Author(s): Nister Kujur

Email(s): nister.kujur@yahoo.com

DOI: Not Available

Address: Dr. Nister Kujur
Senior Assistant Professor, School of Studies in Sociology,
Pt. Ravishankar University, Raipur (C.G.) – 492010
*Corresponding Author

Published In:   Volume - 2,      Issue - 3,     Year - 2014


ABSTRACT:
भारत देश में कुल आवादी का लगभग 8.2 प्रतिशत जनसंख्या जनजातियों का है और जनजातियों की करीब 500 से भी अधिक उप-समूहों में विभक्त है। जनजातियों की इन समूहों में 75 आदिम जनजातियां है जो देश के दुर्गम पहाडी और पठारी भोगों में निवास करती है । यह समुदाय वर्षो से अस्तित्व को बनाए रखने एवं आजीविाका के लिए संघर्ष कर रही है तथा कई समस्याओं से वह आज भी ग्रस्त है । देश के दुर्गम क्षेत्रों में निवास करने वाली जनजातियों और आदिम जनजातियों के विकास के लिए सरकार द्वारा पिछडी जपजातियों का पहचान कर आदिम जनजाति के रूप में मान्यता प्रदान की गयी तथा 70-80 के दशक में जिला स्तर पर पृथक अभिकरण स्थापित करके इनके विकास के प्रयास लगातार की जाती रही है । सरकार के इस प्रयास में रोजगार, भूमि सुधार, उन्नत बीज वितरण, खाद, कीटनाशक, सिंचाई पम्प, तलाब, डेम, बकारी पालन, मुर्गी पालन, मच्छली पालन, मधुमखी पालन, स्वच्छ पेयजल, स्वाथ्य, आवास, मच्छरदानी, सौर उुर्जा, आश्रम शाला, छात्रवृत्ति, कंबल वितरण, कई योजनाओं एवं कार्यक्रमों का क्रियान्वयन किया गया है। किन्तु यह समुदाय कुछ छूटपुट परिवर्तन को छोडकर इनमें डायरिया, उल्टी दस्त, पगडडी रास्ते से ग्रामीण बाजार आत व जातेे , घर में चटाई में लेटा हुआ रोगी, दूर से झरना या डबरी से पीने की पानी लाती हुई महिला, धूल से सना हुआ 2-5 वर्ष का बच्चा असानी से देखा जा सकता है, अर्थात यह समुदाय आज भी आवागमन के बारह मासी सडक मार्ग से दूर, निम्न स्वास्थ्य स्तर, शिक्षा का निम्न स्तर, आवास के नाम पर झोपडी, स्वच्छ पेयजल, बिजली, बेरोजगारी, इत्यादि आधाभूत समस्याओं से जुझ रही है ।


Cite this article:
Nister Kujur . आदिम जनजाति कमार के विकास में शासकीय विकास योजनाओं की भूमिका (गरियाबंद जिला के छुरा विकासखण्ड के विशेष संदर्भ में). Int. J. Rev. & Res. Social Sci. 2(3): July- Sept. 2014; Page 189-193.

Cite(Electronic):
Nister Kujur . आदिम जनजाति कमार के विकास में शासकीय विकास योजनाओं की भूमिका (गरियाबंद जिला के छुरा विकासखण्ड के विशेष संदर्भ में). Int. J. Rev. & Res. Social Sci. 2(3): July- Sept. 2014; Page 189-193.   Available on: https://ijrrssonline.in/AbstractView.aspx?PID=2014-2-3-10


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