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प्रदीप शर्मा, सी.एल. पटेल
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प्रदीप शर्मा1, डाॅ. सी.एल. पटेल2
1सहायक प्राध्यापक (विधि), पं. रविशंकर विश्वविद्यालय, रायपुर (छ.ग.)
2संकाध्यक्ष, विधि अध्ययन शाला, पं. रविशंकर विश्वविद्यालय, रायपुर (छ.ग.)
Published In:
Volume - 4,
Issue - 4,
Year - 2016
ABSTRACT:
अपराधों के निवारण तथा समाज से अपराधियों की संख्या कम करने में भी कारागार महतवपूर्ण भूमिका निभाते हैं क्योंकि इनके द्वारा अपराधियों को समाज से पृथक् रखना सम्भव होता है। वर्तमान में कारागारों में कारावासियों के सुधार की ओर विशेष ध्यान दिया जा रहा है ताकि कारावधि समाप्त होने के पश्चात् उनका समाज में पुर्नस्थापना सरलता से हो सके। आज विश्व के प्रायः सभी प्रगतिशील देश अपनी कारागार व्यवस्था में उपचारात्मक पद्धति को अधिकाधिक महत्व दे रहे हैं ताकि कारावासियों का व्यक्तित्व नष्ट न हो पाए। अपराधों के प्रति समाज का दृष्टिकोण कुछ भी क्यों न हो, परन्तु यह निर्विवाद है कि अपराधियों को कारागारों में रखे जाने के परिणामस्वरूप उनके सुधार, पुनर्वास, उपचार आदि जैसी अनेक समस्याएँ कारागार प्रशासन को प्रभावित करती हैं। आधुनिक कारागार केवल निरोध-गृह मात्र न रहकर सुधार-गृह के रूप में कार्य कर रहे हैं।1
उल्लेखनीय है कि सभी कारावासियों को एक समान दण्ड दिया जाना न तो न्यायिक दृष्टि से उचित है और न ही व्यावहारिक ही है क्योंकि अपराध की गुरूता के अनुसार अभियुक्तों की कारावधि भिन्न-भिन्न होनी चाहिए। यही कारण है कि कारावासियों को उनके अपराध की गम्भीरता और दण्ड की मात्रा के अनुसार विभिन्न वर्गो मंे वगीकृत किया जाता है। इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु वर्तमान कारागार व्यवस्था में कारावासियों के वर्गीकरण के अनेक तरीके अपनाए जा रहे हैं ताकि दण्ड के लक्ष्य की प्राप्ति हो सके।
Cite this article:
प्रदीप शर्मा, सी.एल. पटेल. भारतीय कारागार व्यवस्था के वर्तमान स्वरूप का विश्लेष्णात्मक अध्ययन. Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 4(4): Oct.- Dec., 2016; Page 199-205