ABSTRACT:
किसी भी सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक जीवन प्रणाली में यदि मनुष्य को जन्म के आधार पर सम्मानित अथवा अपमानित किया जाता है, तो ऐसी व्यवस्था का आधार कदापि न्याय कार्य तथा समानतावादी नहीं कहा जा सकता। भारत देश में तो प्राचीनकाल से लेकर स्वतंत्रता प्राप्ति तक जन्म के आधार पर कुछ समूहों को राष्ट्रीय मुख्य धारा से पृथक करने या रखने की एक परम्परा रही है। अमानुषिक अलगाव और अपमान का अहसास कितना हृदय विदारक है, और इसकी पीड़ा कितनी कष्टदायक है, इसे वहीं समझ सकता है, जिसने कभी इसका स्वयं अनुभव किया हो।
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जी.एस. धु्रवे.आरक्षण व्यवस्था का सैद्धान्तिक दृष्टिकोण. Int. J. Rev. & Res. Social Sci. 3(2): April- June. 2015; Page 70-74
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जी.एस. धु्रवे.आरक्षण व्यवस्था का सैद्धान्तिक दृष्टिकोण. Int. J. Rev. & Res. Social Sci. 3(2): April- June. 2015; Page 70-74 Available on: https://ijrrssonline.in/AbstractView.aspx?PID=2015-3-2-5