ABSTRACT:
पुणे के इंजीनियर एवं (सी.ए.) चार्टर्ड अकाउंटेंट्स की संस्था अर्थ क्रांति संस्थान के सुझाव पर नोटबंदी का फैसला लिया गया। संस्थान ने प्रस्ताव को पेटेन्ट कराया है। मैकनिकल इंजीनियर अनिल वोलिक-प्रमुख थे। संस्था का दावा है कि यह प्रस्ताव कालाधन, मंहगाई, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, रिश्वतखोरी, आतंकियों को फंडिग रोकने में पूरी तरह से कारगर होगा। प्रापर्टी, जमीन, ज्वेलरी और घर खरीदने में ब्लैकमनी के उपयोग में लगाम लगेगी। जाली नोटो के लेने-देन पर रोक लगेगी। नौकरी पेशा लोगों के हाथों में ज्यादा पैसा आयेगा। परिवारों का परिचेजिंग पावर बढ़ेगा। तदानुसार वर्ष नवंबर, 2016 में भारत के मौद्रिक इतिहास में अभूतपूर्व घटना घटित हुई थी जबकि भारतीय रिजर्व बैंक ने सरकारी घोषणा के अनुरूप बड़े नोटों का चलन बंद कर दिया था। तात्कालिक प्रभाव यह पड़ा था कि लगभग 86 प्रतिशत वैधानिक मुद्रा चलन से बाहर हो गई थी तथा नकदी का संकट पैदा हुआ। देश की जनता को पुरानी मुद्रा को नई मुद्रा में बदलने की छूट सीमित आधार पर दी गई तथा नई मुद्रा की आपूर्ति में समय विलंबता के कारण नकदी का संकट गहराया। नोट बंदी के बाद से भारतीय रिजर्व बैंक ने 500 व 2000 रुपये की लगभग 14 लाख करोड़ रुपये की नई मुद्रा जारी की है लेकिन अधिकृत रूप से आरबीआई यह घोषित करने में समर्थ नहीं रहा है कि बैंकों ने देश की जनता से कितनी पुरानी मुद्रा जमा की।
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धर्मेन्द्र कुमार वर्मा. नोटबंदी के सामाजिक-आर्थिक प्रभावों का मूल्यांकन. Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 2019; 7(2): 565-570.
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धर्मेन्द्र कुमार वर्मा. नोटबंदी के सामाजिक-आर्थिक प्रभावों का मूल्यांकन. Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 2019; 7(2): 565-570. Available on: https://ijrrssonline.in/AbstractView.aspx?PID=2019-7-2-48