ABSTRACT:
सन्त कबीर उच्च आध्यात्मिक चेतना के प्रतिनिधि और निर्गुण संत मत के प्रवर्तक कवि हैं। अपने विलक्षण, क्रांतिकारी व्यक्तित्व के कारण वे सम्पूर्ण हिन्दी साहित्य में अविस्मरणीय बन गये हैं। सत्य को खरा-खरा, बिना किसी लाग-लपेट के दो टूक शब्दों में कहने वाला सन्त कबीर के समान आज तक कोई दूसरा महापुरूश उत्पन्न नहीं हुआ है। उन्होंने सदैव आज सत्य का ही संदेश दिया है। ‘‘साँच ही कहत और साँच ही गहत हौं उनका सीधा सच्चा, स्पश्ट मार्ग है। उन्होंने मानव चेतना को समस्त भेदों और संकीर्णताओं से ऊपर उठकर चेतना के विकास को गौरीशंकर की ऊँचाई प्रदान की है। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी ने उनके बारे में लिखा है कि ‘‘समस्त बाहरी धर्माचारों को अस्वीकार करने का अपार साहस लेकर कबीर साधना के क्षेत्र में अवतीर्ण हुये। सब कुछ को झाड़-फटकार कर चल देने वाले तेज ने कबीर को अद्वितीय बना दिया है।‘‘1 मध्य युग में जब संत कबीर का आगमन इस धरा पर हुआ तो राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक सभी दृश्टियों से उथल-पुथल का युग था।
चारों तरफ विशमता, भेदभाव, ऊॅंच-नीच का बोलबाला था। ऐसे संक्रमण काल में पूरे भारत की जनचेतना को आन्दोलित करते हुए उन्होंने मानव अस्मिता के गौरव की रक्षा की तथा पे्रम के आधार पर मानव समाज की एकता की स्थापना की थी। संत कबीर ने समस्त रूढ़ियों, पाखण्डों से मुक्त श्रेश्ठ मनुश्य की अवधारणा प्रस्तुत की थी। संत कबीर ही वह प्रथम उपदेशक थे, जिन्होंने कर्मकाण्ड के स्थान पर उच्च आध्यात्मिक नैतिक मूल्यों की स्थापना की थी। मानव समाज में भेद की जगह अभेद, घृणा की जगह पे्रम, विशमता की जगह समता स्थापित करने वाली उनकी भूमिका को देखते हुए नाभादास जी को कहना पड़ा ‘‘पक्षपात नहिं वचन सबहि के हित की भाखी‘‘।
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सोनिया गोस्वामी. कस्तूरी कुंडलि बसै. Int. J. Rev. & Res. Social Sci. 3(2): April- June. 2015; Page 66-69.
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सोनिया गोस्वामी. कस्तूरी कुंडलि बसै. Int. J. Rev. & Res. Social Sci. 3(2): April- June. 2015; Page 66-69. Available on: https://ijrrssonline.in/AbstractView.aspx?PID=2015-3-2-4