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अर्चना झा, भगवती साहू
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डाॅ. अर्चना झा1, श्रीमती भगवती साहू2
1सहायक प्राध्यापक, शंकराचार्य महाविद्यालय, जुनवानी, भिलाई (छत्तीसगढ़)
2षासकीय वि.या.ता.स्वषासी महाविद्यालय, दुर्ग
*Corresponding Author
Published In:
Volume - 7,
Issue - 2,
Year - 2019
ABSTRACT:
कहते हैं कि जो जातियाँ अधिक नाचती और गाती हैं, उनमें जीवन संघर्षों को झेलने की क्षमता उतनी ही अधिक होती है। यही कारण है कि सभ्यता के प्रारंभिक काल में ही लोकलाओं के उद्भव की प्रक्रिया शुरू हो गई थी। विष्व की अन्य प्राचीन सभ्यताओं के समान ही भारत की प्राचीन सभ्यता में लोकनाट्य की उत्पत्ति हो चुकी थी। छत्तीसगढ़ की संस्कृति को जीवन्तता प्रदान करने वाले लोकनाट्य नाचा भी आदि काल से वर्तमान काल तक अजस्त्र रूप में अक्षुण्ण दिखाई पड़ते हैं। नाचा के उद्भव एवं विकास के पीछे उन सृजन षिल्पियों और मेधा सम्पन्न व्यक्तियों का हाथ रहा है, जिन्होंने इस रंग शैली को अनगढ़ से सुगढ़ बनाने मेें अपना पूरा जीवन खपा दिया है। काल प्रवाह के संग इस लोकप्रिय रंग शैली में निरंतर बदलाव आते रहे।
Cite this article:
अर्चना झा, भगवती साहू. छत्तीसगढ़ी लोकनाट्य नाचा का ऐतिहासिक विष्लेषण. Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 2019; 7(2):595-598.
Cite(Electronic):
अर्चना झा, भगवती साहू. छत्तीसगढ़ी लोकनाट्य नाचा का ऐतिहासिक विष्लेषण. Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 2019; 7(2):595-598. Available on: https://ijrrssonline.in/AbstractView.aspx?PID=2019-7-2-53