जनजातियों की आजीविका में महुआ का योगदान राजनांदगाँव जिला, छत्तीसगढ़ के विषेष संदर्भ में

 

संध्या साहू1, जयसिंग साहू2, अनिल कुमार मिश्रा3

1षोध छात्रा भूगोल-विभाग, शासकीय दिग्विजय स्वषासी स्नातकोŸार महा. राजनांदगाँव (..)

2सहा. प्राध्यापक  भूगोल, शासकीय कमलादेवी राठी महिला स्नातकोŸार महा. राजनांदगाँव (..)

3सहा. प्राध्यापक भूगोल, शास. विष्वनाथ यादव तामस्कर स्वषासी स्नातकोŸार महा. दुर्ग (..)

*Corresponding Author E-mail: sandhyasahuwe@gmail.com

 

ABSTRACT:

देष में लघु वनोपज संग्रहण में राज्य का प्रमुख स्थान हैं। Ÿाीसगढ़ के जनजातियों की आजीविका का एक महत्वपूर्ण स्रोत लघु वनोंत्पाद हैं। राजनांदगाँव जिला के जनजातियों की अधिकांष आबादी वन क्षेत्रों में रहती है एवं गैर-लकड़ी वन उत्पादों पर अपनी आजीविका और आय सृजन के लिए काफी हद तक निर्भर हैं जो जनजातीय समुदाय के लिए निर्वाह और नकदी आय का एक बड़ा स्रोत हैं। लघु वनोपज में पौधें मूल के सभी गैर-काष्ट उत्पाद आते हैं। जिसका उपयोग खाद्य, पेय एवं औंषधीय पदार्थ के रुप में होता हैं, इस कारण जनजातियों के जीवन में लघु वनोपज का सामाजिक एवं आर्थिक महत्व बढ़ जाता हैं। ग्रामीण आदिवासी प्राथमिक कार्य में संलग्न हैं एवं ग्रामीण आदिवासी कृषि के साथ पूर्णतः जंगलों पर निर्भर रहते हैं तथा जंगल जीवन जीने का एक सहारा हैं। आदिवासियों की अधिकांष आबादी वन क्षेत्रों में निवासित हैं और ये लोग जंगलों में कई दषक से लघु वनोपज इकट्टा करते रहे हैं। पहले जनजातीय वनोपज अपने जरूरत के लिए इकट्टा करते थे लेकिन वर्तमान समय में लघु वनोपज की माँग देष-विदेष में होने के कारण इसकी बाजार माँग अधिक होती हैं, जिससे इन्हे वनोपज का निर्धारित पैसे मिल रहे हैं। आदिवासियों के जीवन का पूरा समय जंगलों में गुजरता हैं। महुआ को मुख्य रूप से शराब के लिए जाना जाता हैं। इससे आदिवासी द्वारा देषी शराब बनाया जाता हैं। राजनांदगाँव जिला में संग्रहित किये जाने वाले वनोपजों में महुआ फूल का महत्वपूर्ण योगदान हैं।

 

KEYWORDS: जनजाति, लघु-वनोपज, महुआ, संग्रहण, विपणन, मौद्रिक आय

 

 


INTRODUCTION:

Ÿाीसगढ़ राज्य के राजनांदगाँव जिला के जनजातियों की आय के प्रमुख साधनों में से एक महुआ संग्रहण भी हैं। वर्षो से इन वनोपजों का संग्रहण ग्रामीण जनजातीय परिवार करते रहे हैं। राजनांदगाँव जिला का अक्षांषीय विस्तार 20°6’ Ÿारी अक्षांष से 21°45’ Ÿारी अक्षांष तथा देषान्तरी विस्तार 80°25’ पूर्वी देषांतर से 81°21’ पूर्वी देषांतर के बीच हैं। जिला के उत्तर में कबीरधाम, बेमेतरा, पूर्व में दुर्ग, बालोद, दक्षिण में कांकेर एवं पष्चिम में मध्यप्रदेष के बालाघाट जिला महाराष्ट्र के गोंदिया एवं गढ़चिरौली जिला राजनांदगाँव जिला को स्पर्ष करती हैं। इस जिला का भौगोलिक क्षेत्रफल 8022.55 वर्ग कि.मी. हैं, जिसका 27.60 भाग वनों से आच्छादित हैं। राजनांदगाँव जिला कुल 10 विकासखण्डांे में विभाजित हैं। ये विकासखण्ड-खैरागढ़, राजनांदगाँव, डोंगरगढ़, अम्बागढ़-चौकी, डोंगरगाँव, मोहला, मानपुर, छुरिया, छुईखदान, गंडई हैं। जिसमें से 8 विकासखण्ड मोहला, मानपुर, छुरिया, अम्बागढ़-चौकी, खैरागढ़, छुईखदान, गंडई एवं डोंगरगढ़ आरक्षित, संरक्षित एवं मिश्रित प्रकार के वनों से आच्छादित हैं। जनगणना 2011 के अनुसार जिला की कुल जनसंख्या 15.37 लाख हैं, जिसका 26.36 भाग जनजातियों का हैं। ये जनजाति मैकल श्रेणी के दुर्गम्य वन क्षेत्र में निवास करते हैं।

 

षोध साहित्य का पुनरावलोकन:-

मूर्ति (2013) महुआ एक प्रकार का पेड़ है, जो आदिवासी लोगों की दिन-प्रतिदिन की गतिविधियों में शामिल होता हैं। यह पेड़ पूरे देष में उगने वाला एक महŸवपूर्ण आर्थिक वृक्ष हैं। यह पेड़ मध्यम आकार से लेकर बड़े आकार का पर्णपाती पेड़ होता है। गुठली छोटी और मुकुट बड़ा गोलाकार होता हैं। मिश्र एवं प्रधान. (2013) मधुका लोंगिफोलिया (सैपोटेसी) को व्यापक रूप से बटर नट ट्री से जाना जाता हैं इनके विभिन्न स्वास्थ्य लाभ हैं। महुआ फूल का उपयेग भोजन के साथ-साथ आदिवासी और ग्रामीण क्षेत्रों में विनिमयकर्Ÿाा के रूप में किया जाता हैं। महुआ के बीज खाद्य वसा से भरपूर होते हैं इसलिए उनका आर्थिक महŸ हैं। महुआ फलों का सब्जी, औषधीय जड़ी-बूटियों और रोगों के उपचार के लिए उपयोगी हैं। पटेल एवं दुबे. (2012) मधुका इंडिका भारतीय मूल का एक पौधा है जो कई औषधीय गतिविधियां जिसमें चिकित्सीय क्षमता हैं लेकिन इसका उपयोग प्रजनन, रोधी, सूजन, बवासीर, त्वचाविज्ञान, चेचक, घाव, जलनरोधी, उल्टी, एनाल्जेसिक, टॉनिक एवं अन्य कई रूप में किया जाता हैं। सिंह एवं राय. (2017) द्वारा महुआ मधुका लोंगिफोलिया के इस्तेमाल किया जाने वाला एक सामान्य नाम हैं, यी सैपोटेसी परिवार से संबंधित हैं। यह पूरे देष में उने वाला एक महत्वपूर्ण आर्थिक वृक्ष है। महआ एक अत्यधिक पौष्टिक पेड़ है। महुआ के फाइटोकेमिस्ट्री अध्ययन से पता चलता है कि विटामिन, षर्करा, प्रोटीन, फेनोलिक, एल्कलॉइड और यौंगिकों आदि भरपूर मात्रा में हैं। इसे विभिन्न रोगों के चिकित्सीय इलाज के लिए षोध किए जो इसके जीवाणुरोधी, कैंसररोधी, अल्सररोधी, एनाल्जेसिक और हेपेटोप्रोटेक्टिव गतिविध्यिों जैसे नृवंशविज्ञान गुणों को दर्षाते हैं। यह हर्बल औष्धि के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। महुआ के फूल, फल और बीज का मुल्य संवर्धन में महुआ फूल के उपयोग किया गया हैं।

 

षोध अध्ययन का उद्देष्य:-

षोध अध्ययन निम्नलिखित उद्देष्यों पर आधारित है।

1. राजनांदगाँव जिला के महुआ का संग्रहण एवं विपणन संबंधी जानकारी।

2. महुआ से रोजगार एवं मौद्रिक आय प्राप्त करना।

3. महुआ का व्यापार एवं बाजार में संबंधी जानकारी प्राप्त करना।

4. महुआ से शराब का विदेषी निर्यात संबंधी।

 

षोध प्रविधि:-

प्रस्तुत षोध अध्ययन मुख्य रूप से प्राथमिक आँकड़ों पर आधारित हैं। षोध कार्य से संबंधित प्राथमिक आँकड़ों का संकलन राजनांदगाँव जिलों के आठ तहसीलों के 20 सर्वेक्षित गाँवों के 200 जनजातियों परिवारों के आय में लघु वनोपजों में महुआ फूल का अध्ययन किया गया हैं। गाँवों के चयन में इस बात का ध्यान रखा गया कि गाँवों की जनजातियों की आय का स्रोत्र लघु वनोपज हो। महुआ फूल संबंधित आँकडें़ एकत्रित करने के लिए अनुसूची का उपयोग किया गया था। अनुसूची को षोधकर्Ÿाा द्वारा चयनित गाँव में जाकर लक्षित जनो से भरा गया। षोध प्रबंधन के लिए आँकड़ें एकत्रित के पश्चात् आँकड़ों का सारणीयन, वर्गीकरण एवं विष्लेषण किया गया। षोध विष्लेषण एवं लेखन के लिए सांख्यकीय विधियों दर, औसत, प्रतिषत, अनुपात, मानचित्रांकन एवं आरेखन विधियों का उपयोग किया गया।

 

महुआ का महत्त्व:-                        

वनों के गौण उपज में महुआ का एक महत्वपूर्ण स्थान हैं। महुआ का पेड़ उष्णकटिबंधीय पर्णपाती वन के अन्तर्गत आता हैं, जो ग्रीष्म काल में अपनी Ÿिायां गिरा देते हैं। महुआ संग्रहण में देष में Ÿाीसगढ़ का प्रमुख स्थान हैं। महुआ प्रदेष के लगभग सभी भागों में होता है। यह एक बहुउपयोगी पेंड़ हैं, इस पेंड़ के फल, बीज एवं लकड़ी उपयोगी होते हैं। महुआ के कच्चा फल जब पकते हैं तो उसे तोड़कर, कुछ दिन धूप में अच्छी तरह सुखाया जाता हैं और इस सुखे फल के बीज का तेल निकाला जाता हैं। महुआ के पके फल से विषेष प्रकार के मादक पेय पदार्थ भी बनाया जाता है। इसका उपयोग घरो में होता है तथा इसका वाणिजिक मूल्य भी है। यह विषेष रूप से अपने फूलों के लिए जनजातीय संस्कृति में बहुत महत्व रखता है। जंगलों में या जंगलों के आस पास रहने वालो आदिवासी एवं अन्य लोगों की आय का साधन ही नही अपितु जीवन यापन का आधार हैं। आदिवासी सामुदाय के पारंपरिक सांस्कृतिक लोकगीतों में महुआ के गीत गाए जाते हैं जो विषेष प्राकृतिक अवसरों पर महुआ के पेड़ की पूजा की जाती हैं। इस पेंड़ की लकड़ी को ग्रामीण क्षेत्र के लोगों द्वारा जलाऊ लकड़ी के रूप में उपयोग किया जाता हैं। मधुका लोंगिफोलिया (सैपोटेसी) को व्यापक रूप से बटर नट ट्री से जाना जाता हैं इनके विभिन्न स्वास्थ्य लाभ हैं। महुआ फूल का उपयेग भोजन के साथ-साथ आदिवासी और ग्रामीण क्षेत्रों में विनिमयकर्Ÿाा के रूप में किया जाता हैं। महुआ के बीज खाद्य वसा से भरपूर होते हैं इसलिए उनका आर्थिक महŸ हैं। महुआ फलों का सब्जी, औषधीय जड़ी-बूटियों और रोगों के उपचार के लिए उपयोगी हैं। मधुका इंडिका भारतीय मूल का एक पौधा है जो कई औषधीय गतिविधियां जिसमें चिकित्सीय क्षमता हैं लेकिन इसका उपयोग प्रजननरोधी, सूजन, बवासीर, त्वचाविज्ञान, चेचक, घाव, जलनरोधी, उल्टी, एनाल्जेसिक, टॉनिक एवं अन्य कई रूप में किया जाता हैं। महुआ मधुका लोंगिफोलिया के इस्तेमाल किया जाने वाला एक सामान्य नाम हैं, यह सैपोटेसी परिवार से संबंधित हैं। महुआ एक अत्यधिक पौष्टिक पेड़ है। महुआ के फाइटोकेमिस्ट्री अध्ययन से पता चलता है कि विटामिन, षर्करा, प्रोटीन, फेनोलिक, एल्कलॉइड और यौंगिकों आदि भरपूर मात्रा में होता हैं। इस महुआ को विभिन्न रोगों के चिकित्सीय इलाज के लिए षोध किए जो इसके कैंसररोधी, अल्सररोधी, जीवाणुरोधी, एनाल्जेसिक और हेपेटोप्रोटेक्टिव गतिविधियों जैसे नृवंषविज्ञान गुणों को दर्षाते हैं। यह हर्बल औषधी के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।

 

जनजातियों द्वारा महुआ का संग्रहण:-

Ÿाीसगढ़ राज्य के राजनांदगाँव जिला के जनजातियों की आय के प्रमुख साधनों में से एक महुआ हैं। वर्षो से इस वनोपज का संग्रहण ग्रामीण क्षेत्र के लोग करते रहे हैं। महुआ राजनांदगाँव जिला के पर्वतीय एवं पहाड़ी क्षेत्र में सर्वाधिक मात्रा में मिलते हैं। ग्रामीण आदिवासी परिवारों ने महुआ फूल इकठ्ठा कर प्रति वर्ष हजारों रूपयें कमाते है। महुआ सबसे महŸवपूर्ण लघु वन उपज में से एक हैं, जो आदिवासी लोगों की अर्थव्यवस्था की गतिविधियों में षामिल होती हैं। महुआ का संग्रहण कार्य हाथों द्वारा किया जाता हैं। महुआ पेंड़ से फल फकने के बाद टुटकर जमीन पर गिरने लगते है, इस गिरे हुए महुआ फूल को जनजातियों के द्वारा बीनकर किसी टोकरी में रखा जाता है। कभी-कभी पेंड़ के षाखा को हिलाकर फूल को जमीन पर गिराकर फूलों का एकत्रिकरण किया जाता हैं। महुआ फूल का संग्रहण का कार्य मार्च माह से प्रारम्भ होकर मई माह तक किया जाता हैं। और इस फूल को धूप में सूखाकर, बोरी में भरकर बाजार तक पहुंचाया जाता है। इसका संग्रहण मुख्य रूप से ग्रामीण आदिवासी परिवार या समाज के निर्बल वर्ग के परिवारों द्वारा किया जाता हैं। जिसमें 90 प्रतिषत जनसंख्या अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति एवं अन्य पिछडा वर्ग के हैं। Ÿाीसगढ़ में 35 रूपए किलो समर्थन मूल्य पर महुआ फूल को खरीदा जाता हैं। खाद्य ग्रेड महुआ Ÿाीसगढ़ राज्य लघु वनोपज संघ के माध्यम से संग्रहित किया जाता हैं। इसके लिए संग्रहण प्रक्रिया का प्रषिक्षण भी दिया जाता है ताकि महुआ की गुणवŸाा बनी रहें।

 

तालिका क्रमांक 1 जिला-राजनांदगाँव महुआ का संग्रहण 2022-23

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स्रोत: व्यक्तिगत सर्वेक्षण:-

 

राजनांदगाँव जिला में संग्रहित किये जाने वाले वनोपज में महुआ का सर्वाधिक महत्व है। महुआ जिला के सभी तहसीलों में बहुतायत से एकत्रित किया जाता है। वनोपज महुआ का संग्रहण जिला के सभी तहसीलों में एक समान नहीं है। जिला के छुरिया, मानपुर एवं मोहला तहसीलों में सर्वाधिक मात्रा में महुआ का फूल एकत्रित किया जाता है। जिलों के 20 सर्वेक्षित गाँवों में 2022-23 में महुआ फूल की मात्रा पेण्ड्रापानी (छुरिया) मेें 8620 कि.ग्रा., गल्लेटोला (मोहला) में 8360 कि.ग्रा., विचारपुर (छुरिया) मेें 7680 कि.ग्रा., बम्हनी (मोहला) में 7652 कि.ग्रा., मकोंड़ी (मोहला) में 7520 कि.ग्रा., टोहे (मानपुर) मेें 6552 कि.ग्रा., उरवाही (मोहला) में 6540 कि.ग्रा. एवं मालडोंगरी (छुरिया) मेें 6432 कि.ग्रा. एकत्रित किया जाता है। जिला में डोंगरगढ़, खैरागढ़ एवं छुईखदान में अपेक्षाकृत महुआ फूल कम एकत्रित किया गया है, जिसका मुख्य कारण वनों की सघनता में कमी तथा परिवारों का कृषि एवं मजदूरी पर अधिक निर्भरता हैं।

 

चित्रः - 1

महुआ का विपणन:-

जिला में महुआ के संग्रहण एवं विपणन में त्रि-स्तरीय सहकारी समिति का योगदान हैं। जिला में महुआ का विपणन राज्य स्तर पर राज्य लघु वनोपज सहकारी विपणन संघ, जिला स्तर पर जिला लघु वनोपज सहकारी समिति और ग्राम स्तर पर प्राथमिक लघु वनोपज सहकारी समिति के द्वारा किया जाता हैं। Ÿाीसगढ़ राज्य लघु वनोपज संघ के माध्यम से वन विभाग द्वारा प्राथमिक लघु वनोपज सहकारी समितियों में संग्रहित किया जाता हैं। संग्रहित महुआ का संग्रहण से पूर्व अग्रिम बिक्री, विज्ञप्ति या निविदा या नीलामी पद्धति द्वारा किया जाता हैं। राज्यों ने लघु वनोपज को हाट बाजारों में प्राथमिक खरीदी एजेंसियों के माध्यम से एवं जनजातीय एकत्रिकर्Ÿााओं के माध्यम के तहत उपलब्ध मौजूदा निधियों से न्यूनतम समर्थन मूल्य की खरीदी शुरू की हैं।

 

तालिका क्रमांक 2: जिला-राजनांदगाँव महुआ का विपणन एवं आय 2022-23

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स्रोत: व्यक्तिगत सर्वेक्षण:-

 

उपर्युक्त आँकड़ा से स्पष्ट होता है कि सर्वेक्षित गाँवों के चयनित परिवारों द्वारा 2022-23 में 104692 कि.ग्रा. महुआ का विक्रय जिला लघु वनोपज सहकारी समिति और ग्राम स्तर पर प्राथमिक लघु वनोपज सहकारी समिति के माध्यम से किया गया।

 

महुआ से आय:-

राजनांदगाँव जिला में महुआ के संग्रहण से ग्रामीण आदिवासी की आजीविका एवं आय में वृद्धि हो रही हैं और महुआ का संग्रहण प्रतिवर्ष बढ़ता जा रहा हैं। जिला के सर्वेक्षित गाँवों में संग्रहित किये जाने वाले वनोपज में महुआ का सर्वाधिक महत्व है। आदिवासी समुदाय की जीवन निर्वाह एवं आय में महुआ एक बड़ा स्रोत हैं। लघु वनोपज से जनजातियों के आय में महुआ का प्रथम स्थान है। जिलों के 20 सर्वेक्षित गाँवों में 2022-23 के अनुसार से 3540.31 रूपयें प्रति व्यक्ति वार्षिक आय महुआ फूल से अर्जित हुई हैं और इन गाँवों के 200 परिवारों में प्रति परिवार 18321.10 रूपयें की वार्षिक आय महुआ फूल से प्राप्त हुई है। जिला में महुआ फूल से आय सभी तहसीलों में एक समान नहीं है। जिला के छुरिया एवं मोहला तहसीलों में सर्वाधिक आय महुआ फूल से हुई हैं। सर्वेक्षित गाँवों में महुआ फूल के मात्रा पेण्ड्रापानी (छुरिया) मेें 6856.82 रूपयें, गल्लेटोला (मोहला) में 5626.92 रूपयें, विचारपुर (छुरिया) मेें 5376.00 रूपयें, बम्हनी (मोहला) में 5251.37 रूपयें, मालडोंगरी (छुरिया) मेें 5002.67 रूपयें की वार्षिक आय हुई।

 

चित्र - 2:-

 

निष्कर्ष:-

गैर-लकड़ी वन उत्पाद को वनवासियों की आजीविका के सामाजिक-आर्थिक और सांस्कृतिक विकास के रूप से महŸवपूर्ण हैं। राजनांदगाँव जिला में लघु वनोपज में महुआ वन सीमांत समुदायों के लाखों लोगों के लिए आजीविका का एक प्रमुख स्रोत हैं। जिला के वन क्षेत्र में रहने वाले जनजाति के जीवन निर्वाह एवं सुरक्षा के लिए वन संसाधन अति महत्वपूर्ण हैं तथा इनका आय का प्रमुख स्रोत लघु वनोपज महुआ हैं। राज्य सरकार के द्वारा महुआ के व्यापार से होने वाले लाभ का प्रोत्साहन पारिश्रमिक संग्राहकों को वितरण किया जाता हैं इससे महुआ संग्राहकों को महुआ संग्रहण की राषि में भी वृद्धि हो रही। जिला में महुआ का विपणन राज्य स्तर पर राज्य लघु वनोपज सहकारी विपणन संघ, जिला स्तर पर जिला लघु वनोपज सहकारी समिति और ग्राम स्तर पर प्राथमिक लघु वनोपज सहकारी समिति के द्वारा किया जाता हैं। लेकिन जिला में जंगलों से महुआ एकत्रित करने वाले आदिवासी एवं अन्य स्थानीय लोग अभी भी वास्तविक लाभ से वंचित हैं तथा लाभार्थियों को उसका पूर्ण लाभ नहीं मिल पा रहा हैं।

 

संदर्भ गं्रथ सूची :-

1-     अजय सिंह एवं आईएस सिंह. मधुका (मधुका इंडिका) बीज का रासायनिक मुल्यांकन, खाद्य रसायन 40(2), 1991 पृष्ठ 221-228.

2-     अदिती गुप्ता, रोहित चौधरी एवं सत्यवतीषर्मा. महुआ (मधुका इंडिका) बायोमास के संभावित अनुप्रयोग, अपषिष्ट और बायोमास मूल्यांकन 3, 2012 पृष्ठ 175-189.

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7-     ज्योति सिन्हा, विनती सिंह, ज्योत्सना सिंह एवं एके राय. फाइटोकेमिस्ट्री, नृवंषविज्ञान संबंधी उपयोग और भोजन के रूप में मधुका (मधुका लोंगिफोलिया) की भविष्य की संभावनाएं: एक समीक्षा, जे न्यूट्र फूड साइंस 7 (573), 2017 पृष्ठ 2.

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10-   मोहम्मद फॉजी रमजान. मधुका लोंगिफोलिया बीजों की कार्यात्मक विषेषताएं, पोषण मूल्य और औद्योगिक अनुप्रयोग: एक सिंहावलोकन, जर्नल . फूड साइंस एंड टेक्नोलॉजी 53, 2016 पृष्ठ 2149-2157.

11-   नेहा बडुकाले एवं वृषाली पंचाले. मधुका इंडिका के फाइटोकेमिस्ट्री, फार्माकोलॉजी और वानस्पतिक पहलू: एक समीक्षा, जर्नल ऑफ फार्माकोग्नॉसी एंड फाइटोकेमिस्ट्री 10(2), 2021 पृष्ठ 1280-1286.

12-   निषांत वर्मा. मधुका (मधुका लोंगिफोलिया) के जैविक गुण, फाइटोकेमिस्ट्री और पारंपरिक उपयोग: एक समीक्षा, इंटष्जे एड रेस दनोव 2(3), 2014 पृष्ठ 630-638.

13-   पुष्पेंद्र के पटेल, नरेंद्र के प्रजापति एव ंबी के दुबे. मधुका इंडिका: इसके औषधीय गुण की समीक्षा, फार्मास्युटिकल विज्ञान और अनुसंधान के अंतर्राष्ट्रीय जर्नल 3 (5), 2012 पृष्ठ 1285.

14-   रवि श्रेय, गोपाल कृष्णा आचार्य एवं चंद्रेष कुमार धुर्वे. Ÿाीसगढ़ राज्य में जनजातीय आजीविका और इसके विपणन पर महुआ (मधुका प्रजाति) का आर्थिक प्रभाव 2008.

15-   शषिकांत विलास घाडगे एवं हिफजुर रहमान. प्रक्रिया सतह पद्धति का उपयोग करके मधुका (मधुका इंडिका) तेल से बायोडीजल उत्पादन के लिए प्रक्रिया अनुकूलन, जैव संसाधन प्रौद्योगिकी 97(3), 2006 पृष्ठ 379-384.

16-   सुकुमार पुहान एवं एन वेदारमन. महुआ तेल (मधुका इंडिका बीज तेल) मिथाइल एस्टर बायोडीजल तैयारी और उत्सर्जन विषेषताओं के रूप में, बायोमास और बायोएनर्जी 2005; 28(1) पृष्ठ 87-93.

17-   सुनीता मिश्र एवं सरोजिनी प्रधान. मधुका लोंगिफोलिया (सैपोटेसी): इसके पारंपरिक उपयोग और पोषण संबंधी गुणों की समीक्षा, इंटरनेषनल जर्नल ऑफ ह्यूमैनिटीज़ एंड सोषल साइंस इन्वेंषन 2013; 2(5) पृष्ठ 30-36.

18-   टी सुधाकर जॉनसन, आरके अग्रवाल एवं अमित अग्रवाल. वनवासियों के लिए आजीविका विकल्प के स्त्रोत के रूप में गैर-लकड़ी वन उत्पाद: समाज, हर्बल उद्योगों और सरकारी एजेंसियों की भूमिका, वर्तमान विज्ञान 2013; 104(4) पृष्ठ 440-443.

 

 

 

Received on 10.04.2024         Modified on 25.04.2024

Accepted on 06.05.2024         © A&V Publication all right reserved

Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 2024; 12(2):97-103.

DOI: 10.52711/2454-2687.2024.00016