ABSTRACT:
मध्य युग भारतीय संस्कृति की जीवन शक्ति का परीक्षाकाल रहा है। यह वह युग है जब छोटे-छोटे राज्यों में विभक्त भारत न केवल राजनैतिक दृष्टि से ही अपना महत्च खो बैठा था, अपितु सामाजिक धार्मिक एवं आर्थिक सभी दृष्टियों से आभाहीन-सा प्रतीत होता था। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि यह देश के सांस्कृतिक पराभव का युग था। राजनैतिक क्षेत्र में विदेशी आक्रमणकारियों के सतत् घातक प्रहारों ने न केवल भारतीय राजाओं की शक्ति को ही क्षीण कर दिया था। अपितु त्रस्त जन सामान्य को भी यह विश्वास दिलाने का प्रयत्न किया था उनके स्वामी जब अपनी ही रक्षा करने में असमर्थ है तो उनकी रक्षा क्या कर सकेगें, इतना ही नही, ये विदेशी अक्रान्ता न केवल यहां से द्रव्य ही लूट कर ले जाते थे, अपितु धीरे-धीरे इन्होने यहां अधिपात्य जमाना भी आरंभ कर दिया था जो कलान्तर मे दृढ़ हो गया था।
Cite this article:
नीरजा नामदेव. मध्यकालीन भारतीय सन्त एवं उनका योगदान. Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 2018; 6(3):350-354.
Cite(Electronic):
नीरजा नामदेव. मध्यकालीन भारतीय सन्त एवं उनका योगदान. Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 2018; 6(3):350-354. Available on: https://ijrrssonline.in/AbstractView.aspx?PID=2018-6-3-25