भारत मे संपोषित पर्यटन विकास एवं पर्यावरण
कुबेर सिंह गुरुपंच
प्राध्यापक एवं अधिष्ठाता भारती विश्वविद्यालय दुर्ग छ.ग.
*Corresponding Author E-mail:
ABSTRACT:
प्रस्तुत अध्ययन भारत मे संपोषित पर्यटन विकास एवं पर्यावरण का अध्ययन है इसमें भारत के विभिन्न पर्यटन स्थलों के विकास एवं पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन किया गया है वातावरण में विभिन्न प्रदूषक तत्वों के द्वारा पर्यटन स्थलों को प्रभावित किया जा रहा है जिसका पर्यटन स्थल पर भ्रमण में वृद्वि के साथ ही साथ होने वाली वाहनों में वृद्धि ध्वनि प्रदूषण का प्रमुख कारण है, जिससे प्राकृतिक वनस्पति, पेड़-पौधों पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इसके अतिरिक्त प्रदूषण से कुप्रभावित होकर ताज के सफेद पत्थरों पर पीलापन देखा गया है। पृथ्वी की सतह के लगभग 27ः भाग में पर्वतीय क्षेत्र विस्तारित है। ये पहाड़ों एवं अनुप्रवाह क्षेत्र में रह रहे करोड़ों लोगों के जीवन-यापन का आधार हैं। पहाड़ी समुदायों एवं अनुप्रवाह क्षेत्र में रह रही आबादी के लिये संभावित रूप से दूरगामी एवं विनाशकारी परिणामों के साथ पहाड़ों को जलवायु परिवर्तन, भूमि क्षरण, अत्यधिक दोहन तथा प्राकृतिक आपदाओं से खतरा है। इसके संदर्भ में मुख्य चुनौती नए एवं स्थायी अवसरों की पहचान करना है जो उच्चभूमि एवं तराई में रहने वाले दोनों तरह के समुदायों को लाभान्वित करते हैं तथा पर्वतीय पारिस्थितिक तंत्र के क्षरण के बिना गरीबी उन्मूलन में मदद करते हैं।
KEYWORDS: पर्यटन, प्राकृतिक आपदा, भूमि क्षरण, जलवायु परिवर्तन।
INTRODUCTION:
जलवायु परिवर्तन ने हिमालय क्षेत्र को प्रभावित किया है, इसलिये सिकुड़ते ग्लेशियर, बढ़ते तापमान, पानी की कमी, बदलते मानसूनी पैटर्न तथा गंभीर आपदाओं की आवृत्ति के रूप में चेतावनी के संकेत स्पष्ट रूप से परिलक्षित होते हैं। भारतीय हिमालयी क्षेत्र (प्दकपंद भ्पउंसंलंद त्ंदहम दृ प्भ्त्) पश्चिम में सिंधु नदी से लेकर पूर्व में ब्रह्मपुत्र नदी तक फैला हुआ है। पर्वत श्रृंखलाएँ एवं नदी-नालियाँ, सीमा-पार संबद्धता साझा करती हैं। छह देश हिंदू कुश हिमालयी क्षेत्र में भारत के साथ सीमाएँ साझा करते हैं। प्भ्त् में तीर्थयात्रा के अलावा आधुनिक पर्यटन (जिसे सामूहिक पर्यटन भी कहा जाता है) जो बड़े पैमाने पर दर्शनीय स्थलों की यात्रा एवं प्रमुख पर्यटन केंद्रों तक ही सीमित है, हिमालय की पारिस्थितिकी तथा पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के साथ-साथ स्थानीय सामाजिक संरचनाओं पर भी गंभीर प्रभाव डाल रहा है। पर्यटन हिमालय क्षेत्र के विकास के लिये मुख्य कारकों में से एक है तथा भविष्य में विकास के संदर्भ में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है लेकिन यह केवल तभी संभव होगा जब इसे स्थिरता के सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए विकसित एवं कार्यान्वित किया जाए।
यह रिपोर्ट भारतीय हिमालयी क्षेत्र में स्थायी पर्यटन के विकास के लिये एक कार्य-उन्मुख मार्ग को प्रस्तुत करती है, जो क्षेत्र की पारिस्थितिकी तथा सांस्कृतिक मूल्यों को बनाए रखते हुए आजीविका के अवसरों को बढ़ा सकती है एवं इस क्षेत्र को आर्थिक रूप से सुदृढ़ कर सकती है। भारतीय हिमालयी क्षेत्र (प्भ्त्) में पिछले कुछ दशकों में निरंतर पर्यटन में विकास हुआ है एवं विविधता भी आई है। वर्ष 2013 से 2023 के दौरान 7.9ः औसत वार्षिक दर से पर्यटन के बढ़ने की संभावना है। स्थानीय पर्वतीय लोगों के लिये पर्यटन का अर्थ आर्थिक तथा व्यावसायिक अवसर एवं नौकरियाँ हैं तथा राज्य सरकारों एवं निजी उद्यमियों के लिये यह राजस्व और लाभ का स्रोत हैं। योजना आयोग की 11वीं पंचवर्षीय योजना में पर्यटन देश का सबसे बड़ा सेवा उद्योग है। इसका महत्त्व आर्थिक विकास तथा रोजगार सृजन के साधन के रूप में है। विशेषतः दूरस्थ एवं पिछड़े क्षेत्रों के लिये (उदाहरण के तौर पर प्भ्त् में)। इसके अलावा 12वीं पंचवर्षीय योजना स्पष्ट रूप से समावेशी विकास के लिये आर्थिक रूप से सुभेद्य क्षेत्र में पर्यटन को मान्यता देती है। सतत् विकास लक्ष्य संख्या 8 एवं 12 पहाड़ों में पर्यटन को एक लक्ष्य के रूप में शामिल करता हैः सतत् विकास लक्ष्य संख्या 8ः निरंतर, समावेशी एवं सतत् आर्थिक विकास‘ के प्रसार पर केंद्रित है ताकि वर्ष 2030 तक स्थायी पर्यटन को बढ़ावा देने के लिये नीतियों को बेहतर ढंग से तैयार और कार्यान्वित किया जा सके। इससे रोजगार सृजन के साथ-साथ स्थानीय संस्कृति और उत्पादों को भी बढ़ावा मिलेगा। सतत् विकास लक्ष्य संख्या 12 स्थायी उत्पादन एवं खपत पैटर्न को सुनिश्चित करने से संबंधित है।
इसका उददेश्य सतत् पर्यटन के लिये सतत् विकास प्रभावों की निगरानी हेतु उपकरण विकसित करना एवं उनका उपयोग करना है ताकि रोजगार का सृजन हो तथा स्थानीय संस्कृति एवं उत्पादों को बढ़ावा मिले। 7 अप्रैल 2017 को छप्ज्प् ।ंलवह ने कुछ प्रमुख राष्ट्रीय संस्थानों एवं अंतर्राष्ट्रीय एकीकृत पर्वत विकास केंद्र (प्दजमतदंजपवदंस ब्मदजतम वित प्दजमहतंजमक डवनदजंपद क्मअमसवचउमदज ंदक प्ब्प्डव्क्) के सहयोग से भारतीय हिमालयी क्षेत्र के पहाड़ों के सतत् विकास (प्भ्त्) के लिये एक कार्य-योजना प्रस्तुत की, जिसमें प्भ्त् में सतत् पर्यटन‘‘ को एक प्रमुख विषय के रूप में चुना गया। व्यापार, होटल एवं रेस्तरां को सकल राज्य घरेलू उत्पाद (ळैक्च्) में योगदान देने वाला कारक माना जाता है। त्ठप् के आँकड़ों के अनुसार, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, असम और मेघालय जैसे राज्यों में सकल घरेलू उत्पाद में 10ः से अधिक पर्यटन का योगदान रहा है। सबसे कम योगदान अरुणाचल प्रदेश (3-4ः), सिक्किम (2-3ः) और नागालैंड (3-4ः) जैसे राज्यों में है। सतत पर्यटन वह पर्यटन है जो यात्रा और पर्यटन के आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभावों को ध्यान में रखता है। इसमें पर्यटन को पर्यावरण के अनुकूल, सामाजिक रूप से जिम्मेदार और आर्थिक रूप से व्यवहार्य तरीके से प्रबंधित करना शामिल है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि पर्यावरण और स्थानीय समुदायों पर नकारात्मक प्रभावों को कम करते हुए पर्यटन आर्थिक लाभ प्रदान करना जारी रख सके। सतत पर्यटन के लाभ - स्थायी पर्यटन से गंतव्यों को कई प्रकार के लाभ हो सकते हैं, जिनमें शामिल हैं, आर्थिक लाभ, पर्यटन गंतव्यों को महत्वपूर्ण आर्थिक लाभ प्रदान कर सकता है, जिसमें रोजगार के अवसर और राजस्व में वृद्धि शामिल है। सतत पर्यटन यह सुनिश्चित करने में मदद कर सकता है कि ये लाभ अल्पकालिक और शोषणकारी के बजाय दीर्घकालिक और टिकाऊ हों। पर्यावरणीय लाभः सतत पर्यटन पर्यावरण पर पर्यटन के नकारात्मक प्रभावों को कम करने में मदद कर सकता है, जिसमें कार्बन उत्सर्जन को कम करना, प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा करना और जैव विविधता का संरक्षण शामिल है।
सामाजिक लाभः स्थायी पर्यटन के सामाजिक लाभ भी हो सकते हैं, जिनमें स्थानीय समुदायों का समर्थन करना और सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करना शामिल है। स्थायी पर्यटन हासिल करने के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें शामिल हैं योजना और प्रबंधनः प्रभावी योजना और प्रबंधन स्थायी पर्यटन प्राप्त करने की कुंजी है। इसमें स्पष्ट लक्ष्य और उद्देश्य निर्धारित करना, नीतियां और रणनीतियां विकसित करना और प्रभावी प्रबंधन प्रथाओं को लागू करना शामिल है। स्थायी पर्यटन हासिल करने के लिए हितधारक जुड़ाव आवश्यक है। इसमें स्थानीय समुदायों, व्यवसायों, गैर सरकारी संगठनों और सरकारी एजेंसियों सहित कई हितधारकों के साथ जुड़ना शामिल है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उनकी जरूरतों और चिंताओं को ध्यान में रखा जाए।
पर्यावरणीय स्थिरताः पर्यावरणीय स्थिरता टिकाऊ पर्यटन का एक प्रमुख घटक है। इसमें कार्बन उत्सर्जन को कम करना, प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण और जैव विविधता की रक्षा करना शामिल है। सामाजिक जिम्मेदारीः सामाजिक जिम्मेदारी भी टिकाऊ पर्यटन का एक प्रमुख घटक है। इसमें स्थानीय समुदायों का समर्थन करना, सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करना और नैतिक और जिम्मेदार पर्यटन प्रथाओं को बढ़ावा देना शामिल है।टिकाऊ पर्यटन के महत्व को और स्पष्ट करने के लिए, हमने एक सहायक तालिका बनाई है जो टिकाऊ पर्यटन के लाभों और अस्थिर पर्यटन के नकारात्मक प्रभावों को रेखांकित करती है।
निष्कर्ष:-
यह सुनिश्चित करने के लिए सतत पर्यटन आवश्यक है कि पर्यावरण और स्थानीय समुदायों पर नकारात्मक प्रभावों को कम करते हुए पर्यटन आर्थिक लाभ प्रदान करना जारी रख सके। स्थायी पर्यटन को प्राप्त करने के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है, जिसमें प्रभावी योजना और प्रबंधन, हितधारक जुड़ाव, पर्यावरणीय स्थिरता और सामाजिक जिम्मेदारी शामिल है। स्थायी पर्यटन प्रथाओं को लागू करके, गंतव्य भावी पीढ़ियों के लिए अपनी प्राकृतिक और सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करते हुए पर्यटन के आर्थिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
सन्दर्भ सूची:-
1. http%//genecampaign-org/news/the&environmental&impact&of&tourism&on&mountain&states
2. https%//www-drishtiias-com
3. http%//puneresearch-com
4. https%//www-gaonconnection-com
Received on 14.02.2024 Modified on 04.03.2024 Accepted on 19.03.2024 © A&V Publication all right reserved Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 2024; 12(2):104-106. DOI: 10.52711/2454-2687.2024.00017 |