Author(s):
कुलदीप
Email(s):
Email ID Not Available
DOI:
Not Available
Address:
कुलदीप
पी॰ एच॰ डी॰ शोधार्थी, हिन्दी विभाग, महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय, र¨हतक
*Corresponding Author
Published In:
Volume - 7,
Issue - 1,
Year - 2019
ABSTRACT:
मनुष्य ने अपनी विभिन्न जरूरत¨ं अ©र उद्देश्य¨ं की पूर्ति के लिए समाज का संगठन किया। इसलिए समाज क¨ चाहिए कि वह मनुष्य की हर तरह की आवश्यकताओं की पूर्ति करें अ©र उन्हें मानसिक व सांस्कृतिक रूप से उन्नतशील बनाए अर्थात् समाज मानवीय जीवन क¨ विकसित करने वाली महत्त्वपूर्ण संस्था है। समाज का अपने दायित्व¨ं क¨ पूरा न कर पाने के कारण समाज में असमानता, श¨षण, धार्मिक कट्टरता, अंधविश्वास, अज्ञानता आदि द¨ष आ जाते हैं। इन्ही द¨ष¨ं के फलस्वरुप व्यक्त की जाने वाली क्रिया-प्रतिक्रिया ही सामाजिक ब¨ध का विचारात्मक रूप है, ज¨ समाज की गतिविधिय¨ं क¨ प्रतिबिम्बित करती है। समाज शब्द क¨ परिभाषित करते हुए कहा जा सकता है कि- ’’समाज सामाजिक संबंध¨ं का पाश्र्व है। मनुष्य की पारस्परिक क्रियाएँ, अन्तः क्रियाएँ एवं प्रतिक्रियाएँ ही समाज का निर्माण एवं विकास करती है। इसके माध्यम से ही समाज की पीढ़ी दूसरी पीढ़ी क¨ उसके कल्याण के अपने अनुभव हस्तांतरित करती है।’’1
Cite this article:
कुलदीप. सुलगती साँझ’ कहानी-संग्रह में चित्रित सामाजिक यथार्थ-ब¨ध . Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 2019; 7(1):273-276.
Cite(Electronic):
कुलदीप. सुलगती साँझ’ कहानी-संग्रह में चित्रित सामाजिक यथार्थ-ब¨ध . Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 2019; 7(1):273-276. Available on: https://ijrrssonline.in/AbstractView.aspx?PID=2019-7-1-49