इसके अलावा, सच्ची शिक्षा को अज्ञानता और अंधविश्वास से छात्रों को साक्षर करना चाहिए और स्वतंत्रता और आत्म-सम्मान के गुण की खेती करनी चाहिए। अंत में, लेखक का निष्कर्ष है कि शिक्षा बेरोजगारी के खिलाफ एक बीमा है और इसका मतलब न केवल व्यक्तिगत विकास, बल्कि विकास अर्थव्यवस्था भी है।
चंद्र बोस (2013) ने बताया है कि शैक्षिक प्रणाली में सुधार जैसे कि सामग्री इक्विटी और उत्कृष्टता पाठ्यक्रम के अभिन्न अंग के रूप में कौशल प्रशिक्षण बनाने की आवश्यकता होगी। शिक्षा के संबंध में वैश्वीकरण का एक महत्वपूर्ण घटक उच्च गुणवत्ता वाली जनशक्ति के उत्पादन की आवश्यकता है जो दुनिया के बाजारों में सफलतापूर्वक प्रतिस्पर्धा का सामना कर सकता है। इस प्रकार, वैश्वीकरण का शिक्षा प्रणाली पर एक बहुआयामी प्रभाव हैय इसने सूचना प्रौद्योगिकी के व्यापक उपयोग के लिए विशेष संदर्भ के साथ शैक्षिक प्रणाली में सुधारों की आवश्यकता को रेखांकित किया है। अंत में, इसने अंतर-क्षेत्रीय प्राथमिकताओं में बदलाव लाने से संबंधित विवादों को भी जन्म दिया है, जो माध्यमिक और उच्च शिक्षा के डाउन-मिडिज्ड नीति और आने वाली पीढ़ियों के लिए छात्रों के वैश्विक शैक्षिक बाजार में किसी भी विचारहीन प्रवेश के लिए अग्रणी है।
शोध प्रविधि:-
शोध या अन्वेषण किसी विशिष्ट प्रयोजन के लिए किया जाता है। ज्ञान की किसी भी शाखा में ध्यानपूर्वक नये तथ्यों की खोज के लिए किये गये अन्वेषण या परिक्षण को अध्ययन कहते है। ज्ञान के क्षेत्र में अनुसंधान कार्य अपरिहार्य है।
शोध कार्य में कौशल विकास योजना का रोजगार के अवसरों के सृजन में योगदानसे सम्बन्धित वास्तविक एवं विश्वसनीय आकड़ो को प्राप्त करने के लिये प्राथमिक एवं द्वितीयक दोनों प्रकार के आकड़ों को एकत्र कर पूर्ण किया गया है। प्राथमिक आकड़े स्वयं कार्य स्थल पर जाकर मूल स्त्रोतो से एकत्र किये गये हैं। जबकि द्वितीयक आंकड़े कौशल विकास योजना का रोजगार के अवसरों के सृजन में योगदानकी समस्या से संबंधित विभिन्न प्रकाशित - अप्रकाशित पुस्तकों, शोध पत्र-पत्रिकाओं, समाचार पत्रों, शासकीय प्रतिवेदनों आदि से एकत्र कर प्रयोग किये गये हैं। इसके अतिरिक्त लाइब्रेरी, एवं इंटरनेट आदि का भी आकड़ें एवं विषय वस्तु से संबंधित स्टडी मटेरियल एकत्र करने में प्रयोग किया गया है।
शोध उद्देश्य:-
इसका मुख्य उद्देश्य विभिन्न केंद्रीय मंत्रालयों/विभागों, भारत सरकार की विभिन्न कौशल विकास योजनाओं के कार्यान्वयन के लिए भारत सरकार (भारत सरकार) द्वारा जारी किए गए कॉमन नॉर्म्स 4 के अनुसार पूरे देश में युवाओं के लिए कौशल विकास को प्रोत्साहित करना और बढ़ावा देना है। योजना के तहत दिए जाने वाले पाठ्यक्रम राष्ट्रीय कौशल योग्यता फ्रेमवर्क (छैफथ्) के अनुरूप हैं। कौशल विकास योजना के उद्देश्य निम्न प्रकार हैं:
1. राष्ट्र के आर्थिक और सामाजिक मोर्चों में शिक्षित बेरोजगारी की बुराइयों को जानना।
2. भारत में कौशल विकास योजना की प्रगति का अध्ययन करना।
3. रीवा जिले में एक विश्लेषणात्मक अध्ययन या कौशल विकास योजना के कार्यान्वयन के लिए रोजगार सृजन आय और परिसंपत्ति निर्माण पर इसके प्रभाव का अध्ययन करना।
4. जिले में लाभार्थियों के पुनर्भुगतान व्यवहार की जांच करना।
5. कौशल विकास योजना के लाभार्थियों की अपेक्षाओं का अध्ययन करना। जहां तक भविष्य में कौशल विकास योजना का आकार है।
6. क्षेत्र के ग्रामीण युवाओं की सामाजिक-जनसांख्यिकी विशेषताओं का अध्ययन करना।
7. पूर्वाग्रह के प्रति ग्रामीण युवाओं के दृष्टिकोण के स्तर का आंकलन करना।
8. विभिन्न पुनर्योजी अवसरों के बारे में जागरूकता के स्तर की पहचान करना।
9. उपयुक्त प्रशिक्षण पाठ्यक्रम का विश्लेषण और युक्ति करना और ग्रामीण युवाओं के विकास में विभिन्न संगठनों की भूमिका की जांच करना।
10. रीवा क्षेत्र के संभावित क्षेत्रों में सूक्ष्म उद्यमिता के लिए व्यवसाय योजना का विकास करना।
11. वर्तमान एवं उभरती हुई बाजार आवश्यकताओं के लिए प्रासंगिक उच्च गुणवत्ता वाला कुशल कार्यबल विकसित करना।
12. सभी व्यक्तियों, विशेष रूप से युवाओं, महिलाओं तथा लाभवंचित समूहों के लिए जीवनपर्यन्त कौशल प्राप्त करने हेतु अवसरों का सृजन करना।
13. कौशल विकास पहलुओं को अंगीकार करने में सभी पणधारियों ;ैजंामीवसकमतेद्ध की वचनबद्धता को बढ़ावा देना।
14. उद्योग डिजाइन किए गए गुणवत्ता कौशल प्रशिक्षण लेने के लिए बड़ी संख्या में युवाओं को सक्षम करना ताकि युवा रोजगारपरक बनें और अपनी आजीविका अर्जित करें।
15. मौजूदा कार्यबल की उत्पादकता में वृद्धि, और देश की वास्तविक जरूरतों के साथ कौशल प्रशिक्षण संरेखित करना।
16. प्रमाणन प्रक्रिया के मानकीकरण को प्रोत्साहित करें और कौशल की एक रजिस्ट्री बनाने के लिए नींव रखें।
17. चार साल (2016- 2020) की अवधि में 10 मिलियन युवाओं को लाभान्वित करें।
18. पणधारियों ;ैजंामीवसकमतेद्ध की आवश्यकताओं की एक विस्तृत श्रृंखला को विशेषताओं के प्रत्युत्तर में लोचशील वितरण तंत्रों की स्थापना करना।
19. विभिन्न मंत्रालयों, केन्द्र तथा राज्यों एवं सार्वजनिक और निजी प्रदाताओं के मध्य प्रभावी समन्वय सम्भव बनाना।
शोध परिकल्पनाएँ:-
कौशल विकास योजना के कथित उद्देश्यों और अध्ययन के उद्देश्यों के खिलाफ निम्नलिखित परिकल्पना प्रासंगिक है जो तैयार की गई है। शीर्षक से सम्बन्धित शोधार्थी की प्रमुख परिकल्पनायें निम्नलिखित है:-
ऽ योजनाओं का लाभ हितग्राहियो को प्राप्त हो रहा है।
ऽ हितग्राहियों के आर्थिक एवं सामाजिक स्तर में सुधार हो रहा है।
ऽ वर्तमान वित्तीय प्रणाली में सुधार करने की आवश्यकता है।
ऽ रीवा जिले में योजनान्तर्गत विकास हो रहा है।
ऽ योजनाओं में लक्ष्य एवं प्राप्ति के अनुपात मंे अन्तर है।
ऽ रोजगार के अवसरों में वृद्धि हो रही है।
ऽ लाभार्थियों के रोजगार और आय पर कौशल विकास योजना का सकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
ऽ निम्न आय के बजाय उच्च गतिविधि आय लाभार्थियों को नियमित रूप से ऋण किस्तों को चुकाने के लिए प्रेरित करती है।
ऽ कौशल विकास योजना का प्रभाव वैसा नहीं है जैसा कि उद्योग, सेवाओं और व्यावसायिक क्षेत्रों के बीच है।
ऽ कौशल विकास योजना का रोजगार के अवसरों के सृजन में योगदान आम तौर पर ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में खराब और गैर-समान है।
तथ्यों का सारणीयन विश्लेषण एवं व्याख्या -
शोधार्थी द्वारा किया गया कोई भी षोघ कार्य सही अर्थो में तभी प्रभावी होते है, जब षोधार्थी द्वारा उस समस्या की वास्तविक स्थिति का मूल्यांकन किया जाये। इसके लिये यह आवश्यक है कि षोधार्थी द्वारा षोध अध्ययन मे उपयोग किये गये समस्त षोध उपकरण द्वारा प्राप्त जानकारियों को व्यवस्थित क्रम में सारणीबद्ध किया जाये।
शोध क्षेत्र में रीवा जिले के कौशल विकास योजना का रोजगार के अवसरों के सृजन में योगदान एवं आर्थिक विकास हेतु षेाधार्थी ने कुछ शोध उपकरणों की सहायता ली है, जिसके द्वारा एकत्रित तथ्यो का सारणीयन, विष्लेषण एवं व्याख्या द्वारा वस्तु स्थिति की जानकारी प्रस्तुत की गयी है। जो इस प्रकार है-
सारणी क्रमांक - 1 शैक्षणिक स्थिति
Řekad |
'kS{kf.kd fLFkfr |
vko`fRr |
izfr'kr |
1- |
fuj{kj |
29 |
30-85 |
2- |
lk{kj |
55 |
58-51 |
3- |
izkFkfed Lrj |
08 |
00-00 |
4- |
ek/;fed Lrj |
00 |
02-13 |
5- |
mPprj ek/;fed Lrj |
02 |
00-00 |
6- |
Lukrd vFkok vf/kd |
00 |
00 |
|
;ksx |
94 |
100-00 |
अतः यह कहा जा सकता है कि बहुत बड़ा प्रतिशत केवल साक्षर एवं निरक्षर हैं। पंचायतों के विविधतापूर्ण कार्यो के लिए शिक्षा का विशिष्ट महत्व है। उस दृष्टि से अनुसूचित जन जाति महिला सरपंचों का केवल 10.64 प्रतिशत हिस्सा ही प्राथमिक अथवा उच्चतर माध्यमिक तक शिक्षित है।
रीवाजिले में प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम की स्थिति:-
प्रदेश के अन्य जिलों की भॉति रीवा जिले में भी प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम 1 अप्रैल 2008 से संचालित है। यह वास्तव में 31.03.2008 तक दो योजनाओं प्रधानमंत्री रोजगार योजना और ग्रामीण रोजगार सृजन कार्यक्रम का मिश्रित स्वरूप है।
सारणी क्र. 2 प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम की लक्ष्य एवं पूर्ति (राशि लाख रूपये में)
o"kZ |
y{; |
iwfrZ |
||
HkkSfrd |
foŮkh; |
HkkSfrd |
foŮkh; |
|
1 |
2 |
3 |
4 |
5 |
2015-16 |
40 |
148.20 |
30 |
135.91 |
2016-17 |
42 |
158.80 |
39 |
162.10 |
2017-18 |
35 |
149.00 |
30 |
169.59 |
2018-19 |
39 |
193.10 |
34 |
188.19 |
2019-20 |
72 |
191.85 |
80 |
143.42 |
;ksx |
228 |
840.95 |
213 |
799.21 |
स्त्रोत - जिला व्यापार एवं उद्योग केन्द्र रीवा (म.प्र.)
जिला व्यापार एवं उद्योग केन्द्र रीवा से प्राप्त जानकारी के अनुसार अभी विगत पॉच वर्षो के दौरान 226 में 213 हितग्राहियों द्वारा स्वरोजगार सम्बन्धी लघु एवं मध्यम स्तर के उद्योगों की स्थापना जिला व्यापार एवं उद्योग केन्द्र रीवा के माध्यम से स्थापित कर चुके है। जिनमें से 799.21 लाख रूपये की आर्थिक मदद बैंकों के माध्यम से प्रदाय की जा चुकी है। विगत पॉच वर्षो की लक्ष्य प्राप्ति को यदि देखा जाय तो अभी तक निर्धारित भौतिक लक्ष्यों में से 65.92 प्रतिशत औसत लक्ष्य प्राप्त किया जा चुका है। इसी प्रकार वित्तीय प्रतिपूर्ति की लक्ष्य 95.03 रहा है।
तालिका 3: घरेलू प्रतिसाददाताओं का आय वार वितरण
vk; |
la[;k |
izfr'kr |
5000 ls de |
30 |
30% |
5001 ls 10000 |
25 |
25% |
10001 ls 15000 |
15 |
15% |
15001 ls 20000 |
20 |
20% |
20001 ls mij |
10 |
10% |
dqy |
100 |
100% |
उपरोक्त अध्ययन से स्पष्ट है कि प्रशिक्षण के पूर्व युवाओं के घरेलू आय में सबसे अधिक 30 प्रतिशत लोगों के यहाँ मासिक आय 5000 से भी कम है फिर 25 प्रतिशत उत्तदातों की मासिक आय रू. 5001 से 10000 रू. के बीच है 15 प्रतिशत की आय 10001 से 15000 तथा 20 प्रतिशत लोगों की मासिक आय 15001 से 20000 तक है तथा सर्वेक्षण में सबसे कम 10 प्रतिशत उत्तरदाताओं की मासिक आय रू. 20000 से उपर है।
इस प्रकार, आय के मामले में एक मिश्रित समूह है, लेकिन अधिकांश उत्तरदाता या तो पहले या दूसरे आय वर्ग में हैं। इसलिए, वे आर्थिक रूप से अच्छी स्थिति में नहीं हैं। इसलिए, यदि योजना कौशल विकास प्रक्रिया के माध्यम से आय में सुधार करने में सक्षम है, तो यह निश्चित रूप से उन्हें अपने जीवन स्तर में सुधार करने में मदद करेगा।
निष्कर्ष:-
कौशल विकास प्रोग्राम अर्थव्यवस्था, रोजगार और स्वरोजगार वृद्धि की रीढ़ है। वर्तमान में भारत देश पूरे विश्व में गौरवषाली पहचान रखता है। तेजी से बढ़ रही अर्थव्यवस्था एवं मानव संसाधन के विषाल स्त्रोत भारत की प्रमुख शक्तियाँ हैं। इन्हें सुदृढ़ बनाने के लिये कौशल विकास प्रोग्राम के द्वारा मानव संसाधन को उच्च मानकांे के साथ तीव्र गति से व्यापक स्तर पर कौशल प्रदान कर उनका सशक्तिकरण किया जा रहा है। जिससे सम्पत्ति और रोजगार के नये आयाम विकसित हो रहे हैं। जिसके फलस्वरूप नागरिकों के लिए सत्त आजीविका सुनिष्चित होती है। परम्परागत रूप से चलाये जा रहे स्वरोजगार एवं परम्परागत हुनर या कौशल का विकास किया जा रहा है।
भारतीय अर्थव्यवस्था में उद्योग एवं रोजगार की स्थिति सुधारने के लिये कौशल विकास कार्यक्रम का महत्वपूर्ण स्थान है। देश के लाखों नागरिक उद्योग या किसी कार्यालय में जुड़े हुये हैं। कौशल विकास कार्यक्रम के द्वारा उन्हें प्रशिक्षण देकर उनकी कार्यक्षमता को बढाया जा सकता है। भारत के हृदय स्थल मध्यप्रदेश क्षेत्रीय विशालता तथा नागरिकों की कौशल कार्यक्षमता आदि शोधकर्ताओं के लिये सदैव गंभीर विषय रहा है। इसी प्रदेश के उत्तर पूर्वी सीमा पर रीवा जिला स्थित है। जहाँ के लोगों की अनेक समस्याएँ रही है। यहाँ के लोगों का प्रमुख जीविका स्त्रोत लघु, कुटीर एवं मध्यम उद्योग कृषि तथा परम्परागत व्यवसाय है। ये सभी साधन विकसित अर्थव्यवस्था की दृष्टि से पिछड़े हैं। फलस्वरूप यहाँ के लोगों की कार्यक्षमता एवं उत्पादकता निम्न स्तर की है तथा यहाँ का आर्थिक स्तर पिछड़ा है। यहाँ के कार्यरत लोग अपने काम के तरीके में थोड़ा बदलाव कर और उसके तकनीक में सुधार कर अपने परम्परागत तथा उत्पादों को बाजार में सही जगह दिलाना चाहते हैं तथा प्रदेश के अन्य प्रमुख जिले के समान विकसित होकर प्रदेश एवं देश के चहुमुखी विकास के लिये योगदान देना चाहते हैं। लोगों की आवश्यकता एवं भावनाओं को समझते हुए मध्यप्रदेश शासन एवं केन्द्र के द्वारा विभिन्न कौशल विकास के प्रोग्राम संचालित किये जा रहे हैं। ताकि लोगों के कौशल को निखार कर उनके परम्परागत जीविका स्त्रोत या सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग एवं स्वरोजगार को नई गति प्रदान की जा सके।
(7) संदर्भ ग्रन्थ सूची -
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2. डॉं. बी.एल. गुप्ता, सांख्यिकी, साहित्य भवन पब्लिशर्स डिस्ट्रन्यूटर्स 2005
3. डॉ. डी.एन. चतुर्वेदी, डॉं. पी.सी. सिन्हा, आर्थिक शोध के तल, लोक भारती प्रकाशन 1979
4. कटरिया रस्तागी, सांख्यिकी सिद्धान्त एवं व्यवहार पब्लिकेशन मेरठ 1988-89
5. एस.के. मिश्रा बी.के. पुरी, भारतीय अर्थव्यवस्था, हिमालय पब्लिशिंग हाउस 2007
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Received on 21.08.2023 Modified on 17.09.2023 Accepted on 28.10.2023 © A&V Publication all right reserved Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 2023; 11(4):241-248. DOI: 10.52711/2454-2687.2023.00041 |