Author(s):
रश्मि चैkबे
Email(s):
Email ID Not Available
DOI:
Not Available
Address:
रश्मि चैkबे
संविदा सहायक प्राधायपक, इतिहास अध्ययन शाला, पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर (छ.ग.)
Published In:
Volume - 1,
Issue - 2,
Year - 2013
ABSTRACT:
भारत आदिकाल से ही विश्वजगत को धर्म, सभ्यता एवं संस्कृति का पाठ पढ़ाता रहा है। धर्म की साधना भारत का महान जीवन वृत है। यदि भारत के पास संसार को देने के लिए कोई धन है तो वह धर्म रूप धन है। निःस्वार्थता ही धर्म की कसौटी है। इसी निःस्वार्थता, पुरूषार्थ तथा आध्यात्मिक ऊर्जा के बल पर औरों के दिलों पर राज करते हुए संत पुरूष राष्ट्र सृजन करते हैं। स्वामी दयानंद सरस्वती एक ऐसे की महान संत पुरूष थे। जिन्होंने सन् 1875 ई. में बम्बई में आर्य समाज की स्थापना की। सन् 1899 ई. में स्वामी दयानंद की प्रेरणा और सद्प्रयासों से प्रदेश में विधिवत ‘‘आर्य प्रतिनिधि सभा’’ का गठन हुआ।
कोई भी समाज तभी विकास कर पायेगा जब वह शिक्षित हो, इसलिए आर्य समाज द्वारा शिक्षा के विकास के लिये काफी प्रयास किया गया। पूरे भारत के साथ-साथ छत्तीसगढ़ क्षेत्र में भी शिक्षा के विकास में आर्य समाज द्वारा काफी प्रयास किये गए। सामान्य शिक्षित विकसित आदिवासी बाहुल्य इस क्षेत्र में अभी भी शिक्षा का पूर्ण विकास होना है। एक संपूर्ण रेखाचित्र देखने के बाद लगता है, कि पिछड़ा कहलाया जाने वाला छत्तीसगढ़ राज्य को तो अगुवाई करने का हकदार होना चाहिए। आर्य समाज ने स्त्री शिक्षा एवम् गुरूकुल शिक्षा पर विशेष जोर दिया है। आर्य समाज ने शिक्षा के माध्यम से भाषा एवम् वेदों के महत्व को जनमानस तक पहुंचाया है।
Cite this article:
रश्मि चैkबे. छत्तीसगढ़ में शिक्षा का विकास एवं आर्य समाज की भूमिका. Int. J. Rev. & Res. Social Sci. 1(2): Oct. - Dec. 2013; Page 48-51.
Cite(Electronic):
रश्मि चैkबे. छत्तीसगढ़ में शिक्षा का विकास एवं आर्य समाज की भूमिका. Int. J. Rev. & Res. Social Sci. 1(2): Oct. - Dec. 2013; Page 48-51. Available on: https://ijrrssonline.in/AbstractView.aspx?PID=2013-1-2-7