ABSTRACT:
गोविंद मिश्र कथा-साहित्य के प्रतिष्ठित हस्ताक्षर हैं। सन् 1963 से वे लगातार सृजनशील है। ग्यारह उपन्यास, बीस कहानी संग्रह, छह यात्रा वृतांत, आठ निबंध, चार बाल साहित्य, दो आलोचनात्मक पुस्तकें एवं छह अनुवाद इत्यादि लिखकर आपने समकालीन हिन्दी कथाकारों में अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है। बहुआयामी प्रतिभा के धनी गोविंद मिश्र ने अपनी रचनाओं में भारतीय समाज के बदलते परिदृश्य का बखूबी चित्रण किया है। पारिवारिक जीवन और स्त्री-पुरूष संबंधों का यथार्थ, टूटते परिवार और बिखरते मनुष्य, मानवीय संबंधों का अवमूल्यन, अंतरंगता की ललक, मध्यवर्गीय चेतना, आधुनिक नारी, शहर एवं कस्बे में सांस्कृतिक टकराव, टूटन की समस्याएँ, छटपटाती नैतिकता, मानवीय गर्माहट की खोज, स्वप्न भंग का यथार्थ, शासकीय तंत्र के तिलिस्म का पर्दाफाश इत्यादि विषयों पर आपने खूब लिखा। गोविंद मिश्र यशस्वी कथाकार है। हिन्दी कहानी में अपनी रचनाशीलता से आपने अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान अर्जित किया है। जब हिन्दी कहानी भांति-भांति के प्रयोगों से आक्रांत थी तब आपने जमीन से जुड़ी सच्चाइयों को अपनी रचनाओं में केन्द्रीयता दी। मानवीय मनोविज्ञान के अतल मैं उतरकर आपने उन जीवन सत्यों को उद्घाटित किया जिन पर स्थूल यथार्थ औपचारिकता, असमंजस, उपेक्षा आदि की धूल जम गई थी। समय के अनुरूप आपने विकासशील समाज के संघर्ष व स्वप्न को अपनी रचनाओं में अभिव्यक्ति दी है।
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अल्का, कृष्णा चटर्जी. गोविंद मिश्र की कहानियों में मध्यवर्गीय चेतना.Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 2018; 6(4):551-553.
Cite(Electronic):
अल्का, कृष्णा चटर्जी. गोविंद मिश्र की कहानियों में मध्यवर्गीय चेतना.Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 2018; 6(4):551-553. Available on: https://ijrrssonline.in/AbstractView.aspx?PID=2018-6-4-30