ABSTRACT:
राष्ट्र कवि दिनकर के काव्य में अपने युग की पीड़ा का मार्मिक अंकन हुआ है । उनके काव्य में भारतीय संस्कृति की पूर्ण झलक के साथ ही साथ सांस्कृतिक राष्ट्रीय चेतना का अलौकिक दृश्य भी परिलक्षित होता है। उनकी रचनाओं में राष्ट्रीय चेतना का व्यापक एवं दिव्य स्वरूप दिखाई पड़ता है। एक ओर उनकी कविता में हुंकार है तो दूसरी ओर शोषित पीड़ित उपेक्षित भारतीयों को जगाने के लिए वे क्रान्ति की मशाल लिए खड़े हैं। परशुराम की प्रतीक्षा में वे सांस्कृतिक एवं धार्मिक धरोहर को दर्शाते हुए उनके शौर्य एवं वीरोचित भाव को दिखाते हैं। दूसरी तरफ वे गांधीवाद से प्रभावित होने के कारण मानवीय मूल्य की गौरवमयी गाथा को भी गाते हैं। उनकी कविता में जहां राष्ट्र जागरण जनजागरण की ज्वाला दिखाई देती है वहीं वे आम आदमी के साथ खड़े हो कदम से कदम मिला देश धर्म की मिट्टी के मूल्य चुकाने के लिए सदा तत्पर रहते हैं।
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शैलेन्द्र कुमार ठाकुर. राष्ट्रीय चेतना को चेताने में राष्ट्र कवि दिनकर जी की भूमिका. International Journal of Reviews and Research in Social Sciences. 2025; 13(3):162-6. doi: 10.52711/2454-2687.2025.00024
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शैलेन्द्र कुमार ठाकुर. राष्ट्रीय चेतना को चेताने में राष्ट्र कवि दिनकर जी की भूमिका. International Journal of Reviews and Research in Social Sciences. 2025; 13(3):162-6. doi: 10.52711/2454-2687.2025.00024 Available on: https://ijrrssonline.in/AbstractView.aspx?PID=2025-13-3-7
संदर्भ ग्रंथ:-
1. दिनकर के काव्य में क्रान्तिकारी चेतना - निधि भार्गच पृ. से 33
2. परशुराम की प्रतिक्षा दिनकर - पृ. संख्या 14
3. प्रभाकर कुमार प्रभात, दिनकर समय का सूर्य, विनय प्रकाशन प्रथम संस्करण 2021 पृष्ठ 43
4. दिनकर का रचना संसार डॉ. छोटे लाल दीक्षित पृ. से 188
5. राष्ट्र कवि दिनकर और उनका साहित्य देवी प्रसाद गुप्त पृ. से 55
6. परशुराम की प्रतिक्षा - दिनकर
7. वही
8. रेणुका - दिनकर पृ.