Author(s): ममता सिंह, वंदना कुमार

Email(s): bittosuhani@gmail.com

DOI: Not Available

Address: श्रीमती ममता सिंह1, डाॅ. वंदना कुमार2
1शोधार्थी, प. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर(छ.ग.)
2सहायक प्राध्यापक, शासकीय नागार्जुन स्नातकोत्तर विज्ञान महाविद्यालय, रायपुर(छ.ग.)
*Corresponding Author

Published In:   Volume - 5,      Issue - 1,     Year - 2017


ABSTRACT:
स्ूरदास जी कृष्णभक्त कवियों में सर्वोपरि स्थान रखते हैं। इन्होनें श्रीकृष्ण के बालरूप का ऐसा मनोहर रूप अंकित किया है कि देखते ही बनता है साथ ही श्रीकृष्ण के बाल्यकाल की एक-एक छवि, को ऐसे वर्णित किया है कि सम्पूर्ण दृष्य पाठको के समक्ष सजीव हो उठता है। कहते है कि उन्हें माता यषोदा का हृदय प्राप्त था, आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने भी लिखा है कि ‘‘सूर अपनी बंद आँखो से वात्सल्य का कोना-कोना झाँक आए है।’’ सूरदास जी की वात्सल्य रचना का कोई जोड़ नही है।


Cite this article:
ममता सिंह, वंदना कुमार. सूरदास का वात्सल्य प्रेम. Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 5(1): Jan.- Mar., 2017; Page 12-14.

Cite(Electronic):
ममता सिंह, वंदना कुमार. सूरदास का वात्सल्य प्रेम. Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 5(1): Jan.- Mar., 2017; Page 12-14.   Available on: https://ijrrssonline.in/AbstractView.aspx?PID=2017-5-1-3


सन्दर्भः
1.      तिवारी, अशेक. प्रतियोगिता साहित्य, आगराः साहित्य श्वन
2.      संपादक शुक्ल, चन्द्रप्रकाश. मध्यकालीन भक्तिकाव्यः पुनरावलोकन, इलाहाबादःराका प्रकाषन, 2001

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