Author(s): मंजू सिंह ठाकुर

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DOI: 10.52711/2454-2687.2025.00035   

Address: मंजू सिंह ठाकुर
विभागाध्यक्ष, योग एवं दर्शन विभाग, अग्रसेन महाविद्यालय, रायपुर, छत्तीसगढ़, भारत।
*Corresponding Author

Published In:   Volume - 13,      Issue - 4,     Year - 2025


ABSTRACT:
योग दर्शन में ईश्वर का एक महत्वपूर्ण स्थान है। योग दर्शन में ईश्वर को विशेष पुरूष (विशेष आत्मा) के रूप में परिभाषित किया गया है। पातंजल योग दर्शन का ईश्वर कर्मो और उनके फलो से अतीत है। योग दर्शन में ईश्वर साधना का साधन है, लक्ष्य नहीं। ईश्वर का मुख्य कार्य साधक की सहायता करना है। विशेषकर मन को एकाग्र करने में। योग दर्शन में ईश्वर के अस्तित्व का उद्देश्य है ईश्वर के प्रति भक्ति जब हम करते है तब हमारा चित्त शुध्द हो जाता है और समाधि प्राप्ति का मार्ग सहज और सरल हो जाता है। पातंजलि योग दर्शन में ईश्वर का अस्तित्व को एक साधन के रूप में स्वीकार किया जाता है। जिससे हमारी चित्त वृत्तियों का निरोध होता है, और समाधि की प्राप्ति होती है। योग दर्शन में ईश्वर विशेष पुरूष कहने से तात्पर्य है जो कभी जन्म, मृत्यु, दुःख और कर्मो से बंधा ही नहीं है। योग का अंतिम उद्देश्य ही आत्मा को ईश्वर से जोडना है, योग के जितने भी मार्ग है भक्ति मार्ग, कर्म मार्ग, ज्ञान मार्ग ये सभी हमें ध्यान और समाधि की ओर ले जाते है। ध्यान और समाधि की अंतिम अवस्था में साधक को ईश्वर की अनुभूति होती है। योग साधना का मार्ग है और ईश्वर उस मार्ग का परम लक्ष्य है। जब साधक योग के मार्ग पर आगे बढ़ता है तब बहिरंग योग (यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार) के माध्यम से मन और शरीर शुध्द होता है, क्योंकि ईश्वर के चिंतन के लिए मन का शुध्द और शांत होना जरूरी है। जब साधक नियमित साधना करता है तब उसका अहंकार धीरे धीरे घटने लगता है और मन के भीतर ईश्वर का अनुभव होने लगता है। योग बिना ईश्वर के अधूरा है और ईश्वर का अनुभव योग के बिना कठिन है। प्रस्तुत शोध-आलेख में हमने योग दर्शन में ईश्वर के इसी स्वरूप को विस्तृत रूप से बताने का प्रयास किया है। इस प्रकार हम कह सकते है कि योग हमें केवल शारीरिक और मानसिक रूप से ही स्वस्थ नही करता बल्कि ईश्वर के साथ गहरी जुड़ाव की अनुभूति भी कराता है।


Cite this article:
मंजू सिंह ठाकुर. पातंजल योग दर्शन में ईश्वर. International Journal of Reviews and Research in Social Sciences. 2025; 13(4):237-0. doi: 10.52711/2454-2687.2025.00035

Cite(Electronic):
मंजू सिंह ठाकुर. पातंजल योग दर्शन में ईश्वर. International Journal of Reviews and Research in Social Sciences. 2025; 13(4):237-0. doi: 10.52711/2454-2687.2025.00035   Available on: https://ijrrssonline.in/AbstractView.aspx?PID=2025-13-4-8


संदर्भ सूची:-
1.    डॉ. सम्पूर्णानन्द, योगदर्शन, पृ. 62 - 63
2.    पातंजलि योग सूत्र: स्वामी विवेकानंद, पृ. 09, 1/2, प्रभात पेपर बैक्स, नई दिल्ली, संस्करण 2023, 15BN978.93.5521355.6
3.    पातंजलि योग सूत्र: स्वामी विवेकानंद, पृ. 26, 1/23, प्रभात पेपर बैक्स, नई दिल्ली, संस्करण 2023, 15BN978.93.5521355.6
4.    पातंजलि योग सूत्र: स्वामी विवेकानंद, पृ. 26, 1/23, प्रभात पेपर बैक्स, नई दिल्ली, संस्करण 2023, 15BN978.93.5521355.6
5.    पातंजलि योग सूत्र: स्वामी विवेकानंद, पृ. 26, 1/24, प्रभात पेपर बैक्स, नई दिल्ली, संस्करण 2023, 15BN978.93.5521355.6
6.    पातंजलि योग सूत्र: स्वामी विवेकानंद, पृ. 27, 1/25, प्रभात पेपर बैक्स, नई दिल्ली, संस्करण 2023, 15BN978.93.5521355.6
7.    पातंजलि योग सूत्र: स्वामी विवेकानंद, पृ. 28, 1/26, प्रभात पेपर बैक्स, नई दिल्ली, संस्करण 2023, 15BN978.93.5521355.6
8.    पातंजलि योग सूत्र: स्वामी विवेकानंद, पृ. 28, 1/27, प्रभात पेपर बैक्स, नई दिल्ली, संस्करण 2023, 15BN978.93.5521355.6
9.    पातंजलि योग सूत्र: स्वामी विवेकानंद, पृ. 28, 1/28, प्रभात पेपर बैक्स, नई दिल्ली, संस्करण 2023, 15BN978.93.5521355.6
10.    योग दर्शन: व्याख्याकार हरिकृष्णदास गोयन्दका, पृ. 57
11.    पातंजलि योगदर्शन: स्वामी रिहरानंद (भाष्य), पृ. 69
12.    तत्त्व वैशारदी: विज्ञानभिक्षु, 22, चौरवम्बा संस्कृत सीरिज, वाराणसी
13.    ईशादि, नौ उपनिषद, व्याख्याकार - हरिकृष्णदास गोयन्दका पृ.-487 प्रकाशक- गोविन्द भवन-कार्यालय, गीता प्रेस, गोरखपुर - 273005 सं. 2051, चौदहवॉं संस्करण।

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