Author(s): डॉ0 अर्चना शर्मा

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Address: डॉ0 अर्चना शर्मा एस¨शिएट प्र¨फेसर, प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्त्व विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी-221005

Published In:   Volume - 4,      Issue - 4,     Year - 2016


ABSTRACT:
भारतीय परम्परा में ‘धर्म’ शब्द अत्यन्त व्यापक अर्थों में प्रयुक्त हुआ है। सामान्यतः यह सामाजिक व्यवस्था के नियामक तत्त्व के अर्थ में अधिक प्रचलित है। चूंकि समाज-निर्माण के मूल में मानव एवं उसके अन्तःसम्बन्ध ह¨ते हैं। मानव के रक्षणार्थ एवं कल्याणार्थ सामाजिक विधियां बनती हैं। इन विधिय¨ं क¨ प्राचीन भारतीय परम्परा में धर्म की संज्ञा दी गयी है। मानवतावाद के मूल में भी ‘मानव’ का कल्याण निहित ह¨ता है। अतः धर्म एवं मानवतावाद के सम्बन्ध में मीमांसा अत्यन्त प्रासंगिक है। भारतीय संस्कृति, एकता, अखण्डता एवं सहिष्णुता का संदेश देती है। आत्मसातीकरण हमारी संस्कृति का विलक्षण गुण है। ‘‘एकं सदविप्रा बहुधा वदन्ति’’ हमारा आदर्श रहा है। ‘‘सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयः तथा वसुध्©व कुटुम्बकम्’’ हमारे आचारिक सिद्धांत हैं। इन सबके मूल में है- हमारी धर्म भावना। दुर्भाग्य से कालान्तर में हमने धर्म की मिथ्या एवं संकीर्ण व्याख्या प्रारंभ कर दिया; जिससे हमारी सामाजिक समरसता संकट में पड़ गयी। प्रस्तुत पत्र्ा का उद्देश्य भारतीय परम्परा में धर्म की अवधारणा की व्याख्या करना तथा साथ ही मानवतावाद विश्¨षतः एकात्म मानववाद के चिन्तन में प्रयुक्त धर्म के विमर्श का विश्ल्¨षण करना है। ‘धर्म’ संस्कृत शब्द है, जिसका प्रय¨ग कई अथर्¨ं में ह¨ता आया है। यह शब्द ‘धृ’ धातु से बना है जिसका अर्थ है- धारण करना, आलम्बन देना, पालन करना। यह शब्द अनेक परिवर्तन¨ं एवं विपर्यय¨ं के चक्र में घूम चुका है। ऋग्वेद की ऋचाअ¨ं में यह शब्द लगभग 56 बार प्रयुक्त है जहाँ इसे या त¨ विश्¨षण के रूप में या संज्ञा के रूप में प्रय¨ग किया। ऋग्वेद की कुछ ऋचाअ¨ं में यह शब्द पुल्लिंग में प्रयुक्त हुआ है। अन्य स्थल¨ं पर नपुंसक लिंग में। अधिक स्थानांे पर यह धार्मिक विधिय¨ं या ‘धार्मिक क्रिया संस्कार¨ं’ के रूप में प्रयुक्त हुआ है। कहीं-कहीं इसे निश्चित नियम या आचरण नियम के अर्थ में भी प्रय¨ग किया गया है।1 धर्म शब्द के उपर्युक्त अर्थ वाजसनेयी संहिता में भी मिलते हैं। वेद की भाषा में उन दिन¨ं इस शब्द का वास्तविक अर्थ क्या था; यह कहना कठिन है।2 अथर्ववेद में ‘धर्म’ शब्द का प्रय¨ग ‘‘धार्मिक क्रिया- संस्कार करने से अर्जित गुण’’ के अर्थ में हुआ है।3 ऐतरेय ब्राह्मण में धर्म शब्द सकल धार्मिक कर्तव्य¨ं के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है।4 छान्द¨ग्य उपनिषद्5 में धर्म की तीन शाखाएं मानी गयी हैं-


Cite this article:
अर्चना शर्मा. भारतीय परम्परा में धर्म की अवधारणा एवं मानवतावाद. Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 4(4): Oct.- Dec., 2016; Page 213-217

Cite(Electronic):
अर्चना शर्मा. भारतीय परम्परा में धर्म की अवधारणा एवं मानवतावाद. Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 4(4): Oct.- Dec., 2016; Page 213-217   Available on: https://ijrrssonline.in/AbstractView.aspx?PID=2016-4-4-4


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