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श्रीनिधि पाण्डेय, आभा तिवारी
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श्रीनिधि पाण्डेय1, डाॅ. आभा तिवारी2
1शोधार्थी, शा.दू.ब. महिला स्नातकोŸार महाविद्यालय, रायपुर (छ.ग.)
2प्राचार्य, चंद्रपाल डड़सेना शा. महाविद्यालय, पिथोरा जिला महासमुंद (छ.ग..)
Published In:
Volume - 3,
Issue - 1,
Year - 2015
ABSTRACT:
लोकतंत्र को बनाने और उसे बनाये रखने में साहित्यकार की विशिष्ट भूमिका होती है। स्वतंत्रता प्राप्ती से पूर्व के साहित्य की भूमिका निर्विवाद हैं हर देश का साहित्य वहाँ के सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनीतिक पक्षों से प्रभावित होता है। और इसकी तस्वीर वहाँ के साहित्य में परिलक्षित होती है।
स्पष्ट है कि स्वतंत्रता के पूर्व लोकतंत्र और स्वतंत्रता के पश्चात् लोकतंत्र में बहुत बदलाव आ चुका है। आज भारत में स्वतंत्र लोकतंत्र का स्पष्ट प्रभाव साहित्य में देखने को मिलता है।
चूंकि स्वतंत्रता के पश्चात् साहित्यकारों की भूमिका और अधिक महत्वपूर्ण हुई है। सामाजिक एवं राजनीतिक भटकाओें और भारतीय जनता के सपनों में बाधक बने तत्वों को साहित्य का विषय बनाकर साहित्यकारों ने इस पर अपनी भरपूर लेखनी चलाई है। ‘‘साहित्यकारों का लोकतंत्र समता, स्वाधीनता और बंधुत्व पर आधारित होता हैं एक ऐसे संवेदनशील लोकतंत्र की स्थापना साहित्यकारों का उद्देश्य रहा है, जो शोषणविहीन हो, जहाँ जाति, रंग प्रांत एवं धर्म के नाम पर किसी प्रकार के भेदभाव न हो। ऐसे लोकतंत्र में आम-आदमी के सपने फलीभूत होंगे।’’
Cite this article:
श्रीनिधि पाण्डेय, आभा तिवारी. आज का लोकतंत्र और साहित्य.
Int. J. Rev. & Res. Social Sci. 3(1): Jan. – Mar. 2015; Page 07-10
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Cite(Electronic):
श्रीनिधि पाण्डेय, आभा तिवारी. आज का लोकतंत्र और साहित्य.
Int. J. Rev. & Res. Social Sci. 3(1): Jan. – Mar. 2015; Page 07-10
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