Author(s):
सौदामिनी गुप्ता, शषिकांत मणि त्रिपाठी
Email(s):
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DOI:
10.52711/2454-2687.2023.00029
Address:
सौदामिनी गुप्ता1, शषिकांत मणि त्रिपाठी2
1लेखिका, पीएच डी स्कॉलर (योग), सैम ग्लोबल यूनिवर्सिटी भोपाल, मध्यप्रदेष।
2पर्यवेक्षक, एसोसिएट प्राध्यापक (योग विभाग), सैम ग्लोबल यूनिवर्सिटी भोपाल, मध्यप्रदेष।
*Corresponding Author
Published In:
Volume - 11,
Issue - 3,
Year - 2023
ABSTRACT:
भारतीय योग परम्परा में योग के विभिन्न आयाम हैं जिसमें से कर्मयोग, ज्ञानयोग एवं भक्तियोग प्रमुख हैं। वास्तव में योग एक अध्यात्मिक प्रक्रिया है, जिसमें शरीर, मन एवं आत्मा को एक साथ लाने का प्रयास किया जाता है। योग शब्द की निष्पत्ति ‘युज’ धातु से हुई है, जिसका अर्थ है युक्त होना, जोड़ना अथवा मिलाना। अर्थात संयम पूर्वक साधना करते हुए आत्मा को परमात्मा के साथ जोड़कर समाधि अवस्था में पहुंचना ही योग है। ज्ञान तथा योग का सम्बन्ध अन्योन्याश्रित है। एक के बिना दूसरे की कल्पना भी नहीं की जा सकती। ज्ञानयोग के सिद्धांत के अनुसार ज्ञानयोग के अनुसार आत्मा आनंदस्वरूप, ज्ञानस्वरूप, सत्, कूटस्थ, नित्य, शुद्ध, बुद्ध है। अपने वास्तविक स्वरूप में में आत्मा ब्रह्म ही है। ज्ञानयोग के अनुसार जीव ब्रह्म की एकता का ज्ञान हो जाना ही योग है।
Cite this article:
सौदामिनी गुप्ता, शषिकांत मणि त्रिपाठी. भारतीय योग परंपरा में योग ग्रंथों के संदर्भ मे शिव संहिता में ज्ञानयोग का स्वरूप. International Journal of Reviews and Research in Social Sciences. 2023; 11(3):175-9. doi: 10.52711/2454-2687.2023.00029
Cite(Electronic):
सौदामिनी गुप्ता, शषिकांत मणि त्रिपाठी. भारतीय योग परंपरा में योग ग्रंथों के संदर्भ मे शिव संहिता में ज्ञानयोग का स्वरूप. International Journal of Reviews and Research in Social Sciences. 2023; 11(3):175-9. doi: 10.52711/2454-2687.2023.00029 Available on: https://ijrrssonline.in/AbstractView.aspx?PID=2023-11-3-7
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
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