Author(s):
सत्यभामा सौरज
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डाॅं. सत्यभामा सौरज
शोधार्थी, राजनीति शास्त्र, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन, मध्यप्रदेश
*Corresponding Author
Published In:
Volume - 7,
Issue - 1,
Year - 2019
ABSTRACT:
यह शोध पत्र महात्मा गाॅंधी के आर्थिक विचारों की वर्तमान प्रासंगिकता पर आधारित है जो वर्तमान में इसकी महत्व का विश्लेषण किया जा रहा है, महात्मा गाॅंधी ने इस विचारधारा को भी चुनौती दी और देश के गरीब किसान, दस्तकार और मजदूर के रोजगार और आजीविका को अंधाधुंध मशीनीकरण से बचाने के लिए उन्होंने कहा कि उससे मनुष्य को सहारा मिलना चाहिए। वर्तमान यह झुकाव है कि कुछ लोगों के हाथ में खूब संपत्ति पहुंचाई जाए और जिन करोड़ों स्त्री-पुरूषों के मुह से रोटी छीनी है उन बेचारों की जरा भी परवाह न की जाए। सच्ची योजना तो यह होगी कि भारत की संपूर्ण मानव शक्ति का अधिक से अधिक उपयोग किया जाए। मानव श्रम की परवाह न करने वाली कोई भी योजना न तो मुल्क में संतुलन कायम रख सकती है और न इनसानों को बराबरी का दर्जा दे सकती है। इसी तरह गाॅंधीजी ने कहा मनुष्य का लक्ष्य अपने उपभोग को निरंतर बढ़ाना नहीं अपितु सादगी के जीवन में संतोष प्राप्त करना है। यदि शक्तिशाली व अमीर लोग इस भावना मंे जिएं जो गरीबी के लिए संसाधन बचने की संभावना कहीं अधिक होगी।
Cite this article:
सत्यभामा सौरज. महात्मा गाॅंधी के आर्थिक विचारों की वर्तमान प्रासंगिकता. Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 2019; 7(1):125-130.
Cite(Electronic):
सत्यभामा सौरज. महात्मा गाॅंधी के आर्थिक विचारों की वर्तमान प्रासंगिकता. Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 2019; 7(1):125-130. Available on: https://ijrrssonline.in/AbstractView.aspx?PID=2019-7-1-24