ABSTRACT:
तुम्हारे जीवन का उद्देश्य
क्रान्ति !
क्रान्ति का अर्थ भी जानते हो
अंग्रेजों की गुलामी और जमीदारों, सामंतों तथा राजा-महाराजाओं के शोषण से मुक्ति के लिए आन्दोलन।‘‘
क्या यह संभव है
असंभव कुछ भी नहीं होता।
बेटे! लगता है तुम गुमराह हो रहे हो। पढ़ते लिखने में अच्छे हो, खेलने में कहना ही क्या ? शाला के नायक भी हो और तुम्हारे विचार इतने दूषित ? मैं आज ही तुम्हारे पिताजी से कहूंगा कि तुम्हारी संगति बिगड़ रही है। हेडमास्टर संता राम ने कहा।
‘‘कोई लाभ नहीं होगा गुरूजी। मेरे पिताजी अच्छी तरह जानते हैं कि शिक्षा का उद्देश्य क्या होना चाहिए, क्योंकि वे स्वयं शिक्षा-विभाग में कार्य करते हैं। ‘‘1प्यारे लाल ने उत्तर दिया। डाॅ.खरे रचित उपन्यास ‘क्रांतिदूत ‘ का यह अंश ठाकुर प्यारे लाल सिंह के व्यक्तित्व को बखूबी प्रदर्शित करता है। 15-16 वर्ष की कच्ची उम्र से ही क्रांति, शिक्षा, समाज और देश के बारे में सोचने वाले ठाकुर प्यारे लाल सिंह सचमुच एक ‘क्रांतिदूत‘ बनकर हमारे समाज और देश में क्रांति का अलख जगाते हैं।
ठाकुर प्यारे लाल सिंह का जन्म 21 दिसंबर 1891 को राजनांदगांव के दैहान गाॅव के ठाकुर दीन दयाल सिंह के घर हुआ था। दीनदयाल जी सम्पन्न और पढ़े-लिखे थे। वे शिक्षा विभाग में एक अधिकारी थे। ठाकुर प्यारे लाल सिंह की माता जी का नाम श्रीमती नर्मदा देवी था।
ठाकुर प्यारे लाल सिंह को रमेश नैयर ने ‘त्याग मूर्ति ‘कहा तो डाॅ. खरे ने ‘क्रांतिदूत ‘। उनके वास्तविक एवं समग्र व्यक्तित्व को निम्न बिंदुओं के माध्यम से समझा जा सकता है-
Cite this article:
चुन्नी लाल साहू. ठाकुर प्यारे लाल सिंह के व्यक्तित्व का समग्र अध्ययन
डा गणेश खरे के ऐतिहासिक उपन्यास क्रांतिदूत के विशेष सन्दर्भ में.
Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 4(4): Oct.- Dec., 2016; Page 218-221