Author(s): Nister Kujur

Email(s): nister.kujur@yahoo.com

DOI: Not Available

Address: Dr.Nister Kujur Asst. Professor, SoS.in Sociology, Pt. Ravishankar Shukla University, Raipur (C.G) India *Corresponding Author

Published In:   Volume - 1,      Issue - 2,     Year - 2013


ABSTRACT:
भारत जनसंख्या की दृष्टि से विश्व का दूसरा सबसे बडा देश है जहां विश्व की कुल जनसंख्या का 17.5 प्रतिशत आबादी निवास करती है और कुल आबादी 121 करोड से भी अधिक है, इतना ही नहीं वर्ष 2011 के जनगणना के अनुसार दसकीस वृद्वि दर 17.64 प्रतिशत है, जो कि कुछ चुनिन्दा एशियाई देश को छोड दें तो विश्व की सर्वाधिक जनसंख्या वृद्वि वाला देश है। जनसंख्या वृृद्वि आज देश के लिए चुनौति बन गई है दूसरी ओर सरकार द्वारा जनसंख्या नियंत्रण के नाम पर केवल 1980-1985 में परिवार नियोजन योजना लागू की गई जिसमे एक दम्पत्ति के एक बच्चा होने पर बल दिया गया किन्तु सरकार के इस प्रयास का कोई साकारात्मक परिणाम दिखलायी नहीं पडता है। किन्तु यहां आदिम जनजातियों के मामले में स्थिति भिन्न है वर्तमान में देश की कुल जनसंख्या का लगभग 8.6 प्रतिशत जनसंख्या जनजातियों का है जिसमे लगभग 700 जनजातीय समूह है इनमें 75 आदिम जनजाति समूह है। आदिम जनजातियों का स्वतंत्रता प्राप्ति से प्रथम-द्वितीय दशक यह समूह अत्यन्त ही पिछडा हुआ अथवा आदिम अवस्था में आजीविका कर रही थी और इनकी जनसंख्या निरन्तर घट रही थी जो चिन्ता विषय था जिसके कारण भारत सरकार एैसे जनजाति समूह को पहचान कर इन्हें 1970-80 आदिम जनजाति अथवा विशेष पिछडी जनजाति का दर्जा प्रदान की गई और इस समूह को संरक्षण की व्यवस्था करते हुए इनके सामाजिक-आर्थिक विकास के पहल करने के साथ-साथ इनकी जनसंख्या वृृ़िद्व पर भी जोर दिया गया ताकी इनके आबादी को बडाया सके इसके लिए सरकार ने पहल करना प्रारंभ किया सरकार ने अपने इस नीति के अन्तर्गत बैगा महिलाओं के नसबंदी पर प्रतिबंध लगा दिया गया।


Cite this article:
Nister Kujur. जनसंख्या वृद्वि की चुनौतियों से जुझता आदिम जनजाति बैगा ( छत्तीसगढ राज्य के बोडला विकासखण्ड के विशेष संदर्भ में ). Int. J. Rev. & Res. Social Sci. 1(2): Oct. - Dec. 2013; Page 41-44

Cite(Electronic):
Nister Kujur. जनसंख्या वृद्वि की चुनौतियों से जुझता आदिम जनजाति बैगा ( छत्तीसगढ राज्य के बोडला विकासखण्ड के विशेष संदर्भ में ). Int. J. Rev. & Res. Social Sci. 1(2): Oct. - Dec. 2013; Page 41-44   Available on: https://ijrrssonline.in/AbstractView.aspx?PID=2013-1-2-5


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