ABSTRACT:
भारतीय जाति व्यवस्था के कुछ घुमन्तुपन की प्रकृति से युक्त जातियाॅ जैसे नट, देवार, डंगचगहा इत्यादि छत्तीसगढ़ में निवासरत जातियों के बालक-बालिकाए, शहरों के मलीन बस्तियों के आर्थिकतंग परिवारों के बच्चों तथा अनाथ बच्चों में स्वाभाविक रूप से अर्थअर्जन के कार्याें में संलग्नता देखी जाती है। नट जाति के बच्चे अक्सर रेल डिब्ब¨ं इत्यादि में खेल-तमाशा दिखाकर भीख मांगते हैं व कुछ बच्चे रेल डिब्ब¨ं में झाडू पोछा लगाते हुए भीख मांगते देखे जाते है। भारत में बच्चों की इस स्थिति के लिए जाति व्यवस्था, गरीबी या अनाथपन मुख्य कारण हंै। यद्यपि भारत आज एक विकासशील देश है और यहाॅ तेजी से नगरीकरण और औद्योगिकरण की प्रक्रिया जोरो पर है जिसकी गति उदारवादी नीतियों के बाद से और भी तेज हो गई है। इस प्रक्रिया ने ग्रामीण तथा निम्न आय स्तर के लोगों को रोजगार की तलाश में शहरों की ओर आकर्षित किया है, परिणामस्वरूप नगरों के चारों तरफ विशेषकर रेल्वे स्टेशनों के आस-पास मलिन बस्तियों के विस्तार को बढ़ावा मिला है। इससे एक जटिल सामाजिक समस्या तब आती है जब इन्ही बस्तियों के बच्चों को अर्थअर्जन हेतु भीख मांगते, खेल-तमाशा दिखते, खाली बोतल या रद्दी बिनते हुए देखे जाते है। प्रत्यक्ष रूप से ये बालक-बालिकाएं शैक्षणिक गतिविधियों से दूर होते चले जाते हैं जो इनके भविष्य तथा राष्ट्र के विकास के लिए नकारात्मक दिशा एवं दशा निर्धारित करते हैं। उद्देश्य स्वरूप उपर्युक्त रूप से वंचित व उपेक्षित अनाथ, बेघर तथा धुमन्तु बालक-बालिकाओं में अशिक्षा की स्थिति तथा कारणों का अध्ययन करने के लिए भारत के मध्य-पूर्व में स्थित राज्य छत्तीसगढ़ के 23 रेल्वे स्टेशनों में पाए गए बालक-बालिकाओं से तथ्य एवं आंकड़े संकलित किये गए है। दैव निदर्शन विधि द्वारा 88 बालक तथा 36 बालिकाओं (कुल 124 बालक-बालिकाओं) पर किए गए अध्ययन से प्राप्त तथ्यों के अनुसार 49ः, 30ः, तथा 21ः, बालक-बालिकाएं क्रमशः घुमन्तु, अनाथ तथा बेघर थे। इनमें से अधिकांत 66ः बच्चे कभी स्कूल नहीं गए और बाकी जो बच्चे स्कूल गए थे वे अधिकतम 2 री या 3री कक्षा तक ही पढ़ पाए थे। इनमें से वे बच्चे जिनके माता या पिता या दोनो जीवित हैंे उनमें से अधिकतर पालक इनकी शिक्षा पर गंभीरता नही दिखाते। इसके बदले इन्हें उनके माता-पिता अथवा पालक द्वारा अर्थअर्जन हेतु भीख मांगने, खेल-तमाशा दिखानें या रेल डिब्ब¨ं की साफ-सफाई कर भीख मांगने के लिए भेज दिया जाता है। एसेे बालक-बालिकाएं जो अनाथ थे, वे शिक्षा ग्रहण करने में अक्षम थे क्योंकि उनके पास अवसर एवं साधन नहीं थे। निःशुल्क तथा अनिवार्य शिक्षा का अधिकार कानून के युग में भी शिक्षा से वंचित इन बालक-बालिकाओं का उचित पुनर्वास की व्यवस्था की जानी चाहिए जिसमें आवासीय आधुनिकतम शिक्षा की सुविधा अनिवार्य रूप से सम्मिलित हो।
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उमराव सिंह, जितेन्द्र कुमार प्रेमी’. छत्तीसगढ़ के घुमन्तु बच्चों की सामाजिक-शैक्षणिक स्थिति: छत्तीसगढ़ के विभिन्न रेल्वे स्टेशनों के घुमन्तु बच्चों के विशेष संदर्भ में एक मानववैज्ञानिक अन्वेषण. Int. J. Rev. & Res. Social Sci. 2(1): Jan. – Mar. 2014; Page 01-06.
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उमराव सिंह, जितेन्द्र कुमार प्रेमी’. छत्तीसगढ़ के घुमन्तु बच्चों की सामाजिक-शैक्षणिक स्थिति: छत्तीसगढ़ के विभिन्न रेल्वे स्टेशनों के घुमन्तु बच्चों के विशेष संदर्भ में एक मानववैज्ञानिक अन्वेषण. Int. J. Rev. & Res. Social Sci. 2(1): Jan. – Mar. 2014; Page 01-06. Available on: https://ijrrssonline.in/AbstractView.aspx?PID=2014-2-1-1