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वर्षा अग्रवाल, मधुलता बारा
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कु. वर्षा अग्रवाल1, मधुलता बारा2’
1शोध-छात्रा, साहित्य एवं भाषा अध्ययनशाला, पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर (छŸाीसगढ़)
2वरि. सहा. प्राध्यापक, साहित्य एवं भाषा अध्ययनशाला, पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर (छŸाीसगढ़)
Published In:
Volume - 2,
Issue - 3,
Year - 2014
ABSTRACT:
किसी भी राष्ट्र का वह भाग या कोना जहाँ पर निवास करने वाली जनता एक-दूसरे से सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक तथा धार्मिक रूप से संबद्ध हो तथा अपनी संस्कृति को सहेजने के प्रति कटिबद्ध हो, उस स्थान विशेष को अंचल की श्रेणी में रखा जाता है। आदिवासियों के बीच रहकर उनके जीवन के सुख-दुख को, उनके संघर्ष तथा उनकी सहजता को इन्होंने बड़े ही नजदीक से निहारा है। आदिवासी अंचल की कुछ परंपराओं को जोड़कर लेखिका ने कहानी में सोने में सुहागा का कार्य किया है। प्रस्तुत कहानी ‘कानीबाट’ स्वाभाविक रूप से आंचलिक कहानी कही जा सकती है।
Cite this article:
वर्षा अग्रवाल, मधुलता बारा. मेहरुन्निसा परवेज़ की कहानी ‘कानीबाट’ में आंचलिकता.
Int. J. Rev. & Res. Social Sci. 2(3): July- Sept. 2014; Page 186-188
Cite(Electronic):
वर्षा अग्रवाल, मधुलता बारा. मेहरुन्निसा परवेज़ की कहानी ‘कानीबाट’ में आंचलिकता.
Int. J. Rev. & Res. Social Sci. 2(3): July- Sept. 2014; Page 186-188 Available on: https://ijrrssonline.in/AbstractView.aspx?PID=2014-2-3-9