ABSTRACT:
विन्ध्य क्षेत्र मध्य प्रदेश के उत्तर-पूर्वी भाग में 23ह् 45’ से 25ह् 30’ उत्तरीय अक्षांश एवं 80025’ से 83058’पूर्वीदेशांतर में स्थित है।क्षेत्र में अमरकंटक, बांधवगढ़, चित्रकूट, धारकुण्डी, कुसमी, बगदरा, छुहिया, रगौली आदि ऐसे महत्वपूर्ण स्थान हैं जहां औषधीय पौधे बहुतायत में आज भी विद्यमान है। अर्थात वन संपदा और औषधीय वृक्षों के दृष्टिकोण से यह एक समृद्ध क्षेत्र है।शोधकर्ता ने विगत तीन वर्षों में क्षेत्र में इस विषय पर अध्ययन तथा सर्वे करके क्षेत्र के औषधीय पौधों तथा जनजातियों एवं ग्रामीणो द्वारा बीमारियों के निदान के लिये किये जाने वाले उपयोग की जानकारी एकत्रित की है। महत्वपूर्ण औषधि पौधों के उपयोग एवं संरक्षण के संबंध में प्रापत जानकारियों से स्पष्ट होता है कि क्षेत्र में औषधीय पौधो के संरक्षण के लिए कोई योजना नहीं है। अतः कई पादप प्रजातियां क्षेत्र से समाप्त हो रही है। वर्तमान में कुछ औषधि वनस्पतियां जैसे सर्पगन्धा, बहेरा, हर्रा, कालीमूसली, सफेदमुसली , सतावर, रत्ती, बैचांदी, मालकांगनी, बचनांग, ब्राम्ही, कालमेघ, कलियारी, असगन्ध, चित्रक आदि केवल पहाड़ी क्षेत्रों एवं वनों तक ही सीमित हो गयी है। वनों के उजड़ने के कारण तथा अत्यधिक चराई आदि के कारण अनेक औषधि वनस्पतियां संकटापन श्रेणी में है। जबकि क्षेत्र में पायी जाने वाली इन औषधि वनस्पतियों का उपयोग आयुर्वेद पद्धति में भी किया जाता है। इस हेतु इनका समय रहते संरक्षण किया जाना चाहिये। ष्शोध पत्र में स्थानीय -68 पादप प्रजातियों के वानस्पतिक नाम, स्थानीय नाम, कुल, उपयोगी अंग एवं विभिन्न बीमारियों हेतु उपयोग का वर्णन किया गया है, तथा कुछ महत्वपूर्ण औषधीय पौधों की आवास, प्रकृति, संरक्षण स्थिति एवं वर्तमान में संरक्षण हेतु सुझाव दिये गयें हैं।
अतः आवश्यक है कि यहां कि जलवायु एवं वातावरण को देखते हुए क्षेत्र में प्राकृतिक रूप से उत्पन्न होने वाली इन औषधियों का रोपण एवं संरक्षण किया जावें।
Cite this article:
डा. स्कन्द मिश्रा. विन्ध्य क्षेत्र के औषधीय पौधे: उपयोग एवं संरक्षण. Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 2017; 5(2): 86-92 .