ABSTRACT:
रघुवीर सहाय सठोत्तरी कववता के बहुत बड़े कवव रहे हैं। जो वजतना बड़ा कवव होता हैय उसकी आलोचना भी उतनी ही होती है। रघुवीर सहाय की कववता यात्रा के दौर में और बाद में भीए वववभन्न ववषयोों को लेकर वववभन्न आलोचकोों ने उन पर अलग
अलग आरोप लगाते आए हैं। रघुवीर सहाय की प्रवतबद्धता जनता के प्रवत थी और वे जनता को आगे बढ़ाने के वलएए एक ववकल्प सोंसार गढ़ने के वलएए जनता को समझ देने के वलए कभी कभी उन पर प्रहार भी करते वदखाई देते हैं। जनता की इस आलोचना कोए प्रहार को आलोचक उनकी नाकामी वसद्ध करते हुए उनकी कववता को खीझ और झुोंझलाहट से भरी मानकरए नकार देते हैं। ऐसे करने वाले उनकी खीझ और झुोंझलाहट के पीछे की राजनीवत को समझ नहीों पाते। रघुवीर सहाय की कववता की राजनीवत को समझना और साधारण राजनीवत या दलीय राजनीवत से यह वकस प्रकार अलग हैए इसका ववश्लेषण करना इस शोध लेख का उद्देश्य है।
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अमिय कुमार साहु. रघुवीर सहाय की कववता की राजनैवतक चेतना का विश्लेषण. Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 2020; 8(2):118-122.
Cite(Electronic):
अमिय कुमार साहु. रघुवीर सहाय की कववता की राजनैवतक चेतना का विश्लेषण. Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 2020; 8(2):118-122. Available on: https://ijrrssonline.in/AbstractView.aspx?PID=2020-8-2-5
संदर्भ
1 शमाफए सुरेश रघुवीर सहाय रचनावली भाग 1य राजकमल प्रकाशनए नई वदल्ली 2 पृ॰ 38
2 शमाफए सुरेश रघुवीर सहाय रचनावली भाग 1य राजकमल प्रकाशनए नई वदल्ली 2 पृ॰ 38
3 शमाफए सुरेश रघुवीर सहाय रचनावली भाग 3य राजकमल प्रकाशनए नई वदल्ली 2 पृ॰ 401
4 शमाफए सुरेश रघुवीर सहाय रचनावली भाग 3य राजकमल प्रकाशनए नई वदल्ली 2 पृ॰ 480
5 शमाफए सुरेश रघुवीर सहाय रचनावली भाग 3य राजकमल प्रकाशनए नई वदल्ली 2 पृ॰ 480
6 कृवत ओर ;अप्रेल जून 1999द्ध पृ॰ 26
7 शमाफए सुरेश रघुवीर सहाय रचनावली भाग 3य राजकमल प्रकाशनए नई वदल्ली 2 पृ॰ 468
8 आलोचना ;अक्तूबर वदसोंबर 1989द्ध पृ 13
9 शमाफए सुरेश रघुवीर सहाय रचनावली भाग 1य राजकमल प्रकाशनए नई वदल्ली 2 पृ॰ 68
10 शमाफए सुरेश रघुवीर सहाय रचनावली भाग 3य राजकमल प्रकाशनए नई वदल्ली 2 पृ॰ 473 474
11 वत्रपाठीए अरववोंद दृ श्रीकाोंत वमाफ रचनावली भाग 4य राजकमल प्रकाशनए नई वदल्ली 2 पृ॰ 383
12 आलोचना ;अक्तूबर वदसोंबर 1989द्ध पृ 09
13 शमाफए सुरेश रघुवीर सहाय रचनावली भाग 1य राजकमल प्रकाशनए नई वदल्ली 2 पृ॰ 94
14 शमाफए सुरेश रघुवीर सहाय रचनावली भाग 3य राजकमल प्रकाशनए नई वदल्ली 2 पृ॰ 405
15 आलोचना ;अक्तूबर वदसोंबर 1989द्ध पृ 15
16 वाजपेयीए अशोक दृ कवव कह गया य भारतीय ज्ञानपीठ ए नई वदल्ली 3 पृ॰ 104
17 सहायए रघुवीर दृ आत्महत्या के ववरुद्धय राजकमल प्रकाशनए नई वदल्ली 2 पृ॰ 32
18 वाजपेयीए अशोक दृ कवव कह गया य भारतीय ज्ञानपीठ ए नई वदल्ली 3 पृ॰ 92 93
19 सहायए रघुवीर दृ आत्महत्या के ववरुद्धय राजकमल प्रकाशनए नई वदल्ली 2 पृ॰ 85