ABSTRACT:
भाषा अभिव्यक्ति का श्रेष्ठ माध्यम है । इस माध्यम से लोग अपने हृदय के भावों को सरल तथा स्पष्ट रूप से गहराई के साथ व्यक्त कर सकते हैं । अतः यह साधन जितना अधिक विकसित, पुष्ट एवं सुसंस्कृत होगा, कवि की वाणी में उतनी ही सरलता और स्पष्टता होगी । किसी भी कवि की प्रारम्भिक रचनाओं में उनकी भाषा सुन्दर एंव परिष्कृत नहीं होत, वरन् उसके परवर्ती रचनाओं में ही, निरन्तर अभ्यास के कारण, भाषा सुगठित एवं सरस होती है । प्रसाद जी भी इसके अपवाद नहीं हैं । प्रसाद जी ने प्रारम्भ में ब्रज भाषा को अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया, परन्तु जब उन्होनें यह अनुभव किया कि ब्रज भाषा उनके हृदय के कोमल एवं सूक्षम भावनाओं को व्यक्त कर सकने में पर्याप्त नहीं है, तो उन्होनंे अपने भावों के अनुरूप ही सशक्त एवं सरस भाषा की खोज प्रारम्भ की । उन्होनंे खड़ी बोली का आलम्बन लिया । खड़ी बोली में उन्होनंे अनेक कवितायें रची, किन्तु सन्तुष्ट न होकर उन्होनें उसे अधिक सूक्ष्म, माॅसल, कोमल और सरस बनाने का प्रयत्न जाी रखा ।
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बृजेन्द्र पाण्डेय. प्रसाद के गीतों का अभिव्यंजना शिल्प. Int. J. Rev. & Res. Social Sci. 3(3): July- Sept., 2015; Page 103-105.
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बृजेन्द्र पाण्डेय. प्रसाद के गीतों का अभिव्यंजना शिल्प. Int. J. Rev. & Res. Social Sci. 3(3): July- Sept., 2015; Page 103-105. Available on: https://ijrrssonline.in/AbstractView.aspx?PID=2015-3-3-1